आत्मकथाओं का स्वर्ण मृग / जयप्रकाश चौकसे

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टेनिस खिलाड़ी सानिया मिर्जा की आत्मकथा के विमोचन अवसर पर सलमान खान ने एक प्रश्न के उत्तर में कहा कि वे स्वयं कभी आत्मकथा नहीं लिखेंगे, क्योंकि

आत्मकथाओं का स्वर्ण मृग
प्रकाशन तिथि :23 जुलाई 2016


इस कारण कई लोग अाहत हो सकते हैं, कुछ रिश्तों के समीकरण बदल सकते हैं और कुछ मृत व्यक्ति अपनी कब्र में बेचैन हो सकते हैं। इतना दु:ख देने में किसी का हित नहीं है। महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और चर्चिल इत्यादि लोगों की प्रकाशित आत्मकथाओं में उन्होंने अपने कालखंड को प्रभावित करने वाली विचारधारा का विवरण दिया है। इस तरह ये आत्मकथाएं समय को प्रस्तुत करती हैं। इसलिए ये आत्मकथाएं आदर्श मानी जाती हैं। कुछ हद तक हरिवंश राय बच्चन के पांच खंडों में प्रकाशित आत्मकथा के पहले तीन खंड अत्यंत निष्पक्षता और ईमानदारी से लिखे गए हैं। अन्य दो खंड मैंने पढ़े नहीं हैं।

इन आत्मकथाओं से ज्ञात होता है कि नेहरूजी की प्रेरणा और सहायता से हरिवंशजी ने लंदन में अपना शोध कार्य किया और नेहरू ने ही उन्हें विदेश विभाग में हिंदी अधिकारी का पद भी दिया तथा अपने निवास स्थान के निकट बंगला भी आवंटित कराया। यह सचमुच आश्चर्य और दु:ख की बात है कि रिश्तों की इस पृष्ठभूमि के बावजूद अमिताभ बच्चन नेहरू-गांधी परिवार के विरोधियों के साथ खड़े हैं। राजीव गांधी के साथ मित्रता के कारण उन्होंने महत्व भी पाया था। उन्हें अनावश्यक और अन्यायपूर्ण तरीके से कुछ स्वार्थों ने बोफोर्स कांड में बेवजह फंसाया और यूरोप की अदालत से वे निर्दोष भी घोषित हुए हैं। ज्ञातव्य है कि कुली फिल्म की शूटिंग में घायल होने के पश्चात जब मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी उनसे मिलने अस्पताल आई थीं। पहली बार एक प्रधानमंत्री अपने निजी पािरवारिक मित्र का कुशलक्षेम पूछने अस्पताल आई थीं। शासक वर्ग के साथ खड़े रहना अौर भ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाना दो अलग-अलग बातें हैं।

ज्ञातव्य है कि नैनीताल के शेरवुड संस्थान में उनकी शिक्षा हुई है और उन्होंने स्कूल के एक नाटक में भूमिका निभाई थी, जिसके लिए उन्हें शशि कपूर की पत्नी जेनिफर केंडल कपूर के पिता की स्मृति में स्थापित पुरस्कार भी मिला था। अभिनय प्रतिभा उनका जन्मजात गुण है, जिसे उन्होंने अपने परिश्रम और प्रयास से खूब मांजा और संवारा भी है। उनके जैसा अनुशासित कोई सितारा ही नहीं हुआ। हम केवल यह अनुमान लगा सकते हैं कि शेरवुड में अध्ययन करते समय उन्होंने धनाढ्य परिवार से आए छात्रों के ठाठबाट देखे और नेहरू के बंगले के निकट वाले बंगले में रहते समय उन्होंने राजनीति की शक्ति देखी तथा इन दो प्रभावों का गहरा असर उनके अवचेतन पर आज भी मौजूद है। उनकी स्वाभाविक महत्वाकांक्षा के तंदूर में इन दो प्रभावों ने आग और भड़का दी हो। अत: वे शासक वर्ग के साथ खड़े रहने में अपने को महफूज समझते हों। सफल और सक्षम व्यक्ति भी जाने क्यों अनजाने असुरक्षा भाव से ग्रस्त होता है? यह अनुमान मात्र है कि वे भारत के राष्ट्रपति पद को प्राप्त करना चाहते हों ताकि नेहरू-गांधी परिवार के सान्निध्य में जन्मी महत्वाकांंक्षा पूरी हो सके।

सारांश यह है कि प्राय: प्रसिद्ध व्यक्ति अपनी छवि की कथा ही लिखता है और उसमें मनुष्य का असल रूप गायब हो जाता है। प्राय: मनुष्य सबसे अधिक झूठ स्वयं से बोलता है और कालांतर में छवि को सत्य भी मान लेता है। शास्त्र कहते हैं 'आत्मन विदी' स्वयं को जानें और हम स्वयं से झूठ बोलकर उस छवि की कहानी को आत्मकथा कहते हैं। निदा फाज़ली की पंक्तियां हैं 'औरो जैसे होकर भी बाइज्जत हैं बस्ती में, कुछ लोगों का सीधापन है, कुछ अय्यारी भी, जीवन जीना सहज नहीं, बहुत बड़ी फनकारी है।'