आदत देर से आने की / दीनदयाल शर्मा

Gadya Kosh से
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किसी भी समारोह में कोई मुख्य अतिथि जी या कोई सेलिबे्रटी तो लेट आते ही हैं लेकिन ऑफिस या स्कूलों में अक्सर अधिकारी, कर्मचारी की आदत है कि वे भी लेट आते हैं। इनमें से कुछ ऐसे भी होते हैं जो लेट तो आते ही हैं लेकिन जाते भी जल्दी हैं। आजकल शहर हो या गांव ........लोगों में जाग्रति आई है। लोग ध्यान देने लगे हैं कि अधिकारी, कर्मचारी या टीचर कब आते हैं और कब जाते हैं।

एक गांव के एक स्कूल में एक गुरुजी रोजाना ही देरी से आते थे। तब एक दिन हिम्मत करके गांव के एक युवक ने गुरुजी को घड़ी में टाइम दिखाते हुए कहा-'क्यों गुरुजी! ये टाइम है आपका स्कूल आने का? कितनी देरी से आये हो?'

गुरुजी तपाक से बोले-'क्या हो गया देरी से आया हंू तो! जाता तो जल्दी हंू!'

युवक ने सोचा कि गुरुजी टाइम को एडजस्ट कर लेते होंगे। लेकिन ये भी कैसी विडम्बना है कि देरी से आने वाले लोगों में अपने काम के प्रति लापरवाही के साथ-साथ ऊपर से रौब अलग।

एक स्कूल के हैड साब रोज लेट आते। एक दिन वे स्टाफ से बोले-'ऑफिस की ये घड़ी कुछ आगे लग रही है। इसलिए स्कूल पहले ही लग जाता है। मैं आज इसे ठीक करता हंू।' उन्होंने दीवार घड़ी को 8-10 मिनट पीछे करते हुए कहा- 'अब ये घड़ी सही है।' लेकिन हैड साब फिर भी देरी से आते।

एक स्कूल में दूसरे गांव से आने वाले टीचर से स्कूल के एक स्टूडेण्ट ने कहा-'गुरुजी, स्कूल अब साढ़े दस बजे का हो गया। अब तो आप कभी देरी से नहीं आओगे?' गुरुजी मुस्कुराते हुए बोले-'बेटा, मैं तो टाइम पर ही आता हंू। ये कमबख्त बस ही देरी से आती है!' गुरुजी का देरी से आना जारी रहा।

एक स्कूल के गुरुजी कक्षा अध्यापक थे। इसलिए उन्हें पहला पीरियड लेना जरूरी था। पहले पीरियड में बच्चों की हाजिरी लेने के बाद पढ़ाई शुरू होती। गुरुजी ने कक्षा अध्यापक के कार्य से मुक्त होना भी चाहा। वे हैड साब से बोले- 'सर, मुझे कक्षा अध्यापक कार्य से मुक्त कर दीजिए। फिर दूसरे पीरियड तक तो मैं आराम से आ जाया करूंगा।'

हैड साब थोड़ा गुस्से से बोले- 'स्कूल आपके घर पर ही खुलवा देता हंू। फिर बिस्तर में लेटे-लेटे ही पढ़ा देना। नौकरी करनी है तो टाइम पर आना पड़ेगा!' लेकिन गुरुजी रिटायरमेण्ट तक नहीं बदले।

एक युवक एक विभाग में बाबू लगा। बाबू लगने की देर थी। उसकी शादी हो गई। बीवी आई टाइम की पाबंद। एक-एक पल का हिसाब रखती। खाना-पीना तैयार करके वह अपने श्रीमान बाबू जी को रोजाना टाइम पर ऑफिस भेजती। एक दिन जनाब लेट हो गए। बीवी बड़बड़ाई-'नई-नई नौकरी लगे हो। कल को चैकिंग आ गई तो चार्ज शीट मिल जाएगी और हो सकता है नौकरी से ही हाथ धो बैठो।'

बीवी की फटकार सुनकर श्रीमान बाबू जी भागे-भागे ऑफिस पहुंचे। शाम को घर लौटे तो बीवी ने दरवाजे पर ही सवाल किया- 'आज लेट गए तो आपके साब ने कुछ कहा क्या?'

बाबू अपनी बीवी से मुस्कुराते हुए बोला-'आज ऑफिस लेट पहुंचा तो भी सबसे पहले पहुंचा था! फिर कहता कौन!'

एक स्कूल की घटना है। एक मैडम जी स्कूल में रोजाना ही देरी से आती। एक दिन जैसे ही वह हैड साब के ऑफिस में पहुंची और उनके पास रखे हाजिरी रजिस्टर की ओर देखते हुए बोली- 'नमस्कार सर।'

हैड साब ने मैडम के नमस्कार का प्रत्युत्तर न देकर सीधा ही सवाल दागा-'आज क्या हुआ मैडम? मेहमान घर आ गए थे? रेलवे फाटक बंद था? टैम्पो पंक्चर हो गया? बच्चा बीमार था? या आपकी तबीयत खराब हो गई थी?'

मैडम पहले तो शरमाई और फिर खीसें निपोरती हुई बोली- 'सर, आप भी..... बड़े मजाकिया हैं .........इतनी भी कहां देरी हुई है सर? मैं स्कूल आ तो गई हंू सर! जैमिनी सर तो शायद अभी तक नहीं आए होंगे?'

हैड साब ने खीसें निपोरते हुए हाजिरी रजिस्टर मैडम के सामने बढ़ा दिया।