आनंद एल राय, जिमी शेरगिल और कंगना रनोट / जयप्रकाश चौकसे

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आनंद एल राय, जिमी शेरगिल और कंगना रनोट
प्रकाशन तिथि : 01 जुलाई 2019


आनंद एल राय टेलीविजन के लिए कार्यक्रम बनाया करते थे परंतु फिल्म निर्माण उनका अभीष्ट रहा है। योजनाबद्ध ढंग से वे आगे बढ़ते रहे। उन्होंने टेलीविजन कार्यक्रम बनाने की बचत और फिल्म निर्माण में फिजूलखर्ची को देखा। आप किसी सितारे से यह नहीं कह सकते कि वह समय पर आए। अतः आनंद एल राय ने फिल्म निर्माण को अत्यंत व्यवस्थित कर दिया। एक दिन में कितने शॉट्स लेना यह तय कर दिया और मौसम या सितारे के मिजाज के कारण कोई क्षति हो तो उसी शाम यूनिट जिस होटल में ठहरी है वहां शूटिंग करके काम की भरपाई हो जाती है। आनंद एल राय के दफ्तर में अधिकांश वार्तालाप हिंदी में होता है, जबकि अन्य निर्माण केंद्रों पर अंग्रेजी बोली जाती है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हिंदी के उपयोग को उन्होंने नारा नहीं बनने दिया है। हिंदी उनकी सामान्य जीवन शैली का सहज हिस्सा है।

कंगना रनोट को पहला अवसर महेश भट्ट ने दिया था। फिल्म एक नए ढंग की प्रेमकथा थी परंतु नाम 'गैंगस्टर' रखा गया। एक अपराधी और बार डांसर लंबे समय तक साथ रहते हैं परंतु शारीरिकता से परहेज बरता गया। फिल्म के अंतिम दृश्य में अपराधी को गोली मार दी जाती है। बार डांसर उसके हाथ में सिंदूर की डिबिया देखती है वह अपने ढंग से अपने प्रेमी की हत्या का बदला लेती है। आनंद एल राय ने कंगना रनोट के साथ 'तनु वेड्स मनु' के दो भाग बनाए और यह उनकी पहली बड़ी सफलता है। कुछ समय बाद आनंद एवं कंगना के रिश्ते में तनाव आ गया, क्योंकि इस अंतराल में वे 'क्वीन' बन चुकी थीं। आनंद तो हमेशा सामान्य ही बने रहते हैं। लेखक शिव खेड़ा लिखते हैं- जीतने वाले अलग काम नहीं करते, बस काम अलग ढंग से करते हैं। यही आनंद एल राय करते हैं। खबर यह है कि 'तनु वेड्स मनु' का तीसरा भाग बनाने का प्रयास किया जा रहा है और इस भाग में जिमी शेरगिल अभिनीत पात्र राजा अवस्थी को केंद्र में रखा जाएगा। दरअसल, जिमी शेरगिल की प्रतिभा के साथ पूरा न्याय नहीं हुआ परंतु पंजाबी भाषा की फिल्मों में वे सुपरस्टार हैं। आजकल कुछ क्षेत्रीय भाषाओं में बनी फिल्में बहुत अधिक सफल हो रही हैं। छत्तीसगढ़ में बनी एक फिल्म ने सफलता के नए कीर्तिमान बनाए हैं। फिल्म का नाम है 'हंस मत पगली फंस जाबे'। छत्तीसगढ़ में सिनेमाघर जनसंख्या के अनुपात में कम है। दरअसल, अवाम की मनभावन फिल्म हर हाल में सफल होती है। पंजाबी भाषा की सफल फिल्म का नाम 'शहाड़ा' है। क्षेत्रीय भाषा में कम बजट में फिल्म बनती हैं। इसलिए लीक से हटकर साहसी कथानक लिए जा सकते हैं। अखिल भारतीय सफलता के लिए, बड़े बजट के कारण, निर्माता कथानक में प्रयोग नहीं कर पाता। सफल व्यक्ति बहुत सुरक्षात्मक ढंग अपना लेता है और सुविधाजनक ढंग से यह भुला देता है कि उसे साहसी कथानक के कारण ही सफलता मिली थी।

आनंद एल राय की अधिकांश फिल्मों के गीत राजशेखर ने लिखे हैं। वे गीत लेखन क्षेत्र में एक ताजगी लेकर आए। उनके एक गीत की यह पंक्ति कभी भुलाई नहीं जा सकती। 'खाकर अफीम रंगरेज पूछे यह रंगों का कारोबार क्या है, कौन से पानी में तूने कौन सा रंग घोला है।' गायक के लिए शैलेन्द्र के गीत की पंक्तियां हैं। 'आज क्यों नाचे सपेरा', सांप नाचता है, परंतु शैलेन्द्र ने सपेरे के नाचने की बात करके उसे व्यापक बना दिया। आज समाज अफीम खाया हुआ लगता है और पूछ रहा है सियासत का कारोबार कैसे चल रहा है। गौरतलब है कि शैलेन्द्र और राजशेखर के परिवार बिहार से आए। गंगा और जमुना के डेल्टा में बसा बिहार गरीब क्यों है? बहरहाल, आनंद एल राय ने शाहरुख खान के साथ 'जीरो' बनाई जो असफल रही। सुपर सितारों के साथ काम करना कठिन है। इस समय आनंद एल. राय तीन-चार कथानकों पर काम कर रहे हैं। एक लोकप्रिय लतीफा आया है कि जब आप इश्क में पड़ते हैं तब अदृश्य वायलिन वादकों द्वारा बजाया गया संगीत प्रेमियों को सुनाई पड़ता है। फराह खान की 'मैं हूं ना' में वायलिन दृश्य है। इसी तर्ज पर जब फिल्मकार तीन-चार कथाओं पर काम कर रहा है तब जिस पर उसे वायलिन सुनाई दे; उसी विषय को बनाना चाहिए।

आनंद एल राय और जिमी शेरगिल हमेशा ही अच्छे मित्र रहे हैं। कंगना रनोट को 'तनु वेड्स मनु' ने सितारा बनाया। इस समय आहत 'रानी' लक्ष्मीबाई को भी आनंद एल राय की आवश्यकता है।