आसरो / पुष्पलता कश्यप / कथेसर

Gadya Kosh से
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मुखपृष्ठ  » पत्रिकाओं की सूची  » पत्रिका: कथेसर  » अंक: अक्टूबर-दिसम्बर 2012  

रमेश रो सलेक्शन लेक्चररशिप तांई हुयगो। बो दिल्ली बुवो ग्यो। बाबूजी विसेसरूप सूं राजी हुया कै अेन वां रै रिटायरमेंट पछै ओ हुय रैयो हो। जावतां ई रमेश भइया रो कागद मिळ्यो। वीं रै पछै चुप्पी। छह महीनां पछै वीं हजार रिपियां रो ड्राफ्ट मेल्यो। सागै पाती ई मिळी। जकै पछै जाबक ई चुप्पी। ओ चुप बाबूजी नै साव तोड़ दिया।

संजीव बी.ए. रै छेहलै बरस में दोय सालां सूं फेल हुय रैयो है अर मन्नू एम.ए. प्रिवियस में है। म्हैं अपणै मां-बापू री सै सूं मोटी बायली, जिण अट्ठाईस पतझड़ पार कर लिया, लारला नव बरसां सूं पी.डब्ल्यू.डी में बाबू री नौकरी में हूं। लगैटगै समूदी पगार (मामूली-सो हाथ खरच खुद राखनै) मां नै सूंप देवूं। बाबूजी नै थोड़ी-सी पेंसन मिळै।

लगैटगै अेक बरस री छेती सूं रमेश रो कागद ओरूं मिळ्यो। छोटो-सो, औपचारिक। सूचना मात्र कैवूं तो सावळ हुसी। वो अपणै कॉलेज री ई अेक लेक्चरार सूं ब्याव कर रैयो है। म्हां लोगां नै दिल्ली नूंत्या है। बाबूजी रै मन नै इणसूं ऊंडो सदमो पूगो। वां री सेहत गिर रैयी ही। छाती में कफ री सिकायत है। वै खांसता बीड़ी सिलगाई, 'रमेश तो बेटो क्यांरो, लारलै भौ रो कोई बदळो है, आपणो बेड़ो गरक कर नाख्यो।’

म्हैं ऊभी हुयगी, अपणै कमरै में बावड़ आयी अर अेक फालतू-सी पत्रिका उठायनै पाना उलटण-पलटण ढूकी। ऑफिस जावण में बत्ती टेम नीं है, इणसूं उठ परी नै खावण बेई रसोवड़ै में माताजी कोडै पूग जावूं।

बस स्टैंड माथै पैलां सुनीता सागै पूगती। वा अबै ब्याव करनै आपरै सायबजी रै घरै बुवी ग्यी। अणमणै वातावरण रै बिचाळै बैवती ऑफिस पूगूं। सै कीं रोजीना जेड़ो, नित नेम मुजब। काम में लागी तो जाणै सै कीं बिसरगो।

हंसी रो अेक रेलो कानां सूं हुयनै निसरै। गुप्ता री टेबल माथै तीन-चार जणां रो हुजूम ऊभो है। बै हंस रैया है। गुप्ता अर वीं रै बेलिड़ां री बातां अन्योक्तियां हुवै। सगळा जाणै, म्हैं अणब्याही हूं। घूम-फिरनै बातां वठैई फिरण ढूकै, जिणरो नातो सिरफ म्हारै सूं हुवै। इण सैक्सन में लड़की-लिपिक सिरफ मैं हूं।

गुप्ता कैवै, 'थारो वो कारज हुयो या नीं, सोमेश?’

सोमेश हंसै, 'अमां, यार, नीं हुयो तो अबै हुय जासी।’

प्यारे बिचाळै उठपरो नै आयगो, 'हुय जासी, हुय जासी, कद तांई हुसी छेवट?’

गुप्ता सीरियस हुयगो। 'हां, यार बता तो सरी छेवट थारो वो काम हुय कदै रैयो है? ओ रोजीना रो लफड़ो कांई है?’

खन्ना री अरथपूरण वाणी सामल हुयी, 'यार गुप्ता, म्हनै लागै, इणरो काम हुय चुक्यो अर अबै औ बतावणो नीं चावै।’

सोमेश, 'अैड़ो क्यूं भला?’

खन्ना, 'कठैई, थनै, आखै सेक्सन नै मिठाई नीं खुवावणी पड़ जावै इणसूं।’

'नीं, नीं, मिठाई खिलावण में तो सोमेश नै अंगाई उज्र-एतराज हुय ई नीं सकै, बिचापड़ै रो काम तो सजण देवो!’ गुप्ता अेकदम दयावान हुय उठ्यो।

प्यारे चिरळायो, 'मिठाई तो म्हे अवस खावांला, डंकै री चोट खायनै रैवांला।’

पछै वीं रो 'टोन’ बदळ्यो, 'यार सोमेश! मिठाई ई तो चावां म्हे, कोई अनारकली...कोई नरगिस तो मांग नीं रैया?’

'हा......हा......हा......अनारकली......नरगिस!’

'कांई सागीड़ी बात कैयी है थूं प्यारे- अनारकली......नरगिस! साचाणी मजो आयगो।’

अपणी सीट छोडऩै निगम आयगो, 'अरे यारो, क्यांरा इत्ता हाका-दड़बा, रोळा हुय रैया है, छेवट बात रो बैरो तो पाटै।

गुप्ता अबखाई बतायी, 'यार, सोमेश रो काम पार ई नीं पड़ रैयो है!’

बडेरपण री अदा ओढऩै निगम अबै गुप्ता री टेबल रै कुणै माथै टिकगो, 'काम तो म्हैं कराय देवूं, बोलो तो, पण पैला ग्रांड (टणकी) पारटी री बात पक्की हुवणी चाइजै।’

प्यारे उणी भांत चीख्यो, 'पारटी भोत तगड़ी हुसी- इणरी गारंटी तो म्हैं लेवूं, चलो!’

खन्ना रो गतागम छेड़ै नीं हुय पायो, 'क्यूं सोमेश भाई! पारटी तो देय देवैलो नीं?’

सोमेश छानो-मानो है।

गुप्ता री बारी फेरूं आयगी, 'अरे यार, देवणां भलैई मती, हामल तो भरलेव!’

सै हंसै।

निगम कैय रैयो है, 'यार, अेक दफै 'हां’ करलै, हां करण में थारो कांई जावै? बात रो छेड़ो तो आवै।’ वो अरथपूरण दीठ म्हारै कानी फेंकै।

प्यारे फेरूं चीख्यो, 'निगम, थूं इणरो काम बणवाय दे, पारटी म्हे लेय लेसां। लेवणी म्हे जाणां। पारटी नीं देसी तो कांई साळो मरैलो?’

'हा......हा......हा......’

म्हारी निजरां फाइल माथै है। मूरखतापूरण बातां माथै हंसण री तबियत तो हुवै, पण हंसूं कोनी। अै चालाक-कांईयां लोग हरेक बात रो अरथाव नवै संदरभ में सोध लेवण रा हेवा है।

म्हारी निजर दरूजै माथै जावै- सुनीता ऊभी है। म्हैं उठूं अर सेक्सन अफसर सूं इजाजत लेयनै बारै आय जावूं।

केंटीन रै महिला कक्ष में, म्हैं अर सुनीता चाय पीवां ब्याव पछै वीं रै उणियारै माथै अेक निरवाळो निखार आयगो है। मूंगी साड़ी में वा भोत भली-सोवणी लाग रैयी है।

'अबै थूं ई ब्याव कर काढ़, रीटा!’

'अबार देर है कीं।’

'......अर कैवो......केड़ो - कांई चाल रैयो है? ......ब्याव पछै तो आफिस मांय रैवणो ओखो हुयगो। बूढ़ा-खोपा, डोकरिया ई आखो दिन मिमयाता रैवै। अै कमबख्त पुरुस केड़ा हुवै। बडा ई जालिम।’

'म्हारो तो वो, 'गुप्ता रो बच्चो’ नाक मांय दम कर राख्यो है, सुनीता! जद जोवो तद शैतान आपरी टेबल माथै भीड़ो भेळो कर लेवै। थारो ब्याव कर लेवणो भारी पड़ रैयो है- बियां ई म्हनै अणब्याही रैवणो मुस्कल में डाल्योड़ो है। भोत भद्दा अर बेहूदा लोग है अै। भोत फीट्टा...अश्लील! अै लोग आपरी मां-बैन रै वजूद नै ई बिसार देवै। अणूंता दुस्ट!’

'आंनै सेक्स रा कीड़ा कैवणो बत्ती सावळ रैसी।’

'पुरुस-जात री अैड़ी प्रवृत्ति जोयनै म्हारी तो ब्याव करण री ई इंछा नीं हुवै। छेवट बो ई सैक्स रो कीड़ो ई हुसी कांई?’ म्हैं हंस देवूं।

'आ बात आपरै ठायै-ठौड़ ठीक है, पण इणमें सुख ई है......’

'सुख!......सुनीता थूं अनुभो री बात कैय रैयी है कांई?’

'अबै चालणौ जोइजै, अबेलो करणो सावळ नीं।’

म्हैं दोनूं अपणै-अपणै सेक्सन रो रस्तो पकड़ां।

सिंझ्यां रा घरै सगळै कुटुंब भेळै चाय पीवी। खाणो खायो। बाबूजी संजीव सूं कैय रैया है-'बेटा, थारै कनै अेक बरस भळै है। किणी डिवीजन में हुवो, इण बरस, बी.ए. कर लेवणी है अर अबै नौकरी लागो- जेड़ी-जिकी मिल जावै। घर री हालत जोवै ई है, थारै सूं कीं छानो नीं। बगत रो तकाजो ओ ई है, थोड़ो विचार कर! म्हैं तो रिटायर हुय चुक्यो। रीटा रो ब्याव करणो है। अबार वीं री घर में मदद है। थारी नौकरी लागै तो रीटा ई ब्याव करै। अेक जरूरी काम निवड़ै।’

मा सा साधारण लुगाई है। वां नै बाबूजी री अकल माथै तरस आवै-'तीस-तीस बरस री छोरियां कुआंरी बैठी है, थानै नींद कीकर आवै, राम जाणै! आखी नौकरी तो ग्यी भाड़ माय। लोग कांई कैवै, कदैई सोच्यो!’

बाबूजी छाना-माना हुय जावै। वां नै धांसी चालै।

म्हे लोग ऊभा हुयगा।

म्हैं अपणै कमरै मांय आयगी। ट्रांजिस्टर चालू कर दियो-

'....राह किसी की हुई न रोशन, मेरा जलना यूं ही गया

हम आग लगा बैठै हैं, मगर इस आग को बुझाना मुश्किल है

.......

'....सपनो की सुहानी दुनिया को, आंखो में बसाना मुश्किल है

गैरो से छुपाना मुश्किल है, अपनों को जताना मुश्किल है।’

म्हनै अपणै कमरै में सिगरेट री बू-बास रो अैसास हुवै। घड़ी कानी जोवूं, इग्यारह रो टेम हुय रैयौ है। संजीव अबार तांई जागै। भणतो हुसी स्यात। वीं नै घर मांय किणी सिगरेट पीवतां नीं जोयो। म्हैं रोसणी बंद कर दीवी। दसेक मिनट पछै संजीव री कोठड़ी सूं आवतो उजास ई बंद हुय जावै।

म्हनै नींद नीं आय रैयी....

मन्नू ओ कांई कर्यो? कांई आछो? कांई भूंडो? म्हनै ठाह नीं पड़ रैयी। बाबूजी नै अेक और सदमो भळै लाग्यो। वै इणनै ई झेलगा। मन्नू रमेश भइया जेड़ो ई साव अलग मारग चुण्यो। स्यात वीं सावळ कर्यो...स्यात सावळ नीं कर्यो....वीं अपणै क्लासमेट सूं कोरट-मैरेज कर लीवी। वा चिट्ठी छोडऩै ग्यी परी।

मन्नू रा नाक-नक्स तीखा है। वा साचाणी भोत सोवणी-मोवणी अर फूटरी-फर्री है। वीं मोट्यार नै मोह लियो हुसी। मन्नू री पेसानी, होंठां सारलो अर वां रै ओळ-दोळ रो भाग भोत मनमोवणो अर नसीलो है।

मोट्यार संभवत: अेड़ो कीं कैयो हुसी, 'म्हारै सूं ब्याव करलै, मन्नू! नीं तो म्हैं मर जावूंलो। थारै बिना म्हैं जिंदा नीं रैय सकूं।’

वा भावुकता रैयी हुसी या जतारथ री व्यापक अनुभूति.. मन्नू कैयो हुसी, 'आपां ब्याव कियां कर सकां? आपांरै मां-बाप ई तो है?’

मोट्यार कैयो हुसी, 'आपां कोरट-मैरेज कर लेसां।’

मन्नू स्याणी-समझणी है। वीं नै रस्तो मिळगो।

हॉल रै आंगणै माथै अेक रोसणी बिछी। जोयो, बाबूजी रै कमरै सूं आय रैयी है। दियासळाई चासण री आवाज आयी.... वीं रै सागै ई बाबूजी धांसी में अळूझगा, दौरो पडग़ो।

'रात रा ई निरांत-चैन सूं सुवण नीं देवो थे।’ मां री आवाज आवै।

म्हनै नींद नीं आय रैयी....

आंख्यां सामी अेक दरसाव उभरै। वै दोनूं समुद्र रै किनारै ऊभा है। मोट्यार कैय रैयो है, 'म्हैं थारै सूं ब्याव करणो चावूं।’

मन्नू रो सुर है, 'मोटी बैन रीटा रै ब्याव पछै ई म्हैं थारै सागै ब्याव कर सकूं।’

'म्हैं छेहली बरियां सवाल करूं। थांरै बिना जीवतो नीं रैय सकूं। थनै रीटा या म्हारै मांय सूं किण्ी अेक रो भविख चुणणो हुसी। जे थूं म्हारै सूं ब्याव नीं करै, तो म्हैं इण समुद्र मांय कूद जावूंला। बोल, थूं म्हारै सागै ब्याव करण खातर त्यार है या नीं?

'नीं, म्हैं थारै सूं ब्याव नीं कर सकूं, राकेश!’ रोवण री आवाज आवै।

मोट्यार छलांग लगाय दीवी। समुद्र मांय बैयगो, वो। मन्नू भोत गैरै चुप में गुमगी।

नीं, ओ दरसाव सामी सूं हट जावणो चाइजै। म्हैं अैड़ो कीं नीं जोवणो चावूं, कीं नीं....

मन्नू जिती-फूटरी है, उत्ती ई स्याणी-समझणी है। म्हैं समझ सकूं, वीं रो चुणाव गळत नीं हुय सकै। वीं री समझदारी में कठैई गळती नीं हुय सकै। वीं मांय हूंस है.... वा म्हारी कल्पना री वा पे्रमिका नीं जिणनै भोत गैरी चुप्पी में खोय जावणो पड़ै।

बाबूजी नै सदमो लाग्यो....वै अेकला पड़ता जाय रैया है।

मांजी सांयत है, 'चालो ठीक है, बाबा। थारै भरोसे तो हुय चुक्या सगळा रा सगपण, ....शादी - ब्याव!’

बाबूजी कीं नीं कैयो। अणबोला बीड़ी रा सुट्टा सारता रैया।

म्हनै नींद नीं आसी....

हॉल रै आंगणै रोसणी पाछी उगै। संजीव रै कमरै में लट्टू चस्यो है।

अेक भोत तीखी सोरम म्हारी नास्यां तांई पूगै, दारू जेड़ी....संजीव अवस दारू पीवण ढूको है??

उजास मिट जावै।

म्हनै अबै सुय जावणो चाइजै।

पण, सविता कैय रैयी है, 'आंनै सेक्स रा कीड़ा कैवणो ज्यास्ती ठीक है। आ बात अपणी जगै वाजिब है, पण इणमें सुख ई है.... वा अपणै सेक्सन में बावड़ रैयी है।

गुप्ता री टेबल रो हुजूम आंख्यां सामी आयगो....

गुप्ता चौसर बिछाय राखी है। प्यारे चिरळाय रैयो है.... निगम पासा फेंक रैयो है.... खन्ना चाल चालै....सोमेश महज हंसै। सै कीं अलोप हुय रैयो है।

सोमेश हंस रैयो है।

म्हनै अबै सुय जावणो चाइजै।