आस्था केंद्र और अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा / जयप्रकाश चौकसे

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आस्था केंद्र और अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा
प्रकाशन तिथि : 04 दिसम्बर 2012


महाराष्ट्र में शिरडी के साईं बाबा की समाधि को २०१८ में सौ वर्ष पूरे हो जाएंगे और उसी समय समाधि से मात्र दस किलोमीटर दूर एक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का उद्घाटन भी होगा। अब तक उस एयरपोर्ट के लिए सरकार द्वारा अधिकृत एक हजार एकड़ जमीन पर लगभग चालीस प्रतिशत कार्य पूरा हो चुका है। भारत में प्राय: विकास के काम इतनी गति से और बिना व्यवधान के पूरे नहीं होते। सरकार ने भी उस बंजर जमीन के लिए उस समय के बाजार भाव सत्तर हजार प्रति एकड़ से बढ़ाकर किसानों को साढ़े तीन लाख प्रति एकड़ का भुगतान किया। अधिग्रहण के समय किसान प्रसन्न थे, परंतु अब उस क्षेत्र में पांचसितारा होटल इत्यादि सुविधाएं भी आने की संभावना के कारण आसपास की जमीन के भाव 40 लाख रुपए प्रति एकड़ हो गए हैं और किसान स्वयं को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। अदालत का दरवाजा खटखटाया जाने वाला है और स्थगन का आदेश आते ही काम ठप हो जाएगा। भारतीय विकास शैली अपने पारंपरिक अवरोध के साथ इसी तरह पांव पसारती है।

दरअसल किसान यह नहीं जानते थे कि एक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा एक छोटे शहर की तरह होता है, जिसकी विराट बांहों में आसपास की सैकड़ों एकड़ जमीन आ जाती है और उस क्षेत्र का सामाजिक परिवेश बदल जाता है। सरकार का अनुमान है कि साईं बाबा के चिरसमाधि में लीन होने के शताब्दी वर्ष में पांच करोड़ पर्यटक और भक्त शिरडी आ सकते हैं और उस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था ही बदल सकती है। स्वयं शिरडी के बाबा अत्यंत सरल और भोले इंसान थे तथा उनके द्वारा जगाई आस्था लहर में धर्मनिरपेक्षता केंद्रीय विचार रहा है। यह किंवदंती है कि बाबा का जन्म मुसलमान परिवार में हुआ था, परंतु सच तो यह है कि इस तरह की दिव्य आत्माओं के जन्म लेने के विवाद में नहीं पडऩा चाहिए, क्योंकि उन्होंने अपनी साधना से स्वयं को पूरे विश्व का नागरिक बना लिया है। इसी तरह भारत के महानतम कवि कबीर के बारे में भी कहा जाता है कि वे नीरू व नीमा जुलाहा दंपती द्वारा पाले-पोसे गए। हिंदुस्तान के सबसे अधिक कवियों पर कबीर का गहरा प्रभाव रहा है। विगत हजार वर्ष की विलक्षण प्रतिभाएं हैं अमीर खुसरो, कबीर, गालिब एवं रबींद्रनाथ टैगोर। इस मामले में हर एक की सूची अलग हो सकती है।

बहरहाल, हर धार्मिक स्थल के इर्द-गिर्द व्यापार खड़ा हो जाता है और भक्तों के रूप में ग्राहकों की भारी संख्या बाजार की ताकतों के सीने में कई अरमान जगाती है। आसपास का क्षेत्र प्रतिदिन सुबह उठकर नई अंगड़ाई लेता है। हाल में शिरडी में १२०० कमरे के एक रहवासी इमारत को खड़ा करने का पुण्य का काम हुआ है, जिसमें मध्यम आय वर्ग के भक्त रह सकते हैं। फिल्म उद्योग के अनेक लोग साईं बाबा के भक्त हैं और उन पर अनेक फिल्में बन चुकी हैं, अनगिनत भजन रिकॉर्ड हो चुके हैं। भक्ति का यह स्वरूप भी है कि वह टकसाल बन जाती है। दरअसल भारत में विकास के सारे कार्यों के साथ धार्मिक भावना जोडऩे पर ही उनके बिना अवरोध के पूरे होने की प्रबल संभावना है। भारत में आधुनिकता को धर्म के आवरण में ही प्रस्तुत होना पड़ सकता है। पंडित नेहरू ने भाखड़ा नांगल को आधुनिक भारत का मंदिर कहा था। दक्षिण में रुके हुए आणविक संयंत्र को भी धर्म से जोडऩे पर ही वह बन सकेगा।

भारत में आधुनिकता एवं विकास अन्य देशों की तरह नहीं हो रहा है, क्योंकि इस अनंत देश में प्रत्येक वर्तमान क्षण में अनेक शताब्दियां मौजूद रहती हैं। यहां रेलवे पुल के नीचे से जिस समय बैलगाड़ी गुजरती है, उसी समय ऊपर जेट विमान भी उड़ता है। ठीक इसी तरह यहां आधुनिक विज्ञान के साथ ही सदियों की जहालत भी मौजूद रहती है। यहां की जनता अपनी भावनाओं के भड़काए जाने का इंतजार बहुत बेकरारी से करती है। सहज सामान्यता के क्षण उन्हें अखरते हैं और हमेशा लहर का इंतजार रहता है। प्राय: चीन में विकास की तीव्र गति की प्रशंसा की जाती है, परंतु वहां कम्युनिस्ट सत्ता ने धर्म को विकास के मार्ग में आने नहीं दिया। भारत में चीन या पूंजीवादी अमेरिका का मॉडल नहीं चल सकता। विकास की देशज अवधारणा का उदय जरूरी है। धर्म के नाम पर कुरीतियों और अंधविश्वास को प्रश्रय दिया गया है, अत: आधुनिकता एवं विकास को भी यहां धर्म के साथ जुडऩे की विवशता है।

बहरहाल, कल्पना करें कि २०१८ में बाबा की चिरसमाधि की शताब्दी के अवसर पर सारे तामझाम पर बाबा की प्रतिक्रिया क्या होती? उस सरल और विशुद्ध आत्मा को अपनी समाधि के इर्द-गिर्द फैले बाजार को देखकर संभवत: दुख ही होता और यह भी संभव है कि वे कहीं और जाने का विचार करते। हर महान व्यक्ति को इस 'काउंटर क्लोजर' को झेलना पड़ता है कि अपनी विजय के क्षण मे वे भीतर पराजय महसूस करते हैं। कल्पना कीजिए कि शताब्दी समारोह में बाबा स्वयं भक्तों के रेलों में बहते हुए पूजा स्थल तक कैसे पहुंच पाते?