आधी हकीकत आधा फ़साना - भाग 5 / राकेश मित्तल

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आधी हकीकत आधा फ़साना - भाग 5
प्रकाशन तिथि : नवम्बर 2014


वी. शांताराम की प्रभात फिल्म कंपनी भारतीय सिनेमा के शुरूआती दिनों की सर्वाधिक प्रतिष्ठित रही है। १९२९ में कोल्हापुर में स्थापित प्रभात फिल्म कंपनी में पांच भागीदार थे - वी. शांताराम, विष्णु दामले, यास्मीन फत्तेलाल, के. आर. धाइबर तथा एस. बी. कुलकर्णी। इस कम्पनी ने आरम्भ से ही हिंदी और मराठी दोनों भाषाओँ में फ़िल्में बनाई। प्रभात द्वारा निर्मित `अयोध्याचा राजा’ भारत की पहली बोलती मराठी फिल्म है। जनता की विशेष मांग पर 6 फरवरी 1932 को इसका हिंदी संस्करण प्रस्तुत किया गया। सन 1935 के बाद शांताराम ने सामाजिक सरोकारों पर कई सार्थक फ़िल्में बनाई, जो बेहद सराही गईं। इनमें विशेष रूप से 1937 में बानी `दुनिया ना माने’ (मराठी में `कुंकू’), 1939 में बनी `आदमी’ (मराठी में `माणुस’), तथा 1941 में बनी `पडोसी’ (मराठी में `शेजारी’) उल्लेखनीय है। इन फिल्मों ने शांताराम की प्रतिष्ठा में चार चाँद लगा दिए। आगे चलकर उन्होंने `शकुंतला’, `डॉ. कोटनीस की अमर कहानी’, `दहेज़’, `झनक-झनक पायल बाजे’ , `दो आँखें बारह हाथ’ तथा `नवरंग’ जैसी कालजयी फिल्में बनाकर भारतीय सिनेमा को समृद्ध किया। प्रभात कंपनी के अंतर्गत बनी `संत तुकाराम’ को दामले एवं फत्तेलाल ने निर्देशित किया था। इस फिल्म को आज भी भारतीय सिनेमा की टॉप तेन फिल्मों में शामिल किया जाता है। यह भारत की पहली फिल्म है, जिसे अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था। 1937 में हुए वेनिस के पांचवे अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में इसे दुनिया की सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार मिला, जो संयुक्त रूप से तीन फिल्मों को दिया गया था।

उन दिनों मराठी संगीत नाटकों में पुरुष ही स्त्री पात्र निभाया करते थे। ऐसे अभिनेताओं में बाल गन्धर्व (नारायण श्रीपाद राजहंस) तथा विष्णु पंत पागनीस प्रमुख थे। कोल्हापुर में मास्टर विनायक ने वि. स. खांडेकर, आचार्य प्रहलाद केशव अत्रे, वि. वि. जोशी तथा व. प. नाडकर्णी जैसे मराठी भाषा के विद्वान लेखकों की कृतियों पर सफल फ़िल्में बनाई।

महाराष्ट्र के अलावा जिस अन्य राज्य में फिल्मों पर तेजी से काम हुआ, वह था बंगाल। बंगाली सिनेमा भी वहां के प्रसिद्ध साहियाकारों बंकिमचन्द्र, शरदचंद्र, रवीन्द्र नाथ टैगोर, आदि की कृतियों से प्रेरणा लेकर विकसित हुआ। 1931 में कलकत्ता में बीरेंद्रनाथ सिरकार ने न्यू थिएटर्स की स्थापना की। भारतीय सिनेमा के उत्थान में न्यू थिएटर्स का जबरदस्त योगदान रहा है, जिसने देवकी बोस, नितिन बोस, पी. सी. बरूआ, फणी मज़ूमदार और बिमल रॉय जैसे निर्देशक दिए। 1932 में देवकी बोस द्वारा निर्देशित `चंडीदास’ न्यू थिएटर्स की पहली सुपरहिट फिल्म थी। न्यू थिएटर्स ने भारतीय सिनेमा और जनमानस पर गहरा प्रभाव छोड़ा, जिसका एक प्रमुख कारन था भारतीय लोगों की संगीत के प्रति रूचि। न्यू थिएटर्स के पास प्रभात कंपनी की तुलना में बेहतर संगीतकार व गायक थे, जिनमें आर. सी. बोराल, के. सी. डे, पंकज मलिक, पहाड़ी सान्याल, कुन्दनलाल सहगल तथा सचिन देव बर्मन जैसे नाम शामिल हैं। प्रभात में शांताराम अपने आलावा किसी और को नायक बनने का अवसर बहुत ही मुश्किल से देते थे, जबकि न्यू थिएटर्स के दरवाजे सबके लिए खुले थे। बंगाल देवदास में जहाँ प्रथमेश बरुआ नायक थे तो हिंदी देवदास में उन्होंने हिंदी भाषी कुन्दनलाल सहगल को प्रस्तुत कर दिया। बाद में सहगल ने न्यू थिएटर्स की कई फिल्मों में काम किया। यह भ्रान्ति है कि सहगल की मृत्यु अधिक शराब पीने से हुई। वास्तव में उन्हें मधुमेह की बीमारी थी, जिसका उन दिनों कोई इलाज़ नहीं था।