आखिर इस मर्ज की दवा क्या है? / ममता व्यास

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आज के दौर की सबसे बड़ी समस्या का नाम अगर कुछ है तो वो तनाव है। सभी रोगों का जनक, हरेक को हैरान परेशान करने वाला मर्ज, ये हर जगह मिलता है लेकिन इसकी कोई दवा कहीं नहीं मिलती। आज इस समस्या से 80% लोग जूझ रहे हैं। हम सभी जानते हैं कि हर रोग पहले मन में जन्म लेता है और बहुत बाद में जाकर देह पर उसका असर देखने को मिलता हैं। ये तनाव भी ऐसा ही मर्ज है।

मनोविज्ञान की नजर में तनाव क्या है? मनोविज्ञान कहता है कि तनाव एक अनुक्रिया है जिसका असर हमारे मन और देह दोनों पर पड़ता है। हमारे शरीर में मनोवैज्ञानिक (साइकोलॉजिकल) तथा दैहिक (फिजियोलॉजिकल) दोनों तरह की अनुक्रियायें होती हैं यानी व्यक्ति जब तनाव में होता है तो मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से क्षुब्धता (डिस्टर्बेंस) अनुभव करता है। जब ये अनुक्रियायें मनोवैज्ञानिक हो तो व्यक्ति बहुत परेशान होता है। उसे व्यर्थ की चिंताएं, आशंकाएं, डर, संदेह घेरे रहते हैं। कभी उसे बहुत क्रोध आता है तो कभी उसका व्यवहार आक्रामक हो जाता है। आशंकाएं, चिंताएं उसे इतना घेर लेती हैं कि वो उनसे निबटने में खुद को अक्षम पाता है। अगर ये अनुक्रियाएँ दैहिक हो तो व्यक्ति का रक्तचाप बढ़ जाना, पेट में गड़बड़ी, हृदय गति असामान्य होना, श्वसन गति में परिवर्तन आदि लक्षण होते हैं -इन प्रतिक्रियाओं के परिणामस्वरूप व्यक्ति के शरीर में चीनी की मात्रा बढ़ जाती है, हारमोन असंतुलित हो जाते हैं और कैंसर, मधुमेह आदि कई रोग जकड़ लेते हैं। इन दैहिक प्रतिक्रियाओं का एकमात्र उद्देश्य होता है कि किस तरह से तनाव के साथ समायोजन बिठाया जाये। चिकित्सक इनका इलाज दवाओं द्वारा करते हैं। लेकिन मन को तनाव रहित करने के लिए मनोचिकित्सकों का या काउंसलर की जरुरत होती है।

अक्सर तनाव को नकारात्मक घटनाओं से या दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं (नेगेटिव इवेंट) से जोड़ कर देखा जाता है जबकि सच्चाई ये है, कि तनाव सकारात्मक घटनाओं से भी होता है उदहारण के लिए, विवाह के समय होने वाला तनाव, अच्छे पद पर पदोन्नति के लिए तनाव, बहुत बड़ा पुरस्कार या इनाम पाने का तनाव, किसी लेखक को उसकी आने वाली नयी पुस्तक को लेकर तनाव, तो किसी अभिनेता को नयी आने वाली फिल्म को लेकर तनाव हो सकता है।

कभी -कभी व्यक्ति को किसी व्यक्ति विशेष से तनाव होता है, और वो व्यक्ति सामने बना रहे तो वह उसके प्रति आक्रामक हो जाता है, इसे उदाहरण से समझे -किसी बच्चे को यदि उसके लक्ष्य तक नहीं पहुँचने दिया जाये तो उसमे एक तरह की कुंठा (frustration) आती है और फिर वो आक्रामक हो जाता है।

लेकिन कभी -कभी व्यक्ति को पता ही नहीं चलता कि उसकी निराशा, कुंठा, हताशा का क्या कारण है? वो खोजता रहता है कि उसकी कुंठा या परेशानी का सबब क्या है ? स्रोत (source) कहाँ है? कभी जो स्रोत मिल भी जाए तो व्यक्ति किसी कारणवश या परिस्थिति वश उस शक्तिशाली स्रोत के प्रति आक्रामक नहीं हो पाता तो वो खुद से कमजोर व्यक्ति या वस्तु पर क्रोध निकालता है और तनाव कम करता है। उदहारण के लिए कोई पत्नी जब अपने पति के हाथों पिटती है तो वो अपना क्रोध बच्चों पर निकालती है। वो उन्हें खूब पीटती है और गाली अपने पति को देती जाती है। पति दफ्तर का गुस्सा, अपने बॉस का गुस्सा अपनी पत्नी पर निकालता है और आखिर में वो बेकसूर बच्चे अपना गुस्सा घर की चीजों, खिलौने को तोड़ कर, किताबों को फाड़ कर निकालते हैं। ऐसे ही स्कूल में टीचर से मार खाने के बाद बच्चा रास्ते के कुत्ते को पत्थर से बुरी तरह पीटता है, घर का सामान तोड़ना या खुद को ही चोट पहुँचाना भी इसके उदाहरण हैं।

जो लोग क्रोध को व्यक्त नहीं कर पाते वो मन में घुटते हैं और गहरे विषाद तथा भाव शून्यता (empathy and depression) में चले जाते है। जब आक्रमकता दिखाने पर भी उन्हें सफलता नहीं मिलती तो वो उस वस्तु के प्रति उदासीन हो जाते है एवं खुद को निस्सहाय सा पाते हैं।

कुछ लोग तनाव में आकर अपनी सबसे प्रिय चीज को ही चोट पहुंचाते हैं या अपनी कोई अति प्रिय वस्तु को ही तोड़ देते हैं और बाद में फिर पछताते हैं।

कई वर्षों के शोध एवं गहन अध्ययन के आधारों पर मनोवैज्ञानिकों ने तनाव के कारकों की सूची बनायीं है जिनकी वजह से तनाव होते हैं।

कुछ विशेष घटनाएँ कुछ व्यक्तियों में अधिक तनाव उत्पन्न नहीं कर पाती तो कुछ के लिए गहरे तनाव का कारण बनती हैं। जैसे किसी वैवाहिक सम्बन्ध की टूटन या प्रेम में असफल होना, किसी प्रिय की मृत्यु आदि ऐसी घटनाएँ हैं जो कुछ व्यक्तियों पर गहरा असर डालती है, तो कुछ पर कम असर होता है। कभी -कभी साधारण सी घटना भी कुछ व्यक्तियों को अधिक सांवेगिक एवं दैहिक क्षति पहुंचाती है।

इनके अलावा एक महत्वपूर्ण कारक है जो आजकल सारी दुनिया में तनाव का कारण बना हुआ है और वो है conflict of motives यानी प्रेरकों का संघर्ष यानि प्रतियोगिताओं के इस दौर में एक - दूजे से आगे निकल जाने की होड़। “उसकी कमीज मेरी कमीज से ज्यादा सफ़ेद कैसे?” की चिंता में तनाव होता है।

इसके अलावा एक और महत्वपूर्ण कारक तनाव का है। जिसमें व्यक्ति दूसरे व्यक्ति पर निर्भरता दिखाता है यानि उसका सुख -दुःख, उसकी हँसी ख़ुशी सब दूसरे व्यक्ति पर निर्भर हो जाती है, और जब दूसरा व्यक्ति उसे सहयोग नहीं कर पाता तो तनाव होता है। ये तनाव बहुत खतरनाक भी हो सकता है जिसमें एक व्यक्ति की पूरी दुनिया दूसरे की हाँ और ना पर चलती है, अक्सर ये तनाव हत्या या आत्महत्या का कारण बनता है। इसके अलावा दिन-प्रतिदिन की उलझने जैसे बिजली नहीं आई, पानी नहीं आया पार्किंग नहीं मिली या नेटवर्क नहीं है जैसे छोटे छोटे तनाव भी व्यक्ति को परेशान करते हैं।

इन सब तनावों में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण कारक कुंठा यानि frustrations का होना है। जब व्यक्ति की कोशिश किसी लक्ष्य पर पहुँचने में बाधित होती है तो इससे व्यक्ति में कुंठा उत्पन्न होती है। इनमे विभेद पूर्वाग्रह, कार्य असंतुष्टि (job dissatisfaction), प्रिय से दूरी, प्रिय की मृत्यु आदि है। उसी तरह दैहिक विकलांगता, अकेलापन, अपर्याप्त आत्मनियंत्रण ये सभी कुंठा के कारन है।

फिर इस मर्ज की दवा क्या है? इस मर्ज का कारण चाहे जो भी हो लेकिन ये बात तय है कि यह व्यक्ति के सांवेगिक एवं दैहिक स्वास्थ्य को खराब जरुर करता है। चिकित्सक तनाव कम करने की दवा देते हैं लेकिन मनोविज्ञान समायोजित व्यवहार की सलाह देता है। समायोजित व्यवहार क्या है?

शोध बताते हैं कि जिन व्यक्तियों में मनोवैज्ञानिक कठोरता (साइकोलॉजिकल हार्डनेस) अधिक होती है, वे परिस्थिति के तनावपूर्ण होने पर भी परेशान नहीं होते। वो समायोजित व्यवहार द्वारा अपने आस-पास के वातावरण . उसकी आंतरिक मांगों और उसके बीच के संघर्षों, अंतर्द्वंदों को नियंत्रित करना सीख लेते है। पर्यावरण की माँग शारीरिक सीमाओं एवं अंतर्वैयक्तिक चुनौतियां सभी को अपने मूल्यों, प्रसाधनों आदि के साथ इस तरह से व्यवस्थित करता है कि उनका प्रभाव कम से कम हो और फिर इससे तनाव न उपजे।

उदहारण देखें: जैसे किसी व्यक्ति को कोई समस्या बहुत परेशान कर रही है तो सबसे पहले उस समस्या को स्पष्ट किया जाए, परिभाषित किया जाये। फिर उसका वैकल्पिक समाधान (अल्टरनेटिव सलूशन) खोजा जाए। उन समाधानों के संभावित लाभ एवं हानि देखी जाये। उनका मूल्यांकन कर सही विकल्प चुना जाये और उसे कार्य रूप दिया जाये।

लेकिन ये इतना आसन भी नहीं है ये समायोजन हर व्यक्ति की गति, अनुभूतियों, बौद्धिक क्षमता तथा आत्मनियंत्रण पर निर्भर करता है।

जैसे ही व्यक्ति को तनाव घेरता है वो अपने तरीके से इसे कम करने के प्रयास करता है। कुछ व्यक्ति कुछ ख़ास तरह का व्यवहार करते हैं वो शराब या सिगरेट की मात्रा बढ़ा देते हैं। कुछ लोग दोस्तों का समर्थन प्राप्त करना पसंद करते हैं, और समर्थन मिल जाने पर उन्हें लगता है अरे ये समस्या तो उतनी गंभीर थी ही नहीं जितना हमने इसे समझा था।

कभी -कभी व्यक्ति तनाव से उत्पन्न इच्छाओं का दमन करता है। अपने मन की बात को किसी से न कहने का दुःख और अपनी इच्छाओं को, यादों को साझा न करने का दुःख उसे मन ही मन तनाव देता है, फिर व्यक्ति उन समस्त यादों और इच्छाओं का दमन शुरू कर देता है वो जानबूझ कर अपने चेतन से, मन से उन सभी बातों को हटा देना चाहता है जो उसके दुःख का कारण बन रही हैं। ताकि वो अपना ध्यान दूसरी तरफ लगा सके वो विकल्प खोजता है खुद को व्यस्त रखता है। ( ये अलग बात है की यादों और इच्छाओं की अनदेखी उसमे कौन से मानसिक रोग उत्पन्न करती है)

अगला उपाय है प्रतिक्रिया निर्माण या reaction formation इसमें व्यक्ति तनाव उत्पन करने वाली इच्छा या विचार के ठीक विपरीत इच्छा या विचार विकसित कर लेता है और अपना तनाव कम करता है। उदाहरण के लिए: प्रेम में आकंठ डूबा हुआ व्यक्ति हमेशा प्रेम को अस्वीकार करता है। इस अस्वीकार भाव से उसे मानसिक शांति मिलती है थोड़े समय के लिए वो खुद को तनाव रहित महसूस करता है।

कुछ व्यक्ति तनाव से बचने लिए यौक्तिकीकरण की नीति अपनाते है यानि rationalization - जब बाहरी वास्तविकता बहुत कष्टकर और दुखदायी हो जाती है तो व्यक्ति असहज हो उठता है और वो वास्तविकता के अस्तित्व को नकारने लगता है, उसे मानने से ही इनकार करता है और अपना तनाव कम करता है।

कभी-कभी व्यक्ति बौद्धिकीकरण यानि intellectualizetion की नीति भी अपनाते देखे गए हैंi इसमें व्यक्ति अपने चारों और एक रक्षा-प्रक्रम अपनाता है। वो अपनी एक खोल में क़ैद रहता है और बाहरी जगत से अलगाव या निर्लिप्ता विकसित करता है। जैसे कोई डाक्टर रोज-रोज मौत और जिन्दगी से जूझता है तो रोगियों के प्रति वो सांवेगिक रूप से involvement ना दिखा कर अपना तनाव कम करता है।

इस तरह हर व्यक्ति अपने-अपने तरीके से तनाव को कम करने के कई उपाय अपनाता है।

बहुत से लोग सोशल साइट्स पे जाकर अपना तनाव कम करते हैं कुछ लोग संगीत सुनकर कुछ लोग खुद से ही बाते करते हैं। ये सभी उपाय अपना कर भी व्यक्ति तनाव से पूर्णरूप से बच नहीं पाता है। उसे कोई न अकोई तनाव हर समय जकडे ही रहता है। "मर्ज बढ़ता ही गया ज्यों-ज्यों दवा की" वाले अंदाज में।

ऐसे समय में किसी योग्य चिकित्सक से बात करनी चाहिए। किसी भरोसेमंद साथी या मित्र से अपनी परेशानी साझा की जा सकती है। याद रखिये, सहजता और सरलता आपको बहुत से तनाव से बचा सकती है। झूठ ,छल, प्रपंच, इर्ष्या और स्वार्थ हमेशा तनाव के कारण बनते हैं।

इनसे खुद को दूर रखना होगा, कोई भी चिकित्सक आपको सिर्फ परामर्श और दवा ही दे सकता है। वो आपको खुश नहीं कर सकता। जब तनाव जीवन का एक हिस्सा ही बन जाये तो उससे दोस्ती कर ली जाये। इसके साथ ही खुश रहा जाए, ख़ुशी आपको खोजती हुई कभी नहीं आती, आपको जाना होता है उसके पास, अपने आसपास खुशियाँ तलाशनी होती है। इस मर्ज का इलाज बाहर नहीं भीतर ही मिलेगा, और दवा भी भीतर ही मिलेगी।