आनंद का अर्थ और खोज / जयप्रकाश चौकसे

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परदे_के_सामने_जयप्रकाश_चौकसे

2017 में अपनी पत्रिका बीईंग माइंडफुल के विमोचन समारोह मे बतौर मुख्य अतिथि चौकसे सर इंदौर से भोपाल पधारे। सर से फोन पर चर्चा हुई कि आनंद विषय पर कुछ बोलना है यही पत्रिका की थीम है। इस विषय पर उनका साक्षात्कार फोन पर पहले ही किया जा चुका था। तय कार्यक्रम के अनुसार 29 अप्रैल की दोपहर को अपने निजी वाहन से होटल पलाश आए। कुछ परिचितों से मुलाक़ातों के दौर के बाद अपने उद्बोधन की तैयारी में लग गए। शाम को अपनी दवाइयां लेकर वे कार्यक्रम स्थल पहुँचे और लगभग 45 मिनट इस विषय पर बोलते रहे। दर्शक सम्मोहन की अवस्था में दिखाई रहे थे। स्मृतियां और भी हैं...फिलहाल इसे आप भी पढ़ें और गुने....

आनंद_का_अर्थ_और_खोज

इस समारोह में मुझे आमंत्रित करते समय आभास दिया गया कि जीने की राह पर कुछ बातचीत की जाएगी। पहला विचार यह कौंधा कि क्या जीने की राह है तो मरने का सलीक़ा भी होगा। बाद के संचार में यह बताया गया कि आनंद से जीने पर गुफ़्तगू होगी। सारांश यह कि चंपाई अंधेरा और सुरमई रोशनी का आलम था। यहां आकर थोड़ी धुंध हटी नजर आ रही है। आजकल तो व्यवस्था आर्थिक आंकड़ों की भरमार कर रही है कि ग्रोथ रेट बढ़ रहा है। दशकों तक ग्रोथ रेट का मानदंड उत्पादन, बिक्री और मुनाफा रहा। परंतु मौजूदा सरकार ने अपने आगमन के साथ यह परिवर्तन किय कि आधार केवल निर्माण संख्या होगी। माल कितना बिका, इसे नजरअंदाज करें। नतीजा यह है कि।उत्पादक के गोडाउन भरे पड़े हैं परंतु माल बिक नहीं रहा है। बहरहाल इस संस्था में ग्रोथ रेट की बात नहीं कर के केंद्रीय विचार यह बनाया है कि अब आम कितना खुश है। लोग कितने आनंदित हैं। समस्या यह है। खुशी मापने का कोई मानदंड ही नहीं है। आप बाजार से किलो दो किलो खुशी नहीं खरीद सकते और ना ही एक या दो लीटर प्राप्त कर सकते। पेट्रोल पंप की तरह कोई स्थान नहीं है जहां से चंद लीटर खुशी अपनी रक्त वाहिनियों या वैचारिक तंतुओं में भेज सकते हैं।

लगभग 75 वर्ष पूर्व अमेरिका में एक व्यक्ति अत्यंत चिंता करता था कोई परेशानी नहीं होने पर भी हमेशा चिंता ग्रस्त रहता था। यहां तक कि वातानुकूलित भवन में भी वह पसीने से तरबतर हो जाता था. वह एक आर्किटेक्ट कंपनी का योग्य ड्राफ्ट्समैन था। उसे डॉक्टरों को दिखाया गया और निदान यह आया कि इसके मस्तिष्क में चिंता के सेल्स सुपर एक्टिव हैं.

जैसे कुछ लोगों के... संवेदनशील होते हैं..और बेबात ही उनके आंसू टपकने लगते हैं। मीना कुमारी ने इतनी त्रासद फिल्मों में अभिनय किया था कि बिना ग्लिसरीन डाले वह रो सकती थी।आपको जानकर आश्चर्य होगा कि रोने- धोने के शॉट लेने के पहले कलाकार की आंख में बूंद दो बूंद ग्लिसरीन डालते हैं।कैमरा फ्रेम के बाहर कोई व्यक्ति गुदगुदी करता है तब अभिनेता हंसने का शॉट दे पाता है। बहरहाल अमेरिकन की शल्य चिकित्सा करके चिंता सेल्स को दबा दिया गया। इस शल्य चिकित्सा का नाम है प्रीफ्रंटल लोकोक्टॉमी शल्य चिकित्सा के बाद उस व्यक्ति ने चिंता करना बंद कर दिया अब उसे अकारण ही पसीना भी नहीं आता परंतु उसे नौकरी से निकाल दिया गया क्योंकि उसकी कार्यक्षमता लगभग शून्य हो गई थी और दशा इतनी दयनीय हो गई थी कि जिस कंपनी में वह अफसर था वहां उसे चपरासी की नौकरी करनी पड़ी उसके बड़े भाई ने अस्पताल और सर्जन पर मुकदमा ठोंक दिया। मुकदमे का आधार.यह था कि डॉक्टर ने ईश्वर के निर्माण में परिवर्तन किया है। उसके डिजाइन और मॉडल से छेड़छाड़ की है। जैसे हम पेट्रोल कार के इंजन में परिवर्तन कर उसे डीजल पर चलने वाला बना देते हैं । इस मुकदमे के कारण ही अमेरिका में प्रीफ्रंटल लो लोकोक्टॉमी पर प्रतिबंध लगाया गया। सारांश यह है कि आनंद या अवसाद शल्य चिकित्सा के बाहर के क्षेत्र हैं। और यह ऊपर वाले का डिजाइन है। यह हमारी सुविधा है कि जिन प्रश्नों के उत्तर हमें नहीं मिल पाते उन्हें हम ईश्वर पर छोड़ देते हैं दरअसल ईश्वर के सारे।कर्म धरती पर मनुष्य ही करता है स्वर्ग या नर्क का पागलपन केवल बुराई से बचने के लिए डर का एक मार्ग है जबकि सत्य यह है बकौल कवि शैलेंद्र- "आदमी है.आदमी की जीत पर यक़ीन कर अगर है कहीं स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर"

मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ आकल्पन ईश्वर है तथा स्वर्ग या नरक।उस आकल्पन।के ही हिस्से हैं। आनंद या अवसाद ईश्वर प्रदत्त नहीं है और जैसे गरीबी का उत्पाद किया जाता है वैसे ही अवसाद भी रचा जाता है परंतु।आनंद का स्रोत। मनुष्य की विचार प्रक्रिया में निहित है । हम अपने सकारात्मकता से आनंद रच सकते हैं। आनंद किसी पहाड़ की चोटी पर लगे वृक्ष का फल नहीं है। छोटी-छोटी साधारण बातों से भी आनंद प्राप्त होता है। यहां तक कि सामान्य भोजन के कौर को मुंह में देर तक चबाने से ना केवल पाचन क्रिया का काम प्रारंभ हो जाता है वरन जिव्हा से आनंद की अनुभूति प्राप्त की जा सकती है। जीवन की आपाधापी में हम सरल साधारण को।नजरअंदाज करने लगे हैं। मधुर संगीत सुनने से कान द्वारा आनंद आत्मा में प्रवेश कर जाता है। हमारी पांचों इंद्रियां आनंद प्राप्त करने का माध्यम बन सकती हैं। स्विमिंग पूल में तैरने से आनंद मिलता है और जल की सतह पर सामान्य श्वास प्रक्रिया जारी रखकर आप चंद क्षण फ्लोट।करते रहते हैं, यह भी आनंद का एक क्षण होता है। यह जल की सतह पर बने रहना सहज प्रक्रिया है। ठीक इसी तरह जीवन में आनंद मिलना चाहिए.

एक साधारण सी बात पर गौर करें। आग लगने पर पानी डालने से वह बुझ जाती है..परंतु मनुष्य के उदर में भूख की ज्वाला धड़कते ही पाचन क्रिया का रस भी उत्पन्न होता है। गोया कि मनुष्य शरीर में ही।आग और पानी।साथ साथ रहते हैं। यह शरीर ही आनंद का स्रोत है। आनंद का।वाहन भी है। जीवन के कुरुक्षेत्र में। मनुष्य ही अर्जुन है और मनुष्य की कृष्ण है। कुरुक्षेत्र का एक विवरण यूं भी दिया जाता है कि योद्धा के रूप में श्री कृष्ण ही लड़ रहे थे और वही मर भी रहे थे।

ग्रीक आख्यान में यूलिसस विश्व विजय करके.घर लौटता है तो उसकी मां उससे कहती है कि अब उसे अपने विजित क्षेत्रों की यात्रा करना चाहिए आनंद की तलाश में क्योंकि युद्ध में विजय तो अहंकार मात्र की तुष्टि है। युद्ध एक हवन कुंड है जिसमें जीतने और हारने वाले दोनों का ही लहू घी की तरह स्वाहा किया जाता है।

ओम शांति ओम का अर्थ भी यही है कि वह शांति जो आपको पूरी तरह समझदार बने रहने पर मिलती है। शांति सीधे ज्ञान से जुड़ी है। ऋषिकेश मुखर्जी ने राजेश खन्ना को नायक लेकर एक फिल्म बनाई थी। जिसका नायक कैंसर का रोगी है। परंतु लोगों को हंसाते रहता है। जितना उसका रोग बढ़ता है उतना ही वह दूसरों को खुशी देता है। जरा गौर करें कि मुखर्जी साहब ने फिल्म का नाम आनंद रखा। मौत की गोद में खिलखिलाता पात्र। इसके अंत में पंक्तियां हैं -

..."मौत तू एक कविता है, मुझसे कविता का वादा है क्या मिलेगी मुझे, डूबती नब्ज़ों में जब दर्द को नींद आने लगे, और रुह को श्वास आने लगे, ज़र्द- सा चेहरा लिए जब चांद उफ़क पर पहुंचे, दिन अभी पानी में हो और रात किनारे पर, ना अंधेरा हो ना उजाला हो, मौत एक कविता है।....

ताराशंकर बंदोपाध्याय.के उपन्यास 'आरोग्य निकेतन' एक नाड़ी वैद्य आयुर्वेद नाड़ी विशेषज्ञ बीमारी का निदान केवल नाड़ी देखकर करते थे। अपके अंतिम समय में वह स्वयं अपनी नाड़ी देख कर कहते हैं- "मौत पैर में पायल बांध कर मेरी ओर आ रही है। मैं छन छन की आवाज सुन सकता हूं। अभी वह गांव के बाहर खड़ी है। मेड़ पर पैर रखकर मेरी ओर आ रही है अब उसकी पायल की आवाज तेज हो गई है। अब पायल की आवाज नहीं आ रही है....शायद वह मेरे पास खड़ी है।"

गौरतलब यह है कि सभी धर्मों और भाषाओं के।साहित्य में मृत्यु स्त्रीलिंग है उसका आकल्पन पुरुष के रूप में नहीं किया गया है। कहीं ऐसा तो नहीं कि मौत से प्रेम की बात की जा रही है... मृत्यु हमें समय और स्थान के बोध से मुक्त करती है। इस मायने में अंतरंगता की बात शामिल है। आनंद मस्तिष्क की एक दशा है इसे कायम रखना कठिन है। अपना काम इमानदारी से करना ही खुशी प्राप्त करने का एकमात्र तरीका है।

महाभारत के शांति पर्व में (25-28) श्लोक का अर्थ है कि दुनिया में दो तरह के लोग खुश हैं। एक वज्र मूर्ख, दूसरे परम ज्ञानी। इनको छोड़कर यहां सभी दुखी रहते हैं। ज्ञान सच्चे आनंद का परम स्रोत है। कोई आश्चर्य नहीं कि गौतम बुद्ध के प्रिय शिष्य का नाम आनंद था। गौतम ज्ञान के प्रतीक हैं। उनका प्रिय शिष्य आनंद। अतः।आनंद एवं ज्ञान शत्रु नहीं है। वरन् ज्ञान प्राप्त करना आनंद की खोज है। ओम शांति ओम का भी अर्थ यही है कि शांति जो ज्ञान प्राप्त करने के बाद प्राप्त होती है ज्ञान नामक पहाड़ का शिखर ही शांति कहलाता है। इसलिए दो देशों के बीच शांति वार्ता को शिखर शांति वार्ता कहा जाता है दरअसल आनंद का असली अर्थ मोक्ष की दशा को प्राप्त करना है। जहां आप सारे सांसारिक बंधनों से मुक्त हो जाते हैं।

कमजोर और भयभीत व्यक्ति समझौता करता है और युद्ध से बचना चाहता है। इस तरह का व्यक्ति हमेशा दुखी रहता है। समझौता दुख को जन्म देता है। युद्ध के मैदान में तमाम रक्तपात के बीच जो योद्धा अपने अचेतन को स्थिर रखता है। वह जीत भी जाता है और उसे ही असली आनंद मिलता है। आप मलाई में चक्र(मथना) चलाते हैं मक्खन निकालने के लिए। इसी तरह जीवन के संघर्ष में लगातार लगे रहना ही आनंद का स्रोत है। कायर हमेशा आनंद से वंचित रहता है। जीवन में मथे जाने के बाद ही आनंद का मक्खन प्राप्त होता है। हर क्षण हर साधारण काम में रुचि लेने से वह आनंद देता है।