आओ पेपे घर चलें / प्रभा खेतान / पृष्ठ 2

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आओ पेपे घर चले (उपन्यास)

आइलिन जा चुकी थी हमेशा के लिए। उसे जाना ही था। दूर-दराज में कोई था भी नहीं उसका, उसको याद करनेवाला। निरंतर रोती रहती थीं पेपे की एक जोड़ी कातर नीली आँखें। पेपे क्लिनिक में आता और आइलिन की कुर्सी के पास चुपचाप बैठा रहता। मुझे देखकर धीरे से आकर पैरों से लिपट जाता।

आह! जानवर में आदमी और आदमी में जानवर?

मिसेज डी से मैंने पूछा था रोजर के बारे में। पता चला रोजर काफी पहले आइलिन की ज़िंदगी से चला गया था। जब पहले पहल उसकी बीमारी का पता चला तब रोजर का पहला निर्णय था उस ज़िंदगी से निकल जाने का।

रोजर आइलिन से दस साल छोटा था। वह ज़िंदगी जीना चाहता था, मौत से डरता था और एक मरती हुई बूढ़ी औरत के साथ साठ वर्ष का पुरुष? नहीं। रोजर में मौत का सामान करने की हिम्मत नहीं थी। इसलिए वह शिकागो जाकर बस गया। उसके मन में आइलिन के प्रति इतना भर दर्द था या यों कहिए कि उतनी दया बची थी कि वह गाहे-बगाहे कभी-कभी फोन कर लेता। लेकिन आइलिन ने तो मुझसे कभी कुछ नहीं कहा था? आइलिन बीते हुए संबंधों को भी स्मृतियों में जिलाये रखती थी। उसने कभी कहा था,

मैं अपने पहले पति का चेहरा हर पुरुष में खोजती रहती हूँ। किसी में उसकी आवाज़ पाती हूँ, कहीं उसकी दृष्टि, कहीं उसका स्पर्श। कोई बिल्कुल उस जैसा लगता है।

यह आइलिन के जीने का अपना तरीका था।

मुझे ब्यूटी थेरापी में डिप्लोमा मिल चुका था। पिछले पंद्रह दिनों से मैं मरील के पास थी। मरील का बड़ा-सा फ्लैट था। दो बेटियाँ नैन्सी और लारा। नैन्सी बाईस वर्ष की थी। पढ़ने में बेहद तेज़। वह फेमिनिज़्म का नया दौर था। केट मिलेट, मार्गरेट मीड आदि बड़ी-बड़ी लेखिकाएँ अभी-अभी हाशिये पर उभर रही थीं। नैन्सी रात-दिन मोटे पोथे लिए बैठी रहती। जल्द ही छात्रवृत्ति मिलने पर वह हवाई चली जानेवाली थी। वहाँ के आदिवासियों पर शोध करने। शादी? नहीं, कभी नहीं। माँ की ज़िंदगी दूसरों के लिए तलवे घिसने में बीत गई। नैन्सी की नज़र में न मिसेज डी का महत्व था न क्लारा ब्राउन का और न ही उसके कपड़ों-गहनों का। औरत को आज़ादी मिलनी चाहिए। दूसरी ओर छोटी बेटी लारा, सोलह वर्ष की फूल-सी खूबसूरत। बड़ी-बड़ी नीली आँखें, सुनहले लंबे बाल। गले में हाथ डाले बिना वह कभी पास बैठ ही नहीं सकती।

आई लव यू प्रभा। यू आर सो सिंपल।

लेकिन लारा हिप्पी थी। पैबंद लगी ब्लू डेनम की जीन, मद्रास चेक की मैली मुसी हुई कमीज़, बिखरे बाल। स्कूल की फाइनल परीक्षा नहीं दी। पढ़ने का मकसद ही क्या? क्या होगा रुपए कमाकर, यदि ज़िंदगी में प्रेम न हो? वह लगाव चाहती थी और उसे ज़िंदगी में लगाव नहीं मिल रहा था। माँ बाप के साथ क्यों नहीं रहते? नैन्सी और मरील की क्यों नहीं पटती? लारा सारे वैभव के बीच खोयी-खोयी मानो अभी-अभी आकाश से टूटा हुआ तारा ज़मीन पर झुलसता हुआ अपनी जगह खोज रहा हो। इतनी छोटी, इतनी मासूम लड़की और भीतर इतना खौलता हुआ लावा। मेरी गोद में मुँह छुपाकर रोती,

मुझे कोई प्यार नहीं करता, कोई नहीं।

नहीं लारा, ऐसे मत रोओ।

ममा को टाइम नहीं, काम और बॉयफ्रेंड। नैन्सी को भी टाइम नहीं, वह और उसकी किताबें।

लारा औऱ... संगीत।

मैंने उसका अधूरा वाक्य पूरा किया। रोती हुई आँखें संगीत के नाम से हँसने लगी।

तुम्हें नया बीट सुनाऊँ?

गिटार के स्वर फ्लैट की दीवारों से टकराने लगे। लारा के चेहरे पर जैसे समाधि का भाव हो। मुझे बस इतना भर समझ में आ रहा था कि मेरे सामने एक उदास रोती हुई बच्ची अचानक खुश हो गई है। मगर, तब एक दूसरे कमरे से दौडती हुई मरील ने आकर लारा के हाथ से गिटार छीन लिया।

यह क्या सारे दिन टनटनाती रहती हो? न पढ़ना न लिखना? मैं कब तक तुम्हें पालूँगी? कहाँ से खर्च चलाऊँगी? वह तुम्हारा बाप?

मम्मी...प्लीज। मम्मी, डैड को गाली मत दो। नो नो मम्मी...

पर आज मरील पर भूत सवार था। लारा के सुनहले बाल खींचते हुए वह चीखी,

तब चलो जाओ उसी बास्टर्ड के पास। तुम उसकी बेटी हो ना? हज़ार डॉलर में खर्च नहीं चल सकता।

मरील। होश में आओ। इतनी क्रूर मत बनो मरील? लारा सिर्फ़ गिटार ही तो बजा रही थी?

सुबकियों से लारा का सारा बदन हिल रहा था। मैंने बाहों में समेटना चाहा। उसने झटक दिया,

नहीं मुझे किसी की हमदर्दी नहीं चाहिए। यह दुनिया रहने लायक नहीं, मैं जा रही हूँ।

तुम नहीं जा सकतीं। अगर एक कदम भी घर से बाहर निकाला तो मैं पुलिस को खबर कर दूँगी। तुम्हें कस्टडी में रहना होगा।

मम्मी, तुम डायन हो, चुडैल हो। फिर लारा के मुक्के मरील की पीठ पर।

तेरी इतनी हिम्मत? शेरनी की तरह दहाड़ती हुई मरील ने लारा की बाँह मरोड़ी और ज़मीन पर पटक दिया। उसके बाद लात घूँसे....

मरील? मरील? क्या कर रही हो? क्या पागल हो गई हो?

नहीं, मैं आज इसकी जान लेकर रहूँगी।

मरील... रहम करो मरील। होश में तो आओ।

मैंने किसी तरह खींचते हुए मरील को ले जाकर पलंग पर लिटाया। नैन्सी उठकर आई। हाथ में मार्गरेट मीड की किताब थी। काले फ्रेम के चश्मे से झाँकती हुई आँखों में ठंडी उपेक्षा, माँ और बहन दोनों के प्रति।

इसीलिए तो मैं औरत पर शोधकार्य करना चाहती हूँ। क्यों हर माँ अपनी बेटी से होड़ करती है? क्यों वह नफ़रत करती है?

नैन्सी क्या यह वक्त विश्लेषण का है? तुम अपनी रोती हुई बहन को चुप नहीं करा सकतीं?

वह चुप नहीं हो सकती।

क्यों?

इसलिए कि हम सब अपने आपसे नफ़रत करती हैं। हमारी टूटी हुई आत्म-तस्वीर, ममा की इलीट सोसायटी, उनको दिन-रात खरोंचती रहती है। डैड क्यों चले गए, यह सबको पता है।

क्यों? मैंने पूछा।

ममा कभी एक पुरुष के साथ साल भर भी नहीं गुज़ार सकती। फिर शादी का ढोंग क्यों?

नैन्सी तुम...तुम अपनी माँ से नफ़रत करती हो?

नहीं। दरअसल हम एक बीमार व्यवस्था की उपज हैं।

ओह! यह ठंडी समझ? यह घृणा? क्या इसे परिवार कहूँ? एक माँ जिसकी दो बेटियाँ, और किसी का किसी से लगाव नहीं। बाहर लोगों के सामने हँसती हुई जवान दिखती हुई मरील? बेटियों के सामने बतरह हाँफती हुई मरील?

दूसरे दिन मैंने मिसेज डी को फ़ोन किया। उन्होंने कहा, रात को घर आ जाओ। मेरे साथ ही खाना खाना।

करने को यों कुछ नहीं था, और लॉस एंजेल्स में एक स्थान से दूसरे स्थान की लंबी दूरी, चौड़ी वीरान सड़कें, खुला चमकता नीला आसमान, खुश्क हवा-हरी दूब की खुशबू से भरी हुई। क्या करूँ सारे दिन? घर से निकली तो देखा मोड़ पर लारा खड़ी है। पास में कोई लड़का खड़ा था। लारा को कंधे से सटाये बार-बार चूम रहा था। लारा अब भी रोये जा रही थी। एक बार उधर कदम बढ़े मगर फिर वह आरक्षित स्थान लगा। वह एक आनेवाली पीढ़ी की जगह थी जिसका सामना कल सारी दुनिया को करना पड़ेगा। लारा का गिटार, वहीं पेड़ के नीचे रखा था।