आभासी संसार का पात्र प्रभास / जयप्रकाश चौकसे

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आभासी संसार का पात्र प्रभास
प्रकाशन तिथि :11 अक्तूबर 2017


एसएस राजामौली की फिल्म 'बाहुबली' के नायक प्रभास ने घोषणा की है कि वे अपने व्यक्तिगत जीवन में भी अपने द्वारा अभिनीत पात्र जैसा आचरण करेंगे और अपनी विचार प्रक्रिया भी उसी तर्ज पर रचेंगे। यह भी संभव है कि विवाह भी वे अपनी सह-कलाकार के साथ करें। इसी तरह सफलता जंजीरों की शक्ल में मनुष्य को बांध लेती है। वैचारिक रेजीमेंटेशन की यह इंतिहा है। यह एक धारणा है कि आपके अभिनीत पात्र आपकी विचारधारा को प्रभावित करते हैं परंतु इस मापदंड पर तो खलनायक का अभिनय करने वाले कलाकारों का जीवन नर्क समान होना चाहिए। यह सभी जानते हैं कि हमारे सफलतम खलनायक प्राण सिकंद एक अत्यंत सज्जन व्यक्ति थे। उनकी दरियादिली चर्चित है। अमजद खान अर्थशास्त्र में एमए पास कर चुके थे और जूनियर कलाकारों की भरपूर आर्थिक सहायता करते थे। प्रेम चोपड़ा तो इतने सीधे और सरल व्यक्ति हैं कि हर कदम उठाने के पहले सोचते हैं कि कहीं कोई चींटी तो नहीं मर रही है।

यह भी सर्वविदित है कि एक दौर में लगातार त्रासदीपूर्ण फिल्मों में अभिनय के कारण दिलीप कुमार नैराश्य से पीड़ित हो गए थे और लंदन के डॉक्टर से उन्होंने परामर्श लिया था। बतौर इलाज उन्हें हास्य भूमिकाएं अभिनीत करने की सलाह दी गई। उन्होंने एक थैरेपी की तरह 'राम और श्याम' तथा 'कोहिनूर' में अभिनय एक किया। प्रभास काल्पनिक पात्र को जीते हुए स्वयं का अस्तित्व ही खो देने में गर्व महसूस कर रहे हैं। उन्होंने इसे ऐसा रूप दिया है जैसे भक्त प्रार्थना में लीन होकर स्वयं को पूरी तह विस्मृत कर देते हैं। इस तरह प्रभास कल्पना को यथार्थ से अधिक महत्व दे रहे हैं। इसे सफलता का रसायन ही मानना चाहिए। उनका अवचेतन पूरी तरह पात्र के अधिकार में चला गया है। यह संभव है कि अपने स्वप्न में भी वे स्वयं को बाहुबली के रूप में देखते हों। इस तरह वे अगर दिवंगत हुए तो वह बाहुबली की मौत होगी, मृत्यु नामक कटप्पा उन्हें मार देगा।

यह माना जाता है कि गुरुदत्त की फिल्म 'साहब, बीबी और गुलाम' में छोटी बहू का पात्र अभिनीत करने के बाद मीना कुमारी अधिक शराबनोशी करने लगीं। उनकी मृत्यु भी सिरोसिस ऑफ लीवर नामक बीमारी से हुई जो प्राय: रोज अधिक मात्रा में शराब पीने से होती है।कलाकार पात्र की त्वचा में प्रवेश करके प्रभावोत्पादक अभिनय करता है परंतु कभी-कभी पात्र कलाकार की त्वचा और अवचेतन में गहरे पैंठ जाते हैं। गुरु दत्त के मन में गहराई से पैंठ गया था 'प्यासा' का पात्र और साहिर लुधियानवी का गीत 'यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है?' फिल्म के अंतिम दृश्य में स्वयं का परिचय देते ही वह सफल एवं समृद्ध व्यक्ति हो जाता है परंतु वह अपने को ही नकार देता है, क्योंकि उसे दुनिया बहुत खोखली लगी। सफलता संचालित तमाशे का पात्र उसे नहीं बनना है। अंतिम दृश्य में वह गुलाबो के साथ किसी अनजान जगह की यात्रा पर रवाना हो जाता है। 'प्यासा' की गुलाबो एक तरह से 'देवदास' की चंद्रमुखी ही है। 'प्यासा' का विजय देवदास का ही एक रूप है। पारो का विवाह एक धनाढ्य जमींदार से होता है और गुरु दत्त ने अपनी फिल्म में उसे एक धनवान प्रकाशक बना दिया। देवदास के चुन्नीलाल 'प्यासा' में एक हंसोड़ तेल मालिश करने वाले के रूप में प्रस्तुत होते हैं, जिसे जॉनी वाकर ने अपने अभिनय से सजीव कर दिया। गुरु दत्त पादुकोण कर्नाटक में जन्मे थे परंतु उन पर बंगाली साहित्य का गहरा प्रभाव था। गीता दत्त से विवाह इस बांग्ला प्रभाव को बढ़ा देता है।

मनुष्य मन का अपना ही भूगोल होता है। यह गौरतलब है कि दक्षिण भारत में फिल्म सितारों को हमेशा पूजा गया है और उनमें से कुछ के मंदिर भी बनाए गए हैं। रजनीकांत के एक संकेत पर वहां के समाज में सैलाब आ सकता है। रजनीकांत के प्रशंसक संगठित हैं। उन्होंने हमेशा अपनी कमाई का एक बड़ा भाग साधनहीन वर्ग की सहायता में खर्च किया है। लोकप्रियता के भवन की आधारशिला ये सामाजिक कार्य हैं। अनेक छात्रों को पढ़ाया है, बीमारों को इलाज के लिए धन दिया है। रजनीकांत और कमल हासन का राजनीति में प्रवेश नए समीकरण रच सकता है। बाहुबली की सफलता के कारण ही रजनीकांत अपनी शंकर द्वारा निर्देशित '2.0' में भव् लागत लगा चुके हैं। खबर है कि फिल्म निर्माण पर चार सौ करोड़ की लागत लगी है। उन्हें अब प्रभास की चुनौती का भी सामना करना है। दक्षिण भारतीय मनोरंजन जगत में घमासान जारी है। सारा मामला यह है कि आभासी संसार यथार्थ पर भारी पड़ रहा है, फैंटसी को फैक्ट का स्थान दिया जा रहा है। कटु यथार्थ को नहीं बदल पाने पर उसे सिरे से खारिज किया जा रहा है।