आरोप / अन्तरा करवड़े

Gadya Kosh से
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"देखो दिनेश! ये इस तरह से दिन भर घर में तुम्हारे दोस्तों का जमघट मुझे पसंद नहीं है। पढ़ाई पूरी कर चुके हो तो काम काज शुरू करो कुछ। और ये तो तुम जानते ही हो कि इनके बीच सर उठाकर क्यों रह पाते हो तुम!"


बाबूजी का फिर वही राग सुनकर दिनेश का मुँह कसैला हो आया। अब फिर वही दो साल पहले का आरोप उसपर मढ़ा जाएगा। उसने बाबूजी की दराज में से पाँच हजार रूपये लिये थे। अपने मित्र को उसकी माँ की बीमारी में देने के लिये। लेकिन रंगे हाथों पकड़ा गया था।


तब बाबूजी ने उसे घण्टों की डाँट फटकार और समझाईश के बाद माफ किया था। तब से आज तक¸ हर हफ्ते पन्द्रह दिन में इस घटना का जिक्र उसके सामने कर ही देते थे।


चूँकि अब दिनेश बड़ा हो गया था। इन आरोपों से तिलमिला उठता था। आज भी इस बिना वजह की असमय डाँट उसे गुस्सा तो दिला दिया था लेकिन वह गम खा गया। लेकिन बाबूजी कहते ही चले।


"कदम बहकने लगे थे तुम्हारे। याद है ना सब कुछ? मैं माफ नहीं करता तुम्हें और पुलिस को तलाशी में तुमसे रूपये मिल जाते तो सोचो क्या अंजाम होता था!"


"जो भी होता बड़ा अच्छा अंजाम होता बाबूजी!" अब दिनेश फट ही पड़ा था।


"आपने रूपये चुराते हुए मुझे रंगे हाथ पकड़ा था ना? अच्छा होता यदि आप मुझे पुलिस के हवाले ही कर देते। अरे पाँच हजार चुराने की सजा क्या होती? ज्यादा से ज्यादा साल भर ना! लेकिन आप जो मुझे हर किसी बात पर सलाखों के पीछे ड़ाल देते है¸ उससे तो लाख गुना अच्छी होती। आप यही चाहते है ना कि आपकी दी हुई इस माफी को मैं जिंदगी भर नहीं भूलूँ? लेकिन आपकी यही इच्छा आपका कद और कम कर देती है। काश कि इस एक गलती की सजा मैं काट आया करता। आप यूँ वक्त बेवक्त मुझे कटघरे में न खड़े करते।"


दिनेश धड़ाक से दरवाजा खोलकर बाहर निकल गया। बाबूजी मुँह फाड़े उसकी बातें सुनते रहे।


तभी पीछे से माँ आ निकली। बाबूजी को जैसे तिनके का सहारा मिला हो।


"देख रही हो भाग्यवान! हमारे सपूत के लक्षण! कैसे बातें बनाने..."

"कोई गलत बात नहीं कही उसने।" माँ ने बात काटते हुए कहा।


"लड़का बड़ा हो गया है। कद में बराबर आने लगा है। आप चाहते है कि उसे एक गलती के लिये माफ करके आपने कोई किला फतह कर लिया है जिसका बोझा वह बेचारा जिंदगी भर उठाए घूमता रहे?" माँ का चेहरा तमतमा उठा।


"उसकी यही गलती हुई ना कि वो पकड़ा गया? गनीमत समझिये कि आपके पिताजी नहीं जानते कि आपने उनके दस्तखत की नकल करके कितनी ही बार अपनी गाड़ी खींची है। बस पकड़ा गया ही चोर नहीं होता।"


और बाबूजी पहली बार पकड़े गये थे।