आओ शिकायत करें / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु'

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ईश्वर अनंत है, उसकी सृष्टि अनंत है। सृष्टि में सर्वोत्तम प्राणी मनुष्य की इच्छाएँ अनंत है। ये अनंत इच्छाएँ पूरी नहीं हो सकतीं। तब क्या किया जाए? कौन-सा काम आसान है? इच्छाएँ पूरी करने के लिए प्रयास करना या सिर्फ़ शिकायत करना? मैं समझता हूँ शिकायत करना संसार का सबसे सरल काम है। शिकायत करने के लिए बुद्धि का बेजा इस्तेमाल नहीं करना पड़ता या यों कहिए बिलकुल भी इस्तेमाल नहीं करना पड़ता। बुद्धि की चादर पर पड़ी धूल ज्यों की त्यों पड़ी रहने दी जाए और 'ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया' का राग अलापते रहें।

शिकायत करने वालों की तीन प्रमुख श्रेणियाँ होती हैं- (1) जन्म-जन्मांतरी, (2) जन्मजात, (3) प्रशिक्षित। पहली प्रकारके शिकायत करने वाले जन्म-जन्मांतर से इसी कार्य में लगे रहते हैं। इने पूर्व जन्म का अनुभव भी इसमें शामिल होता है। ये प्रयास भी करें, तो पूर्वजन्म के अनुभव एवं प्रेरणा से मुक्त नहीं हो सकते। ये सिर से पैर तक शिकायत की लुग्दी से तैयार किए हुए होते हैं। इनकी शिकायत अपने माता-पिता से भी होती है। उन्हीं की गलती से इन्हें धरती पर अवतार लेना पड़ता है। इनकी शिकायत काम करनेवालों के प्रति ज़्यादा होती है। मनुष्य-जन्म मिलने पर जो सिरफिरे खुद को किसी-न-किसी काम में उलझाए रहते है, ं वे इनके परम शत्रु माने जाते हैं। ये पहले उनको समझाने का प्रयास करते हैं-'अरे भाई, क्यों दिन-रात लगे रहते हो? सब कुछ यहीं धरा रह जाएगा।' यदि किसी दफ्तर से जुड़े हों तो समझाएँगे-'तुम्हें राष्ट्रपति पुरस्कार तो मिलने से रहा। जितना काम करोगे, उतना काम और थोप दिया जाएगा। हमेशा के लिए गधे में तब्दील हो जाओगे। सरकार ने नौकरी दी है। नौकरी देना बहुत आसान है, नौकरी लेना उतना आसान नहीं; इसलिए काम नहीं करोगे तो भी काम चलेगा।'

यदि कोई इनकी सलाह नहीं मानेगा, तो ये उसकी भी शिकायत करेंगे। उसका नाम अपने विरोधियों की सूची में दर्ज कर लेंगे। पूर्वजन्म के सीखे हथकंडों का भरपूर इस्तेमाल करेंगे। हर भले आदमी को इनकी उपस्थिति नाखून में गड़ी फाँस की तरह खटकती रहती है। श्री प्यारेलाल बहुत ही प्यारे जीव हैं। इनकी शिकायत तो ईश्वर से भी है कि उनके ऊपर क्या विपत्ति आ पड़ी थी, जो साँप-बिच्छू-भेड़िया बनाएँ? यद्यपि जो ईश्वर प्यारेलाल को बना सकता है, यदि उसने साँप-बिच्छू आदि बना भी दिए तो कोई अपराध नहीं किया। ईश्वर ने इन जीवों को प्यारेलाल की श्रेणी में रखा है। प्यारेलाल जी हफ्ते-भर में जितनी शिकायत करते हैं, उन पर एक पुस्तक लिखी जा सकती है। पत्नी से शिकायत है-भोजन ठीक नहीं बना है; क्योंकि सब्जी में नम कम होगा या ज़्यादा होगा या बिलकुल नहीं होगा। भोजन जल्दी बनाना या देर से बनाना, दोनों ही शिकायतें हैं। साहब से शिकायत है-इनके घर में कोई काम नहीं है। दफ़्तर खुलने से पहल आ धमकते हैं, बाद में देर तक बैठे रहते हैं या दफ़्तर में दे से आते हैं, जल्दी चले जाते हैं। किसी का काम नहीं अटकाते; इसलिए शिकायती मुद्दा तलाशने के लिए दिमागी कसरत करनी पड़ती है।

जन्मजात शिकायती शिकायत की बंदूक से सदा लैस रहता है। इसे दोयम दर्जे का माना जाता है। पूर्वजन्म की छाया इसकी शिकायतों पर नहीं पड़ती। इसका पूर्वजन्म या पुनर्जन्म में यकीन नहीं होता है। जो कुछ करना है, वह इसी जन्म में करना है, नहीं तो 'फिर पछतैहैं अवसर बीते'। यही कारण है कि ये शिकायत का कोई अवसर नहीं छोड़ना चाहते। यदि आप श्रीमान् 'क' के यहाँ चले गए, तो ये शिकायत करेंगे-"आप उनके यहाँ क्यों जाते हैं? वे बहुत ही खराब आदमी हैं।" इनके श्रीमुख से यह कभी नहीं फूटेगा कि आप हमारे यहाँ आइए। हम बहुत भले हैं।

गोबरमल हमेशा शिकायत का गोबर करते हैं। घर में बच्चे बीमार हैं या बीवी परेशान है, इससे इनका कोई नाता नहीं; क्योंकि 'हीरा जनम अमोल है, कौड़ी बदले जाए' अपने 'अमोल जनम' को सार्थक करने के लिए गली-मुहल्ले से लेकर गाँव-कस्बे तक की सड़ी-गली शिकायतें इनके सड़ियल भेजे में हमेशा कैद रहती हैं। ये उनमें से कुछ को अवसर के अनुकूल मुक्त करते रहते हैं। उनका स्थान नई शिकायतें ग्रहण करती रहती हैं। इनकी सबसे बड़ी शिकायत यह है कि लोग मेलजोल से क्यों रहते हैं? किसी को प्रेमपूर्वक बात करते देखकर इन्हें लगता है-जैसे किसी ने बीच बाज़ार में इनको तमाचा मार दिया हो। इस आघात से बचने के लिए ये कई झूठ जनेंगे और उन्हें प्लेग की तरह फैलाने के लिए खुद चूहा बनकर इधर-उधर भटकना शुरू कर देंगे। मनगढंत बातों के वायरस फैलाने में इन्हें बहुत मज़ा आता है। इस जन्मजात काम में जुटे रहने के कारण ये खुद भी वायरस बन गए हैं।

तीसरी प्रकार के शिकायती वे हैं, जो इस पराविद्या को दूसरे लोगों के सम्पर्क में आने पर सीखते हैं। इन्हें इस विद्या का प्रशिक्षण लेना पड़ता है। प्रशिक्षण से पहले इन्हें प्रवेश परीक्षा से गुज़रना पड़ता है। प्रवेश परीक्षा के लिए अनिवार्य योग्यता इस प्रकार है-प्रार्थी अपनी बुद्धि को किसी जंगली झाड़ के ऊपर टाँगकर रखे। सोचने का काम किसी और के जिम्मे छोड़ दे। सुनी-सुनाई बातों पर विश्वास करे। भेड़ के गुणों का समावेश करे। अपनी आँखों से देखना बंद करे। इसके बाद प्रार्थी को प्रशिक्षित किया जाता है। उसे तटस्थ भाव से शिकायत करने का काम सौंपा जाता है। यही ईमानदारी उसे राष्ट्रीय स्तर का व्यक्तित्व बना देती है। उसे अपने आँगन का गड्ढा कम, दूसरे की दीवार का सुराख भली-भाँति नज़र आता है। यही सच्चे साधक की पहचान है।

श्री विभीषण जी इस समय शिकायत के प्रशिक्षण से गुजर रहे हैं। सर्वप्रथम वे बेनामी शिकायतों का लेखन करते हैं फिर उन्हें विभिन्न अधिकारियों के नाम पर डाक से भेज देते हैं। जिस दिन ये शिकायत न करें, उस दिन पेट में मरोड़ उठने लगती है। इसका आभास इनके मुरझाए, मार खाए जैसे चेहरे को देखकर हो जाता है। ये एक बार गम्भीर रूप से बीमार हो गए। इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। एक्स-रे, ब्लड टेस्ट, यूरिन टेस्ट सब किया गया। डॉक्टरों की समझ में इनका विकार नहीं आया। जब डॉक्टर रोग की पूँछ नहीं पकड़ पाता तब वह मरीज से ही पूछताछ करके निष्कर्ष निकालता है। किस दिन क्या खाया, कब सोए, कब जागे आदि पूछा; परन्तु अनुमान नहीं लगा सके। हारकर एक बुजुर्ग डॉक्टर ने इनके पैर पकड़ लिये-"विभीषण जी, अपनी बीमारी का रहस्य मुझे तो बता दीजिए। अगर आप नहीं बताएँगे तो जूनियर डॉक्टर मेरे बारे में क्या सोचेंगे?"

बुजुर्ग डॉक्टर की कातर प्रार्थना सुनकर अपने स्वभाव के विपरीत विभीषण जी पिघल गए-"मुझे कई दिनों से किसी की शिकायत करने का अवसर नहीं मिला। घर के काम में फँसकर रह गया। इसी से सारी गड़बड़ हो गई।"

"अब आप ठीक हो जाएँगे, ऐसा मेरा विश्वास है"-बुजुर्ग डॉक्टर ने कागज और कलम थमाते हुए कहा-"आप इस कागज पर हमारे अस्पताल की शिकायत लिख दीजिए। मसलन, खाना ठीक नहीं मिलता, समय पर दवाई नहीं दी गई। अस्पताल के पास अभी तक श्मशान नहीं बनवाया गया। चारों तरफ गंदगी फैली हुई है और भी जो आपके मन में आए।"

विभीषण ने सधी हुई कलम से लेटे-लेटे लिखना शुरू किया। अंतिम पंक्ति लिखने के साथ ही वे उठ बैठे। बुजुर्ग डॉक्टर चौंके-"क्यों, क्या हुआ?"

"अब में पूरी तरह ठीक हूँ-" विभीषण जी अपने बेड से नीचे उतरे-"आप अस्पताल सँभालिए, मैं चला। मेरे काम का काफी नुकसान हो गया है। मुझे कई नई शिकायतें तैयार करनी हैं।"

डॉक्टर साहब अपने नए प्रयोग पर मन ही मन खुद को शाबाशी दे रहे थे।

यदि कभी आपकी तबीयत खराब हो, उदासी आपको घेरे, तो शिकायत कीजिए। जी हल्का हो जाएगा। किसी की शिकायत करने का बूता न हो, तो अपनी ही शिकायत कीजिए। शिकायत करने से सच्चे आनंद की अनुभूति होती है।

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