आदित्य चोपड़ा की चौथी फिल्म / जयप्रकाश चौकसे

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आदित्य चोपड़ा की चौथी फिल्म
प्रकाशन तिथि :08 अक्तूबर 2015


आदित्य चोपड़ा ने अपने स्वर्गीय पिता यश चोपड़ा के 83वें जन्मदिन 27 सितंबर को अपने परिवार को बताया कि वे अपनी चौथी फिल्म की शूटिंग अगले वर्ष शुरू करने जा रहे हैं, जबकि उनके प्रथम प्रयास की फिल्म 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' मराठा मंदिर मुंबई में प्रतिदिन एक शो के रूप में इतने वर्षों बाद भी चल रही है। यह फिल्म उनके पिता की निर्माण संस्था के इतिहास की सफलतम फिल्म है। उनकी बाद की 'मोहब्बतें' और 'रब ने बनाई जोड़ी' भी सफल फिल्में हैं परंतु 'दुल्हनिया' वाला करिश्मा वे दोहरा नहीं पाए। उनकी नई फिल्म में रणवीर सिंह और नई नायिका वाणी कपूर मुख्य भूमिकाएं करेंगे। ज्ञातव्य है कि रणवीर सिंह को उन्होंने ही 'बैंड बाजा और बारात' में प्रस्तुत किया था। आदित्य चोपड़ा एकमात्र फिल्मकार हैं, जो कभी मीडिया को साक्षात्कार नहीं देते हैं और अपनी निजता की रक्षा करते हैं। वे अपने वाचाल और सदैव सुर्खियों में बने रहने वाले शागिर्द करण जौहर से अलग मिजाज के व्यक्ति हैं। करण जौहर सितारों की सब शर्तें मान लेते हैं और आदित्य चोपड़ा अपनी शर्तों पर सितारों के साथ काम करते हैं। आदित्य चोपड़ा उस जमाने के फिल्मकार की तरह हैं, जब फिल्मकार सितारे से अधिक महत्वपूर्ण होता था, क्योंकि फिल्म विधा निर्देशक का ही माध्यम है।

आजकल तो हर वह व्यक्ति फिल्म निर्माता होता है, जो अपना आत्म-सम्मान गिरवी रखकर किसी सितारे को अनुबंधित करने में कामयाब हो जाता है। इस सितारा शासित समय में आदित्य चोपड़ा अकेले द्वीप की तरह हैं, जिससे लोकप्रिय लहरें माथा फोड़कर समुद्र की गोद में शर्म से सिर छुपाती हैं। आदित्य चोपड़ा की फिल्म का नाम 'बेफिक्र' है! आदित्य चोपड़ा अपनी कमसिन उम्र से ही मुंबई के एकल सिनेमा 'चंदन' में हर शुक्रवार नई फिल्में देखते हैं। दशकों के इस अभ्यास के कारण वह अवाम की पसंद को समझने का प्रयास करते रहे हैं। ज्ञातव्य है कि 'चंदन' आम दर्शक का एकल सिनेमा है। आदित्य का एकल सिनेमा चुनना ही उनकी सिनेमा समझ का द्योतक है। वे जानते हैं कि मल्टीप्लैक्स के दर्शक आर्थिक उदारवाद के बाद पनपे दर्शक हैं, जिन्हें पॉपकॉर्न व बर्गर खाने में ज्यादा रुचि है और फिल्म देखने के बहाने वे खुद को दिखाने के लिए भी जाते हैं। 'चंदन' में उनकी सीट बुक है और वे हमेशा फिल्म शुरू होते समय अंधेरे हाल में घुसते हैं और फिल्म समाप्त होने के चंद क्षण पहले ही बाहर आ जाते हैं। यह अपनी निजता की रक्षा करना है। प्राय: सफल फिल्मकार प्रदर्शन पूर्व विशेष प्रदर्शन में जाते हैं, जहां फिल्म उद्योग के लोग निमंत्रित होते हैं।

इस तरह के प्रदर्शन में दर्शक प्रतिक्रिया का कोई महत्व नहीं है, क्योंकि सारे लोग व्यवहार कुशलता की खातिर प्रशंसा ही करते हैं। अमेरिका में भी दूरदराज के छोटे इलाके में प्रदर्शन पूर्व प्रदर्शन रखा जाता है कि दर्शकों की प्रतिक्रिया मालूम की जा सके। दरअसल जैसे ही दर्शक को यह ज्ञात होता है कि वह अवाम के लिए प्रदर्शन के पहले फिल्म देख रहा है, वह व्यक्ति स्वयं को विशेष समझने लगता है और इस प्रक्रिया में अपनी असली प्रतिक्रिया छिपाने की कला सीख जाता है। ठीक इसी तरह जब आम आदमी नेता को आमंत्रित करते हैं, वह विशेष के भाव से ग्रस्त होकर यह नहीं बताते कि दाल 150 रुपए किलो है और जीना मुश्किल हो गया है। तमाम सामंतवादी दरबारों में भी लोग अपनी व्यक्तिगत राय बताने से डरते रहे हैं। हर शासक डर का वातावरण बनाए रखता है। आदित्य चोपड़ा जानते हैं कि 5 से 25 वर्ष की आयु वाले दर्शक ही सिनेमा का आर्थिक आधार है। अत: फिल्में इसी दर्शक वर्ग के लिए बनाई जाती है। फिल्मकार प्रयास करता है कि अधिकतम की पसंद की फिल्म बनाए परंतु अधिकतम की पसंद का कोई निश्चित मानदंड नहीं है। यह खेल मेंढक तोलने की तरह है। हर फिल्मकार अधिकतम की पसंद के नाम पर अपने व्यक्तिगत विचारों और उनमें निहित पूर्वग्रहों के आधार पर ही फिल्म बनाता है। दरअसल स्वयं को जानना ही सबसे कठिन है, इसलिए दूसरों की पसंद को समझना मुगालता है।

बहरहाल, आदित्य चोपड़ा की फिल्म के नाम से ही संकेत मिलता है कि वे आज के मस्ती मंत्र को जपने वाले और 'हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चल गया' की मानसिकता के लोगों के लिए फिल्म गढ़ रहे हैं। सच है कि भाग्यवान हैं वे लोग, जो आज के जीवन के विरोधाभासों, विसंगतियों के अन्याय, असमानता आधारित व्यवस्था में बेफिक्र हो सकते हैं। डर की अदृश्य चादर के तले सचमुच बेफिक्र होना कमाल की बात है। अदम का शेर, 'अक्ल हर काम को जुल्म बना देती है, बेसबब सोचना, बेसूद पशीमां होना..' इसीलिए हमारी व्यवस्था ने सोचने की आदत छोड़ देने के प्रयास किए हैं।