आयरन मैन / दीपक मशाल

Gadya Kosh से
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'तड़ाक।। तड़ाक।। तड़ाक।।' तीन-चार तमाचों की तेज़ आवाज़ और गालियों के साथ किसी के गर्जन को सुन बरात के बीच से नन्हे मुग्ध का ध्यान अचानक डांस से हटकर उस ओर चला गया। अपने दोनों गालों और कानों को अपने नन्हे हाथों और बाजुओं से ढंके उसका ही हमउम्र सा (करीब ९-१०साल का) एक मैला-कुचैला बच्चा सिहरा हुआ खड़ा था और हिचकियाँ ले रहा था। उस बच्चे के साथ ही खड़ा एक शक्तिशाली आदमी जो शायद लाइटहाउस का और उस बच्चे का मालिक लग रहा था, उसे लाल आँखों से घूरते हुए, अंट-शंट गालियाँ बके जा रहा था।

“हरामजादे। अब इसका पैसा क्या तेरा बाप भरेगा आके? जब टांगों में जान नहीं तो क्यों आ जाते हो मरने? गमला उठाएंगे ये स्साले।”

बीच-बीच में कभी पतली फंटी को उसकी फटे-चीथड़े हाफ पेंट से कहने भर को ढँकी कमज़ोर टांगों पर फटकारता जाता, तो कभी उसके बाल पकड़ जोर से भभोंच देता। उन्माद में डूबे किसी बाराती ने उस आदमी को रोकने की कोशिश नहींकी।

लोगों की बातों से पता चला उस मजदूर बच्चे के हाथ से लाइट हाउस के गमले का एक ट्यूबलाइट टूट गया था। वो भी शायद उसकी गलती नहीं थी बल्कि किसी बाराती के पैर में तार उलझ गया और अचानक तार में पैदा हुए खिंचाव से वो बेचारा गमला सम्हाल ना पाया।

उसकी निर्मम तरीके से पिटाई देख मुग्ध के मुँह से भी सिसकारी निकल गई। चलते-चलते, हँसते-गाते बारात लड़की वालों के दरवाजे पर पहुँच गई पर अब उसका अपने प्यारे चाचू की शादी में भी डांस करने का या कुछ खाने-पीने का मन नहीं कर रहा था। वो इसी सोच में उलझा था कि उस ट्यूबलाइट में ऐसा क्या था जो उस बच्चे को उसकी वजह से इतनी मार और गालियाँ खानी पडीं। जबकि उसकी खुद की तो तब भी इतनी डांट नहीं पड़ी थी जब उससे गलती से टी।वी। खराब हो गया था और पापा को फिर नया टेलीविजन ही खरीदना पड़ा था। कुछ भी तो नहीं कहा गया था उससे सिवाय इतने प्यार से समझाने के कि- “मुग्ध बेटा, आगे से अगर इसका कोई फंक्शन समझ ना आये तो किसी से पूछ लिया करना”

“जरूर कुछ और बात रही होगी। शायद वो ट्यूब लाइट बहुत ही महंगा हो।। लेकिन फिर इतनी मार खा के भी वो रोया क्यों नहीं?? हम्म्म्म समझा जरूर वो बच्चा आयरनमैन होगा”