आतंक एक जासूसी कुत्ते का / प्रमोद यादव

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पुलिस स्टेशन में उस दिन बहुत गहमा-गहमी थी किन्तु गहमा-गहमी के बीच भी एक ऐसा सन्नाटा पसरा था कि आलपिन के गिरने का स्वर भी साफ़ सुनाई दे जाए. पुलिस के आला अफसर स्टेशन के दफ्तर में मौजूद थे.हर कोई किसी ख़ास मसले को लेकर फिक्रमंद था. थाने में पुलिस कप्तान की मौजूदगी से वातावरण में जो शालीनता और नीरवता व्याप्त थी, वह अपूर्व थी इसलिए बहुत हद तक अस्वाभाविक लगती थी. अपराधियों को मारे-पीटे जाने और गाली-गलौज खाने से मानो उस दिन छुट्टी मिल गयी थी. हवलदार फ़ातमी और दरोगा असलम खां और सिपाही फूलचंद जिनकी आवाजों से रोज थाने में हो-हल्ला मचा रहता था, उस दिन भीगी बिल्ली की तरह साकित थे.

एक समाचार ने सारे प्रांत में खलबली मचा रखी थी. दस लाख रुपयों की एक सनसनीखेज चोरी, वह भी एक मंत्री के घर. जिस घटना ने सारे प्रान्त में खलबली मचा रखी थी,वह जिस शहर में घटी,उस शहर का अजब हाल था. हिन्दू और मुसलमान से लेकर इसाई तक, हलवाई और नाई से लेकर कसाई तक, हर किसी की जीभ पर बस एक यही चर्चा थी. न जाने वह शातिर और दिलेर चोर कहाँ का रहने वाला था ? उसने एक मंत्री के घर चोरी करने का दुस्साहस कैसे किया ? अपने इस खतरनाक मुहिम पर कामयाब होने के बाद सबूत के लिए एक तिनका भी पीछे नहीं छोड़ गया.

इंस्पेक्टर जनरल आफ पुलिस का ख़ास आदेश था, इस चोर को बहुत जल्द गिरफ्तार किया जाय.

मंत्री के घर चोरी का समाचार सुनकर देशव्यापी आतंक फ़ैल गया. मगर कुछ ऐसे लोग भी थे जो चूंकि मंत्री वर्ग से दुराव रखते हैं इसलिए यह सुनकर प्रसन्न हो गए. किसी ने कहा “ हराम की कमाई होगी साहब,हराम में गयी “ एक ने अपनी समझदारी का डंका पीटते हुए तर्क किया “ आखिर एक मंत्री के पास इतना धन आया कहाँ से ? इसकी जांच की जाय. “

घटना पुलिस महकमें के लिए जबर्दस्त सरदर्द थी. कहते हैं- एक चुस्त और चालाक चोर हजार हजार पुलिस अफसरों को बदनाम कर देता है. यह कांड भी कुछ ऐसा ही लगता था अर्थात चोर महोदय ने सतर्कता से काम लिया था. उसके गिरफ्त में आने की कोई संभावना नहीं थी. तय था,अखबार और समाचार पुलिस विभाग की अकर्मण्यता का ढिंढोरा पीटते. हुआ भी ऐसा ही.

कई दिन बीत गए...रहस्य , रहस्य ही बना रहा. पुलिस के छोटे-बड़े अफसर याने दोपाया लोग जब असफल हो गए तो इस मुहिम पर एक चौपाया को तैनात किया गया. वह एक अल्शेसियन कुत्ता था जो शक्ल-सूरत और डील-डौल से अमूमन इंसानों से भी अधिक आकर्षक और प्रभावशाली दिखलाई पड़ता था. अपनी नस्ल में वह शायद सबसे ज्यादा कद्दावर कुत्ता था. पूरे तीन फीट की उंचाई थी. उसके जिस्म के बाल आधा सफ़ेद आधा काले थे. न जाने किस फैक्टरी के बने साबुन का कमाले-फन था कि ये बाल सुकेशी युवतियों की अलकावलियों से भी अधिक कोमल और सुन्दर थे कि जिन्हें छूने से ईरानी गलीचे का स्पर्श का भ्रम होता था.

उस कुत्ते का नाम किसी ने शरलक होम्ज रख दिया था.मगर चूँकि ऐसा करने से विदेश के एक नामी-गिरामी जासूस कि प्रतिष्ठा को आघात लगता था इसलिए इंस्पेक्टर जनरल के आदेश से यह नाम रद्द कर दिया गया था. वैसे वह कुत्ता बचपन से पुलिस विभाग में ‘ झब्बू ‘ के नाम से संबोधित किया जाता था और अब भी वह इसी नाम से पुकारा जाता था. बहुत ही विचित्र संयोग था कि सौभाग्य या दुर्भाग्य से मंत्री महोदय ( जिनके घर में चोरी हुई ) का नाम झब्बर लाल था और अपने आत्मीय लोगों के बीच वे भी इसी नाम याने ‘ झब्बू ‘ कहकर पुकारे जाते थे. सारे प्रांत में वे इसी नाम से प्रसिद्ध थे. पुलिस के छोटे-मोटे साधारण सिपाही काफी परेशान रहते थे जब उनके आला अफसर ‘ झब्बू ‘ के विषय में विवाद करते. बेचारे समझ नहीं पाते थे कि कुत्ते के विषय में बातचीत चल रही थी या मंत्री के विषय में. चोरी क्या हुई थी, पहाड़ टूट गया था पुलिस विभाग पर. बस, अब तो झब्बू ( मंत्री नहीं,कुत्ता ) से ही उन्हें उम्मीद थी.

तथाकथित कुत्ते यानी झब्बू के गले में फौलाद की जबर्दस्त जंजीर थी जिसको थामें हुए पुलिस का दरोगा दिन-रात शहर के गली-कूंचों में भटकता फिरता था. कुत्ते के शारीर में अतुलित शक्ति और स्फूर्ति थी इसलिए कभी वह तेज चाल चलने लगता और कभी अकस्मात् घोड़े की तरह दौड़ने लगता. इस आपाधापी में उस दरोगा के लिए जंजीर सम्हालना मुश्किल हो जाता.उसका शरीर पसीने से लथपथ हो जाता. जिस किसी गली, सड़क या चौराहे पर वह कुत्ता पहुंचता, लोग भय से सहम जाते.उसकी निगाहें खूंखार थी. देखने वालों को ऐसा लगता था जैसे अब झपटा,तब झपटा. गलिओं में बच्चों का खेलकूद बंदप्राय हो गया था.

कुत्ते को अपने दायित्व का भान हो चुका था तथा वह अपने काम में चतुरता से लग चुका था.किन्तु आदमियों की तरह उसकी भी बुद्धि और कौशल उसका साथ नहीं दे रहा था. हर सुबह एक आस लेकर आती थी, हर शाम दिल डूब कर रह जाता था. कुत्ते की कमरतोड़ असफलता ने पुलिस विभाग को आइसक्रीम की तरह ठंडा कर दिया था. जंजीर सम्हाले निरुद्देश्य गलिओं और सड़कों में घूमने वाला पुलिस का वह दरोगा भी खीझ उठता था. कभी-कभी गली और एकांत देखकर उस कुत्ते के नाम गंदी गालियाँ फेंकता था. इस तरह आत्म संतोष कर अपनी दिन-दिनभर की थकान मिटा लेता था.

उस शाम गलियां सूनी पड़ी थी. न जाने सारे लोग कहाँ मर गए थे. इन्हीं गलिओं में सदा की तरह एक कुत्ता,एक इंसान दोनों भटक रहे थे. कुत्ता अपनी नाकामियों से बौखलाया हुआ था. अपने गले पर बल दे-देकर वह उछल-कूद मछाये जा रहा था. मनो जंजीर छुडाकर भाग जाना चाहता हो. दरोगा ने उस दिन जरा पी राखी थी. कुत्ते का रवैया उसे नागवार गुजर रहा था.उसके नाम वह कई बार गंदी गालियाँ भेंट कर चुका था और अब उसका जी चाह रहा था, साले कुत्ते को लात पर लात मारे और हवालात में बंद कर दे. मगर ऐसा मुमकिन कैसे हो सकता ? क्योंकि वह तो एक असाधारण कुत्ता था, कुशाग्रबुद्धि का कि जिस पर पुलिस विभाग को गर्व था. चुनांचे दरोगा उसके साथ-साथ हांफता घिसटता चला जा रहा था कि अचानक एक झटका पड़ा और उसके हाथ से जंजीर छूट गयी. देखते ही देखते कुत्ता यह गया....वह गया...

दरोगा के होश उड़ गए. वह वहशियों की तरह उधर ही लपका जिधर कुत्ता भागकर गम हो गया था. लगातार कई घंटे भटकने के बाद भी कुत्ते का अता-पता मालूम न हो सका. खबर आग की तरह चारों ओर फ़ैल गई. पुलिस के लिए एक नई मुसीबत व शर्म की बात थी. दो दिनों तक शहर का चप्पा-चप्पा छान मारा गया मगर न तो कुत्ता ही मिला न ही उसके कदमों के कोई निशान. एक अदद जासूसी कुत्ता और तैनात किया गया...कुत्ते ( झब्बू ) को खोजने के लिए.

इंस्पेक्टर जनरल का गुस्सा पूरे महकमें पर फाजिल हुआ.अब उस कुत्ते को ढूँढ निकालना पुलिस के हर मुलाजिम की जिम्मेदारी हो गयी. कई दिन बीत गए. एडी-चोटी का जोर लगाने पर भी कुत्ते का दर्शन देवी-देवताओं की तरह ही दुर्लभ बना रहा....और जब उसने दर्शन दिया तो उसकी अजीब ही दुर्गति की स्थिति थी. वह एक तंग बदबूदार गली की दो दीवारों के बीच निश्चेष्ट-सा पड़ा पाया गया. किसी ने उस पर जमकर ‘ थर्ड डिग्री ‘ का प्रयोग कर दिया था. उसके शरीर पर जगह-जगह खरोंच लगे थे. सिर पर एक स्थान से बहुत सारा रक्त बह निकला था. सूखे रक्त का निशान शरीर पर और आसपास जमीन पर भी स्पष्ट दिखलाई पड़ रहा था.

कुत्ते को नियंत्रण में लाने के लिए जंजीर पकड़ने की कोशिश की गयी. न जाने क्या हुआ कि कोशिश करने वाले को कुत्ते ने हठात जोरों से भौंककर काट खाया. देखते ही देखते वहाँ भीड़ लग गई और भीड़ में खलबली भी मच गई. हर तरफ यह बात आम हो गई कि एक विदेशी नस्ल का कुत्ता जो वहाँ पहले भी पुलिस के साथ देखा जाता था, एक चोरी की तफ्तीश करते-करते पागल हो गया. हर सामने पड़ने वाले को वह काट खाता है.

स्थानीय समाचार-पत्रों ने, जो मंत्री महोदय से हर बात में विरोधी थे, अपने अखबारों के मुखपृष्ठ पर मोटे-मोटे अ क्ष रों में समाचार दिया कि “ जासूसी करते-करते झब्बू पागल "..” झब्बू ने काटना शुरू किया “..” झब्बू पर पागलपन का भूत “...आदि...आदि. लोगों पर बड़ी विचित्र-विचित्र प्रतिक्रियाएं हुईं.

कुत्ता अब भी बेकाबू ही था. यह देखकर पुलिस के उच्चाधिकारी चिंतित हो गए. इंस्पेक्टर जनरल को सूचना दी गई.परिणामस्वरूप कांस्टेबल से लेकर इंस्पेक्टर जनरल तक पुलिस का पूरा स्टाफ शहर की गली-कूंचों में कुत्ते की तलाश में दर-ब-दर मारा फिरता नजर आने लगा. सबकी मंजिल एक थी,सबका मकसद एक था. जान-हानि की हिफाजत के लिए जल्द से जल्द कुत्ते पर काबू किया जाय...

न जाने कितने बच्चे-बूढे, जवाँ-मर्दों के शरीर में उस कुत्ते के पीने दांत गड चुके थे. जैसे कोई ज्वालामुखी फूट पड़ा हो, कोई जलजला आ गया हो. सारा शहर भयभीत और संत्रस्त था. वह बौखलाया हुआ कुत्ता नक्सलिस्ट लोगों से भी अधिक खतरनाक और आतंकवादी सिद्ध हो रहा था.

अंत में मंत्री महोदय को भी इस बात की सूचना दे दी गई. ऊपर से पुलिस को आदेश मिला, चोरी की जांच-पड़ताल बंद कर कुत्ते को अविलंब कैद करने के लिए चारों तरफ जवानों का जाल बिछा दिया जाए.

ऐसी मोर्चाबंदी तथा सरगर्मियों के बावजूद वह उछलता कूदता खौफनाक कुत्ता काबू से बाहर ही बना रहा और पुलिस विभाग लाउड-स्पीकर पर ध्वनि प्रसारित करता रह गया- “ सावधान...होशियार...झब्बू से अपने को बचाएं...घर से बाहर ना निकलें.....कुत्ते को गिरफ्तार करने वाले को सरकार की तरफ से एक मैडल और दस हजार का नगद इनाम....”