आनंद बक्षी के पुत्र राकेश की पुस्तक / जयप्रकाश चौकसे

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आनंद बक्षी के पुत्र राकेश की पुस्तक
प्रकाशन तिथि :25 जुलाई 2015


आनंद बक्षी ने अपने कॅरिअर में अनगिनत फिल्मों के लिए गीत लिखे हैं और लक्ष्मी-प्यारे के साथ उनके स्वर्ण-युग में आनंद बक्षी उनके स्थायी गीतकार रहे। उनके सुपुत्र राकेश आनंद बक्षी अनेक वर्षों से फिल्मकार बनने के प्रयास में सफल नहीं हो पाए। अत: वह जानना चाहते थे फिल्मकारों काे अवसर कैसे मिलते हैं और उनकी पृष्ठभूमि कैसी रही, उनके माता-पिता क्या करते थे, उनका बचपन कैसे बीता। राकेश ने परिश्रम करके लंबे समय में 33 फिल्मकारों से लंबे साक्षात्कार लिए। उन्होंने सप्रयास उन फिल्मकारों से बात की जो फिल्म उद्योग से नहीं हैं। उन्होंने 33 में से 12 फिल्मकारों के लंबे साक्षात्कार को संपादित करके किताब लिखी और 'डायरेक्टर्स डायरी' के नाम से वह प्रकाशित हुई है।

इस किताब में फॉर्मूला फिल्म बनाने वाली फराह खान के साथ सार्थक सिनेमा रचने वाले इम्तियाज अली, आशुतोष गोवारिकर व अनुराग बसु शामिल हैं। फराह ने अनेक फिल्मकारों का मखौल उड़ाया है, उनके भाई साजिद खान की भी यह आदत है। अत: राकेश ने फराह के साक्षात्कार से बहुत-सी बातें हटा दी हैं। इम्तियाज अली ने स्वीकार किया कि उनके सपनों में भी फिल्मकार होना नहीं आता था और मुंबई आकर ही यह इच्छा जागी है। आशुतोष गोवारीकर का यह मानना है कि इस लंबे साक्षात्कार का यह लाभ उन्हें मिला कि वे स्वयं को भी बेहतर समझ पा रहे हैं।

विदेशों में फिल्मकार अपनी सृजन प्रक्रिया पर किताबें लिखे जाने में जी खोलकर मदद करते हैं परंतु हमारे यहां इस तरह की किताबों का प्रकाशन कम ही हुआ है। हमारे देश में तो सास अपनी बहू कोे अचार बनाने की विधि कभी बताती नहीं है, वह परिवार में अपने महत्व को कायम रखने के लिए यह गोपनीयता अपनाती है परंतु इसी प्रक्रिया में कई चीजों का लोप हो गया है। महिलाएं अपनी स्वादिष्ट डिश की रेसिपी प्राय: गुप्त ही रखती हैं। इसी तरह वैद्य भी अद्‌भूत ज्ञान अपने साथ ही ले गए। बिना सीमेंट और लोहे के बनाई अनेक इमारतें लंबे समय तक टिकी रहीं परंतु उनकी विधियों का लोप हो गया है।

फिल्मकार की सृजन प्रक्रिया का खुलासा अनेक युवा लोगों का पथ प्रशस्त कर सकता है और सबसे बड़ी बात यह है कि उसके उजागर करने की प्रक्रिया में आप स्वयं को भी समझ लेते हैं। अब विजयेंद्र प्रसाद एक तरफ तर्कहीन फंतासी 'बाहुबली' लिखते हैं तो 'बजरंगी भाईजान' जैसी भावना प्रधान फिल्म भी लिखते हैं। अत: उनकी सृजन प्रक्रिया लोगों की सहायता कर सकती है। यह तो तय है कि अमर चित्र-कथा और मायथोलॉजी उनकी सृजन प्रक्रिया के दो आधार स्तंभ हैं। बाहुबली और भाईजान दोनों में प्रेम कथाएं मध्यांतर के बाद लोप हो जाती हैं। चेतन आनंद के पास 'हकीकत' की कथा थी परंतु पटकथा उन्होंने शूटिंग के दरमियान ही लिखी। राज कपूर ने तोतापुरी महाराज और स्वामी रामकृष्ण परमहंस की बातचीत का एक टुकड़ा मात्र पढ़ा था और उन्होंने 'राम तेरी गंगा मैली' के गीत पहले रिकॉर्ड किए तथा पटकथा बाद में लिखी। उनकी सृजन प्रक्रिया में उनके मन में ध्वनियों का जन्म पहले होता था और वे इन ध्वनियों से प्रेरित होकर दृश्य लिखते थे। उनकी सृजन प्रक्रिया पर मेरी किताब वर्षों पूर्व राजकमल ने प्रकाशित की थी। देव आनंद अखबार की सुर्खियों से प्रेरित होकर पटकथा लिखते थे। हर व्यक्ति की सृजन प्रक्रिया अलग होती है।

सृजन प्रक्रिया को जानना मेरा प्रिय शगल रहा है और मैंने तो शाहजहां और ईसा आफंडी की सृजन प्रक्रिया भी जानने का प्रयास किया है। सृजन प्रक्रिया प्याज की तरह होती है, आप छिलके हटाते जाइए और अंत में सारे छिलके निकालने पर प्याज ही नहीं रहता परंतु प्याज के छिलके निकालने की प्रक्रिया में आजकी उंगलियों में प्याज की गंध आ जाती है और यह गंध ही प्याज का सार है, यही सृजन प्रक्रिया जानने के प्रयास में भी होता है। सूफी वाद भी इसी तरह एक गंध हैं। स्वयं धर्म का सार भी यही है परंतु हम तो छिलकों को लेकर लड़ते रहते है और उस गंध को खो देते हैं।