आसमान से टूटे तारे की दास्तां / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
आसमान से टूटे तारे की दास्तां
प्रकाशन तिथि : 31 दिसम्बर 2021


एक फिल्मकार राजेश खन्ना बायोपिक बनाने का विचार कर रहा है। अभी तक उसने अक्षय कुमार, ट्विंकल खन्ना और डिंपल कपाड़िया से इजाजत नहीं ली है। आभास होता है कि उसे आज्ञा नहीं मिलेगी। ज्ञातव्य है कि राजेश खन्ना गोद ली हुई संतान थे और उनको गोद लेने वाले इतने धनवान थे कि अभिनेता बनने के लिए संघर्ष करते समय वे नए मॉडल की स्पोर्ट्स कार में निर्माता से मिलने आते थे। उन्हें पहला अवसर चेतन आनंद ने ‘आखिरी खत’ नामक फिल्म में दिया था। राजेश खन्ना को शक्ति सामंत ने ‘आराधना’ में अवसर दिया। सचिन देव बर्मन का फिल्म की सफलता में बड़ा योगदान रहा। इसी फिल्म से राहुल देव बर्मन अपने पिता के शिष्य और हमराही हो गए।

राजेश खन्ना की निकटतम मित्र पत्रकार देवयानी चौबल थीं। उन दिनों अंजू महेंद्रू राजेश खन्ना की प्रमुख सलाहकार थीं और दोनों एक दूसरे को प्रेम करने लगे थे। राजेश खन्ना अभिनय आकाश पर धूमकेतु की तरह आए और 4 वर्ष में ही उनका जादू समाप्त भी हो गया। सन 1969 से 1973 तक राजेश खन्ना की सितारा हैसियत बनी रही। लेखक सलीम-जावेद और अमिताभ बच्चन ने आक्रोश की छवि को इतना लोकप्रिय कर दिया कि सिनेमाघर का रजतपट रक्तरंजित हो गया। ‘जंजीर’ से ‘शक्ति’ तक सलीम-जावेद सफल फिल्में लिखते रहें। 1975 में ‘शोले’ प्रदर्शित हुई और 3 सप्ताह तक दर्शक अधिक संख्या में नहीं आए। परंतु चौथे सप्ताह में लंदन से मल्टीचैनल रिकॉर्डिंग के प्रिंट के लगते ही फिल्म ने इतनी सफलता अर्जित की कि सिनेमा का इतिहास ‘शोले’ के पहले और ‘शोले’ के बाद के दो हिस्सों में बांटा जा सकता है।

बहरहाल राजेश खन्ना सुबह के 9 बजे वाली शिफ्ट में दोपहर 1 बजे पहुंचते थे। देर से आने को सितारा हैसियत का प्रतीक मान लिया गया। राजेश खन्ना के साथ चमचों की टोली चलती थी। यहां तक कि वे डिंपल से विवाह के बाद अपने हनीमून पर भी दर्जनभर चमचे साथ लेकर गए थे। एक दौर ऐसा आया कि भीड़ से घिरे रहने वाले राजेश खन्ना इतना तन्हा हो गए कि शाम को ही अपने बंगले की सारी रोशनियां बंद कर देते थे। सितारा हैसियत से चौंधियाई आंखें अंधेरे में साफ देख लेती हैं। राजेश खन्ना की जिंदगी में दोनों एक्सट्रीम दौर आए।

राजेश खन्ना ने कभी किसी फिल्मकार से पैसे नहीं मांगे। फिल्मकार ने अपने बजट के आधार पर जो दिया सहर्ष ले लिया। ऋषिकेश मुखर्जी ने राजेश खन्ना के साथ ‘बावर्ची’ की और अमिताभ बच्चन के साथ ‘अभिमान’ इत्यादि कुछ फिल्में कीं। ऋषिकेश मुखर्जी ने ही ‘आनंद’ और ‘नमक हराम’ बनाई जिसमें राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन दोनों ने अभिनय किया। राजेश खन्ना बहुत दरियादिल व्यक्ति थे। एक शाम खाकसार अपने विवाह की वर्षगांठ मना कर लौट रहे थे कि राजेश खन्ना किसी मेहमान को छोड़ने आए। हम पति-पत्नी को उन्होंने विवाह की वर्षगांठ के अवसर पर एक अत्यंत महंगी भेंट भी दी।

अपनी असफलता के दौर में राजेश खन्ना चिड़चिड़े हो गए थे। सारा क्रोध डिंपल पर निकलता था। अतः एक रात डिंपल अपनी बेटियों के साथ घर छोड़कर चली गई। वह इतनी आत्मसम्मानी थी कि उसने किसी से मदद नहीं ली। उसे फैशन कैंडल बनाना आता था। उन्होंने उसे ही एक बड़े व्यवसाय में बदल दिया।

एक दौर में कमाल अमरोही के निर्देशन में उन्होंने राजेश खन्ना अभिनीत फिल्म ‘मजनून’ प्रारंभ की थी। परंतु फिल्म पूरी नहीं हो पाई। राजेश खन्ना की लोकप्रियता का दौर में कहा जाता था कि ‘ऊपर आका और नीचे काका’। राजेश खन्ना का पुकारता नाम काका ही था। राजेश खन्ना को चौथी स्टेज का कैंसर हुआ। तब डिंपल उनकी सेवा के लिए आई और उनकी आखरी सांस तक साथ रहीं। जब राजेश खन्ना की शव यात्रा जा रही थी, तब दूर कहीं लाउड स्पीकर बज रहा था, ‘जिंदगी एक सफर है सुहाना, यहां कल क्या हो किसने जाना...।’