आम आदमी का भव्य पूंजी निवेशक रूप / जयप्रकाश चौकसे

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आम आदमी का भव्य पूंजी निवेशक रूप
प्रकाशन तिथि : 03 मार्च 2014


गोरखपुर में स्थित गीता प्रेस ने धर्म की अनेक पुस्तकें कम दामों में जनता को उपलब्ध कराई हैं और दशकों से इनकी संस्था 'कल्याण' नामक पत्रिका निकालती रही है और इनके महाभारत खंड एक और दो अनेक घरों में शोभायमान है। इस तरह धार्मिक आख्यानों के अनुवाद आम आदमी तक पहुंचे। इसी गोरखपुर से सुब्रत राय ने अपना कॅरिअर शुरू किया, वे लेम्ब्रेटा नामक दुपहिया पर घर-घर जाकर नमकीन बेचते थे और वह दुपहिया वाहन कांच के कैबिन में उनके लखनऊ स्थित महल में आज भी मौजूद है, यह बात अलग है कि वर्षों से सुब्रत राय आयात की गई लक्जरी लिमोजीन में घूमते रहे है और फिल्म उद्योग में भी उन्होंने पूंजी निवेश करके फिल्में बनाई है तथा सहारा टेलीविजन के लिए फिल्म प्रसारण के अधिकार खरीदे है और उनकी बोनी कपूर द्वारा बनाई 'नो एंट्री' सबसे अधिक बार सहारा टेलीविजन पर दिखाई गई है।

इनके दो पुत्रों के विवाह पर 500 करोड़ खर्च हुए थे और शादी के उत्सव पर अमिताभ बच्चन और शाहरुख खान मौजूद थे। अमर सिंह सलाहकार के रूप में वर्षों तक जुड़े रहे और सुब्रत राय के जीवन के अमर सिंह काल खंड में वे फिल्म उद्योग में सबसे विराट शोमैन के रूप में उभरे। इनकी शोमैनशिप का ही यह आलम था कि इनकी लिमोजीन को एक बड़ा उद्योगपति चला रहा था और पिछली सीट पर ऐश्वर्य राय तथा सुब्रत राय बैठे थे। ऐसा एक चित्र प्रकाशित भी हुआ था।

बहरहाल सुब्रत राय ने आम आदमियों के छोटे-छोटे निवेश से एक साम्राज्य खड़ा कर लिया था। इनके पूंजी निवेशक आम आदमी थे जो पांच रुपए महीने जमा करते थे। बूंद-बूंद से इनके साम्राज्य का सागर भरा और आज वे कठघरे में है। उनसे 24 हजार करोड़ रुपए जमाकर्ताओं का लौटाने का आदेश विगत एक वर्ष से सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया है और सहारा की कार्यप्रणाली के विषय में सारी बातें अब सामने आ रही है परंतु यह खेल कुछ वैसा ही शुरू हुआ था जैसे राजकपूर की अब्बास द्वारा लिखी सर्वकालिक महान फिल्म 'श्री 420' में सेठ सोनाचंद धर्मानंद ईमानदारी का गोल्ड मेडल जीतकर इलाहाबाद से बम्बई आए आम आदमी को सामने रखकर 'सौ रुपए में मकान' का सपना बेचते हैं। दरअसल भारत का आम आदमी सपनों का सबसे बड़ा खरीदार हमेशा रहा है और सपनों के सौदागर हर बार नए मुखौटे के साथ सामने आते है और बार बार ठगे जाने के लिए आतुर आम आदमी मायाजाल में फंसता रहता है। यह विचारणीय है कि आम आदमी सपने क्यों खरीदता है। सपनों के नाम पर ठगे जाने के बाद भी वह पुन: ठगा जाने के लिए तैयार रहता है। तांबे के आभूषणों को स्वर्ण आभूषणों में बदलने का पुराना हथकंडा आज भी कारगर है। दरअसल हजारों सालों से आम आदमी निहत्था ही जीवन संग्राम में जुटा है और अन्याय आधारित व्यवस्था का शिकार रहा है। वह देखता है कि कुछ लोग वैभवशाली जीवन जी रहे हैं, उनके पास सब कुछ है और आम आदमी परिश्रम करता जा रहा है परंतु उसके पास कुछ नहीं है। यह जो भयावह आर्थिक खाई दिनोदिन गहरी होती जा रही है, इसी आर्थिक खाई के कारण आम आदमी सपनों का सबसे बड़ा खरीदार बन गया है। इसी ठगे जाने वाले आम आदमी ने कभी क्रांति नहीं की क्योंकि धर्म की अफीम उसे सारा समय गफलत में रखती है कि समृद्धि पिछले जन्म का पुण्य है। वह नहीं जानता कि उसकी सामूहिक पूंजी कितने विराट जलसा घर रचती है।

बहरहाल गीता प्रेस के महान प्रयास का सुब्रतराय के साम्राज्य या इस तरह के अनेको साम्राज्य का क्या अपरोक्ष संबंध है। इस जटिल सवाल पर सरल सी रोशनी श्री 420 के एक दृश्य में नजर आता है। चौपाटी पर सेठ सोनाचंद चुनावी भाषण झाड़ रहे हैं गोयाकि एक सपना बेच रहे है और सामने एक बेरोजगार युवा दंत मंजन बेच रहा है गोयाकि आम आदमी ईमानदारी की रोटी कमाने का प्रयास कर रहा है। उसकी मनोरंजक बातों से सेठ सोनाचंद का मजमा उखड़ जाता है तो वे अपने दंतविहीन चमचे को संकेत करते हैं। वह जाकर पूछता है कि इस दंत मंजन में हड्डी का चूरा तो नहीं है कि धरम भ्रष्ट हो जाए। दंत मंजन वाला सच बताता है कि इसमें तो चौपाटी की रेत और कोयला है। जनता उसकी पिटाई कर देती है गोयाकि सोनाचंद जैसे लोग धरम के नाम पर ईमानदार आय आदमी को प्रयास ही नहीं करने देते। यह खेल सदियों से चल रहा है।

धर्म के असली स्वरूप को छुपाकर उसके नाम पर आम आदमी पिसता रता है और सोनाचंद जैसे लोग पनपते रहते हैं। यह महज इत्तेफाक है कि गोरखपुर में गीता प्रेस है और वही से सुब्रतराय की यात्रा शुरू हुई है। गीता प्रेस में प्रकाशित किताबों का कैसे इस्तेमाल हो रहा है, यह वे भी नहीं जानते।