आदर्शों और भावों की अविरल सरिता है: थोड़ी सी नमी / कविता भट्ट

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एक दार्शनिक जब साहित्य की काव्य विधा को अपने शब्द भाव से संजोता है; तो ऐसी ही मर्मस्पर्शी रचनाओं का जन्म होता है; जैसी प्रोफेसर इंदु पांडे खंडूरी जी के काव्य -संग्रह 'थोड़ी सी नमी' में सगृहीत हैं।

यह कटुसत्य है कि जब एक व्यक्ति और वह भी स्त्री आदर्शों को जीने के लिए कृतसंकल्प हो तो उसकी स्थिति एक पहाड़ी नदी के समान होती है । एक ओर यह नदी आदर्शों को पूर्ण प्रवाह के साथ समाज रूपी सागर में सम्मिलित कर उन्हें स्थापित करना चाहती है, तो दूसरी ओर व्यावहारिक जीवन की विसंगतियाँ राह में कठोर चट्टानों के समान पग-पग पर बाधाओं के रूप में उपस्थित होती हैं। ऐसा होते हुए भी आदर्शों की नदी अपने ध्येय तक पहुँचती है और नए प्रतिमान गढ़ती है। ध्येय की इस यात्रा में वैचारिक ज्वार- भाटा अभिव्यक्त होने के लिए हिलोरें लेते हैं। इस दृष्टि से ऐसा प्रतीत होता है कि प्रोफेसर खंडूड़ी का यह संग्रह आदर्शों के उच्चतम प्रतिमानों रूपी झरने तथा व्यावहारिकता रूपी कठोर धरातल के घर्षण से उपजी भावनाओं की अभिव्यक्ति है।

निश्चित रूप से इसमें स्त्री के स्निग्ध मन की भावनाएँ और सामाजिक विसंगतियाँ अपने चरम तक प्रकट हुई है। ये अभिव्यक्तियाँ पाठक को अपने साथ प्रवाहित कर ले जाती हैं। इस काव्य सरिता में स्नान करते हुए पाठक कभी कवयित्री के सुकुमार मन की थाह लेने का प्रयास करता है, तो कभी उसके जीवन की उहापोह से अपने आप को पूर्णत:निमग्न पाता है । इस प्रकार यह काव्य संग्रह अपने आप में अनूठा तथा सारगर्भित है। विचार और भाव का प्रभाव ऐसा कि पाठक को भीतर तक झकझोर कर रख देता है।

प्रोफेसर खंडूड़ी प्रायः आदर्शों और व्यावहारिक जीवन के बीच में एक संतुलन बनाने का प्रयास करती हैं। दूसरों की मुस्कराहट देखकर उन्हें प्रसन्नता मिलती है। दूसरे के आँसू पोंछकर उनकी नमी को अपनी आँखों में समेट लेती हैं। दूसरों के दर्द उन्हें सोने नहीं देते; लेकिन अपने दर्द को वे केवल काव्य के माध्यम से ही अभिव्यक्त कर पाती हैं। यह अभिव्यक्ति सुंदर तो है ही; साथ ही उतनी ही मार्मिक भी है।

दार्शनिक होना साहित्यकार होने की प्राथमिक अनिवार्यता है, जो चिंतन नहीं कर सकता मनन भी नहीं कर सकता वह एक अच्छा साहित्यकार हो ही नहीं सकता। इस दृष्टि से यह संग्रह प्रोफेसर इंदु पांडेय खंडूड़ी को न केवल एक दार्शनिक; अपितु एक सशक्त कवयित्री के रूप में प्रतिष्ठित करता है।

इन कविताओं में अनुभूतियों की गहनता, भावों का मर्म और शब्दों की सुंदरता सभी प्रकार से सुंदर ढंग से समाहित है। सार यह है कि प्रत्येक भाव और जीवन के रहस्य प्रावहपूर्ण ढंग से पाठक के सामने उद्घाटित होते हैं। प्रोफेसर इंदु जी का यह संग्रह पाठक वर्ग को खूब भा रहा है। भाए क्यों ना भला; महिलाएँ प्रत्येक शब्द से अपने आपको जुड़ा हुआ पाती हैं। ऐसा लगता है कि ये कविताएँ नारी- मन के चित्रण का जीवंत अभिलेख हैं। साथ तटस्थ होकर पढ़ने वाला पुरुष वर्ग जो समाज में महिलाओं की स्थिति का साक्षी है; वह भी इस काव्यधारा में बहता है।

दर्शन की एक गहन अध्येता होने के साथ ही आपकी काव्य विधा पर इतनी पकड़ वस्तुतः आपको एक अच्छी रचनाकार सिद्ध करती है। इस संग्रह में न केवल नारी मन की उहापोह चित्रित हुई है; अपितु अनेक स्थानों पर रचनाकार ने अनेक सामाजिक,राजनीतिक और समकालीन समस्याओं को भी अपनी लेखनी के माध्यम से उकेरा है। एक दार्शनिक होने के नाते समाज में घट रहे नकारात्मक घटनाक्रम पर उनकी चिंता और चिंतन स्वाभाविक है। यह पाठक को भी चिंतन- प्रक्रिया में ले जाती है।

निश्चित रूप से हम इस प्रकार के विषयों से नित्य प्रति दो-चार होते हैं; लेकिन उन भावों को लेखनी के माध्यम से प्रस्तुत करना प्रत्येक के वश की बात नहीं होती है। रचनाकार ने इन भावों को शब्द- माला के रूप में प्रस्तुत किया है । निश्चित रूप से वे इसके लिए बधाई की पात्र हैं। ये कविताएँ सामान्य वर्ग के पाठकों तक भी सरलता से पहुँच पाती हैं; क्योंकि प्रोफेसर खंडूड़ी की लेखन - शैली ऐसी है, जो शब्द -शब्द के गहन भाव तक व्यक्ति को पहुँचा सकती है । सरल और सुग्राह्य भाषा में लिखा गया एक सुंदर काव्य संग्रह है - थोड़ी सी नमी। इसमें मैं हूँ, आप हैं और स्वयं प्रो.खंडूड़ी तो हैं ही। इन कविताओं से हम सभी अपने आप को जुड़ा हुआ पाते हैं और इन के माध्यम से एक गूढ़ संदेश को ग्रहण करने की भी आवश्यकता अनुभव होती है। साररूप में यह संग्रह पठनीय तथा संग्रहणीय है।

इस अद्भुत रचनाधर्मिता हेतु प्रो. इंदु जी को बधाई और भविष्य की लेखन यात्रा हेतु आत्मिक शुभकामनाएँ। आप इसी तरह दार्शनिक और सृजनात्मक लेखन में निरंतर सक्रिय रहें; ऐसी हमारी मनोकामना है।