आग और धुआँ / विपिन चौधरी

Gadya Kosh से
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इंग्लैंड में क्या करेगी माँ, वहाँ बच्चे के पोतडे धोएगी और बेटे बहु की डाँट खायेगी. सुनीता ने आवेश भरी आवाज़ में कहा, मैं अच्छे से जानती हूँ. निखिल की नकचढी पत्नी और निखिल के गर्म स्वभाव को.

अपनी पत्नी के आवेश को अनदेखा कर, नवरतन ने ज़ोर से ठाहका लगाया. वह कुर्सी से नीचें झुकते हुए अपने जूते के फीते बांधते हुए बोला.

“तुम्हारी माँ जो कुछ बोती आई है अब तक, वही तो कटेगी ना.” बोये बबूल के तो आम कहाँ से पावे.

सुनीता ने यह सुन एक बार तो अपनी गर्दन झटकायी फिर ज़रा ठहर कर सोचा, नवरतन जो कह रहे है वह कड़वा तो जरूर है पर है सौ प्रतिशत सच. वह खुद भी तो अपनी माँ की कारगुजारीयों की साक्षी रहती आई थी.

सुनीता की बुद्धि को जो सहज ही समझ में आया उसके पीछे कारण यह था कि कभी यही माँ खुद अपने ही बड़े बेटे निखिल और बहु रितिमा के बीच तनाव का कारण बनी थी और वह तनाव बढ़ते-बढ़ते तलाक के कागजों पर हस्ताक्षर तक जा पहुंचा था. फिर बहुत कोशिशों के बाद ही दोनों पति-पत्नी में सुलह हो पाई थी. तो सुनीता कैसे उम्मीद करे कि उसकी माँ अथार्तखबरी बुआ इंग्लैंड जा कर उसके बड़े भाई के शांत और सुखी परिवार में दुबारा से कोई खुराफात नहीं मचायेगी.

इधर, जब से खबरी बुआ का इंग्लैंड जाने का पक्का प्लान बना है, उसके धरती पर पाँव नहीं पड़ रहे. वैसे भी कौन सी गंभीरता रहती है, बुआ के आचरण में. इस भादों में पूरे ८० के नजदीक लग जायेगी खबरी बुआ. पर चंचलता और शोखी में जवान कन्याओं को माफ करे है वो.

गाँव- गुहांड के किसी भी कोने में शादी हो, तो खबरी बुआ की पाँव की एडियाँ धरती से टकरा-टकरा कर एक अनोखे वाद्ययंत्र का भान देती है और साथ- साथ बुआ नाचते-नाचते पूरी तान भी देती चलती हैं. हंसी-खुशी, दुःख, विरह के तमाम गीत खबरी बुआ को मुहँजबानी याद हैं.

जब वह अपनी भारी भरकम आवाज में शादी ब्याह की महफ़िलो में गाने लगती है तो गाँव की नयी नवेली बहुएं घूँघट से चेहरा बाहर निकाल कर झांककर इस आवाज़ की तरफ देखने लगती हैं. गाँव में ब्याह कर आयी इन नई-नवेली बहुओं के पास भी देर सवेर इस तेज तर्रार खबरी बुआ का बायोडाटा पहुँच जाता है. वे भी कुछ दिनों में जान जातीं हैं, खबरी बुआ की ख़बरों की गर्म तासीर को. ठीक उसी तरह ही जैसे कभी नई बहु बन कर सुजानपुरा गाँव में उतरी सावित्री दादी ने कभी बुआ को जाना था.

अपने ससुराल में एक सौगात के तौर पर मिली थी सावित्री को खबरी बुआ, ननद के रिश्ते के तौर पर. इस आलीशान हेवली में आते ही दो तीन दिन में ही सावित्री को पता चल गया था कि यदि अपने ससुराल में शांतिपूर्वक रहना है तो सिर झुका कर खबरी बुआ का कहा मान लो बस. सिर्फ सावित्री ही नहीं उसके बाद हवेली की ड्योढ़ी पर आने वाली सभी नई बहुओं को पता चल गया था कि खबरी बुआ आखिर किस मर्ज का नाम है और अब तीसरी पीढ़ी भी अपनी सासू माँओं का अनुसरण करती चली आ रही हैं. उन्हें खुदा से भी इतना खौफ नहीं लगता जितना इस खबरी बुआ के कारनामों से. पता नहीं कौन सी सात तालों में बंद बात, खबरी बुआ अपने पल्लू से लपेट ले और पूरे गाँव भर में लहरा दे.

गाँव के मर्दों को खबरी बुआ से कोई भय हो न हो पर इसमे कोई शक नहीं कि सुजानपुरा गाँव भर की औरतें बुआ की खबरी कानों से हर घङी भयभीत रहा करती हैं और अपने इस एकछत्र राज से खबरी बुआ मन ही मन संतोष मगन रह, फूली रहती. जाने सुजानपुरा गाँव के पूर्वजों ने क्या खता की थी किखबरी बुआ ने इस गाँव में जनम लिया. अब जनम लिया तो खबरी बुआ को अपनाना भी पड़ेगा यह सोच कर सबने अपने सीने पर खबरी बुआ नाम का भारी पत्थर रख मजबूरन रख लिया है.

गाँव में किसी मौत पर खबरी बुआ ही सबसे जयादा गला फाड़-फाड़ कर रोया करती है बिना एक भी आंसू खर्च किये. फिर चाहे उस दिवंगत हो चुकी आत्मा की बुराई के टीले दर टीले बना चुकी हो पहले कभी वह उस इन्सान के जीवित रहते.

शहर के लोगों की चाहे अखबार पढ़े बिना हलक से चाय नीचें न उतरे पर सुजानपुरा गाँव की औरतों का काम तो खबरी बुआ की सूचनाओं से ही चलता है. पता नहीं कहाँ से सूंघ लेती है बुआ कोई ऐसी खबर जो किसी को कभी नहीं पता चलती.

खबरी बुआ के कान कुछ जायदा ही तेज है और आंखे तो शैतान को मात देने वाली. लोग अपनी बातें इतनी सावधानी से बुआ के कानो से दूर रहते पर बुआ का नाम खबरी बुआ यूँ ही नहीं पड़ा था. और उनकी खबर हमेशा पक्की होती. नाक में नसवार सूंघती सूंघती खबरी आंखे घुमा घुमा कर इस तरह बातों की सुहाली उतरती जाती और लोग उसकी बातों की चाशनी में पूरी तरह से नहा उठते.

जब राजेंदर सिंह के बड़े बेटे राम की अकाल मृत्यु हो गयी थी तो मनो पूरा गाँव हिल गया था इस बीच शान्तो बुआ भी गाँव आ पहुची थी. राजेंदर सिंह के घर बुआ की खुच पोस्च नहीं होती थी कारण राजेंदर सिंह की बेटियाँ शहर से पढी लिखी थी वे बुआ को जरा भी घास नहीं डालती थी उस घर में इज्जत करने वाली राजेंदर की पत्नी ही थी जो बुआ से ठीक से पेश आती. जवान मौत के गम से पूरा घर शोक में डूबा हुआ था पर इस वक़्त भी शांति बुआ अपनी करतूतों से बाज़ नहीं आयी और राम की पत्नी के कान भर दिए की छोटी बहूँ की पत्नी को तेरे पति के पल्ले बांधेंगे.यह सुनकर राम की पत्नी और उसके मायके वाले बिदक गए, जबकि पल्ले उढ़ाने वाली बात सिर्फ बुआ ने ही अपनी जुबां से निकला था और राजेंदर तो खुद ऊँचे विचारों वाले इन्सान थे उन्हे इस तरह की प्रथाओं में रत्ती भर भी विश्वास नहीं था.

बुआ के खबर देने का अंदाज तो ऐसा जबरदस्त होता कि ललिता पवार या निरुपमा दत्त की अदाकारी भी उसके आगे पानी भरे. जिस तरह गाँव में घूम- घूम कर चूडियाँ बेचने वाली मनियारन अपने सिर से चूडियों का छाबडा उतारती हैं उसी तरह से खबरी बुआ गाँव के भीतर घुसते ही अपनी ख़बरों का पिटारा पहले से ही तैयार रखती हैं. किसी काबिल तीरंदाज का तीर निशाने पर लगे न लगे, खबरी बुआ अपनी खबर से जो तीर किसी शांत घर में छोड़ती है वह अपना असर जरूर दिखाता है.

लड़ाई-झगङे के कई बड़े-बड़े कांड इसी खबरी बुआ के नाम पर दर्ज हैं फिर भी आठों घरों की बहुएं उनके आगे नत-मस्तक रहती हैं. देर तक उनीदी हालत में भी खबरी बुआ के पाँव दबाने में झुकी हुई देखी जा सकती हैं, उस वक्त तक जब तक खबरी बुआ, बस, का इशारा न कर दे. यही नहीं खबरी बुआ होने के और भी कई फायदे हैं मसलन घर-भर के बच्चों को दरकिनार कर सबसे पहले खबरी बुआ को ही गरमा-गरम खाना परोसा जाता है. घर में बिजली न होने पर बुआ को पंखा झलने का फरमान जारी होता है, जिसे घर के बच्चों को कुढते हुए मानना ही पड़ता हैं. हर बार गाँव आने पर खबरी बुआ इसी तरह से मेहमाननवाजी का लुत्फ़ उठा कर अपने शहर वाले घर लौट जाती है, पीछे रह जाता है गाँव का कोई लड़ता-झगड़ता घर, जिसमें खबरी बुआ अपनी किसी खबर के कीटाणु छोड कर एक शातिर खिलाड़ी की तरह लौट गयी होती है.

वैसे बुआ अरसे से शहर में रहती है पर उनका असली राजपाट तो सुजानपुरा गाँव में ही चलता हैं, शहर की पड़ोसनें तो खबरी बुआ को घास का एक तिनका भी नहीं डालती. तो शहर में बुआ का मन क्योंकर लगे. हर हफ्ते कपड़ो की पोटली बगल में दबाए बुआ गाँव के किसी न किसी घर में आ धमकती है. उसे उस घर में जाना अधिक सुहाता है जिस में कोई शादी या सगाई या फिर नन्हा मेहमान आने की तैयारी हो रही होती है.

गाँव की औरतों की घरेलु राजनीति भी बेहद रोचक हुआ करती है. जिसका पूरा का पूरा लाभ खबरी बुआ उठाती है. गाँव के घरों में आपसी भाईचारे का माहौल होता है वह शहर में बुआ को किसी भी हालत में नसीब नहीं हो सकता.

गाँव की बड़ी-बूढी भी खबरी बुआ की शैतानियों से पार नहीं पा सकी हैं फिर इन नई लड़कियों और बहुओं की तो बात ही क्या है.

जब सवित्री बुआ तेरह बरस की उम्र में इस गाँव की हवेली में ब्याह कर आई थी तो डोली इसी खबरी बुआ के घर में उतरी थी. तब से देख रही है सावित्री, खबरी बुआ का रुतबा कम नहीं हुआ है इस घर में. घर क्या, पूरे खानदान क्या, पूरे गाँव में. समय के साथ सावित्री ने अपने आठों छोटे देवरों की शादियाँ देखी. नई बहुएं पुरानी हवेलियों में आई. फिर सबने उस पुरानी हवेली को छोङ अपने- अपने परिवार के साथ अपने घर आँगन अलग कर लिए.

इस बीच खबरी बुआ के जलवे गाँव के चारों कोनों तक पहुंचे. गाँव के हर घर में बुआ की मेहरबानी से लड़ाई झगडे होते रहे. दरअसल बात यह थी कि बुआ के अपने आठों भईयों में से सिर्फ दो भईयों को ही खबरी बुआ की कृपा दृष्टी प्राप्त थी. बुआ की कारगुजारीयों के कारण इस सहारण परिवार में भाईयों के बीच खट-पट का वातावरण हमेशा चलता रहता. शायद ही इस परिवार में कोई ऐसी शादी हुई हो जब सभी भाईयों का परिवार एक साथ हंसी खुशी के अवसर पर जुटे हों.

खुद खबरी बुआ का अपना शहर का घर भी कलेश से कहाँ महरूम था. शायद बुआ का प्रभाव ही ऐसा था कि कलेश उसके घर की दिनचर्या में शामिल हो चला था. उसके चारों लड़के इस कदर लड़ते कि जब कभी लड़ते-लड़ते चारपाईयों पर गिर पड़ते तो चारपाईयों के चारो पाए धराशाही हो जाते, फिर नीचे गद्दे बिझा कर सोने की नौबत आ जाती. तो कभी दिवार घड़ी की बलि चढ जाती उनके लड़ने की जोर आजमाईश में.

किशन फूफा भी शायद इसी कारण अपना समय घर से बाहर गुज़ारा करते. खूब शराब पी घर आते और अपनी तनख्वाह का छोटा सा हिस्सा ही बुआ को थमाते. खबरी बुआ भैसो का दूध और उपले बेच कर गुज़ारा करती.

निरक्षर खबरी बुआ को दुनियादारी का जटिल पहाडा मुँह-जबानी याद था. वह संसार के सारे पेच अपनी कुटिल कुंजी की सहायता से फट, खोल लिया करती थी. यही कारण था कि अपनी काली कलूटी फूहड़ बेटी, जिसके भरी जवानी में ही बत्तीस में से बीस दांत भगवान को प्यारे हो चुके थे, की शादी एक बड़े अफसर से सफलता से करवा दी थी और ऐसा हट्टा कट्टा गऊ जैसा दामाद ढूँढ कर निकला किआस-पड़ोस की सभी जवान कुंवारी लडकियों की माएं दांतों तले अपनी उंगलियां दबाने को मजबूर हो गयी.

यह भी गजब सयोंग ही था कि घर के कलेशपूर्ण वातावरण में भी पढ़-लिख कर खबरी बुआ का बड़ा बेटा काबिल हो कर इंडियन फोरेन सर्विस में प्रवेश पा गया. तब वह खबरी बुआ की काऊ-काऊ कर शोर मचाती दुनिया से दूर निकल गया और दोनों बेटे भी स्कुल में मास्टर हो दूसरे शहर में चले गए. रह गया सबसे छोटा और सीधा बेटा शांतनु, जो बेचारा मुश्किल से बी. ए. ही पास कर पाया. अब घर का सारा काम काज उसके ही कमज़ोर कंधे पर था. दिन भर बुआ के निर्देशों का पालन करता शांतनु कभी बुआ की रूआब से दूर नहीं जा पाया. उसके लिए बहु भी चुन कर लाई थी खबरी बुआ. जो बेचारी गरीब घर की कम समझ वाली ऐसी लड़की थी, जो कभी भी बुआ का विरोध नहीं कर सकती थी, यह सब भी बुआ की उस चाल के तहत मामला था जिससे कि आखिरी सांस तक खबरी बुआ का प्रभुत्व फीका न पड़ सके. हर सिरे पर चौकनी रहती थी खबरी बुआ, मजाल कि उसका फैंका हुआ पत्ता कभी गलत सिद्ध हो जाए.

फिलहाल खबरी बुआ खाट पर बैठ कर बता रही है की उसके सूटकेस में क्या-क्या डाला जाए. कभी किसी बच्चे तो कभी किसी बहु को दौड़ा-दौड़ा कर हलकान कर रही हैं. शायद गाँव की ये महिलायें खबरी बुआ के विदेश जाने से राहत ही सांस ले सकें पर उन महिलाओं की तादात भी कम नहीं हैं जिनको खबरी बुआ की ख़बरों की न छुटने वाली लत लग चुकी है.

अलबत्ता घर की सबसे नई पीढ़ी खबरी बुआ को देख कर नाक-भौ सिकोड़ती हुई साफ़ देखी जा सकती है. और तो और छोटे-बच्चे भी अपनी तेज इनर इंस्टिंक्ट के चलते खबरी बुआ से दूर ही रहते हैं. अपने माता- पिता के हाव-भाव देख कर शायद वे खुद ही कोई अनुमान लगा लेते हों खबरी बुआ के बारे में. जो उनसे झिटके रहने का कारण बनता हो.

अब इस इक्कीसवी सदी में खबरी बुआ का खबरों का लंबा-चौड़ा कारोबार भी कुछ मंद सा पड़ने लगा है. कारण यह भी है कि अब लगभग सभी बुढे-बडेरे लोग सुजानपुरा गाँव को छोङ कर अपने बच्चों के पास शहर में चले गए हैं और कुछ लोगों ने अपने दूर दराज़ के खेतों में ही डेरा डाल लिया है. जहाँ घर गाँव के घरों की तरह एक साथ जुडे न होकर अलग-थलग खेतों में बने हुए हैं.

अब देखना यह है कि खबरी बुआ का इंग्लैंड प्रवास कैसा रहेगा. कितने दिन टिक पायेगी वह परदेश में. क्या रह-रह कर उसे लड़ाई- झगडे की आवाजें सुजानपुरा गाँव आने को मजबूर कर देंगी?

खबरी बुआ के वापिस भारत आने तक हम उन पर आधारित इस सत्यकथा को यहीं पर विराम देते हैं.