आश्चर्य / शुभम् श्रीवास्तव

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सचिन 12 साल का बच्चा था 6वी कक्षा का विद्यार्थी। कद कुछ 4 फुट 8 इंच सुंदर बिल्कुल दूध की तरह गोरा। नैन-नक्श जो देखले वह हैरत मैं पढ़ जाए. अक्सर उसकी माँ अनिता को लोग कहते थे बड़ा होगा तो कई लड़कियाँ इसकी गर्लफ्रैंड होंगी ज़रा इसका खास ध्यान रखना इसकी परवरिश पर। अनिता भी फूले नहीं समाती थी इतनी तारीफें सुनकर। सचिन की ज़िंदगी सिर्फ़ एक दिन ही खराब होती थी वह भी परीक्षा के निष्कर्ष के दिन, उसदिन खरी-खोटी सुनाई जाती थी। मध्य वर्षिय परीक्षा हुई, उसके 52 प्रतिशत ही आए. बस फिर क्या खरी खोटी सुनानी चालू हो गयी।

अनिता-'यह लड़का कभी नहीं सुधरेगा–सारा दिन बस क्रिकेट खिलालो बैठकर और नंबर इतने कम की पूछो मत।'

सचिन-'माँ क्रिकेट खड़े होकर खेलते है और कुल अंक पहले से तो सही है पिछली बार 48 ही थे।'

अनिता-'4 प्रतिशत ज़्यादा लाकर कौनसा तूने झंडे गाड़ दिए. कम से कम 70 तो ले आओ उधर रवीना दीदी का लड़का कभी भी 80 से कम नहीं लाया है।'

सचिन-'मुझसे नहीं होती पढ़ाई माथे में दर्द हो जाता है गणित को देखकर।'

'ओ! हो! कितना आवाज़ करती हो पूरी घर के बाहर तक आ रही है।' दरवाज़े पर खड़ी शर्मा आँटी ने बोला।

अनिता-'तो क्या करूँ इसका मैं पढ़ेगा नहीं तो कमाएगा क्या और खाएगा क्या?'

शर्मा जी-'तो इसे भेज दो ना सुलेखा के घर। अच्छा पढ़ाती है। मेरे बेटे के 65 से 80 पहुँचाने में उसी का हाथ है।'

अगले ही हफ्ते से सुलेखा मैम के पास भेज दिया गया। सुलेखा विज्ञान की शिक्षिका थी उसे लगभग हर विषय के बारे में ज्ञात था। वह अकेले पढ़ाने में विश्वास रखती थी ताकि बच्चो को अपना पूरा समय दे सके और इसके पैसे भी बहुत मिलते थे 5 से लेकर 9 हज़ार तक बच्चे पर कितनी मेहनत करनी है उस हिसाब से मिलते थे।

सुलेखा ढलते उम्र की प्रौढ़ा थी 36 कि होली थी पर उसने शादी नहीं की ताकि वह खुशी से गुज़र बसर कर ले अकेले।

सचिन को पढ़ाने के लिए उसने पहले दफे में ही हाँ कर दिया। उसने उसे पढ़ाना शुरू किया। उसके मन में अजीब-सा भाव उत्पन्न होने लगा। सचिन था ही इतना सुंदर। पहले हफ़्ते तो उसने ध्यान हटाने की कोशिश की लेकिन उसके समझ नहीं आई. वह उससे नज़रे भी नहीं मिला पा रहीं थी पढ़ाते वक़्त उसका मन भटकने लगा उसका।

एक दिन उसने सचिन से बोला'सुनो, खड़े हों।'

सचिन विस्मय से-'जी मैम'

सुलेखा-'तुम्हारे अंक इतने कम क्यों आए है, पूरे 8 अंक कम है 20 में से, नंगे हो और दूर दीवार के पास जाकर खड़े हो।'

धीरे-धीरे सचिन पर उसकी प्रताड़ना बढ़ती गई. जिसे लफ्ज़ो में बयान भी नहीं किया जा सके. उसने सचिन के दिमाग में भर दिया कि इससे लोगो को ख़ुशी मिलती है जो वह कर रही है उसके साथ। चार महीने हो गए किसी को कुछ भनक भी नहीं लगी। लेकिन बुद्धा ने कहा है कि-'सच एक ना एक दिन सबके सामने आ कर रहता है।'

रविवार का दिन था। शर्मा जी सब्ज़ी लेने बाज़ार गई थी। वह उसकी बेटी दीपा के संग खेल रहा था जो सिर्फ़ नौ बरस की थी। सचिन का मन घूमा उसने दीपा के कंधे पर हाथ रखा। दीपा जो भले ही नौ वर्ष की थी इस ग़लत टच से भली भांति वाकिफ़ थी। उसने इसका विरोध किया और रोना शुरू कर दिया। समय पर शर्मा जी भागते हुए घर आई तो उन्होंने दोनों को आपत्तिजनक हालत में पाया। बस फिर होना क्या था सीधे रिपोर्ट दर्ज हुई. पूछताछ हुई तो पाया कि सचिन खुद भी पीड़ित है उसकी मानसिकता को बदलने में उसके टीचर का हाथ है।

खबरें अखबार में आईं तो लोग हँस-हँसकर पागल हो गए. कुछ ने चिंता का विषय माना किसी ने कहा घनघोर कलयुग है। केस चला लंबे अरसे तक। जज को भी यक़ीन नहीं हुआ। पर असल दिक्कत यहाँ शुरू हुईं की यह क़ानून में लिखा है कि एक लड़का ही एक लड़की के संग दुष्कर्म कर सकता है। एक लड़की ने अगर किया तो उसकी कोई ठोस सजा निर्धारित नहीं है। कोर्ट के हिसाब से यह रेयर केस था सुलेखा को 7 साल की सजा मिली और सचिन को बाल सुधार गृह भेजा गया। उसकी वीकृत मानसिकता का दोषी सुलेखा को माना गया।

आज भी कोर्ट कई बार जेंडर-न्यूट्रल की अर्जी को खारिज कर चुकी है। यह व्यवधान बनाए गए कि 12 वर्ष की आयु से कम के किसी के साथ दुष्कर्म हुआ तो उसे पोस्को एक्ट के अंतर्गत सजा ए मौत मिलेगी ताकि भविष्य में ऐसा कोई कार्य ना कर सके.