आशा की लौ / रेखा राजवंशी

Gadya Kosh से
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मेलबर्न का यह मंदिर इतना भी बड़ा नहीं है कि यहाँ कोई दिखे ही नहीं। दोपहर से कब शाम हो गई बैठे-बैठे, अब तक मनु उन्हें लेने नहीं आया था। पिचहत्तर साल के वर्मा जी अपनी सत्तर वर्षीय पत्नी विमला के साथ बेटे का इंतज़ार करते करते थकने लगे थे। अब जैसे-जैसे सूरज बादलों के आगोश में बंध जाने के लिए बेचैन हो रहा था वैसे-वैसे वर्मा जी की के चेहरे पर चिंता के बादल घिरते जा रहे थे।

जब बीस साल पहले यहाँ आए थे तो कितने खुश थे। मनु उनका अकेला पुत्र था, पति पत्नी अकेले ही रहा करते थे। मनु को अच्छे कॉलेज में पढ़ाया लिखाया, अपनी गाढ़ी कमाई सब उस पर लुटा दी।

एम बी ए करने के बाद वह ऑस्ट्रेलिया आ गया और जल्दी ही उसका फ़ोन आया -

'माँ, बाबा मुझे जॉब मिल गई। एक अच्छी जॉब, अब आप दोनों को जल्दी बुला लूंगा।'

'भगवान् का लाख लाख शुकर है, आज ही मंदिर जाकर प्रसाद चढ़ाती हूँ।' माँ के स्वर में ख़ुशी की घंटियाँ बज रहीं थीं।

वर्मा जी एक छोटी-सी कम्पनी में क्लर्क थे, बहुत सीधे और शरीफ़ थे। पूरी ज़िन्दगी घर, परिवार और काम में उलझे रहे। दुनियादारी का तो उन्हें कुछ ज्ञान ही नहीं था, चंट चालाकी उनके खून में नहीं थी। ईमानदारी की कमाई में किसी तरह पूरा पड़ जाता था। कुछ हो न हो बच्चों की पढ़ाई में कभी कमी न होने दी। दोनों बच्चे अच्छे निकले, मनु को स्कॉलरशिप मिल गई और आगे की पढ़ाई आसानी से पूरी हो गई।

उनकी पत्नी विमला एक आठवीं पास, धर्मभीरु महिला थीं। कभी घर, बाज़ार और मंदिर के अलावा कुछ किया ही नहीं। मनु ही उनकी उम्मीद का सहारा था। दो कमरों के फ़्लैट में रिटायरमेंट के पैसे से उनका गुज़ारा तो हो ही रहा था। बस बच्चे सुखी रहें यही कामना थी।

ऐसे में मनु का फ़ोन आया तो पति पत्नी तुरंत मंदिर जाकर प्रसाद चढ़ाया और बेटे की रक्षा की प्रार्थना की।

अगले महीने से लगातार मनु के पैसे आने लगे। वर्मा दम्पति की ख़ुशी का ठिकाना न रहा।

'मनु हमें पैसे मत भेजो, हम तो ठीक ही हैं, गुज़ारा हो रहा है न। पैसे बचाओ और छोटा-मोटा मकान खरीद लो। फिर तुम्हारी शादी भी करनी है न।' विमला बोलीं।

मनु ने रुंधे गले से कहा, 'माँ, हमेशा आप लोग ही मेरे लिए करते रहे हैं अब मेरी बारी आई तो मना कर रहे हो। मेरी भी कुछ हसरत हैं न, मुझे भी पूरी करने दो।‘

मनु अबकी बार छुट्टियों में जब घर आया, तो घर का सोफा, टी वी, फ्रिज सब बदल दिया। घर में कई साल बाद सफेदी भी हुई।

माँ ने मंदिर में जागरण कराया और सब रिश्तेदारों को खाना खिलाया। मनु को देख वह सिहाते नहीं थकती थीं, जब तक वह रहा, रोज़ उसकी नज़र उतारतीं।

दो साल बाद मनु ने ख़बर दी कि उसे एक लड़की पसंद आ गई है।

'क्या कोई गोरी है?' माँ ने सकुचाते हुए पूछा।

'अरे गोरी भी है तो क्या हुआ, हमारे बेटे की पसंद जो भी हो, अच्छी ही होगी' मि0 वर्मा पीछे से बोले।

मनु हल्के से हंसा और बोला, 'नहीं माँ, गुजरात की है, तुम्हारी तरह विशुद्ध शाकाहारी है। मुझे पता है तुम्हे कृति पसंद आएगी। फोटो भेजता हूँ देखो।'

विमला और वर्मा जी ने फोटो देखी तो फूले नहीं समाए। 'फोटो तो बहुत अच्छी है मनु, पर क्या करती है?' वर्मा जी ने पूछा।

'पापा, मेरी कम्पनी में ही है, अभी ज्वाइन किया है। बस आप लोग जल्दी यहाँ आएँ और उसे मिलें। अगर आप लोगों को पसंद होगी तो ही मैं शादी करूँगा।'

विमला का मन मयूर नाच उठा, बहू की फोटो देख मन्त्र मुग्ध हुई जाती थीं। उससे ज़्यादा गर्व था अपने बेटे पर जो इतना पढ़ लिख कर भी उनसे ही अनुमति मांग रहा है।

मनु ने शीघ्र ही ऑस्ट्रेलिया की टिकट बुक कर दीं और ज़िन्दगी में पहली बार वर्मा दम्पति प्लेन में बैठे।

मनु अपनी नई कार में जब उन्हें लेने आया तो उनकी ख़ुशी का कोई अंत न था। मनु ने लोन लेकर तीन कमरों का घर भी खरीद लिया था। शीघ्र ही कृति भी आ गई और आते ही किचन में लग गई।

'बेटी अब तुम बैठो, मैं हूँ न, खाना मैं बनाती हूँ' विमला बोलीं।

कृति ने उन्हें पकड़ कर बड़े प्यार से सोफे पर ही बैठा दिया, 'थक के आईं हैं माँ, आज मेरे हाथ का खाना ही खाइये। ' कृति हंसकर बोली।

कितनी सुन्दर और पढ़ी लिखी है बहू। उतनी ही विनीत भी है। ऐसी बहुएँ क़िस्मत वालों को ही मिलती हैं। विमला रोज़ बेटे की पसंद के व्यंजन बनाती। वर्मा जी टी वी पर सीरियल देखते, दोनों खुश थे। अकेले कभी बाहर निकले नहीं थे, सो मनु ही ऑफिस से आकर कभी मंदिर तो कभी बाज़ार ले जाता। दो महीने का प्रवास कब बीता, पता ही नहीं चला।

शीघ्र ही कृति के माता-पिता से मिलना हुआ और कुछ महीनों में शादी हो गई। सब लोग खुश थे, भगवान ने उनकी सारी मुरादें पूरी कीं।

बेटे बहू के जाने के बाद वे अपने छोटे से संसार में रम गए। हर हफ्ते बेटे बहू से बात हो जाती। जल्द सूचना मिली की बहू प्रेग्नेंट है और वह भी जुड़वां बच्चों के साथ।

'माँ, पापा तुमको आना ही पड़ेगा, मैं तो अकेला ये सब कर ही नहीं सकता। कृति की माँ बीमार रहती हैं और उसके पिता उनको छोड़ कर नहीं आ सकते। ' विमला समझ गईं कि मनु घबरा रहा है। शीघ्र ही फ्लाइट पकड़ कर ऑस्ट्रेलिया जा पहुँची।

बेटे की इस ख़ुशी से जैसे उनके मन की बगिया में कोंपल उग आए थे । बचपन की लोरियाँ और गीत गूंजने लगे थे। ढेर सारा ऊन लाकर खाली समय में तरह तरह के स्वेटर बुनने लगीं। कृति की पसंद का खाना बनने लगा।

शीघ्र ही दो बच्चों की किलकारी से घर गूंजने लगा। दोनों में उन्हें छोटा मनु दिखाई देता था। दोनों कई बार रात भर बच्चों को लेकर बैठे रहते जिससे बेटे, बहू को आराम मिल सके। जब भारत वापस आने का समय या तो नन्हे मुन्ने कृष और मानित को छोड़कर जाने का मन नहीं करता था। आखिरी दिन मनु और कृति ने वर्मा जी को एक घड़ी और माँ को एक सोने की चेन दी।

'माँ पापा, आप दोनों की वज़ह से सब कुछ कितना अच्छा हो गया, मैं आपका एहसान कैसे भूल सकता हूँ।' दोनों के पैर छूते हुए मनु बोला तो विमला की आँखों में आंसू भर आए।

'अपना ध्यान रखना और बच्चों का भी। ज़रुरत पड़े तो फिर हमें बुला लेना' कहते हुए विमला ने हज़ारों आशीष दे डाले। घर जाकर कई दिन तक मन नहीं लगा। मनु अक्सर फ़ोन करता और बच्चों बातें बताता।

एक साल बीता ही था कि मनु का फ़ोन आया 'माँ, पापा इस बार मैं आ रहा हूँ। आप दोनों वहाँ अकेले हैं, मुझे चिंता लगी रहती है। इस बार घर बार बेच कर बस यहीं आ जाइये। आपका पी आर अप्लाई कर दिया है।'

'मनु हमारी छोड़, ये बता कृष और मनी कैसे हैं।' विमला ने प्यार से झिड़का।

'सब ठीक हैं माँ। हम सब आपको मिस करते हैं। इस बार मैं लम्बी छुट्टी लेकर आऊँगा जिससे आपके सारे काम करवा कर आपको हमेशा के लिए साथ ही ले आऊँ। वैसे भी अब कृति को काम पर जाना होगा, तो बच्चों को दादा दादी की ज़रुरत है।' लगा मनु कुछ चिंतित है बच्चों को लेकर।

जाने कैसे जल्दी ही समय बीत गया। मनु आया, कब तिनका तिनका जोड़ी हुई चीज़ों का निपटारा किया। मकान बेचा और माँ पापा को साथ लेकर ऑस्ट्रेलिया आने की तयारी करने लगा। वर्मा जी समझ नहीं पा रहे थे। जो दो चार मित्र थे उन्हें छोड़ कर जाने से ज़्यादा दुःख था इस दो कमरों के मकान के बिकने का जिसमे उनकी यादें जुडी हुईं थीं।

ऑस्ट्रेलिया में बीटा बहू नौकरी में व्यस्त रहने लगे। कृष और मनी की सारी ज़िम्मेदारी वर्मा दम्पति ने ले ली। जल्द ही बच्चे बड़े होने लगे, वर्मा जी उनको पंचतंत्र की कहानियाँ सुनाते, विमला लोरी सुना कर सुलाते न थकती थीं। जल्द ही साल बीतने लगे, बच्चे अब बड़े होने लगे। घर का लोन काफ़ी था तो मकान बेच कर मिले रूपये भी मनु के बहुत मना करने के बाद भी उसे दे दिए। विमला महसूस करतीं कि घर में अब माहौल बदल रहा था। मनु और कृति में खींचा-तानी बढ़ रही थी। बच्चे अब हाई स्कूल में थे। बड़े घर की ज़रूरत थी। इसी के चलते नया घर खरीदा गया। विमला और वर्मा जी बूढ़े हो रहे थे और उतना काम भी अब घर में नहीं था।

और कई दिन बाद मनु उन्हें मंदिर लाया हैं। उनके लिए यह इलाक़ा नया है। वह यही कह कर गया था कि अभी वापस आएगा और उन्हें ले जाएगा। दो... तीन... चार जाने कैसे इतने घंटे बीत गए और मनु नहीं लौटा।

मंदिर की संध्या आरती भी हो गई, दरवाज़े बंद करने जब पंडित जी आए तो उनके सब्र का बाँध टूट गया। मन घबरा रहा था कि कहीं मनु का एक्सीडेंट न हो गया हो। न तो नए घर का पता था न मनु कृति का नया मोबाइल। फ़ोन किसे करते और जाते भी कहाँ।

तरस खाकर उस रात पंडित जी ने अपने घर में आश्रय दिया। अगले दिन भी जब मनु की कुछ ख़बर न मिली तो पुजारी जी ने सीनियर वेलफेयर की सहायता लेकर उन्हें एक रिटायरमेंट विलेज में आश्रय दिलवाया। मनु का इंतज़ार करते-करते वर्मा दम्पति की आँखें पथरा गईं। भारत में अपना छोटा-सा घर याद आने लगा, मन किया कि अगले ही क्षण फ्लाइट पकड़ कर इंडिया चले जाएँ। पर न शरीर में जान थी न वहाँ रहने को घर। जाते भी तो किसके भरोसे जाते।

कुछ दिनों बाद पुलिस ने बताया कि उनका लाड़ला मनु अब उन्हें साथ नहीं रखना चाहता। वे लोग दूसरे देश जा रहे हैं। कानों को विश्वास नहीं होता था। सुनते ही वर्मा जी को दिल का दौरा पड़ा और अस्पताल में उनका इलाज़ चलता रहा। जब वे वापस घर आए तो विमला के गले लग रोते रहे, फिर ज़ोर से चिल्लाए, 'जीते जी मर गया तुम्हारा मनु, भूल जाओ कि तुम्हारा कोई बेटा भी था। बता ही देता कि हम अब बोझ बन गए हैं। अपने आप ही कुछ कर लेते।'वर्मा जी तन मन से पूरी तरह टूट गए थे। विमला का मन अब भी नहीं मानता था कि उनका इकलौता, लाड़ला मनु उन्हें अकेला छोड़ सकता है, मरने के लिए। साल भर से ज़्यादा वर्मा जी न जी पाए। बेटे से नाराज़गी दिल में लिए लिए ही ऊपर चले गए।

विमला अब रिटायरमेंट विलेज में अकेली ही रहती हैं। कभी मन भारत की गलियों में मंडराता है कभी मनु, कृष और मनी की बातें सोचकर आकुल हो जाता है। आधे से ज़्यादा वक़्त अतीत की गलियों में घूमती हैं। जब वर्तमान में होती हैं तो उनकी आँखों में आज भी आशा की एक लौ जल रही होती है कि एक दिन मनु उनसे मिलने ज़रूर आएगा।