आँसू / हेमन्त शेष

Gadya Kosh से
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साहित्यिक मूल्यों की दृष्टि से अक्सर किसी अधलिखी कविता या कहानी का अंश आंसुओं में छिपा रहता है. जीवविज्ञान के अनुसार वे हमारी प्रजाति का विशेषाधिकार हैं. ख़ास तौर पर मनुष्य को आत्महत्या जैसी कार्यवाही से नष्ट होने से बचाने में उनकी उपयोगिता असंदिग्ध है- यद्यपि मनोविज्ञान की दूसरी शर्त यह है कि उन्हें वास्तविक होना चाहिए. यदि तुम पानी में ज़रा-सा ख़ार और नमक मिला दो और उसे जीभ की नोक से छुओ- तुम पाओगे की व्यथा की अभिव्यक्ति का अद्वितीय घोल तैयार है.

आंसुओं को चाहिए सदैव आत्मा से फूटा एक असहनीय दुःख, जो इस जीवन के लिए एक मामूली-सी घटना भर है. यह बात अलग है आँसू झूठ और सच का भेद धो डालते हैं, और नीतिशास्त्र के लिए ऐसे अन्तर का भी अपना एक महत्व हो सकता है. बच्चों और कवियों के आँसुओं की तो बात ही कुछ निराली है- जिसे बेबसी और निश्छलता और पवित्रता और मासूमियत और ईश्वर आदि-आदि पर लिखे गये किसी साहित्य में ठीक-ठीक तरह शायद आज तक व्यक्त नहीं किया जा सका है!