आंकड़ों के पीछे भागता मनुष्य / जयप्रकाश चौकसे

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आंकड़ों के पीछे भागता मनुष्य
प्रकाशन तिथि :13 जनवरी 2015


विगत पंद्रह वर्षों में सलमान, आमिर आैर शाहरुख खान ने मिलकर कुल 126 फिल्में की हैं परंतु सैफ अली खान आैर अक्षय कुमार की फिल्मों की संख्या 153 हैं। विगत दौर के दिलीप कुमार ने आधी सदी में बमुश्किल साठ फिल्में की थी। गोविंदा ने भी अपने पहले 15 सालों में सैकड़ा ठोंक दिया था। रितिक रोशन ने अपने समकालीन सितारों की तुलना में कम फिल्में की है। एक दौर में आमिर ने महसूस किया कि प्रस्तावित फिल्मों को नहीं करके वे कम फिल्में करेंगे ताकि खूब सोच-विचार के लिए समय मिले। धन कमाते हुए धन के उपयोग के लिए भी समय चाहिए। एक दौर में जीतेंद्र के पास इतना अधिक काम था कि खुद को चुस्त-दुरुस्त रखने के लिए उन्होंने रोटी, चावल इत्यादि पारम्परिक भोजन छोड़ दिया था। उन्होंने अपने दौर के अंत में कोई पंद्रह वर्ष पश्चात दाल-रोटी खाई थी। इसी तरह जब शशिकपूर दिन में तीन फिल्में करने लगे तो उनके भाई राजकपूर ने उन्हें "टैक्सी"कहा था। इसी तरह अमजद खान ने 'शोले' आैर एकल सितारा जुगल किशोर की 'दादा' की विराट सफलता के बाद एक दिन में पांच निर्माताआें को समय देना शुरु किया गोयाकि वे सुबह नौ से रात दो बजे तक शूटिंग करते थे। मेरी 'कन्हैया' का पांच दिन में पूरा किया जा सकने वाला काम 45 दिनों में पूरा हुआ था।

यह सितारे की व्यक्तिगत रुचि पर निर्भर करता है कि वह टकसाल बने या अपने जीवन का आनंद लेते हुए काम करे। सच तो यह है कि आम आदमी के जीवन में इस तरह के रास्ते चुनने के अवसर आते हैं। हमारे जीवन के दबाव ही हमारा रास्ता चुनते हैं आैर सच तो यह है कि आम आदमी कभी अपने मन के अनुरूप जी ही नहीं पाता। हमारे लिए हमेशा अन्य शक्तियां ही चुनाव करती है। बात जाकर टिकती है पंचतंत्र की कछुआ आैर खरगोश की कहानी पर। अब जीतेंद्र की इच्छा थी कि वह अपने बच्चों के लिए धन की सुरक्षा खड़ी करे आैर हुआ यह कि उनकी बेटी एकता कपूर ने उनसे दस गुना बड़ा साम्राज्य खड़ा कर दिया आैर उन पर दबाव डाला कि इसकी सुरक्षा के लिए वे शराब छोड़ दें आैर नियमित जीवन जिए। नतीजा यह है कि जीतेंद्र एक पिंजड़े से निकल कर उससे बड़े पिंजड़े में चले गए। वे शराब पीने में खूब आनंद उठाते थे आैर पीकर खूब हंसी-मजाक करते थे। अब नियमित आहार आैर कसरत करने के बाद भी मृत्यु तो ही जाती है। उसके खिलाफ कोई गारंटी नहीं है। गौरतलब यह है कि मेहनतकश आैर ईमानदार भी अपने परिवार के लिए काम करता है आैर रिश्वत लेने वाला भी दावा करता है कि परिवार की सुरक्षा के लिए गलत काम कर रहा है। आखिर यह परिवार क्या है, इसका मूल स्वरूप क्या है, पारिवारिक भावना रिश्वत लेने की प्रेरक कैसे बन गई? परिवार के ढांचे में से संस्कार कैसे निकल भागे? परिवार के इतिहास में तो कुरुक्षेत्र भी है। आदम काल से ही जंगली जानवरों से रक्षा के लिए आग के अलाव के गिर्द रहते हुए परिवार का विचार जन्मा परंतु आज तो परिवार में ही लालच का जानवर समाया है। आज भी परिवार के सामने विकट समस्या बच्चों को पालने की है। उन्हें आप कैसे उन प्रभावों से बचा पाएंगे जो टेक्नोलॉजी ने सबको सहज सुलभ करा दिए हैं। दरअसल परिवार का अर्थ कुछ विशेष जीवन मूल्य थे जो खो गए हैं। सारे शिक्षा के ठिए अखाड़े बन गए हैं जहां प्रतिद्वन्दिता को असल बात बना दिया गया है। यहां तक कि हम 'टेक इट इजी' आैर उसकी तरह अन्य सार्थक फिल्मों से भी विमुख हो गए हैं। संगठित अपराध जगत में भी परिवार होते हैं और उनके अपराध करने के इलाके बंटे होते हैं। परंतु "परिवार की इज्जत' के लिए उनमें खूनी संघर्ष होता है। इसी तरह औद्योगिक घरानों में भी युद्ध होता है। परिवार संस्था की जरूरत शांति और सुरक्षा के लिए है परंतु वो कभी युद्ध का कारण बन जाता है।

आजकल आमिर अपने लेखकों के साथ अर्जेंटीना में हैं आैर लंबे समय वहां रहकर भविष्य की योजना बनाएंगे। राजकुमार हीरानी अस्वस्थ हैं आैर विधू विनोद चोपड़ा अपनी नई फिल्म के लिए थाइलैंड गए हैं। क्या ये तीनों विरोध के शोर के कारण भागे हैं? यह भागने वाले लोग नहीं हैं वरन् अपनी नई फिल्मों के काम में डूबे हैं।

जीतेंद्र, गोविंदा ने अपने शिखर दिनों में कभी इस तरह की लंबी छुट्टी लेने का नहीं सोचा। अक्षय के पास भी इन 'फिजूल' बातों के लिए वक्त नहीं है। अपने वक्त के साथ क्या करे- यह व्यक्ति की अपनी अभिरूचि पर निर्भर करता है आैर वक्त सबके साथ क्या करता है यह भी किसी से छुपा नहीं है। दरअसल आम आदमी कभी ऐसे मुकाम पर नहीं पहुंचा कि वह वनवास स्वीकार करे। हमारा आज का जीवन ही ऐसा है कि शास्त्रों में ज्ञान, गृहस्थ, वनवास की बीत है। आज के जीवन में एक ही समय में ज्ञान, गृहस्थ आैर वनवास का अनुभव प्राप्त करना होता है। काल खंड की सारी परिभाषाएं गड़बड़ा गई हैं।