आंखें देखती हैं और बोलती भी हैं / जयप्रकाश चौकसे

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आंखें देखती हैं और बोलती भी हैं
प्रकाशन तिथि : 05 अक्तूबर 2019


भूमि पेडनेकर और तापसी पन्नू अभिनीत 'सांड की आंख' का प्रदर्शन होने जा रहा है। यह फिल्म वास्तविक औरतों के जीवन से प्रेरित है। उन्होंने निशाना साधने की प्रतियोगिताएं जीती हैं। अर्जुन ने मछली की आंख के बिंब को देखकर निशाना साधा था और द्रौपदी के स्वयंवर में वे विजयी हुए। बिना देखे जाने परखे ही माता कुंती ने कहा आपस में बांट लो। विजयी अर्जुन ने यह क्यों कहा, कि वे कोई चीज लाए हैं? संभवत संस्कृत से हिंदी अनुवाद में त्रुटि रह गई हो परंतु महिलाओं को कभी सच्ची समानता और स्वतंत्रता नहीं मिली। बहरहाल निशाना आंख से ही साधा जाता है। 'महाभारत' में ध्वनि की सहायता से निशाना साधने का विवरण है और इस विषय पर विधु विनोद चोपड़ा ने 'एकलव्य' नामक फिल्म बनाई थी।

निशाना साधते समय केवल एक आंख का ही प्रयोग किया जाता है। सही फोकस के लिए दूसरी आंख को बंद रखा जाता है। दोनों आंखों के बहनापे को यह विज्ञान रेखांकित करता है कि एक आंख के पूरी तरह जख्मी हो जाने पर उसे तुरंत निकाला जाना चाहिए अन्यथा अच्छी आंख अपनी 'बहन' की सहानुभूति में काम करना बंद कर देती है। इसे 'सिम्पेथेटिक ऑप्थैल्मिक' कहते हैं। इस विषय पर लिखे उपन्यास का नाम है-'आईलेस इन गाज़ा'। इस नाम में सैमसन की कथा और संकेत है। जिसकी आंखें फोड़ कर बाल मुंडवाकर जेल में बंद कर दिया गया था। कैद करने वाले भूल गए कि बाल आते ही उसकी शक्ति लौट आएगी। इससे प्रेरित फिल्म का नाम था 'सैमसन एंड डिलाइला'। ज्ञातव्य है कि एक समाजवादी राजनैतिक दल के पक्ष में हजारों प्रश्न लिखने वाले कवि जॉन मिल्टन ने अपनी दृष्टि खो दी थी। उनकी 'पैराडाइज लास्ट' अमर महाकाव्य है और सैमसन एगोनिस्टिक' भी उन्होंने ही लिखी है। हमारे दृष्टिहीन सूरदास ने भी सरस काव्य रचा है। जॉन मिल्टन की रचना का नाम 'पैराडाइज रिगेंड' भी है परंतु इसे अपेक्षाकृत कमजोर माना जाता है। जैसे धरती पर स्वर्ग को एक झटके में ही तोड़ दिया गया और अब वहां उद्योग स्थापित करने की बात की जा रही है। गोयाकि उसे प्रदूषित भी किया जाना है।

आंख के कुछ रोग जेनेटिक माने जाते हैं अर्थात वंश में ही यह रोग होता है परंतु यह जरूरी नहीं कि वंश के सभी लोगों को यह रोग हो जाए। इसी तरह के एक रोग का नाम है- 'स्टारबग', परंतु इस रोग से पीड़ित व्यक्ति रोग की साधारण अवस्था में वर्षों पड़ा रहता है। कभी-कभी दूसरी स्टेज 50 वर्ष पश्चात आती है और लाइलाज अवस्था 70 के दशक के बाद आती है। रोग, गुण-अवगुण अनुवांशिक ही नहीं होते वरन हमारी जीवनशैली में भी रोग के बीज छुपे हुए होते हैं। व्यक्ति का अपना मौलिक और व्यक्तिगत भी बहुत कुछ होता है। अगर आपको प्याज देकर कहा जाए कि इसके भीतर क्या है यह जानने के लिए इसकी परतंे एक-एक करके निकाल दो। प्याज की सारी परतें हटाने पर हम प्याज ही खो देते हैं, परंतु परते उतारने वाली उंगलियों को सूंघे तो प्याज की गंध में समाई हुई पाएंगे। इसी तरह गंध ही मनुष्य का मौलिक और व्यक्तिगत है जिस पर वंश का प्रभाव नहीं पड़ा है।

कभी प्याज की कीमत बढ़ने के कारण सरकार गिर गई थी परंतु वर्तमान में किसी भी महंगाई का कोई प्रभाव सरकार पर पड़ता ही नहीं और न ही किसी आलोचना का असर होता है। सभी का प्रभाव समाप्त हो चुका है। आत्मा में समाया इस्पात टूटने वाला नहीं है। उसे धार्मिक स्थानों में जमकर तपाया गया है। कभी-कभी आंखें अंधेरे की अभ्यस्त हो जाती हैं और सब कुछ साफ नजर आने लगता है। फिल्म कलाकार घंटों तेज रोशनी में काम करते हैं। उनमें से कुछ की आंखें हमेशा चौंधियायी रहती हैं। बरसों पहले 'आंखें' नामक फिल्म में कुछ अंधे एक बैंक लूट लेते हैं। उनके अंधे होने के कारण उन पर कोई शक नहीं करता। डैनी बॉयल की 'स्लमडॉग मिलेनियर' में दिखाया गया है कि एक अपराध करने वाला संगठन मासूम बच्चों की आंखें फोड़ देता है, ताकि उन्हें भी खूब पैसे मिल सकें। आंखों की सुरक्षा के लिए आंख में काजल लगाया जाता है और बुरी नजर से बचाने के लिए भी प्रतीक स्वरूप काजल गर्दन पर लगाया जाता है। आंखों पर अनगिनत कविताएं और फिल्मी गीत लिखे गए हैं। मसलन 'तेरी इन आंखों के सिवाय दुनिया में रखा क्या है।'