आइसबर्ग / ज़ेब अख्तर

Gadya Kosh से
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समुद्र जागृत हो रहा था और उसकी लहरें मानो मैरिन ड्राइव की सीमाओं को तोडकऱ स्वतंत्र हो जाने पर आमादा हों। सामने ही कांच का वस्त्र धारण किए ऊंची-ऊंची इमारतें आकाश को छूने की स्पर्धा में जुटी हुई थीं। भीड़ और कोलाहल भरे वातावरण में जोड़े एकदम से एक होकर चलने का प्रयास कर रहे थे। और यहां से वहां तक चौड़ी बिछी हुई साफ-सुथरी सडक़ पर रेंगती तरह-तरह की मोटर-गाडिय़ां जैसे इस पूरे लैंडस्केप पर नन्हें-नन्हें बच्चे हों।

गोया शहर उसके सामने पूरी आधुनिकता के साथ खड़ा था। पूरी तरह से अनावृत... कहीं कोई भूमिका या औपचारिकता नहीं। बस दूर-दूर तक संगीत-सा फैलता हुआ एक सम्मोहन, एक आमंत्राण जो हर किसी पर नशे की तरह हावी हो रहा था।

पर रामन्ना था कि इन सब से मुंह मोड़े, एक पत्थर पर बैठा अपने तलवे सहला रहा था। वह अकेला था और उसके सामने उसका जूता पड़ा हुआ था- नया और एम्बेसडर का सबसे कीमती ब्रांड। उसके पांवों के के बिल्कुल अनुरूप। इसके बावजूद उन्हें पहनने पर उसे पांव में एक चुभन, एक टीस महसूस हो रही थी, जो उसका सारा रोमांच और सारा कौतूहल सोखती जा रही थी।

वह उन्हें कई बार उतारकर देख चुका था- अंदर झांककर, हथेलियों को अंदर फेरते हुए। कहीं कुछ भी नहीं था। एक छोटा-सा कंकर तक नहीं। फिर यह क्या हो रहा था उसे? उसने सिगरेट सुलगा लिया। राहत और इत्मीनान भरे कुछ कश लेने के पश्चात् उसका हाथ टाई की ओर चला गया। पिछले कई दिनों से उसे टाई और सूट में भी असहजता महसूस होने लगी थी। चलता तो मालूम पड़ता, बगलों पर कोई दोनों ओर से दबाव डाले हुए है। कमर पर बंधी हुई नरम खाल की पेटी भी बड़ी सख्त जान पड़ती और टाई की गांठ जैसे गले में किसी फंदे का अहसास दिलाती। और अब ये जूते, उफ....!

उन्हें वैसे ही छोडकऱ वह टाई की गांठ ढीली करने लगा। व्याकुलता के उसी अवांतर में उसका ध्यान घड़ी की ओर गया- तो शो का समय भी हो गया था। बल्कि अब तो वह शुरू भी हो चुका होगा। वह जूतों को हाथ में लिए नंगे पांव उठ खड़ा हुआ। टैक्सी की तलाश में।

विल्सन थियेटर आज पूरी भव्यता के साथ जगमगा रहा था। स्थापत्य की मुगल शैली में बनी यह इमारत जैसे फिर से अपने वैभव भरे अतीत में पहुंच गई थी। उसके ऊपरी छोर पर लाल प्रकाश का पुंज-सा था और नीचे के छतरीनुमा हिस्सों पर हल्की पीली किरणों की बौछारें हो रही थीं।

रामन्ना को दूर से प्रतीत हुआ जैसे वह किसी भवन के सामने नहीं बल्कि पारदर्शी ज्वालामुखी के सम्मुख खड़ा है। प्रवेश द्वार पर ही नियॉन बोर्ड पर मोटे-मोटे अक्षरों में लिखा हुआ था- केट विंसलेट, द रियल टाइटेनिक।

रामन्ना अंदर पहुंचा तो विस्मित होकर एक स्थान पर जम-सा गया। भीड़ की आपाधापी या घने अंधेरे के कारण नहीं बल्कि मंच के बीचों-बीच खड़ी और प्रकाश से नहाई हुई लडक़ी को देखकर। लडक़ी यानी केट विंसलेट... एक्ट्रेस ऑफ इलेवन एकेडमी एवार्ड विनर मूवी, द टाइटेनिक गर्ल।

झिलमिलाती रेखाओं के बीच वह झुक-झुककर अपने प्रशंसकों का अभिवादन कर रही थी। डूम का एक शोर और एक रिद्म में बजती तालियों के दौरान रामन्ना को लगा, उसे फिर से कुछ चुभने लगा है, पहले से कहीं अधिक शिद्दत के साथ। जूते, टाई की गांठ, सूट और बेल्ट के साथ कोई चीज उसे फिर से असहज किए जा रही है। और यह कोई चीज नहीं बल्कि मुस्कराती हुई यही बाला थी जिसे लोग केट विंसलेट के नाम से पुकार रहे थे। इस समय दुनिया की सबसे अधिक चर्चित और महंगी अभिनेत्री।

रामन्ना के सामने अब कोई धुंध और कोई वहम नहीं है। गुप्त-ऊर्जा की तरह उसके कण-कण में संश्लेषित होती हुई यह लडक़ी केट विंसलेट नहीं तारामिला है। दलम की आजीवन सदस्या। विरकापुलम गांव की शिक्षिका। जंगल के रास्तों और पेड़-पौधों तक से परिचित।

वारंगल के बीहड़ों का अभियान हो या मुख्यालयों पर हमले की योजना, खाद्य सामग्री की समस्या हो या सूचनाओं का प्रचार-प्रसार, हर अवसर पर तत्पर रहने वाली तारामिला। उसका प्रेम, जरूरत या संबल, कहां-कहां नहीं थी वह। अव्यवस्थित और डूबती उतरती सांसों के बीच एक अजीब-सी मुक्ति और खुले आकाश को छुआ था उसने, जाने कितनी-कितनी बार।

हॉल में तालियों के साथ अब शोर भी उठने लगा था। उसने आंखों को फिर से मींचा कि शायद यह दृष्टि भ्रम या खुली आंखों का सपना ही हो। मंच पर अब वह नृत्य प्रस्तुत किया जा रहा था जो फिल्म का एक प्रमुख आकर्षण था। नायिका और उसके सहयोगी पाश्र्व-संगीत के साथ सधे हुए कदमों से लय बद्ध हो रहे थे। यह मद्धिम गति का यूरोपियन नृत्य था जिसमें पंजों के बल हवा में झूलते हुए नृत्य का समापन होता है। नृत्य के इस अंतिम पड़ाव पर रामन्ना को याद आया... हवा में झूलती हुई तारामिला भी एक क्षण के लिए नायिका की भांति ही उछल पड़ी थी। बिल्कुल अंतिम क्षण में जब वह चैंककर दौड़ी थी। फिर किसी चीज से टकराकर हवा में उछल पड़ी थी।

मिलेनियम बग की भांति उलझी हुई गुत्थियों को जैसे समाधान मिलता है। शनै: शनै: हवा के झोंके और सदिश होते हैं और परदे के बाद, स्टेज पर, शेष क्या बचा रहता है वही खंडहर। साल, चील, चिनार और छोटी-बड़ी पहाडिय़ों से घिरा उनका तत्कालीन ठिकाना... पार्टी का स्थानीय कार्यालय! फ्रांसीसी किला। कब आया था वह यहां? कितने साल हुए? तारामिला, नागी और राव कब मिले थे उससे?

रामन्ना जैसे समुद्र की तह में डूबे हुए टाइटेनिक की ओर अपने पंजे बढ़ाता है। कपास, धान और अंत में ज्वार की खेती ने बैर किया था। यह लगातार तीसरे वर्ष हुआ था। अप्पा रोज शराब पीकर आता और अम्मा से लड़ता। महाजन का कर्ज उतारने के लिए वह उससे उसका एकमात्र कंगन देने के लिए कहता, जो सोने-चांदी के नाम पर घर की अंतिम धरोहर थी। अम्मा रोज इन्कार करती और रोज पिटती। अप्पा पीटते-पीटते थक जाता तो स्वयं रोने लगता। टूटे दांत और पिचके हुए गालों से उसकी आवाज तब बड़ी विचित्र होकर निकलती, डरावनी- डरावनी-सी।

और फिर अप्पा ने आत्महत्या कर ली थी। खाली पड़ी गोशाला में, फांसी से लटक कर। उसी समय से वह देखता आया था, मां को बूढ़ी होते हुए। और तिल-तिल महाजन का बढ़ता दबाव उन दिनों अचानक बढ़ गया था। इकलौते कंगन के विषय में उसे जानकारी मिल गई थी, जिसे मां ने न जाने कहां छिपा दिया था। इस मोह के कारण एक दिन वह अम्मा से लड़ बैठा। तब अम्मा ने उसे शांत करते हुए कहा था, इस कंगन को मैंने तेरी बहू के लिए संभाल कर रखा है।

वह दंग रह गया था सुनकर। अम्मा की निस्संगता और भीतर पलती जिजीविषा पर आश्चर्य से भर उठा था। बल्कि कहना चाहिए, लाज से भर उठा था। अब तक वह उसे लाचार और बेबस स्त्री के रूप में ही देखता आया था। मगर वह तो बलशाली निकली थी। उससे और अप्पा से कहीं अधिक।

उन्हीं दिनों उसकी मुलाकात मुहैया से हुई थी, जो दलम के सदस्यों के लिए भोजन का प्रबंध करता था। कहने के लिए गांव में उसका अपना कोई नहीं था। पर वह आस-पास के दसियों गांवों में जाना जाता था। और यह शायद मुहैया का ही प्रभाव था कि महाजन ने उसे तंग करना बंद कर दिया था। फिर मुहैया ने उसे तारामिला, नागी और राव से मिलवाया था।

शीघ्र ही कई-कई अभियानों में सफल भागेदारी के पश्चात् वह अपने ही हमउम्र किंतु दलम के वरिष्ठ पटनायक से मिला था। घंटों की बातचीत के बाद पटनायक भी उससे प्रभावित हुआ था। उसे दस्ते में शामिल होने का आमंत्रण मिला था। रामन्ना के शरीर पर एकाएक कुछ रेंगा था। उसे नये उतरदायित्व और कर्तव्य का बोध हुआ था, अपने ढंग से कुछ कर लेने का। कुछ खोने के साथ कुछ पाने का भी। एक धुंधला-सा बिंब अप्पा का कौंध गया था फिर। सड़े हुए गोबर और बदबू में सने पुआल के ऊपर झूलते हुए अप्पा। उसका यह बेहद निजी दुख तब एकदम से व्यापक हो उठा था। जिसकी परिधि में कई अप्पा थे। कई आत्महत्याएं थीं। कई अम्माएं थीं और कई रामन्ना थे। उस क्षण से, वह इन सबके लिए था। उसे गोदावरी के केश-सी बिखरी उन छोटी-छोटी लहरों का रास्ता खोलना था, जिन्हें खेतों तक पहुंचने से पहले ही रोक लिया जाता था।

कितना ऊंचा उठ गया था वह उस घड़ी अम्मा की नजरों में, मुहैया, तारामिला, नागी और राव की नजरों में, पर उसके कुछ ही दिनों बाद पटनायक से उसके मतभेद गहराने लगे थे। उस दिन पटनायक के एक निर्णय से वह असहमत ही हो उठा था।

उनके कुछ साथी पुलिस की हिरासत में थे। सूचना मिली थी कि जंगल से होकर उच्च अधिकारियों की जीप गुजरने वाली है। उनमें सबसे महत्वपूर्ण जिला आयुक्त मिस्टर डांगे था। पटनायक ने सदस्यों की मुक्ति के लिए इनके अपहरण की योजना सामने रखी थी, जो उसके आक्रामक तेवर के अनुरूप था। जबकि रामन्ना के लिए अपने साथियों की सुरक्षा अधिक महत्वपूर्ण थी। उस दिन इसी बात को लेकर मीटिंग रखी गई थी।

जहां रामन्ना आकलन और उचित अवसर की भूमिका का पक्ष लेकर बात करता वहीं पटनायक उसे व्यर्थ बताते हुए धन, हथियार और पार्टी की अप्रत्याशित लोकप्रियता का तर्क प्रस्तुत करता। रामन्ना ने कई बार महसूस किया था- पटनायक अपने अनुभवों को सौंदर्य शास्त्रा की तरह प्रस्तुत करता और अपने कार्यक्रम की भावी रूपरेखा एक रूमानी कवि की भांति खींचता। रामन्ना ने कहा था, फिलहाल शासक वर्ग स्थिरता के पड़ाव पर है। कई आकार और कई प्रकार की बैसाखियों पर खड़ी सरकार भले ही दौड़ न रही हो पर धीरे-धीरे सरक जरूर रही है। ऐसे में आक्रामक रवैया अपनाकर हमें अपने शासक वर्ग को सजग होने का अवसर नहीं देना चाहिए।

तुम्हारा सोचना गलत है रामन्ना। पटनायक ने बहुत संतुलित स्वर में कहा था- तुम जिसे सरकने का नाम दे रहे हो वह पहलू बदलना और शरीर के उस भाग को सहलाना मात्रा है जिस पर सहयोग के नाम पर यह छोटे-छोटे दल अपने नाखून चुभो रहे हैं।

फिर भी उदारीकरण, लोबलाइजेशन और दलित तथा मुसलमानों को मुख्यधारा में शामिल करने की बात कहकर यह सरकार जनता को तो भरमा ही चुकी है। फिर धर्म निरपेक्षता और सामाजिक समानता के नाम पर इस सरकार ने ऐसा चोला बदला है कि देश की वामपंथी पार्टियां भी चकित हैं। बल्कि उनको अपने अस्तित्व और पहचान की चिंता होने लगी है। ऐसी स्थिति में कोई गलत निर्णय बहुत महंगा पड़ सकता है। स्थितियां हमारे बिल्कुल विपरीत हैं।

स्थितियां अनुकूल हैं रामन्ना। पटनायक अपनी ऐनक साफ करने लगा था, अफरा-तफरी मचाने के लिए हमारे गिने-चुने सदस्य ही काफी हैं। अभी तुम्हीं ने कहा, गठबंधन में शामिल राज्य सरकारें अपना हित साधने में दुबली हुई जा रही हैं। एक ओर उनकी मांगें, हठ और जिद हैं तो दूसरी और सरकार के सामने महंगाई और राष्ट्रव्यापी आर्थिक मंदी से निबटने की विकट समस्या है। और ऐसे वातावरण में भी शीर्ष नीतिगत मसलों पर विभाजित है। इसे स्थिरता या प्रतिकूलता की स्थिति नहीं कहा जा सकता।

रामन्ना खामोश हो गया था। खिंचा-खिंचा लौटा था फिर। गोदावरी के दूर तक फैले दूध-से सेफद आंचल पर उसकी नाव एक पगडंडी-सी खींचती जा रही थी, जिसका संबंध कहीं न कहीं से उसके विचारों में पड़ी एक दरार और मस्तिष्क में उठे उथल-पुथल से भी था।

चप्पू खेते हुए रामन्ना की यह मुद्रा तारामिला को मोह गई थी। कभी ऐसे क्षण आते तो तारामिला का सामना होते ही सब कहीं खो जाता। पर आज तो जैसे वह उसकी ओर से भी विमुख था।

पूर्णिमा की उजली रात में गोदावरी का कल-कल जल अपनी एक अलग आभा से आतंकित कर रहा था। सन्नाटे में छोटी-छोटी मछलियां, दूर आकाश पर विचरते पक्षी, पूर्णिमा का सम्पूर्ण चांद... न जाने तारामिला को इनमें से किसने डराया, कि वह एकाएक उठकर रामन्ना के पास सिमट आई। छोटी-सी नाव में हलचल हुई, फिर उसके लंबे केश और उन्नत वक्षों की ओट में सब कुछ छिपता चला गया... गोदावरी की विरासत... चंद्रमा का एकाधिकार... चर-अचर प्राणियों का कोलाहल... तभी वह बोल पड़ी थी, सच पूछो तो ... पटनायक से तुम्हारा उलझना मुझे भी अच्छा नहीं लगता!

मुझे भी मतलब....?

हां, नागी और राव भी तुमसे सहमत नहीं दिख रहे थे।

रामन्ना ने उसे घूरकर देखा था। पगडंडी और गहरी होकर उभरने लगी थी। उसी दिन वह तारामिला के गांव भी गया था। जहां वह तारामिला के अपाहिज भाई शिवम से मिला था जो चार पहियों वाली स?गड़ गाड़ी पर घिसटकर चलता था। उसने बताया था, शिवम भी कभी दस्ते में था। मगर एक मौके पर पुलिस के साथ झड़प में वह सामने आ गया था। तभी से उसकी यह हालत हो गई थी, रामन्ना सिहर कर चला गया। जीवन, इतना विवश, इतना लाचार, उसकी कल्पना से परे था।

शिवम की अव्यवस्थित और गर्द से अटी दाढ़ी, मोटी-मोटी मूंछें और धंसी हुई बड़ी-बड़ी आंखें... वहां भी कुछ अनकहा और कुछ अनखुला रह गया था। रामन्ना को देखकर उसने तारामिला से फुसफुसाते हुए कहा था, तारा, रामन्ना अच्छा है, तुझे इसी की खातिर रुकना होगा... यहीं मेरे साथ सदा के लिए... इंगेरे...

मगर तारामिला खामोश थी, जैसे कहना चाहती हो- तुम भी कितनी जल्दी भूल गए अन्ना... मेरे अपमान और तिरस्कार को! यह वही गांव तो है... जिसने बोंगी के दिन कूड़े-कचरे के साथ मुझे भी त्याग दिया था। तुम भूल गए हो तो ठीक है, मगर मुझे याद है वह सब कुछ! चाहकर भी वह इन शब्दों को स्वर नहीं दे सकी थी। बस लौटते हुए रामन्ना से इतना ही बोली थी- मैं कभी जिद भी करूं तो दोबारा मुझे यहां कभी मत आने देना।

कितनी निर्भर रहने लगी थी वह उन दिनों उस पर। रामन्ना को अजीब सा लगता यह सब। वह उसकी कलाई सहलाने लगता। जैसे अम्मा का सपना, अम्मा के सहेज कर रखे कंगन वहीं कहीं हों। वह अब शरीर भर नहीं रह गई थी, रामन्ना के लिए। उन दिनों उसका दलम सबसे अधिक सुर्खियों में रहने लगा था। उन्हें चुनौती के रूप में देखा जाने लगा था। और उन्हीं दिनों रामन्ना और उसके साथियों पर भारी इनाम की घोषणा हुई थी। पटनायक की ओर से उन सबको अतिरिक्त सतर्क रहने का आदेश मिला था और वह पूरी तरह से जंगल का होकर रह गया था।

लंबे अंतराल पर होने वाली अम्मा से मुलाकातें भी अब दुर्लभ हो गई थीं। कई सूत्रों को जोड़ता तो कुछ जान पाता। इसी क्रम में एक दिन सूचना मिली कि अम्मा को पुलिस थाने ले गई है। वह बेचैन हो उठा था। पता नहीं उसके साथ पुलिस का बर्ताव कैसा हो? एक आतंकवादी की मां के साथ, वह अपने संदर्भों से कटकर एक बेटे के रूप में सोचने लगा था अचानक।

वातानुकूलित विल्सन हॉल में बैठा वह पसीने से सराबोर हो उठा था। लगा, कोई रेल गाड़ी बहुत तेज गति से उसकी ओर दौड़ी आ रही है, और वह बाध्य है दोनों पटरियों के बीच खड़ा रहने के लिए।

विचारधारा, उद्देश्य, सिद्धांत...दलम की लाइन... उसे सब निरर्थक लगने लगे थे। पटनायक ने ही उन काइयों साफकिया था, दृढ़ से दृढ़ व्यक्ति के जीवन में भी लचीले क्षण आते हैं। उन्हीं क्षणों में आइन्स्टीन जैसा वैज्ञानिक प्रेम पत्र लिखने लगता है तो सिमोन-द-बुआ जैसी भौतिकवाद की पक्षधर किसी के बनियान और मोजे धोने के लिए आतुर हो उठती है। पर इससे उनके लक्ष्य और उनकी दिशाएं नहीं बदल जातीं। यह क्षण अति भंगुर और तात्कालिक होते हैं।

फिर भी रामन्ना उन्हीं क्षणों का शिकार हो रहा था, जबकि अगले ही दिनों उसे उस विशेष अभियान का संचालन करना था, जिसकी रूपरेखा पटनायक ने उसे दी थी। सरकारी अधिकारी दौरे पर निकलने वाले थे।

स्टेज पर अब उदास कर देने वाला हंटर पेटिव संगीत बज रहा था। नायिका केट विंसलेट भावुक होकर उस संवाद को दुहरा रही थी, जो वह मृत्यु के समय नायक से कहती है, मैं अब और जीवित नहीं रह सकती। मेरे जीवन की कोई दिशा नहीं है। मेरा इस पर कोई अधिकार नहीं है।

तारामिला से उसने भी कुछ ऐसा ही कहा था, पर सहानुभूति के बदले उसका बिफरा हुआ रूप सामने आ गया था। क्रोध से दीप्त मटमैली छाती पर रेंगती उसकी उंगलियां अचानक थम गई थीं। अपने आपको समेटती हुई वह एक झटके के साथ उठकर खड़ी हो गई थी, मैं सोचती थी यह प्रेम है, मगर अब लगता है बलात्कार का एक रूप यह भी हो सकता है, तविड... पच्चन! एक बहुत भद्दी गाली निकली थी तारामिला के मुंह से आदतन।

कुछ ही दूरी पर उनके बंधक अधिकारी पड़े हुए थे, मि. डांगे, कानूनविद महथि और अन्य दो वरिष्ठ अधिकारी। उनके साफ-सफेद कपड़े और चिकने सफेद जूते अंधेरे में भी अपने वैभव का प्रदर्शन कर रहे थे। उन सभी के चेहरों पर भय और असमंजस का मिला-जुला भाव था, क्योंकि मुहैया ने अभी-अभी आकर सूचना दी थी कि पास के ही एक गांव में सुरक्षा बलों की एक बहुत बड़ी टुकड़ी तैनात की गई थी।

इसका अर्थ बिल्कुल साफ था। वे सब इस समय मृत्यु के प्रांगण में खड़े थे। राव, मुहैया पर उबल पड़ा था, जो उन दिनों सूचना प्रभारी भी था, फ्देखा जाए तो यह सूचना हमें पहले ही मिल जानी चाहिए थी। आखिर शहर से दूर इस उजाड़ इलाके में फोर्स को भेजने की योजना सरकार ने अचानक तो नहीं बना ली होगी। क्या कर रहे थे तुम?

फ्क्या पता सरकार को हमारे इस ठिकाने का पता भी चल गया हो! नागी ने शंका जाहिर की थी- हमारी कठिनाई और बढ़ सकती है।

ऐसी अवस्था में हम इन्हें साफ कर देंगे। मुहैया का संकेत अफसरों की ओर था।

क्यों...?

ताकि हमें भागने में आसानी हो...!

अगर यही स्थिति आई तो... सबसे पहले मैं तुझे ही, तुम्हारी लापरवाही की वजह से...! कहते-कहतेे राव ने दोनाली के कुंदे से उस पर वार कर दिया था। मुहैया बचते-बचाते गिर ही पड़ा था। झाडिय़ों में फंसकर उसकी धोती चरमरा गई थी और वह लगभग नंगा हो गया था। सिर पर एक और गहरी चोट आई थी और खून की एक मोटी धारा पट से खिंच आई थी।

इसमें मुहैया की गलती नहीं है राव! रामन्ना ने बीच-बचाव करते हुए कहा था- पटनायक को मैंने पहले ही इस ऑपरेशन के लिए मना किया था। इतनी जल्दबाजी में लिया गया निर्णय... और वैसे भी चुनाव होने वाले हैं... सुरक्षा की चैकसी तो होगी ही।

दूसरे दिन उन लोगों को वह स्थान छोड़ देना पड़ा था। उनका दूसरा शरण-स्थल बना था फ्रांसीसी सिपाही डुप्ले का वीरान पड़ा किला, जो जंगल के ठीक मध्य में होने के कारण सबसे अधिक सुरक्षित स्थल माना जाता था।

आगे-आगे रास्ता बनाती हुई तारामिला। पीछे अधिकारी, नागी तथा राव। मुहैया इलाज के लिए गांव की ओर चला गया था। रामन्ना सबसे पीछे चल रहा था। उसके कानों में मि. डांगे के शब्द खलबली मचा रहे थे। उन्होंने एकांत पाकर रामन्ना से कहा था, फ्जानते हो डुप्ले क्लाइव से भी अधिक बहादुर और निष्ठावान सेनापति था। फिर भी वह हारा... बता सकते हो क्यों...?

उसने रामन्ना की आंखों में उतरने का प्रयास किया था, क्योंकि तब समय उसके अनुकूल नहीं था। दूसरे उसने इन जंगलों के जैसे दूरवर्ती इलाके में अपनी छावनी विकसित की थी। नहीं तो इसी सता का यही संघर्ष तब भी था।

कई महीने बाद रामन्ना ने अपने सूखे हुए होठों पर सिगरेट का स्पर्श महसूस किया था। क्या डांगे ने इसे नोट कर लिया था? वह सोचता है आज भी। ढूंढ़ता है इस प्रश्न का उतर। कितने महीने गुजर चुके हैं, पर वह निरुतर ही है। उसकी एक और जहाज है तो दूसरी ओर बर्फ, बारी-बारी से जल की सतह पर गुजरते हुए वह खड़ा रह जाता है, सिगनल टॉवर की भांति, समुद्र के बीचों-बीच, नितांत अकेला.... असहाय।

रामन्ना को आश्चर्य होता है, जीवन का कितना बड़ा हिस्सा ऐसे ही पल्लवित होकर रह गया है! ऐसे ही तिरोहित होकर रह गया है! निरुद्देश्य निरर्थक, इसी टॉवर के निकट। इसी धुरी के इर्द-गिर्द। बदबू, कीचड़ और काइयों के संग... सुविधा, मदिरा और सस्ती वेश्याओं के संग। अंधेरी, दमघोंटू कोठरियों में हांफते... सुस्ताते हुए।

सन्नाटे को और सघन पाकर डांगे ने आगे कहा था, धीमी आवाज में, जैसे छिपकली रेंगती हो, दबे पांव, फ्तुम्हारी हालत भी डुप्ले से बहुत अच्छी नहीं है यंग मैन। स्थितियां अभी चारों ओर से तुम्हारे आदमियों का बढ़ता आत्मसमर्पण इस बात का प्रमाण है और एक सीमा तक दलम की नीतियों का का समर्थन तो मैं भी करता हूं। लेकिन जिस चेतना को तुम परिवर्तन का प्रथम सोपान मानते हो, क्या वही हो पाया है अब तक? इतने वर्षों के त्याग... प्रयास... बलिदान और हत्याओं के बावजूद। इन सबके सामने दलम की उपलब्धियां क्या हैं?

उपलब्धियां हैं। वह आवेशित हो उठा था- हमारे हमलों की वजह से सरकार को कई मुद्दों पर झुकना पड़ा है। विधान सभा में बैठने वाले कई विधायक तक हमारे द्वारा मनोनीत हैं। हमारी नीतियों के खिलाफ वे आवाज नहीं उठा सकते। इसी विषय पर हमने ऊपरी सदन को विभाजित करने में भी सफलता पाई है। आज दलम पहाड़ और जंगलों से निकलकर शहरी उद्योग और छात्रों तक पहुंच गया है। आपने कभी सुना नहीं होगा कि हमारे इलाके में कभी चोरी या बलात्कार जैसी घटना भी हुई है! यह कहते हुए रामन्ना का जी धक्क से रह गया। उसे इस कदर आवेशित नहीं होना चाहिए था। अनायास ही उसने कई अंदरूनी बातें उजागर कर दी थीं।

इतना तो तुम एक सामान्य जीवन जीते हुए भी कर सकते हो!

सत्ता के दरवाजे पर बैठकर हड्डियां चूसने को आप सामान्य जीवन कहते हैं! वह पुन: अनियंत्रिात होने लगा था- जहां हर कदम अविश्वास और अनिश्चितता के वातावरण में उठाया जा रहा है, जहां न कोई आधारभूत भविष्य है न दूरदर्शी वर्तमान, बाजार, अर्थ और सुरक्षा जैसे वैज्ञानिक उद्यमों का आरंभ जहां यज्ञ और धार्मिक अनुष्ठान के पाखंड के साथ किया जा रहा हो, वहां पता नहीं आप जैसे लोग कैसे सांस लेते हैं! उस पर दावा यह कि हम इक्कीसवीं सदी में पहुंच रहे राष्ट्रों में से एक हैं।

इस बार वह बोला तो जैसे अंदर का पुराना रामन्ना फिर से लौट आया था।

डांगे खामोश पड़ गए थे। पता नहीं अपने पास उत्तर न होने के कारण या नागी को अपनी ओर आता देखकर, कहा नहीं जा सकता। पर उस दिन अपने अंतिम एकांत में, उन्होंने उससे कहा था, रामन्ना, बुरा मत मानना। पिछले पंद्रह दिनों से मैं तुम सबके साथ हूं। और पिछले पंद्रह दिनों से तुम्हारे साथियों का सौतेला व्यवहार मुहैया के साथ देख रहा हूं। नीतियों के नाम पर क्या तुम स्वयं भी विभाजित नहीं हो? और यह विभाजन क्या धर्म और जातिगत सीमाओं से बाहर है? नागी और राव क्या एक ही कुल के नहीं हैं? और तुम और मुहैया और तारामिला क्या सहधर्मी मादिंगा जाति के नहीं हो?

विशाल टाइटेनिक अब एक मामूली आइसबर्ग से टकरा रहा था। विल्सन हॉल अंधेरे में डूबा हुआ था और लोग सांस लेना भूल गए थे।

रामन्ना के पास रेडियो था। आकाशवाणी से सूचना प्रसारित हुई कि सरकार ने कुछ कमांडो दस्ते जंगल में भी उतारे हैं। इस सूचना से सरकार और उनके बीच होने वाली बातचीत रुक गई। दलम की ओर से यह साफ कह दिया गया कि असफलता की स्थिति में वह कुछ भी कर सकते हैं। उन्होंने यह भी अनुमान लगाना आरंभ कर दिया था कि वह कितनी देर तक पुलिस का सामना कर सकेंगे। डुप्ले के खंडहर में वह उनका अंतिम दिन था।

रामन्ना, तुम एक बहादुर देशभक्त और सच्चे सिपाही हो। यह आवाज डांगे की नहीं बल्कि पैनी दृष्टि वाले कानूनविद मि. महंथि की थी। अशांत रामन्ना पर उन्होंने एक और विक्षोभ उत्पन्न किया था।

तुम्हारी सुरक्षा की पूरी गारंटी हमारी होगी। तुम देख सकते हो... सरकार हमें छुड़ाने के लिए क्या-क्या प्रयास कर रही है। और इस बीच यदि हम मारे भी जाते हैं तो हमारे परिवार को भरपूर सुविधाएं मिलेंगी, यह तुम भी जानते हो, लेकिन इससे तुम सबको क्या मिलने वाला है? उल्टे तुम एक अवसर खो दोगे... एक बेहतर जीवन का... तुम्हारे एक-एक साथी पर सरकार ने लाखों रुपये का इनाम रखा हुआ है।

रामन्ना को चोर-सिपाही का वह खेल याद आ गया था, जिसे वह बचपन में खेला करता था। उसे लगा था वही खेल फिर से खेला जा रहा है, मगर बिना किसी नियम और उसूल के। सिपाही, अब चोर को ढूंढ़ निकालने का खतरा नहीं उठाता बल्कि अब वह एक स्थान पर बैठ गया है ढेर सारी मिठाइयां लेकर, जिनमें विष मिला हुआ है।

स्वार्थ, कर्तव्य और नैतिकता का ऐसा घालमेल उसने जीवन में पहले कभी नहीं देखा था। एक पल के लिए वह संविधान, उसके द्वारा प्रदत जीवित रहने के अधिकार और औचित्य तक पर सोच गया। पर दूसरे ही क्षण उसने स्वयं को व्यवस्थित भी कर लिया था। उसके सामने मां, मुहैया और फिर शिवम का चेहरा घूम गया था। फिर भी शब्द जैसे उसके गले से घिसटते हुए निकले थे, बलात, लेकिन फिर भी मुझे सोचना होगा। दलम की नीतियां इस मामले में बहुत कड़ी हैं। दे माइट डू एनी ऑफ द वस्र्ट विद मी...!

देन यू केन गो एवरी व्हेयर... एब्रॉड एज वेल! मि. डांगे फिर से बोले थे।

झुटपुटों से किरणों की दस्तक शुरू हो चुकी थी। रामन्ना शायद पूरी रात गुजार चुका था, मि. डांगे और मि. महंथि के बीच। और जहां तक उसे याद है निर्णय की वह अंतिम रात भी थी। जहाज जैसे कई दिनों से रन-वे पर चक्कर लगा रहा था। पर हवा में वह पहली बार उसी रात... उसी सुबह को उड़ा था... अपने नये गंतव्य की ओर।

टाइटेनिक के टूटने की आवाज अब सुनाई देने लगी थी। एक धमाके साथ वह दो अलग हिस्सों में बंट रहा था। उसका एक भाग बहुत तेजी से महासागर के गर्त में समा रहा था। चारों ओर से चीखने-चिल्लाने की आवाजें आ रही थीं। लोग एक दूसरे पर सवार होकर भी अपनी जान बचा लेना चाह रहे थे। और सागर की निरंतर उठती हुई लहरें मानो मृत्यु का अश्लील अट्ट्टहास हों!

इसी बीच रामन्ना की पिस्तौल से दो गोलियों चली थीं -

तड़ाक!

तड़ाक!!

पहले नागी फिर राव। तारामिला तेजी से अपनी बंदूक की ओर लपकी थी। लेकिन उससे पहले रामन्ना उसके सामने आ गया था। तारामिला का एक धक्का खाकर वह गिरते-गिरते बचा। फिर बड़ी मुश्किल से अधिकारियों के साथ आए नौकर उसे जकड़ पाए थे। मृत्यु का भय न जाने कहां लुप्त हो गया था! और उसके बदले घृणा की एक अविकल धारा उसवेफ अंग-अंग से फूट पड़ी थी। गर्दन पर रक्त पेशियां उभर आईं थीं और चेहरा किसी डरावने मास्क की भांति विद्रूप हो गया था। डांगे और महंथि के साथ रामन्ना भी सहम गया था। उसने आगे बढकऱ कहा था उसने, तारा, मेरी बात सुनो... ये लोग हमारी पूरी मदद करेंगे... शहर जाकर हम घर बसा लेंगे।

घर बसा लेंगे! वह बीच में बोल पड़ी थी- एक बलात्कारी और गद्दार के साथ! बोलते-बोलते जैसे उसने सारी शक्ति को इक_ा कर लिया था। वह मुक्त होकर पुन: अपनी बंदूक की ओर बढ़ी थी, कि तभी एक और गोली चली थी। रामन्ना चैंक पड़ा था। नागी की बंदूक अब महंथि के हाथों में थी। वह चीख रहे थे- रामन्ना निकल पड़ो अब....!

लेकिन वह तो वहीं जम गया था, शिला की भांति, तारामिला की अनियंत्रिात और उखड़ती हुई सांसों का साक्ष्य बनने के लिए। घुटनों के बल वह भर-भराकर गिर पड़ा और गोदावरी की एक धारा जैसे आंखों में ही जज्ब होकर रह गई। उस धारा को उफनती लहर का रूप धारण करने के पहले डांगे की गरजदार आवाज ने कुचल दिया।

वह उठ खड़ा हुआ था। नशा खाये हाथी को जैसे नुकीले हथियार से कांचकर उठाया गया हो। महंथि के हाथों में धुएं की सपेफद लकीर उगलती हुई बंदूक अब तक मौजूद थी। उसकी दिशा किसी भी पल बदल सकती थी।

समय का चक्र कितनी गति से घूमा था, वह सोच भी नहीं पाया था।

पीड़ा, पश्चाताप या प्रेम का अधखिला अंकुर - इनमें से कौन-सा था उसका अपना आइसबर्ग, जिससे टकराकर वह निरंतर टुकड़े-टुकड़े होता रहा था। टाइटेनिक के विपरीत वह किश्तों में टूट रहा था, डूब रहा था।

और क्या टाई की वह संकीर्ण होती गांठ और जूते और सूट का कसाव उन्हीं तरंगों की आवृति है। क्या यह सब पूर्व निर्धारित, पूर्व योजना के तहत है जो अब शांत और स्थिर हो गया है। और क्यों उसे बेमानी-सी वही रूमानी कविता याद आने लगी है? पटनायक के मुंह से कभी सुनी हुई:

मैं एक ऊंचे टीले पर बैठा हूं
मेरे चारों ओर पहाड़ और जंगल हैं
सामने लोग हैं
ख्याति व प्रसिद्धि विहीन
संप्रदाय और जाति विहीन
पर सस्वप्न और ऊर्जावान
ये मुक्ति लाएंगे शोषण से
ये मुक्ति लाएंगे अंधेरे से, विषमताओं से
क्योंकि वे सपनों में
विश्वास रखते हैं,
यही उनकी पूंजी,
धरोहर और सुंदरता है
ये आए हैं....
जंगल, पहाड़ और मैदानों से निकलकर
हां ये र्सिफ सपने नहीं देखते।

तो उसने क्या सिर्फ सपना ही देखा था। यही असफलता थी उसकी। नहीं, वह डूब नहीं सकता। तो, रामन्ना तैरना जानता है, लेकिन छोर और किनारा, कहीं न कहीं होगा वह भी। इसी बहाव के साथ वह स्वत: अध्यात्म की ओर मुड़ चला। इस परिवर्तन पर वह किंचित् अचंभित भी हुआ। पर दूसरे ही क्षण लगा यह इतना अप्रत्याशित और इतना अस्वाभाविक भी नहीं है। अपनी जड़ों की ओर लौटना भर है। पाप, पश्चाताप, क्षमा की याचना और फिर मुक्ति। इस बने-बनाए समीकरण ने उसे भीतर तक उद्वेलित किया।

और शो के समाप्त होने पर थियेटर के अहाते में ही बोल्ड अक्षरों में मिटता-उभरता यह विज्ञापन संसार का अंतिम सत्य प्रतीत हो रहा था, मुक्ति का जैसे अगला कदम, टेक कंट्रोल ऑफ योर इमोशन। रिमूव योर सपल एंड गो एहेड फोर लाइफ प्लानिंग- सीखें हमारे संस्थान से। एक-एक शब्द ने जड़ होते चेतन पर मंत्र का सा प्रभाव डाला।

शरीर से मांस का एक टुकड़ा काटकर फेंक दिया गया जो अहसास, अनुभूति, आद्र्रता और टीसें उत्पन्न करने पर तुला हुआ था। अब वह सचमुच सहज हो चुका था। बहुत सामान्य हो वह खरीदारी करने किसी बाजार की ओर निकल पड़ा। हालांकि यह काम अम्मा किया करती थी, पर आज वह व्यस्त होना चाहता था, किसी भी तरह।

अपार्टमेंट तक पहुंचते-पहुंचते रात आधी से ज्यादा बीत चुकी थी। बार में शायद वह आज कुछ ज्यादा देर बैठ गया था। अम्मा भी सो चुकी थी। हल्के प्रकाश में उसकी हथेली और चेहरे पर पड़ती झुर्रियों को साफ गिना जा सकता था। उसने अम्मा की ओर ध्यान से देखा, जैसे वहां कुछ पढऩा चाह रहा हो। मगर अक्षर हैं कि फिसल-फिसल पड़ते हैं। वह पलंग के और निकट आ गया। बिल्कुल उसके पास।

अम्मा खुश तो है! पांच कमरों का मुंबई में यह आलीशान फ्लैट... टीवी... फ्रिज... नौकर... ढेर सारे कपड़े और जाने कितना पैसा, और अच्छे दिनों के सपने भी! उपलब्धियों की इन बैसाखियों के सहारे वह अम्मा तक पहुंचा चाहता है- उसकी प्रसन्नता, संतुष्टि या कम से कम उसकी किसी एक प्रतिक्रिया तक भी।

पर अम्मा है कि हमेशा बंधी-बंधी रहती है। शांत बिल्कुल। गांव में वह कितनी बातें करती थी। घर और आस-पड़ोस की चिंताओं से उसका सोना दूभर हो जाता। फिर उससे विवाह के विषय में अवश्य पूछती। ऐसी घड़ी में वह बहुत सहेजकर रखा हुआ कंगन निकालकर उसे निहारने लगती।

पर यहां आने के बाद सब छूट गया था। बड़ी मुश्किल से वह कभी उसकी हां-हूं सुन पाता। आरंभ में वह यहां आने का कारण अवश्य पूछती रही थी। पर धीरे-धीरे यह बर्फ भी पिघल गई थी। और सब नंगा हो गया था।

अनायास उसे कंगन देखने की इच्छा हुई। वह सब कुछ भूलकर उसे ढूंढऩे लगा। अलमारी, भगवान की मूर्ति के पास, शेल्फ में। फिर उसने अम्मा के पुराने संदूक में भी तलाश किया। देखते-देखते उसने पूरे घर को छान मारा था। पर कंगन उसे कहीं नहीं मिले।

हताश होकर वह बिस्तर पर चला आया। बहुत प्रयास के बाद भी वह सो नहीं पाया। आंखों में वही कंगन चांद का आकार लिए ठहर गया था। सोये-सोये ही उसने नींद की गोली की तलाश की। वह भी नहीं मिली। वह दुबारा पसर गया। मगर कुछ ही क्षणों के बाद अजीब-सी बेचैनी के साथ उठ बैठा।

आखिर अम्मा ने कंगन का किया क्या? चारों ओर से इस प्रश्न का जाल-सा तनता गया। उसे ताजा और ठंडी हवा के झोंकों की जरूरत महसूस हुई। वह खिडक़ी के पास आकर खड़ा हो गया।

बाहर सन्नाटा और समुद्र का साम्राज्य अनंत छोर तक फैला हुआ था। वह वहां भी बहुत देर तक रुक नहीं सका। शायद समुद्र से समुद्र का तारतम्य जुडऩे लगा था। वह तेजी से मुड़ा। उसे वाइन चाहिए वाइन... अमेरिकन ब्रांड, जनिथ द रायल एंड नथिंग... वह स्वयं से बड़बड़ाया। तभी उसकी नजर अम्मा के सिरहाने पर पड़ी। वहां बिस्तर से दबा हुआ सस्ते साटन का वही लाल टुकड़ा दिखाई पड़ा था जिसमें कंगन बंधा हुआ था। उसकी आंखें चमक उठीं। एक लंबी सांस लेकर वह बड़ी सावधानी के साथ उसे बाहर खींचने लगा। लेकिन उसमें कंगन की जगह कोई और चीज मालूम पड़ी... लोहे की सी, कोई भारी-भरकम वस्तु। वह जल्दी-जल्दी उसे खोलने लगा।

एकबारगी वह कांप उठा। एसी, हवा के नरम और ठंडे झोंकों के बावजूद उसके माथे पर पसीने की बूंदें छलछला आईं। अंदर बहुत तेजी से कुछ बैठता हुआ महसूस हुआ। लगा, घुटनों की शक्ति समाप्त हो गई है और मांसपेशियों में रक्त की जगह कुछ और बह रहा है। उसे अतिरिक्त खड़े रहना कठिन जान पड़ा। कपड़े में कंगन की जगह एक छोटी-सी पिस्तौल थी, नयी। पारे की तरह चमचमाती हुई। और साथ में एक ही कारतूस, सोने की तरह चमचमाती, दीप्त।