आजाद-कथा / भाग 2 / खंड 101 / रतननाथ सरशार

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आजाद पाशा को इस्कंदरिया में कई दिन रहना पड़ा। हैजे की वजह से जहाजों का आना-जाना बंद था। एक दिन उन्होंने खोजी से कहा - भाई, अब तो यहाँ से रिहाई पाना मुश्किल है।

खोजी - खुदा का शुक्र करो कि बचके चले आए, इतनी जल्दी क्या है?

आजाद - मगर यार, तुमने वहाँ नाम न किया, अफसोस की बात है।

खोजी - क्या खूब, हमने नाम नहीं किया तो क्या तुमने नाम किया? आखिर आपने क्या किया, कुछ मालूम तो हो, कौन गढ़ फतह किया, कौन लड़ाई लड़े! यहाँ तो दुश्मनों को खदेड़-खदेड़ के मारा। आप बस मिसों पर आशिक हुए, और तो कुछ नहीं किया।

आजाद - आप भी तो बुआ जाफरान पर आशिक हुए थे!

मीडा - अजी, इन बातों को जाने दो, कुछ अपने मुल्क के रईसों का हाल बयान करो, वहाँ कैसे रईस हैं?

खोजी - बिल्कुल तबाह, फटे हाल, अनपढ़, उनके शौक दुनिया से निराले हैं। पतंगबाजी पर मिटे हुए, तरह तरह के पतंग बनते हैं, गोल, माहीजाल, माँगदार, भेड़िया, तौकिया, खरबूजिया, लँगोटिया, तुक्कल, ललपत्ता, कलपत्ता। दस-दस अशर्फियों के पेंच होते हैं। तमाशाइयों की वह भीड़ होती है कि खुदा की पनाह! पतंगबाज अपने फन के उस्ताद। कोई ढील लड़ाने का उस्ताद है, कोई घसीट लड़ाने का यकता। इधर पेंच पड़ा, उधर गोता देते ही कहा, वह काटा! लूटनेवालों की चाँदी है। एक-एक दिन में दस-दस सेर डोर लूटते हैं।

आजाद - क्यों साहब, यह कोई अच्छी आदत है?

खोजी - तुम क्या जानो, तुम तो किताब के कीड़े हो। सच कहना, पतंग लड़ाया है कभी?

आजाद - हमने पतंग की इतनी किस्में भी नहीं सुनी थीं।

खोजी - इसी से तो कहता हूँ, जाँगलू हो। भला पेटा जानते हो, किसे कहते है?

आजाद - हाँ हाँ, जानता क्यों नहीं, पेटा इसी को कहते हैं न कि किसी की डोर तोड़ ली जाय।

खोजी - भई, निरे गाउदी हो।

मीडा - अच्छा बोलो, करते क्या हैं,क्या सारा दिन पतंग ही उड़ाया करते हैं?

खोजी - नहीं साहब, अफीम और चंडू कसरत से पीते हैं।

आजाद - और कबूतरबाजी का तो हाल बयान करो।

क्लारिसा - हमने सुना है कि हिंदोस्तान की औरतें बिलकुल जाहिल होती है।

आजाद - मगर हुस्नआरा को देखो तो खुश हो जाओ।

क्लारिसा - हम तो बेशक खुश होंगे, मगर खुदा जाने, वह हमको देख कर खुश होती हैं या नहीं।

मीडा - नहीं, उम्मेद नहीं कि हम दोनों को देख कर खुश हों। जब हमको और तुमको देखेंगी तो उनको बड़ा रंज होगा।

क्लारिसा - मुझे क्यों नाहक बदनाम करती हो, मुझे आजाद से मतलब? मैं तुम्हारी तरह किसी पर फिसल पड़ने वाली नहीं।

मीडा - जरा होश की बातें करो। जब उन्होंने करोड़ों बार नाक रगड़ी तब मैंने मंजूर किया। वरना इनमें है क्या? न हसीन, न जवान, न रंगीले।

खोजी - और हम? हमको क्या समझती हो आखिर?

मीडा - तुम बड़े तरहदार जवान हो। और तो और, डील डौल में तो कोई तुम्हारा सानी नहीं।

आजाद - हम भी किसी जमाने में ख्वाजा साहब की तरह शहजोर थे, मगर अब वह बात कहाँ, अब तो मरे-बूढ़े आदमी हैं।

खोजी - अभी अभी क्या है, जवानी में हमको देखिएगा।

आजाद - आपकी जवानी शायद कब्र में आएगी।

खोजी - अजी, क्या बकते हो, अभी हमें शादी करनी है भाई।

मीडा - तुम मिस क्लारिसा के साथ शादी कर लो।

क्लारिस - आप ही को मुबारक रहें।

आजाद - भई, यहाँ तुम्हारी शादी हो जाय तो अच्छी बात है, नहीं तो लोगों को शक होगा कि इन्हें किसी ने नहीं पूछा।

खोजी - वल्लाह, यह तो तुमने एक ही सुनाई। अब हमें शादी की जरूरत आ पड़ी।

आजाद - मगर तुम्हारे लिए तो कोई खूबसूरत चाहिए जिस पर सबकी निगाह पड़े।

खोजी - जी हाँ, जिसमें आपको भी घूरा-घारी करने का मौका मिले। यहाँ ऐसे अहमक नहीं हैं। जोरू के मामले में बंदा किसी से याराना नहीं रखता।

आजाद तो सैर करने चले गए। खोजी ने मिस क्लारिसा से कहा - हमारे लिए कोई ऐसी बीवी ढूँढ़ो जिस पर सारी दुनिया के शाहजादे जान देते हों। आजाद का खटका जरूर है, यह आदमी भाँजी मारने से बाज न आएगा। यह तो इसकी आदत में दाखिल है कि जो औरत हमारे ऊपर रीझेगी उसको बहकाएगा। लेकिन यह भी जानता हूँ कि जो औरत एक बार हमें देख लोगी, उसे आजाद क्या, आजाद के बाप भी न बहका सकेंगे। मुझे देख-देख कर यह हजरत जला करते हैं।

क्लारिसा - आजाद तुम्हारी सी जवानी कहाँ से लाएँ।

खोजी - बस-बस, खुदा तुमको सलामत रखें। खुदा करे, तुमको मेरा सा शौहर मिले। इससे ज्यादा और क्या दुआ दूँ।

क्लारिसा - कहीं तुम्हारी शामत तो नहीं आई है?

खोजी - क्यों, क्या हुआ? आखिर हममे कौन बात नहीं है, कुछ मालूम हो, अंधा हूँ, काना हूँ, लूला हूँ, लँगड़ा हूँ। आखिर मुझमें कौन सी बात नहीं है?

क्लारिसा - पहले जा कर मुँह बनवाओ। चले हैं हमारे साथ शादी करने, कुछ पागल तो नहीं हो गए हो?

खोजी - पागल! ठीक, मेरे पागलपने का हाल मिस्र, अदन, रूम, हिंदोस्तान की औरतों से जा कर पूछ लो, आखिर कुछ देख कर ही तो वह सब मुझ पर आशिक हुई थीं।

इतने में मियाँ आजाद ने आ कर पूछा - क्या बातें हो रही है? क्लारिसा, तुम इनके फेर में न आना। यह बड़े चालाक आदमी हैं। यह बातों ही बातों में अपना रंग जमा लेते हैं।

खोजी - खैर, अब तो तुमने इनसे कह ही दिया, वरना आज ही शादी होती। खैर, आज नहीं, कल सही। बिना शादी किए तो अब मानता नहीं।

क्लारिसा - तो आप अपने को इस काबिल समझने लगे?

खोजी - काबिल के भरोसे न रहिएगा। मेरी जबान में जादू है।

आजाद - तुम्हारे लिए तो बुआ जाफरान की सी औरत चाहिए।

खोजी - अगर मिस क्लारिसा ने मंजूर न किया तो और कहीं शिप्पा लगाएँगे। मगर मुझे तो उम्मेद है कि मिस क्लारिसा आजकल में जरूर मंजूर कर लेंगी।

आजाद - अजी, मैंने तुम्हारे लिए वह औरत तलाश कर रखी है कि देख कर फड़क उठो, वह तुम पर जान देती है। बस, कल शादी हो जायगी।

खोजी बहुत खुश हुए। दूसरे दिन आजाद ने एक गाड़ी मँगवाई। आप दोनों मिसों के साथ गाड़ी में बैठे, खोजी को कोच-बक्स पर बैठाया और शादी करने चले। खोजी ऊपर से हटो-बचो की हाँक लगाते जाते थे। एक जगह एक बहरा गाड़ी के सामने आ गया। यह गुल मचाते ही रहे और गाड़ी उसके कल्ले पर पहुँच गई। आप बहुत ही बिगड़े, भला बे गीदी, अब और कुछ बस न चला तो आज जान देने आ गया।

आजाद - क्या है भाई, खैरियत तो है?

खोजी - अजी, आज वह बहुरूपिया नया भेस बदल कर आया, हम गला फाड़-फाड़ कर चिल्ला रहे हैं और वह सुनता ही नहीं। तब मैं समझा कि हो न हो बहुरूपिया है। गाड़ी के सामने अड़ जाने से उसका मतलब था कि हमें पकड़ा दे। वह तो दो-चार दिन में लोट-पोट के चंगा हो जाता, मगर हमारी गाड़ी पकड़ जाती। अब पूछो कि तुमको क्या फिक्र है, हम लोग भी तो सवार हैं। इसका जवाब हमसे सुनिए। मिसें तो औरत बन कर छूट जातीं, रहे हम और तुम। तो जिसकी नजर पड़ती, हमी पर पड़ती। तुमको लोग खिदमतगार समझते, हम रईस के धोखे में धर लिए जाते। बस, हमारे माथे जाती।

इतने में दस-ग्यारह दुंबे सामने से आए। खोजी ने चरवाहे को उसी तीखी चितवन से देखा कि खा ही जायँगे। उसे इनका कैंड़ा देख कर हँसी आ गई। बस आप आग ही तो हो गए। कोचवान को डाँट बताई। रोक ले, रोक ले।

आजाद - अब क्या मुसीबत पड़ी!

खोजी - इस बदमाश से कहो बाग रोक ले, मैं उस चरवाहे को सजा दे आऊँ तो बात करूँ। बदमाश मुझे देख कर हँस दिया, कोई मसखरा समझा है।

आजाद - कौन था, कौन, जरा नाम तो सुनूँ।

खोजी - अब राह चलते का नाम मैं क्या जानूँ। कहिए, उटक्करलैस कोई नाम बता दूँ। मुझे देखा तो हँसे आप, मेरी आँखों में खून उतर आया।

आजाद - अरे यार, तुम्हें देख कर, मारे खुशी के हँस पड़ा होगा।

खोजी - भई, तुमने सच कहा, यही बात है।

आजाद - अब बताओ, हो गधे कि नहीं, जो मैं न समझाता तो फिर?

खोजी - फिर क्या, एक बेगुनाह का खून मेरी गरदन पर होता।

एकाएक कोचवान ने गाड़ी रोक ली। खोजी घबरा कर कोच-बक्स से उतरे तो पायदान से दामन अटका और मुँह के बल गिरे, मगर जल्दी से झाड़-पोंछ कर उठ खड़े हुए। आजाद और दोनों औरतें हँसने लगीं।

आजाद - अजी, गर्द-वर्द पोंछो, जरा आदमी बनो। जो दुलहिन वाले देख लें तो कैसी हो?

खोजी - अरे यार, गर्द-वर्द तो झाड़ चुका, मगर यह तो बताओ कि यह किसकी शरारत है, मैं तो समझता हूँ, वही बहुरूपिया मेरी आँखों में धूल झोंक कर मुझे घसीट ले गया। खैर, शाही हो ले। फिर बीवी की सलाह से बदमाश को नीचा दिखाऊँगा।

आजाद तो दोनों मिसों के साथ गाड़ी से उतरे और खोजी की ससुराल के दरवाजे पर आए। खोजी गाड़ी के अंदर बैठे रहे। जब अंदर से आदमी उन्हें बुलाने आया तो उन्होंने कहा - उनसे कह दो, मेरी अगवानी करने के लिए किसी को भेज दें।

आजाद ने अंदर जा कर एक पँचहत्थी मोटी-ताजी औरत भेज दी। उसने आव देखा न ताव, खोजी को गाड़ी से उतारा और गोद में उठा कर अंदर ले चली। खोजी अभी सँभलने न पाए थे कि उसने उन्हें ले जा कर आँगन में दे मारा और ऊपर से दबाने लगी। खोजी चिल्ला-चिल्ला कर कहने लगे - अम्माँजान माफ करो, ऐसी शादी पर खुदा की मार, मैं क्वाँरा ही रहूँगा।

आजाद - क्या है भई, यह रो क्यों रहे हो?

खोजी - कुछ नहीं भाईजान, जरा दिल्लगी हो रही थी।

आजाद - अम्माँजान का लफ्ज किसी ने कहा था?

खोजी - तो यहाँ तुम्हारे सिवा हिंदोस्तानी और कौन है।

आजाद - और आप कहाँ के रहने वाले हैं?

खोजी - मैं तुर्क हूँ।

आजाद - अच्छा, जा कर दुलहिन के पास बैठो। वह कब से गरदन झुकाए बैठी है बेचारी, और आप सुनते ही नहीं।

खोजी ऊपर गए तो देखा, एक कोने में दुशाला ओढ़े दुलहिन बैठी है। आप उसके करीब जा कर बैठ गए। क्लारिसा और मीडा भी जरा फासले पर बैठी थीं। ख्वाजा साहब दून की लेने लगे। हमारे अब्बाजान सैयद थे और अम्माँजान काबुल के एक अमीर की लड़की थीं। उनके हाथ-पाँव अगर आप देखतीं तो डर जातीं। अच्छे-अच्छे पहलवान उनका नाम सुन कर कान पकड़ते थे। सीना शेर का सा था, कमर चीते की सी, रंग बिलकुल जैसे सलजम, आँखों में खून बरसता था। एक दफे रात को घर में चोर आया, मैं तो मारे डर के सन्नाटा खींचे पड़ रहा, मगर वाह री अम्माँजान, चोर की आहट पाते ही उस बदमाश को जा पकड़ा। मैंने पुकार कर कहा, अम्माँजान, जाने न पाए, मैं भी आ पहुँचा। इतने में अब्बाजान की आँख खुल गई। पूछा - क्या है? मैंने कहा - अम्माँजान से और एक चोर से पकड़ हो रही है। अब्बाजान बोले - तो फिर दबके पड़े रहो, उसने चोर को कत्ल कर डाला होगा। मैं जो जाके देखता हूँ तो लाश फड़क रही है। जनाब, हम ऐसों के लड़के हैं।

आजाद - तभी तो ऐसे दिलेर हो, सुअरों के सुअर ही होते हैं।

खोजी - (हँस कर) मिस क्लारिसा हमारी बातों पर हँस रही हैं। अभी हम इनकी नजरों में नहीं जँचते।

आजाद - दुलहिन आज बहुत हँसती हैं। बड़ी हँसमुख बीवी पाई।

खोजी - उर्दू तो यह क्या समझती होंगी।

आजाद - आप भी बस चोंगा ही रहे। अरे बेवकूफ, इन्हें हिंदी-उर्दू से क्या ताल्लुक।

खोजी - बड़ी खराबी यह है कि यहाँ जिस गली-कूचे में निकल जायँ, सबकी नजर पड़ा चाहे और लोग मुझसे जला ही चाहें, इसको मैं क्या करूँ। अगर इनको सैर कराने साथ न ले चलूँ तो नहीं बनती, ले चलूँ तो नहीं बनती। कहीं मुझ पर किसी परीछम की निगाह पड़े और वह घूर-घूर कर देखे, तो यह समझें कि कोई खास वजह है। अब कहिए, क्या किया जाय?

आजाद - दुलहिन मुँह बंद किए क्यों बैठी हैं, नाक की तो खैर है?

खोजी - क्या बकते हो मियाँ, मगर अब मुझे भी शक हो गया, तुम लोग जरा समझा दो भाई कि नाक दिखा दें।

मिस क्लारिसा ने दुलहिन को समझाया, तो उसने चेहरे को छिपा कर जरा सी नाक दिखा दी। खोजी ने जा कर नाक को छूना चाहा तो उसने इस जोर के चपत दी कि खोजी बिलबिला उठे।

आजाद - खुदा की कसम, बड़े बेअदब हो।

खोजी - अरे मियाँ, जाओ भी। यहाँ होश बिगड़ गए, तुमको अदब की पड़ी है, मगर यार, यह बुरा सगुन हुआ।

आजाद - अरे गाउदी, यह नखरे है, समझा!

खोजी - (हँस कर) वाह रे नखरे!

आजाद - अच्छा भाई, तुम कभी लड़ाई पर भी गए हो?

खोजी - उँह, कभी की एक ही कही, क्या नन्हें बने जाते हैं? अरे मियाँ, शाही में गुलचले मशहूर थे, अब भी जो चाँदमारी हुई, उसमें हमीं बीस रहे।

आजाद - मिस मीडा हँस रही हैं, गोया तुम झूठे हो।

खोजी - यह अभी छोकरी है, यह बातें क्या जानें। अब्बाजान को खुदा बख्शे। दो ऐसे गुर बता गए हैं जो हर जगह काम आते हैं। एक तो यह कि जब किसी से लड़ाई हो तो पहला वार खुद करना, बात करते ही चाँटा देना।

आजाद - आप तो कई जगह इस नसीहत को काम में ला चुके हैं। एक तो बुआ जाफरान पर हाथ उठाया था। दूसरे जैनब की नाक में दम कर दिया था।

खोजी - अब मैं अपना सिर पीट लूँ, क्या करूँ। जिस-जिस जगह अपनी भलमनसी से शरमिंदा हुआ था, उन्हीं का जिक्र करते हो। वह तो कहिए, खैरियत है कि दुलहिन उर्दू नहीं समझतीं, वरना नजरों से गिर जाता।

यह फिकरा सुन कर दुलहिन मुसकिराईं तो ख्वाजा साहब अकड़ कर बोले - वल्लाह, वह हँसमुख बीवी पाई है कि जी खुश हो गया। बात नहीं समझती, मगर हँसने लगती है। भई, जरा आँखें भी देख लेना।

आजाद - जनाब, दोनों आँखें हैं, और बिलकुल हाथी की सी!

खोजी - बस यही मैं चाहता हूँ, वह क्या जिसकी बड़ी-बड़ी आँखें हो! तारीफ यह है कि जरा-जरा सी आँखें हो और हँसने के वक्त बिलकुल बंद हो जायँ, मगर यार, गला कैसा है?

आजाद - ऐं, क्या हिंदोस्तान में गाने की तालीम दोगे?

खोजी - ऐ है, समझते तो हो ही नहीं, मतलब यह कि गरदन लंबी है या छोटी? पहले समझ लो, फिर एतराज जड़ो।

आजाद - गरदन, सिर और धड़ सब सपाट है?

खोजी - यह क्या, तो क्या, छोटी गरदन की तारीफ है?

आजाद - और क्या, सुना नहीं, 'छोटी गरदन, तंग पेशानी, हसीन औरत की यही निशानी।' क्या महावरे भी भूल गए?

खोजी - महावरे कोई हमसे सीखे, आप क्या जानें, मगर खुदा के लिए जरा मुझसे अदब से बातें कीजिए, वरना यहाँ मेरी किरकिरी होगी। और यह आप उनके करीब क्यों बैठे हैं, हटके बैठिए जरा।

आजाद - क्यों साहब, आप अपनी ससुराल में हमारी बेइज्जती करते हैं? अच्छा! खैर, देखा जाएगा।

खोजी - आप तो दिल्लगी में बुरा मान जाते हैं और मेरी आदत कंबख्त ऐसी खराब है कि बेचुहल किए रहा नहीं जाता।

आजाद - खैर चलो, होगा कुछ। मगर यार, यहाँ एक अजीब रस्म है, दुलहिन अपने दूल्हा के दोस्तों से हँस-हँस कर बात करती है।

खोजी - यह तो बुरी बात है, कसम खुदा की, अगर तुमने इनसे एक बात भी की होगी तो करौली ले कर अभी-अभी काम तमाम कर दूँगा।

आजाद - सुन तो लो, जरा सुनो तो सही।

खोजी - अजी बस, सुन चुके। इस वक्त आँखों में खून उतर आया, ऐसी दुलहिन की ऐसी-तैसी, और कैसी दबकी-दबकाई बैठी हैं, गोया कुछ जानती ही नहीं।

आजाद - हर मुल्क की रस्म अलग अलग है। इसमें आप ख्वाहमख्वाह बिगड़ रहे हैं।

खोजी - तो आप आँखें क्या दिखाते हैं? कुछ आपका मुहताज या गुलाम हूँ? लूट का रुपया मेरे पास भी है, यहाँ से हिंदोस्तान तक अपनी बीवी के साथ जा सकता हूँ। अब आप तो जायँ, मैं जरा इनसे दो-दो बातें कर लूँ, फिर शादी की राय पीछे दी जायगी।

आजाद उठने ही को थे कि दुलहिन ने पाँव से दामन दबा दिया।

आजाद - अब बताओ, उठने नहीं देतीं, मैं क्या करूँ।

खोजी - (डपट कर) छोड़ दो।

आजाद - छोड़ दो साहब, देखो तुम्हारे मियाँ खफा होते हैं।

खोजी - अभी मुझे मियाँ न कहिए, शादी-बयाह नाजुक मामला है।

आजाद - पहले आपकी इनसे शादी हो जाय, फिर अगर बंदा आँख उठाके देखे तो गुनहगार।

खोजी - अच्छा मंजूर, मगर इतना समझा देना कि यह बड़े कड़े खाँ हैं, नाक पर मक्खी भी नहीं बैठने देते। मगर आप क्यों समझायेंगे। मैं खुद ही क्यों न कह दूँ। सुनो बी साहब, हमारे साथ चलती हो तो शर्ते माननी होंगी। एक यह कि किसी गैर आदमी को सूरत न दिखाओ। दूसरी यह कि मुझे जो कोई औरत देखती है, पहरों घूरा करती है, टकटकी बँध जाती है। ऐसा न हो कि तुम्हें सौतिया डाह होने लगे। भई आजाद, जरा इनको इनकी जबान में समझा दो।

आजाद - आप जरा एक मिनट के लिए बाहर चले जाइए, तो मैं सब बातें समझा दूँ।

खोजी - जी, दुरुस्त यह भर्रे लौंडों को दीजिएगा, आप ऐसे छोकड़े मेरी जेब में पड़े हैं। और सुनिए, क्या उल्लू समझा है! अब तुम जाओ, हम इनसे दो-दो बात कर लें।

आजाद बाहर चले गए तो खोजी पलंग पर दुलहिन के पास बैठे और बोले - भई, अब तो घूँघट उठा लो, जब हम तुम्हारे हो चुके तो हमसे क्या शर्म, क्यों तरसाती हो?

जब दुलहिन ने अब भी घूँघट न खोला तो खोजी जरा और आगे खिसक गए - जानेमन, इस वक्त शर्म को भून खाओ, क्यों तरसाती हो, अरे, अब कब लग तरसाए रखियो जी! कब लग तरसाए रखियो जी!

दो-तीन मिनट तक खोजी ने गा-गा कर रिझाया मगर जब यों भी दुलहिन ने न माना तो आपने उसके घूँघट की तरफ हाथ बढ़ाया। एकाएक दुलहिन ने उनका हाथ पकड़ लिया। अब आप लाख जोर मारते हैं, मगर हाथ नहीं छूटता। तब आप खुशामद की बातें करने लगे। छोड़ दो भाई, भला किसी गरीब का हाथ तोड़ने से तुम्हें क्या मिलेगा। और यह तो तुम जानती हो कि मैं तुमसे जोर न करूँगा। फिर क्यों दिक करती हो, मेरा तो कुछ न बिगड़ेगा, अगर तुम्हारे मुलायम हाथ दुखने लगेंगे।

यह कह कर खोजी दुलहिन के पैरों पर गिर पड़े और टोपी उतार कर उसके कदमों पर रख दी। उनकी हरकत पर दुलहिन को हँसी आ गई।

खोजी - वाह हँसी आई, नाक पर आई, बस अब मार लिया है, अब इसी बात पर गले लग जाओ।

दुलहिन ने हाथ फैला दिए। खोजी गले मिले तो दुलहिन ने इतने जोर से दबाया कि आप चीख पड़े। छोड़ दो, छोड़ दो, चोट आ जायगी। मगर अब की दुलहिन ने उन्हें उठा कर दे मारा और छाती पर सवार हो गई। मियाँ खोजी अपनी बदनसीबी पर रोने लगे। इनको रोते देख कर उसने छोड़ दिया, तब आप सोचे कि बिना अपनी जवाँमरदी दिखाए, इस पर रोब न जमेगा। बहुत होगा, मार डालेगी, और क्या। आपने कपड़े उतारे और पैंतरा बदल कर बोले - सुनो जी, हम शाहजादे हैं। तलवार के धनी, बात के शूर, नाक पर मक्खी बैठ जाय तो तलवार से नाक उड़ा दें, समझीं? अब तक मैं दिल्लगी करता था। तुम औरत, मैं मर्द, अगर अब की तुमने जरा भी गुस्ताखी की तो आग हो जाऊँगा। ले अब घूँघट उठा दो, वरना खैरियत नहीं है। यह कहीं ऊँचा तो नहीं सुनती? (तालियाँ बजा कर) अजी सुनती हो, बुर्का उठाओ।

ख्वाजा साहब बका किए, मगर वहाँ कुछ असर न हुआ। तब आप बिगड़ गए और फिर पैंतरे बदलने लगे। अब की दुलहिन ने उन्हें बगल में दबा लिया; अब आप तड़प रहे हैं; दाँत पीसते हैं, मगर गरदन नहीं छूटती। तब आपने झल्ला कर दाँत काट खाया। काटना था कि उसने जोर से एक थप्पड़ दिया। ख्वाजा साहब का मुँह फिर गया। तब आप कोसने लगे - खुदा करे तेरे हाथ टूटें। हाय, अगर इस वक्त खुदा एक मिनट के लिए जोर दे-दे तो सुर्मा बन डालूँ।

मिस क्लारिसा और मीडा एक झरोखे से यह कैफियत देख रही थीं, जब खोजी पिट-पिटा कर बाहर निकले तो क्लारिसा ने कहा - मुबारक हो।

आजाद - कहिए, दुलहिन कैसी है? यार, हो खुशनसीब!

खोजी - खुदा करे, आप भी ऐसे खुशनसीब हों।

आजाद - हमने तो बड़ी तारीफ सुनी थी, मगर तुम कुछ रंजीदा मालूम होते हो, इसका क्या सबब?

खोजी - भाईजान, वहाँ तो फौजदारी हो गई। औरत क्या, देवनी है, वल्लाह, कचूमर निकल गया।

आजाद - आप तो हैं पागल, यह इस मुल्क का रिवाज है कि पहले दिन दो घंटे तक दुलहिन मियाँ को मारती है, काट खाती है, फिर मियाँ बाहर आता है, फिर जाता है।

खोजी - अजी, वहाँ तो मार-पीट तक हो गई, जी में तो आया था कि उठा कर दे मारूँ; मगर औरत के मुँह कौन लगे। देखे, अब की कैसी गुजरती है, या तो वही नहीं या हमी नहीं।

आजाद - क्या सच-मुच फौजदारी ही पर आमादा हो? भाई, करौली अपने साथ न ले जाना, और जो हो सो हो।

खोजी - अजी, यहाँ हाथ क्या कम हैं! करौली मर्द के लिए हैं, औरत के लिए करौली की क्या जरूरत?

आजाद - बस, अब की जाके मीठी-मीठी बातें करो। हाथ जोड़ो, पैर दबाओ, फिर देखिए, कैसी खुशी होती हैं। अब देर होती है, जाइए।

ख्वाजा साहब कमरे में गए और दुलहिन के पाँव दबाने लगे।

दुलहिन - हमको छोड़ कर चले तो न जाओगे।

खोजी - अरे, यह तो उर्दू बोल लेती हैं, यह क्या माजरा है!

दुलहिन - मियाँ, कुछ न पूछो। हमको एक हब्शी बहका कर बेचने के लिए लिए जाता था। बारे खुदा-खुदा करके यह दिन नसीब हुआ।

खोजी - अब तक तुम हमसे साफ-साफ न बोलीं! ख्वाहमख्वाह किसी भले आदमी को दिक करने से फायदा?

दुलहिन - तुम्हारे साथी आजाद ने हमें जैसा सिखाया वैसा हमने किया।

खोजी - अच्छा आजद। ठहर जाओ बचा, जाते कहाँ हो। देखो तो कैसा बदला लेता हूँ।

यह कह कर खोजी ने अपनी टोपी दुलहिन के कदमों पर रख दी और बोले - बीबी, बस अब यह समझो कि मियाँ नहीं, खिदमतगार है। मगर कब तक? जब तक हमारी हो कर रहो। उधर आपने तेवर बदले, इधर हम बिगड़ खड़े हुए। मुझसे बढ़ कर मुरव्वतदार कोई नहीं, मगर मुझसे बढ़ कर शरीर भी कोई नहीं; अगर किसी ने मुझसे दोस्ती की तो उसका गुलाम हो गया, और अगर किसी ने हेकड़ी जताई तो मुझसे ज्यादा पाजी कोई नहीं। डंडे से बात करता हूँ। देखने में दुबला हूँ, मगर आज तक किसी ने मुझे जेर नहीं किया। सैकड़ों पहलवानों से लड़ा, और हमेशा कुश्तियाँ निकालीं।

दुलहिन - तुम्हारे पहलवान होने में शक नहीं, वह तो डील-डौल ही से जाहिर है।

खोजी - इसी बात पर अब घूँघट हटा दो।

दुलहिन - यह घूँघट नहीं है जी, कल से हमारी मूँछ में दर्द है।

खोजी - काहे में दर्द है, क्या कहा?

दुलहिन - ऐ, मूँछ तो कहा, कानों की ठेठियाँ निकाल।

खोजी - मूँछ क्या! बकती क्या हो? औरत हो या मर्द? खुदा जाने, तुम मूँछ किसको कहती हो।

दुलहिन - (खोजी की मूँछ पकड़ कर) इसे कहते हैं, यह मूँछ नहीं हैं?

खोजी - अल्लाह जानता है, बड़ी दिल्लगीबाज हो, मैं भी सोचता था कि क्या कहती हैं।

दुलहिन - अल्लाह जानता है, मेरी मूँछों में दर्द है।

ख्वाजा साहब ने गौर करके देखा तो जरा-जरा सी मूँछें। पूछा - आखिर बताओ तो जानेमन, यह मूँछ क्या है?

दुलहिन - देखता नहीं, आँखें फूट गई हैं क्या?

खोजी - ऐ तो बीबी, आखिर यह मूँछ कैसी? कहता तो कहता, सुनता सिड़ी हो जाता है। औरत हो या मर्द। खुदा जाने, तुम मूँछ किसे कहती हो?

दुलहिन - तो तुम इतना घबराते क्यों हो? मैं मरदानी औरत हूँ।

खोजी - भला औरत और मूँछ से क्या वास्ता?

दुलहिन - ऐ है; तुम तो बिलकुल अनाड़ी हो, अभी तुमने औरतें देखी कहाँ?

खोजी - ऐसी औरतों से बाज आए।

एकाएक दुलहिन ने घूँघट उठा दिया तो खोजी की जान निकल गई। देखा तो वही बहुरूपिया। बोले - जी चाहता है कि करौली भोंक दूँ, कसम खुदा की, इस वक्त यही जी चाहता है।

बहुरूपिया - पहले उस पारसल के रुपए लाइए जिसका लिफाफा आपने अपने नाम लिखवा लिया था। बस, अब दाएँ हाथ से रुपए लाइए!

खोजी - ओ गीदी, बस अलग ही रहना, तुम अभी मेरे गुस्से से वाकिफ नहीं हो?

बहुरूपिया - खूब वाकिफ हूँ। कमजोर, मार खाने की निशानी।

खोजी - हम कमजोर हैं? अभी चाहूँ तो गरदन तोड़के रख दूँ। जा कर होटल-वालों से तो पूछो कि किस जवाँमरदी के साथ मिस्र के पहलवानों को उठा के दे मारा।

बहुरूपिया - अच्छा, अब तुम्हारी कजा आई है। ख्वाहमख्वाह हाथ-पाँव के दुश्मन हुए हो।

खोजी - सच कहता हूँ, अभी तुमने मेरा गुस्सा नहीं देखा, मगर हम-तुम परदेशी हैं, हमको-तुमको मिल-जुल कर रहना चाहिए। तुम न जाने कैसे हिंदोस्तानी हो कि हिंदोस्तानी का साथ नहीं देते।

बहुरूपिया - पारसल का रुपया दाहिने हाथ से दिलवाइए तो खैर।

खोजी - अजी, तुम भी कैसी बातें करते हो; 'हिसाबे दोस्ताँ दर दिल अगर हम बेवफा समझे।' पारसल का जिक्र कैसा, बजाज की दुकान पर हम भी तो तुम्हारी तरफ से कुछ पूज आए थे? कुछ तुम समझे, कुछ हम समझे।

इतने में आजाद दोनों लेडियों के साथ अंदर आए।

आजाद - भाई, शादी मुबारक हो। यार, आज हमारी दावत करो।

खोजी - जहर खिलाओ और दावत माँगो। यह जो हमने आपको लाखों खतरों से बचाया उसका यह नतीजा निकला। अब हम या तो यहीं नौकरी कर लेंगे, या फिर रूम वापस जाएँगे। वहाँ के लोग कद्रदाँ हैं, दो-चार शेर भी कह लेंगे तो खाने भर को बहुत है। खैर, आदमी कुछ खो कर सीखता है। हम भी खो कर सीखे, अब दुनिया में किसी का भरोसा नहीं रहा।

क्लारिसा - यह मिठाइयाँ न देने की बातें हैं, यह चकमे किसी और को देना, हम बे-दावत लिए न रहेंगे।

खोजी - हाँ साहब, आपको क्या। खुदा करे, जैसी बीवी हमने पाई, वैसा ही शौहर तुम पाओ, अब इसके सिवा और क्या दुआ दूँ।

मीडा - हमने तो बहुत सोच-समझ कर तुम्हारी शादी तजवीज की थी।

खोजी - अजी, रहने भी दो। हमें आप लोगों से कोई शिकायत नहीं, मगर आजाद ने बड़ी दगा दी। हिंदोस्तान से इतनी दूर आए। तब मौका पड़ा, इनके लिए जान लड़ा दी। पोलैंड की शाहजादी के यहाँ हमीं काम आए, वरना पड़े-पड़े सड़ जाते। इन सब बातों का अंजाम यह हुआ कि हमीं पर चकमे चलने लगे। अब चाहे जो हो, हम आजाद की सूरत न देखेंगे।