आगे खुलता रास्ता / भूमिका / नंद भारद्वाज

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बदलते हालात में जिस तरह सामान्य वर्ग का व्यक्ति अपने अस्तित्व और बेहतर जीवन के लिए संघर्ष करता है, पारम्परिक साझे परिवार की पृष्ठभूमि से अलग अपनी एक छोटी-सी दुनिया बनाता है और उसी दुनिया की बदलती सोच खुद उसके लिए एक चुनौती बन जाती है। जीवन की विषमताओं से जूझते नायक रामबाबू का अपना संघर्ष जहां एक सीमा से आगे नहीं बढ़ पाता वहीं सत्य और न्याय के लिए जूझती उसकी जुझारू संतान सत्यवती उस संघर्ष को नयी दिशा और गति प्रदान करती है। उल्लेखनीय बात यह कि आगे बढ़ने वाली इस पीढ़ी का यह कदम अकेला नहीं उठता। वह समस्याओं के समाधान में लोकतान्त्रिक मूल्यों और सामूहिक सोच को बढ़ावा देती है।

अपने अस्तित्व और अस्मिता के लिए संघर्षरत दो पीढ़ियों का अपना-अपना संघर्ष जहां उन्हें नया रास्ता दिखाता है, वहीं पहली पीढ़ी के घटक रामबाबू के लिए अपनी पत्नी गीता का समर्पित जीवन और उसका अवसाद तथा उन्हीं की बेटी सत्यवती का जीवन-संघर्ष नयी प्रेरणा बन कर सामने आता है।

दो पड़ावों में विभाजित उपन्यास के कथा-विन्यास में शहरी और ग्रामीण परिवेश में जीने वाले परिवारों के नये संबंधों का जहां विस्तार और उनका सामीप्य उभर कर सामने आता है, वहीं नारी चरित्रों का अपना संघर्ष और उनकी जिजीविषा सोच का एक नया ही आयाम उद्घाटित करती है।