आज री राजस्थानी युवा कविता / डॉ. नीरज दइया

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आज री राजस्थानी युवा कविता’ रो अरथाव 35-40 बरसां रै युवा रचनाकारां री कवितावां सूं लियो जावणो चाइजै। युवा कविता रै लेखै ‘आज’ रो पूरो-पूरो अरथाव का मायनो जाणां तद आपां नै आज रै भेळै गयै काल अर आवणियै काल री बात करणी पड़ैला। काल नै कुण नावड़ै, पण रचना रै लेखै उण काल री अंवेर परंपरा में देख सकां अर आवणियै काल री बात तो एक सुपनो है। बिना आज अर काल रै कोई सुपनो पूरो नीं हुया करै।

समकालीन राजस्थानी युवा कविता एक इसी काव्य-परंपरा सूं जुड़ियोड़ी है जिण में जुधां रो धमसाण है तो भगती अर प्रीत रा राग-रंग ई है। डॉ. अर्जुनदेव चारन रो मानणो है कै जूनी कविता में लड़ जा भीड़ जा रै सुर साम्हीं पैली बार कवि डॉ. सत्यप्रकाश जोशी (1926-1990) आपरी पोथी ‘राधा’ रै मारफत राधा सूं कैवायो- ‘मन रा मीत कान्हा/ मुडज़ा फौजां नै पाछी मोड़ ले...’ ओ राजस्थानी कविता रै लेखै एक मोटो बदळाव हो। जुध नै बिड़दावण साम्हीं, नवो मारग हो। आपां जाणा कै महाकवि सूर्यमल्ल मीसण (1815-1868) जिसा कवियां रो सुर हो- ‘इळा न देणी आपणी, हालरियै हुलराय। पूत सिखावै पालणै, मरण बड़ाई माय॥’ आधुनिकता री पैली साख आ कै बड़ाई तो जीवण में है। अठै आ बात ई कैयी जावै कै जुधां बिचाळै सांति बेसी गुणकारी नै असरकारक हुया करै जिकी बगत री मांग ही।

ओ बो बगत हो जद मुलक माथै अंग्रेजां रो राज हो। जद कवि कन्हैयालाल सेठिया युवा हा तद आजादी रै टैम राजस्थान अपरी जबान काट कर राष्ट्रभाषा हिंदी नै अरपण कर दी। राजस्थानी राजस्थान रै राजकाज री भासा ही, राजस्थानी समाज हिंदी सीख’र देस हित रै सवाल माथै हिंदी नै गळै कांई लगाई कै गुणचोरां राजस्थान नै अजेस आपरै भासाई अधिकार सूं बेदखल कर राख्यो है, अर संविधान री आठवीं अनुसूची में भासा नै जोड़ावण खातर नवी पीढी नै मरणो मांडणो पड़ रैयो है।

महाकवि कन्हैयालाल सेठिया (1919-2008) भारतीय कवि रै रूप चावा-ठावा मानीजै, भासा प्रेम मांय रचीजी बां री कवितावां रो संग्रै ‘मायड़ रो हेलो’ घणो चावो हुयो। आज री युवा कविता नै भासा री इण हेमाणी नै नवै कथ्य अर बुणगट भेळै संभाळता-सजावता रासो काव्य परंपरा सूं आवती राजस्थानी कविता री जसबेल नै आगै बधावणी है।

जद सूं नवी तकनीक री आंधी आई है सगळी भासावां में कविता नै बेगी सूं बेगी किणी मंच माथै धर देवण री बाण खास कर नै युवावां में की बेसी ई बधगी है। इण मामलै में राजस्थानी ई लारै कोनी। किणी बाणियै जिसो हिसाब है कै आज जद बरस 2016 में आपां युवा कविता री बात कर रैयां हां, तो बरस 1975 का 1980 पछै जल्मी पीढी री बात करतां। कोई उगता ई कोनी तपै, ठीक बियां ई कोई जलमतां ई कविता कोनी लिखै। अठारा-बीस बरस रो औसत आंकड़ो इण सीगै आवैला। इण रो साफ साफ ओ अरथाव बणै कै जिण नै आपां युवा कविता रै रूप में ओळखण रा जतन कर रैया हां, बां असल में इक्कीसवीं सदी री कविता है। इक्कीसवीं सदी री कविता रो एक मोटो हिस्सो है युवा कविता।

इक्कीसवीं सदी में आपां रा चावा-ठावा केई नामी कवि कविता लिख रैया है तो जोध जवान कवि ई कविता रो मोरचो संभाळ राख्यो है। ‘की-पेड’ अर बटणां रै ताण कंप्यूटर माथै लिखीजण आळी इण कविता अर कवियां पाखती कागद अर कलम रो सुख कमती है। अबै डायरी का किणी पानै में नीं कविता मोबाइल में अटाकाइजै। सोसल साइटां अर ब्लॉगां में लिखीजै। कविता री भासा, विसय अर बुणगट नै लेय’र घणी झीणी बातां भलाई कमती हुवो पण कविता रै लेखै नवी तकनीक उल्लेखजोग कैयी जावैला। लारलै बरसां री तुलना में राजस्थानी रा हेताळू अर कवियां रै नांवां में घणो इजाफो देख सकां।

अजेस परंपरा सूं जुड़ाव इण रूप में ई देख सकां कै केई युवा कवि अजेस छंद नै परोट रैया है तो दूजै पासी भारतीय भासावां री रचनावां रै जोड़ सूं अळधा खुद रै ई राग में रम्योड़ा युवा कवि जाणै किणी आणंद में डूब्या मगन हुयोड़ा है। आं सगळा बिचाळै कीं सजग अर गंभीर कवि है जिका सूं आपां नै आस उम्मीद राखणी चाइजै कै आवतै बगत आखी भारतीय कविता रै आंगणै राजस्थानी कविता रै जस नै बै बधावैला।

राजस्थानी में कविता लिखण वाळा कवि हिंदी माध्यम का अंग्रेजी माध्यम सूं पढाई-लिखाई करै तद वां रै साम्हीं कविता लिखती वेळा जिकी परंपरा हुवै वा हिंदी-अंग्रेजी री अर थोड़ी घणी राजस्थानी री हुवै। अठै परंपरा रो अरथाव कविता रचण सूं पैली कवि साम्हीं कविता नै लेय’र विचार-धारावां अर न्यारी-न्यारी बै कावितावां अर कवि है जिका सूं कोई कवि प्रेरणा लेवै। किणी कवि साम्हीं कविता लिखती वेळा जिकी परंपरा ही का हुवैला बा तर-तर अध्ययन चिंतन-मनन सूं बदळती थकी आधुनिक सूं आधुनिक हुवती रैवैला। मानां कै हरेक मिनख पाखती आपरी उण री परंपरा हुवै पण सगळा री परंपरा एक सरीखी हुवता थकां ई एक सरीखी नीं हुवै। कोई ठोठ मिनख आखरां सूं उळधो रैया ई हियै लोक री लांठी परंपरा राखै। किणी कवि नै आपरी भासा अर रचना-विधा री परंपरा रै खातै देखण रो काम आलोचना करै। म्हैं कैवणी चावूं कै जे किणी कवि री कवितावां में नवो पळको दीखै तो उण साम्हीं हिंदी-अंग्रेजी-राजस्थानी री समकालीन कविता रो एक दीठाव है, अर उण दीठाव साम्हीं आपरै हलकै री साहित्य साधना अर साहित्य जुड़ाव रा केई केई दीठाव है। आ पूरी भाव-धारा युवा कविता री परंपरा अर कविता रचाव री ऊरमा नै नवा रंग देवै। परंपरा नै जाण लेवण री भोळावण युवा कवियां नै कै बै जाणै आखै जगत में चावी-ठावी राजस्थानी री लूंठी काव्य परंपरा रैयी है।

‘मंडाण’ रै संपादकीय सूं कीं बातां करणी अठै लाजमी लखावै। किणी रचनाकार खातर मायड़ भासा नै पढण-लिखण में माण देवणो मोटी बात मानीजैला। केई तो फगत राजस्थानी री गरीबी रो रोवणो रोवै अर म्हनै लखावै कै बै सोचै कै इण ढाळै रै रोवणै सूं भासा साहित्य री गरीबी मिट जावैला। जिम्मेदारी अर जबाबदारी जूनी पीढ़ी री बणै कै वै नवी पीढ़ी खातर कांई कीं करै। दोस मंढणो तो साव सोखो है। जरूरत आज इण बात री मान सकां कै जिकी नवी पौध है उण मांय जिकी संभावनावां है उण नै अंवेरां-संभाळा। प्रकाशन अर पत्र-पत्रिकावां रै तोड़ै सूं राजस्थानी रा केई रचनाकारां री चाल बगत भेळै नीं रैयी। बै मंदा पड़ग्या अर होळै होळै साहित्य सूं कटग्या।

कविता खातर घणो जरूरी है कै लगोलग कविता सूं जुड़ाव रैवै। युवा कवि जे खुद रै आसै-पासै रै घर-संसार नै देखै-समझै तो कठैई गांवतरै री जरूरत ई कोनी। युवा कवि डॉ. मदन गोपाल लढ़ा लिखै- सिरजण री जमीन नै अंगेजणी घणी जरूरी है, बिना निजता अर स्थानीयता रै भेळै ओ ई घणो जरूरी है कै कविता में कांई लिखीजै अर कांई छोड़ीजै।

किणी पण कवि नै कोई कविता लिखण सूं पैली खुदोखुद सवाल पूछणो चाइजै कै म्हैं कविता क्यूं लिखूं अर किण खातर लिखूं? इण ढाळै रा कविता सूं जुड़िया केई सवाल युवा कवि रै हियै मांय हुवणा म्हैं घणा जरूरी मानूं। अठै आ ओळी खास अखरावण रो मानयो ओ कै युवा कवियां नै खुद री लिख्योड़ी हरेक ओळी मांय कविता रो लखाव हुया करै, बगत रै चालतै बाळै में आगै जाय’र तो बो खुद री सींव नै ओळख लेवै पण जरूरत इण बात री है कै आ सींव बेगी सूं बेगी जाण ली जावै। इणी सूं आ बात समझ आवैला कै कविता मांय हरेक सबद अर उण री ठौड़ आगो-पाछो स्सौ कीं जरूरी हुया करै। ओ ग्यान घणो जूनो है कै किणी ओळी में खरै सबद नै सही अलोटमेंट अर विगत ई कविता हुवै। म्हैं कवि हुय’र कोई ग्यान किणी नै नीं देय रैयो हूं, बस म्हैं म्हारै मन री बात साझा कर रैयो हूं कै कवि हुवां जद आपां मांय कविता-विवेक अर आलोचकीय दीठ ई हुवणी जरूरी है। आं रै विगसाव सूं ई खुद री कविता रो विगसाव हुया करै।

कवि अर कविता री कोई हद कोनी हुवै। जठै जठै बो सबदां रै मारफत पूगै उण जातरा अर लखाव नै कागद माथै साकार करणो सरल कोनी हुवै। इण हिसाब में केई बार घणो कीं लिखीजै अर घणो कीं छूट जावै। आ कविता जातरा हद सूं अणहद री जातरा हुया करै। हरेक कवि कीं संकेतां सूं सीध देवै जिण रै मारफत बांचणियां उण हद सूं बारै निकळै अर अणहद तांई पूगण री इण जातरा में दोनूं पासी सींव अर संभावनावां रा दरियाव देख सकां। जे कविता करणो सोखो काम है तो जिका कवि है मतलब म्हैं अर आप दोनूं जे कागद कलम लेय’र बैठां कै आज तो दस दस कवितावां मांडसां तो हुय सकै दस दिन में सौ कविता साम्हीं आय जावै अर हुय सकै कै कविता एक ई नीं लिखीजै। कविता लिखणो जे इत्तो सोखो हुवतो तो विग्यान कविता लिखण का रचण री कोई मसीन का कोई सांचो कोनी बणा देवतो कांई। म्हैं कैवणो चावूं कै कविता मांय आपरी सगळी हुस्यारी एकै पासै घरी रैवै कीं काम कोनी आवै, हरेक कवि नवी कविता लिखती बगत एक नवी मुठभेड़ करै। कविता में जाणै हरेक कवि खुद नै रचिया करै। आदि कविता रो जलम पीड़ सूं हुयो, तो हियै रै सुख-दुख सूं कविता एक गंगा दांई आवै,आ गंगा हरेक रै बस री बात कोनी। जिको हियै री इण गंगा नै ओळखै बो कवि बण जावै।

जूनी अर नवी कविता रै खास अंतरै बाबत विचार करतां आपां नै आसै पासै री दुनिया अर देसां माथै ई विचार करणो हुसी। आज जद आखी दुनिया री कल्पना एक गांव रै रूप में समझी जावण लागी है तद मिनख रै घर अर आसै-पासै सूं उण रै आंतरै रो लखाव विचार रै स्तर माथै कवि रै खातै आवै। लगै कै इण सदी आपां दौड़ता-भगता किणी जुध रो हिस्सा बणग्या हां- ओ जुध मिनख अर मसीन रो जुध है, सागै ई सागै मिनख रो मिनख सूं जुध है। घर, परिवार, समाज अर देस-दुनिया री अणथाग भीड़ में मिनख साव अकलो हुवतो जाय रैयो है। कविता रो जुध मिनख नै मिनख सूं मिलावण रो जुध है। सूनवाड़ नै भांगण रो जुध है।

कितो सावळ रैवै कै जुध किणी जुध रै मैदान में हुवै पण इण अंतहीन जुध मांय नित रो रांडीरोवणो है तद निरायत री बात कोई कियां करै। अंतस-अतंस अर आंगणै-आंगणै हुवतै इण जुध मांय जीवण रा राग-रंग अर सुर ई जाणै समूळा बदळग्या। स्यात ओ ई कारण है का इणी ढाळै रै किणी कारण सूं नवी चुनौतियां अर संभावनावां भेळै नवी पीढ़ी (जिण नै युवा पीढ़ी कैवां) री निजर में स्सौ कीं देखण समझण री संभावना अर विकल्प मौजूद है। अबार तांई गाइज्य गीतां रै सुरां अर साधना में अजेस कीं कवि साम्हीं आया है भळै ई आवैला।

नवी पीढी रै नवा सुरां सूं घणी आसावां माना। आ जरूर है कै जूनी पीढी दांई नवी पीढी री कविता में वयण-सगाई, छंद अर उपमावां-अलंकारा रो मोह कोनी, समकालीन युवा कविता में नवी शब्दावली, बदळती भासा अर खुद रै भावां-अनुभवां नै रचण री आंट लारलै बरसां छप्या युवा कवियां रै संकलनां में देख सकां। जियां कै जळ-विरह, कविता देवै दीठ, म्हारै पांती री चिंतावां, उजाळो बारणै सूं पाछो नीं मुड़ जावै, रणखार, एंजेलिना जोली अर समेस्ता, चाल भतूळिया रेत रमां, संजीवणी, जद बी माँडबा बैठूँ छू कविता, सपनां संजोवती हीरां आद केई कविता पोथ्यां रा नांव लिया जाय सकै।

राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर सूं छप्यो 55 युवा कवियां रो संकलन ‘मंडाण’ (सं.- नीरज दइया) अर युवा कविता के संदर्भ अर अप्रकाशित रैया कवियां नै साम्हीं लावण री दीठ सूं ‘थार-सप्तक’ (सं.- ओम पुरोहित ‘कागद’) उल्लेखनीय अर सराहनीय कदम राजस्थानी काव्य-धारा रै सीगै युवा कविता रै आंगणै च्याण पख मानीजैला।

इण सीगै उल्लेखजोग कै आं पोथ्यां रै मारफत पैली बार सगळा सूं बेसी कवि साम्हीं आया। मंडाण रै संपादकीय री एक ओळी देखो- ‘आ कवितावां में सरलता, सहजता, भाषा-कौशल अर बुणगट री नवी दीठ सूं ऐ ऊरमावान कवि आपरी न्यारी ओळखाण बणावैला।’

राजस्थानी युवा कविता ही नीं आखी कविता जातरा में अनेक कवि है जिका री पोथी अजेस साम्हीं नीं आय सकी। आ अबखाई देखतां कवि-संपादक ओम पुरोहित ‘कागद’ जसजोग काम करियो कै अप्रकाशित कवियां री कवितावां रा संकलन-संपादन ‘थार सप्तक’ रै सात खंडां में राजस्थानी नै दिया। इण लूंठै कारज रो जस बोधि प्रकाशन रा प्रबंधक कवि मायामृग नै।

थार-सप्तक रै गुण पचास कवियां री कवितावां मांय संभावनाशील अनेक युवा कवि ई साम्हीं आया जियां कै- गौतम अरोड़ा, राजू सारसर, मनोज पुरोहित, राजूराम बिजारणियां, अंकिता पुरोहित, गौरीशंकर, पृथ्वी परिहार, सतीश गोल्याण, संजय पुरोहित, कुंजन आचार्य, मोहन पुरी, सिया चौधरी, ऋतुप्रिया, नरेंद्र व्यास, अजय कुमार सोनी, हरीश हैरी, धनपत स्वामी, जितेंद्र कुमार सोनी, ओम अंकुर, मनमीत सोनी आद। आं री कवितावां एकठ बांचण रो थार सप्तक एक संजोग बणायो।

राजस्थानी कविता रै सीगै केई संभावनाशील युवा कवियां रै नांवां बिचाळै कवयित्री संतोष मायामोहन (1974) की चर्चा इण खातर जरूरी है कै पैलै संग्रै ‘सिमरण’ (1999) खातर बरस 2003 रो साहित्य अकादेमी सम्मान मिल्यो, ओ युवा राजस्थानी कविता रो सम्मान हो। साहित्य अकादेमी रै इतिहास में ई अनोखी घटना कै तीस बरसां सूं कमती उमर री कवयित्री नै ओ सम्मान मिल्यो, इण सूं पैली डोगरी री पद्मा सचदेव रै खातै ओ रिकार्ड दर्ज हो।

राजस्थानी री दूजी कवयित्रियों में किरण राजपुरोहित, मोनिका गौड़, रचना शेखावत, गीता सामौर, सिया चौधरी, रीना मेनारिया, ऋतुप्रिया, अंकिता पुरोहित आद रा नांव उल्लेखजोग मानीजै। कवयित्रियां री संख्या कवियां री संख्या देखता कमती लखावै अर सागै ई आं में प्रयोगशीलता रो रुझान ई कमती देखण नै मिलै। दाखलै रूप कीं टाळवां युवा कवियां पेटै अठै चरचा लाजमी लखावै जिका साहित्य अकादेमी रै युवा कविता उच्छब जोधपुर मांय जसजोग कविता-पाठ करियो।

1. मंडाण अर पैलै थार सप्तक रा कवि गौतम अरोड़ा रो जलम 3 जुलाई, 1977 नै जोधपुर में चावा-ठावा कवि पारस अरोड़ा रै आंगणै हुयो। गौतम रो कवि रूप अजेस कोई कविता संग्रै नीं छप्यो है, पण साम्हीं आई कवितावां सूं आ आस-उम्मीद करी जाय सकै कै वै कविता रै सीगै कीं नवो जरूर करैला। आं ओळ्यां नै दाखलै रूप देखां- “नीं चाहीजै म्हनै उडण सारू/ लंबो-चौड़ो आकास/ बस म्हनैं देय द्यो इत्तो ई/ जिण में लेय सकूं सांस/ राखो ओ थांरो पूरो आभो....” आं ओळ्यां नै बांचता कविता री एक पूरी परंपरा आंख्यां साम्हीं आवै, जिण में कौरव-पांडवां भेळै महाकवि रामधारीसिंह ‘दिनकर’ रै चावै खण्डकाव्य रश्मिरथी री ओळूं अठै देख सकां। गौतर रै सबदां में ई कैवूं- “इण मुट्ठी में ई तो बंद है,/ म्हारा मुट्ठी भर सुपना।” तो कैय सकां कै बेगा ई आपां गौतम अरोड़ा रै कविता संग्रै में आं नवा सुपनां नै देख सकालां।

2. विनोद स्वामी रो जलम 14 जुलाई, 1977 नै परलीका (हनुमानगढ़) में हुयो अर परलीका री धरा राजस्थानी रै खातै घणी ऊरमावान गिणीजै। परलीका री ऊरमा में कविता रै सीगै विनोद स्वामी रो नाम घणै गीरबै सूं लियो जाय सकै। आ मन री बात है कै घर-संसार में हरेक रो आप आप रो काम हुवै अर हरेक आप आप रै काम नै समझै। “बाबो/ बाजरी बीजण गया/ मां ले’र गई भातो/ म्हैं/ कविता लिखण बैठ्यो हूं।” अठै गौर करण री बात आ है कै बाबो बाजरी बीजसी अर रामजी भला दिन देसी तो सोनै रो सूरज उगैला, ठीक इयां ई जे कवि कविता लिखण नै बैठसी तो कविता रचीज सकै। इण खातर मां है जिकी भातो तैयार करै, पाळै-पोखै। अनाज हुवै का नीं हुवै, अर दूजी मां राजस्थानी है जिण री गोदी में कविता रो सुपना पळै। बरस 2011 में छप्यो विनोद स्वामी रो कविता संग्रै ‘प्रीत कमेरी’ घणो चावो रैयो। विनोद री काव्य-भासा अर ठेठ ग्रामीण जन-जीवण रा काव्य-बिम्ब घणा प्रभावी तरीकै सूं सांस्कृतिक रंगां में प्रगट हुया है। प्रीत सीरीज री कवितावां ई उल्लेखजोग कैयी जा सकै। घर-परिवार अर गांव में रमती इण कवितावां री बुणगट में सरलता अर सादगी ई मोटी खासियत मानां। विनोद हिंदी में ई लिखै अर एक कविता संग्रै ‘आंगन, देहरी और दीवार’ नाम सूं छप्यो।

3. मदन गोपाल लढ़ा रो जलम 2 सितम्बर, 1977 नै महाजन (बीकानेर) में हुयो। कविता संग्रै ‘म्हारै पांती री चिंतावां’ में कवि मन री जाणै कोई डायरी लिखीजी है। मदन गोपाल लढ़ा री कविता में वां रै असवाड़ै-पसवाड़ै री चिंतावां अर जूण री अबखायां भेळै कवि रो जूण में आगै बधण रो सोच अर हरेक चिंता नै चित करण री उरमा उल्लेखजोग मानी जावैला। “सिराणै राखी पोथी री म्हैं/ अजै आधी कविता ई बांची है।” ओळी में जिको साच है तो उण साम्हीं कीं सावाल ई विचार करणजोग मान सकां। जियां दाखलै रूप बात करां तो- “फूठरापै सारू आफळ/ मानखै रो/ जुगां-जूनो सुभाव है/ पण कुण है वो/ जको जद-कद/ धूड़, धूंवै अर लाय सूं/ बदरंग कर नाखै/ मिनखपणै रो उणियारो।" मदन लढ़ा री कवितावां इणी मिनखपणै रै उणियारै नै बचावण री कवितावां है। “मन मिळ्यां/ हुवै मेळै।” मदन लढ़ा इण संसार रूपी मेळै में मन सूं मन नै मिलावणवाळो कवि है। आपरो एक कविता संग्रै हिंदी में ‘होना चाहता हूँ जल’ नांव सूं छप्यो अर दूजो राजस्थानी कविता संग्रै बेगो ई आपां रै हाथां में हुवैला।

4. ओम नागर रो जलम 20 नवम्बर, 1980 नै अंताना (बारां) में हुयो। आपनै कविता-संग्रह ‘जद बी मांडबा बैठूं छूं कविता’ माथै साहित्य अकादेमी रो युवा पुरस्कार-2012 मिल्योड़ो है। राजस्थानी युवा कविता रै सीगै ओम नागर घणो जूनो नांव है, बरसां सूं लिखै। आपरै अकादेमी पुरस्कृत संग्रै रै अलावा कविता संग्रै ‘छियांपताई’ अर ‘प्रीत’ छप्योड़ा तो हिंदी में ई ‘देखना एक दिन’ अर ‘विज्ञप्ति भर बारिश’ घणा चावा रैया। कवितावां रै अनुवाद रै सीगै ई ओम रो नाम ओळखीजै। लीलाधर जगूड़ी अर राजेश जोशी रै हिंदी कविता-संग्रै रो अनुवाद अर बीजी केई पोथ्यां छप्योड़ी। काव्य-भासा में लोकभासा री महक अर प्रयोग सूं ओम नागर री कवितावां री न्यारी ओळख करी जाय सकै। सगळा सूं बेसी मोटी बात ओम री कवितावां में युवा कवियां सूं अलायदी एक न्यारी-निरवाळी बुणगट में गद्य अर पद्य री समझ रो आंटो ई देख सकां। दाखलै रूप आ कविता देखो- “प्रेम-/ आंख की कोर पे/ धरियो एक सुपनो/ ज्ये रोज आंसू की गंगा में/ करै छै अस्नान/ अर निखर जावै छै/ दूणो।” अठै कैवणो लाजमी है कै कविता में आ कविता री समझ ओम नागर रै अध्ययन अर मनन सूं उपजी समझ है जिण रै पाण आप री कवितावां में तर-तर निखार देख्यो जाय सकै।

5. जितेंद्र कुमार सोनी धन्नासर, हनुमानगढ़ में 29 नवम्बर, 1981 नै जलमिया। आपरो कविता संग्रै ‘रणखार’ साहित्य अकादेमी रै युवा पुरस्कार सूं सम्मानित हुयो। आज जद तकनीकी विकास रै समचै आपां साम्हीं घणा-घणा बदळाव साम्हीं आया अर उण मांय सगळा सूं मोटी खामी कै आ आखी सदी मसीन मांय बदळ रैयी है। इण अबखी बात अर विचार नै सोनी री कवितावां घणै ठीमर सुर में परोटै आदमी नै आदमी बणायो राखण रा केई केई जतन अर विचार कवि आपरी कवितावां में राखै। ‘रणखार’ री घणी कवितावां खुद कवि रै अनुभव सूं जलमी कवितावां है। कविता ‘इंकलाब-3’ री ओळ्यां है- “वर्चुअल बातां सूं / सौरम नीं आवै / गरमास नीं मिलै / रिस्तां री” असल में सोनी रिस्ता रै सौरम रा कवि है। ‘रणखार’ री कवितावां नै आपां जमीन अर मिनखाजूण सूं आपां रै जुड़ाव री कवितावां कैय सकां। आपरो एक हिंदी कविता संग्रै अर अनुवाद रै लेखै ई जसजोग काम ओळख नै सवाई करै।

6. कुमार अजय रो जलम 24 जुलाई, 1982 नै घांघू (चुरू) में हुयो अर आपरै पैलै राजस्थानी कविता ‘संजीवणी’ नै साहित्य अकादेमी रो युवा पुरस्कार अरपण करीज्यो। कुमार री कवितावां में घर-परिवार अर गळी गवाड़ रा निजता सूं भरिया चितराम है तो युवा मन रो सांवठो सोच। कीं बदळाव रा सुर संजोती कुमार री कवितावां बदळै बगत अर बदळतै समाज नै ई दरसावै। आपरो एक हिंदी कविता संग्रै ई प्रकासित हुयो अर आप संपादन-अनुवाद रै लेखै ई जसजोग काम कर रैया है। राजस्थानी कविता नै कुमार अजय सूं घणी उम्मीदां है।

7. राजूराम बिजारणियां रो जलम 7 अगस्त, 1982 नै मोटोलाई, लूणकरणसर (बीकानेर) में हुयो। साहित्य अकादेमी रै युवा पुरस्कार सूं सम्मानित कविता संग्रै ‘चाल भतूळिया रेत रमां’ घणो चावो रैयो। कवि राजूराम बिजारणियां री ओळ्यां देखो- “कविता कोनी/ धरती री/ फाड़’र कूख/ चाण’चक/ उपड़्यो/ भंपोड़।” कविता रै हुवण अर नीं हुवण रो सवाल करतो कवि ठेठ ग्रामीण जन-जीवन रै सुख-दुख, आस-निरस अर हरख-कोड़ नै ई आपरै सबदां में इण ढाळै परोटै कै कविता में बिंब अर रूपक रचती ओळ्यां में एक नाद सधतो दिसै। “आभै रै लूमतै बादळ सूं / छुड़ाय हाथ, / मुळकती-ढुळकती / बा नान्ही-सी छांट!/ छोड़ देह रो खोळ / सैह’परी बिछोह…!/ गळगी-हेत में / रळगी-रेत में।” कोई ओळी कविता कद बणै अर उण ओळी रै जोड़ में किसी ओळी राखीज सकै, आ समझ राजूराम री कवितावां में देखी जाय सकै। बीजी कवितावां में गांव रै उजड़ण री जिकी पीड़ कविता रै मारफत राखीजी है वा काळजै ऊंडै उतरै। राजूराम री कवितावां री तीन मोटी खासियतां गिणा साकां- विसय री विविधता, भासा री समझ अर सांवठी बुणगट।

8. हरिशंकर आचार्य रो जलम 10 अगस्त, 1982 नै बीकानेर में हुयो। आपरो एक राजस्थानी कविता संग्रै ‘करमां री खेती’ (2012) छप्योड़ो। कवि आचार्य री एक कविता है- “ढाय दो वा भींत/ जकी बणाय दियो है/ एक दायरो/ जिण सूं जकड़ीज्योड़ी है-/ थारी हंसी-खुसी,/ जोबन अर चंचलता।” इण दुनिया में हंसी-खुसी अर मेळ मिलाप रा सुर आं कवितावां में देख सकां। कवि नै कविता री भासा नै लेय’र विचार करण री दरकार लखावै। कविता में सपाट बयानी अर गद्य बुणगट सूं बात मरम तांई तो पूगै पण कविता रो आंटो उम्मीद करां कै आवतै संग्रै में आपनै देखण नै मिलैला।

कवि ओम नागर, कुमार अजय, राजूराम बिजारणियां अर ऋतुप्रिया नै साहित्य अकादेमी कानी सूं कविता पेटै युवा पुरस्कार अरपण करीज्या। भळै ई इण सीगै केई युवा कवि कविता रै आंगणै कीरत मांडैला। सगळा युवा कवियां रा नांव गिणावणा संभव नीं क्यूं कै घणा युवा कवि नै कवितावां रै मारग देख सकां। राजेश कुमार व्यास, डॉ. मदन गोपाल लढ़ा, दुष्यत, जितेंद्र कुमार सोनी, हरीश बी. शर्मा, पृथ्वी परिहार, शिवदानसिंह जोलावास, सतीश छिम्पा, किशोर कुमार निर्वाण, संजय आचार्य, विनोद स्वामी, महेंद्र मील, सुनील गज्जाणी, कुंजन आचार्य, गौतम अरोड़ा, जयनारयाण त्रिपाठी, वाजिद हसन काजी, गौरीशंकर सूं गंगासागर शर्मा आद तांई पूगता कविता रा केई रंग-रूप निगै आवै। आं केई कवियां रै नांवां मांय इसा कवि ई सामिल है जिका री कवितावां रै मारफत आपां आज री कविता रो उणियारो ई आपां देख सकां। इण आलेख रै मारफ युवा कविता री बात पूरी नीं हुई है म्हारो मानणो है कै युवा कविता री बात कदैई किणी आलेख मांय पूरी नीं हुय सकै कारण कै युवा कवितावां जिण वेग सूं आगै बध रैयी है अर जिण ढाळै इण मांय नवा कवि जुड़ता जाय रैया है वां सूं लखावै कै इण सीगै भळै अर लगोलग बात हुवणी चाइजै। सार रूप अठै कैवां कै युवा कविता रै रचाव मांय समकालीनता सूं जुड़िया जथारथ है, तो केई नवा सवाला भेळै इण आखी दुनिया नै बदळ देवण रो जोस आपरै पूरै होस अर सपनां साथै मेहतावूं मानीजैला।