आचार संहिता बड़ा फ़जीता / ललित शर्मा

Gadya Kosh से
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ढिंग चिका ढिंग चिका ढिंग चिका ढिंग हे ऐ ऐ ऐ ……… बैलगाड़ी में लगा हुआ लाऊडस्पीकर गाना बजा रहा था। शादियों के अवसर पर अक्सर नई फ़िल्मों के गीत बजाए जाते हैं। मुटरु कका के मयारु बेटा की बारात जा रही थी। भोर से ही सारे बारातियों को इकट्ठा कर बैलगाड़ी फ़ांद दिए। सांझ तक भुरकापुर पहुंचना था, तभी बारात परघनी होती। गाना सुनकर बैल भी सिर हिलाते हुए मजे से चल रहे थे। बाराती ढिंग चिका ढिंग चिका का आनंद ले रहे थे।

जैसे ही काफ़िला ढीमर पारा से मुड कर सड़क पर आया, गंजेड़ी हवलदार ने बंदूक तान दी और चिल्लाया - "रोको बे!" समारु ने बैलों की लगाम जोर से खींची, चरमराते हुए गाड़ी रुक गई और उसके साथ काफ़िला भी।

हवलदार सामने आया, उसने डपट कर हवा में प्रश्न उछाला - "किससे पूछ के लाऊड स्पीकर बजा रहे हो? परमीशन लिए हो लाऊड स्पीकर बजाने का?"

धोती संभालते हुए मुटरु बैलगाड़ी से उतरा - "लाऊड स्पीकर बजाने के लिए भी परमीशन लेना पड़ता है क्या? मेरे बेटे की शादी है, बारात जा रही है, बिना लाऊड स्पीकर के बारात की क्या शोभा।"

सामने कुर्सी पर बैठा जर्दा चबाता दरोगा उठ कर मुटरु के पास आया - "तुझे नहीं मालूम का क्या, चुनाव चल रहा है। चुनाव आयोग की अनुमति बिना लाउड स्पीकर बजाना अपराध है। हवलदार इसकी गाड़ी बैला को जप्ती बनाओ और बरातियों को चालान करो।"

दरोगा की बातें सुनकर बारातियों में खलबली मच गई। मुटरु हाथ जोड़ कर दरोगा के पैरों में गिर गया - "ऐसा मत करो साहब! जो कुछ खर्चा पानी लेना है, ले लो और मामले को रफ़ा-दफ़ा करो। टाईम पर बारात नहीं पहुचेगी तो बेइज्जती हो जाएगी।"

"दरोगा को घूस देने की कोशिश करता है, कानून भी तोड़ता है। अब तो तुझे हवालात में डालना ही पड़ेगा। हवलदारSSSS, लाऊड स्पीकर जप्ती बनाकर अपराध दर्ज करो, और मुटरु को थाने में बंद करो।"

"नहीं साहब! माफ़ कर दो, गलती हो गई। नहीं मालूम था हमें कि लाऊड स्पीकर न बजाने के कानून आ गया है। हम लाऊड स्पीकर हटा देगें साहब" - मुटरु गिड़गिड़ाते हुए बोला।

"तुम्हारे लड़के की शादी में विघ्न न हो, इसलिए तुम्हें निर्वाचन अधिकारी से परमीशन लेकर आना पड़ेगा। तब ही मैं बारात को यहाँ से हिलने दूंगा।"

"परमीशन कहाँ मिलेगा साहब?

"तहसीलदार को दरखास दो, वही परमिशन देगा।"

बारात खड़ी रही, बैलों को गाड़ी से ढील दिया। मुटरु, रामस्वरुप को साथ लेकर तहसीलदार के कार्यलय में पहुंचा। अर्जीनवीस से आवेदन पत्र लिखवाया, तहसीलदार के समक्ष प्रस्तुत हुआ - "बाराती गाड़ी में लाऊड स्पीकर लगाने का परमीशन चाहिए साहब।"

तहसीलदार ने आवेदन पर टीप लिख दिया - "लाऊडस्पीकर बजाने का परमीशन निर्वाचन अधिकारी देते हैं, मेरे अधिकार में नहीं है, मैने आवेदन पत्र अग्रेषित कर दिया है। तुम सहायक निर्वाचन अधिकारी से मिलो।"

मुटरु के दिमाग में खलबली मची हुई थी। बारात में विलंब हो रहा था - "पता नही किस साले का मुंह देख कर घर से निकले थे। गाँव से निकलते ही शनि सवार हो गया। चल कहाँ पर सहायक निर्वाचन अधिकारी बैठता है।"

सहायक निर्वाचन अधिकारी के कार्यालय में गहमा-गहमी थी। पंक्ति में बैठे हुए बाबू फ़ाईलों में उलझे हुए थे। मुवक्किल और वकील बाबूओं से तारीख ले रहे थे। अधिकारी साहब कुर्सी से गायब थे। - "साहब कहाँ मिलेगें?" रामस्वरुप ने बाबू से पूछा।

"साहब तो रुम नम्बर 10 में बैठे हैं। क्या काम है?"

"बाराती गाड़ी में लाऊडस्पीकर लगाने का परमिशन चहिए। दरोगा ने रास्ते में गाड़ी रोक ली है और हमें शाम तक भुरकापुर तक परघनी के लिए पहुंचना है। जो कुछ भी खर्चा पानी लगे वो ले लो पर काम जल्दी करवा दो।" - मुटरु एक सांस में कह गया।

बाबू ने नाक से उपर चश्मा चढाते हुए चपरासी को आवाज दी - "समरित! फ़ाईल कव्हर लेकर आना।" इधर बाबू नोटशीट बनाने लग जाता है। नोटशीट तैयार होते ही उसे लेकर निर्वाचान अधिकारी को प्रस्तुत करता है।

"क्या है यह?" निर्वाचन अधिकारी ने नोट शीट पर नजर डालते हुए कहा।

"लाऊड स्पीकर लगाने का परमिशन चाहिए बाराती गाड़ी में।"

"तुम्हें 15 वर्ष हो गए नोटशीट बनाते हुए, इसमें गाड़ी का नम्बर कहाँ लिखा और ड्रायवर के लायसेंस की फ़ोटो कॉपी भी नहीं लगाई।" - अधिकारी ने बाबू पर तमकते हुए कहा।

"साहब! इन्हें बैलगाड़ी में लाऊड स्पीकर लगाने की अनुमति चाहिए। बैलगाड़ी का रजिस्ट्रेशन नम्बर नहीं होता साहब और न ही इसके ड्रायवर का लायसेंस बनाया जाता।"

बाबू का जवाब सुनकर साहब को क्रोध आ गया। उसने फ़ाईल रख ली - "जाओ सेकंड हाफ़ में ले जाना।"

बाबू मुंह लटका कर बाहर निकला तो मुटरु उसकी शक्ल देखकर ही समझ गया। कोई गड़बड़ है - "क्या हुआ बाबू साहब?"

"बड़े साहब बोले हैं कि परमिशन सेकेंड हाफ़ में मिलेगी।"

"मुझे मिलवा दो साहब से, बहुत जरुरी है, बारात रास्ते में खड़ी है। हाथ पैर जोड़ कर निवेदन कर लुंगा।"

"साहब गुस्से में है, नहीं मिलने वाले" - बाबू ने फ़ाईल वाला हाथ हिलाते हुए कहा।

"सब गड़बड़ हो गया रामस्वरुप, पहले पता होता तो हफ़्ता भर पहले परमीशन ले लेते। अरे बिना लाऊड स्पीकर के ही चलते हैं, परन्तु इज्जत का कचरा हो जाएगा। गाँव वाले क्या सोचेगें। एक लाऊड स्पीकर भी बजाने के लायक नहीं है मुटरु। किसी की काठी में आया क्या?"

"सिरतोन कह रहे हो कका। अब बेर भी मुड़ उपर आ गया है, बैलगाड़ी से तो भुरकापुर पहुंच नहीं सकते और कुछ उदिम करना पड़ेगा।"

"एक काम कर, कन्हैया बनिया को मोबाईल लगा कर उसका मेटाडोर बुलवा। जो भी रुपया पैसा खर्चा होगा देखा जाएगा। बारात तो जाना ही है, कान धर के चेत जा बेटा कि अब चुनाव के बेरा में कभी बिहाव नहीं रचाना है।" मुटरु ने बीड़ी सुलगाते हुए कहा तथा कचहरी से बाहर निकल गया।