आदमी का विष / सुधाकर राजेन्द्र

Gadya Kosh से
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अगड़ों की दबंग सेना की ओर से आज फिर गोलियां चली। दलितों और दबंगों के बीच तनाव बढ़ता ही जा रहा था। दबंगों के नेता थे विजय सिंह और दलितों का सेना प्रमुख था कुनकुन रविदास। दबंग और दलित एक दूसरे के खून के प्यासे थे। दोनों गाँवों की राइफलें एक दूसरे पर गरज रही थी। एक समय था दोनों गाँवों के बीच काफी प्रेम था। जब से दोनों की निजी सेवाएं बनी बखेड़ा शुरू हो गया। कुनकुन और विजय सिंह दोनों एक दूसरे के कट्टर दुश्मन थे। दोनों एक दूसरे को मिल जाएं तो पता नहीं क्या-क्या हो जाए।

विजय सिंह की खेती एक अरसे से वीरान पड़ी है। पार्टी-वालों ने खेती पर पाबन्दी लगा रखा है। कुनकुन के डर से कोई भी मजदूर खेती में नहीं उतरता। विजय सिंह बाहर से भले ही शेर दिखते हैं अन्दर से टूट चुके हैं। खीझ में दहशत पफैलाने के लिए गोलियां चला देते हैं। इसी कारण लाल सेना के आँखों के काँटा बने हैं। विजय सिंह द्वारा चलाई गई गोलियों का जख्म अब भी नहीं भरा है कुनकुन के बाप के पैर का। थोडा सा से बच गए थे रघुदास, नहीं तो टें बोल जाते। रघुदास साँप-विच्छा काटने पर उपचार के लिए चर्चित नाम है। इलाके भर में इन्हें कौन नहीं जानता।

संध्या का समय था, विजय सिंह कमियां के अभाव में चारा कल से कुट्टी काट रहे थे। बेटा अजय गाँज से नेवारी ला रहा था। बेटी राध नेवारी लगा रही थी। पिंज से नेवारी खींचने के क्रम में विषधर साँप ने अजय को काट खाया। अजय सिंह घवराया हुआ आ कर पिता से बोला-बाबूजी विषधर ने हमे डँस लिया है, कहीं ले चलिए नही तो .........

विजय सिह के पास कई लोग जुट गए। विमर्श हुआ कि बहरामपुर के रघुदास के पास चला

जाए, किन्तु दबंगों ने मना किया- तुम्हारी गोली का जख्म अभी भरा भी नही है रघुदास का। जानेवालों को जिन्दा नहीं छोड़ेगा कुनकुन दास। साँप का विष चढ़ता ही जा रहा था। बरसात का महीना, काली अंधेरी रात, कच्ची सड़क, मील भर बहरामपुर गाँव। बहुत सोच विचार के बाद अन्य दबंगों से विरूद्ध हो कर विजय सिंह जान के परवाह किए बगैर बेटा को साँप की जहर से मुक्ति के लिए एक पड़ोसी के ट्रैक्टर इंजन पर सवार हो कर चल पड़े बहरामपुर रघुदास के घर। पहले तो विजयपुरा से टैक्टर आते देख लोगो के कान खडे़ हो गए। कुनकुन ने अपने लाल सेना के सथियों को सतर्क कर दिया और स्थिति को भॉपने लगा। लाईट जलाता हुआ ट्रैक्टर आ कर रूका कुनकुन दास के दरवाजे पर। विजय सिंह को देखकर लोग चकित थे। किन्तु दलितों ने स्थितियों को भाँप कर विजय सिंह का पूरा साथ दिया। पूरे गाँव में ये बात फैल गई कि विजय सिंह के बेटा को साँप छू गया है। उपचार के लिए आए हैं। रघुदास ने विजय सिंह को नमस्कार किया। कुनकुन ने विजय सिंह से हाथ मिला कर विशेष जानकारी ली। गाँव के सारे लोग उपचार में लग गए उपचार चलता रहा। साँप का जहर धीरे-धीरे उतरता गया।

रात के बारह बजते बजते अजय सिंह बिल्कुल चंगा हो गया। इसी बीच कुनकुन ने विजय सिंह और उनके साथ आए लोगों के लिए भोजन लगवाया। विजय सिंह ने पहलीवार कुनकुन के घर खाना खाया और पुत्र की प्राण रक्षा के लिए कुनकुन और उनकें साथियों को गले लगाया। लौटते वक्त विजय सिंह ने अपनी गलती के लिए माफी माँगते हुए रघुदास के पैर छुने के लिए झूके तो उनके आँखों से आँसुओं की बूँदें उस जख्म पर टपक पड़ी जो विजय सिंह द्वारा चलाई गई गोलियों से बने थे। लाख मरहम लगाने से भी जो जख्म अबतक नहीं भरे थे आज विजय सिंह के आँसुओं से भर गए।

उधर विजय सिंह के गाँव के दबंग सोच रहे थे आज विजय सिंह जिन्दा नहीं लौटेगा। पर विजय सिंह अपने पुत्र के साथ भला चंगा लौट आए तो दबंगो का भ्रम टूट गया। आज दोनो गाँवों के बीच पुरखो का संजोया हुआ प्रेम फिर से लौट आया, क्योंकि अब साँप के विष के साथ आदमी का विष भी उतर चुका था।