आज्ञाकारी / हेमन्त शेष

Gadya Kosh से
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पाँच भाई थे. बाप ज्यादा दारू पीने से ऊपर पहुँच गया था. माँ ने घरों में बर्तन मांजने और शादियों में पूरियाँ तलने का काम पकड़ा. परिवार बड़ा था- गुज़ारा कहाँ होता, सो मेले ठेलों में छोटा-मोटा सामान उड़ाने और बाद औरतों के गलों से सोने की चेन खींचने से जिंदगी लाइन पर आई.

पाँचों ने अपने-अपने कारोबार में खूब तरक्की की. एक चोर, बना तो दूसरा नकबजन, तीसरा जेबकतरा तो चौथा डकैत और पाँचवाँ हत्यारा! सब अपने काम में खूब मशगूल रहते. पर जब-जब भी माँ से मिलने आते, माँ कहती- “अपने गुरुजनों का हमेशा आदर करो!”

बेटे पारंपरिक रूप से संस्कारवान हैं, इसलिए चाहे कितनी ही जल्दी क्यों न हो, जब-जब भी पाँचों में से कोई भी संसद-भवन के सामने से गुजरता है, रुक कर, सर झुका कर आज भी बड़े अदब से उसे प्रणाम करता है.