आ क्यू की सच्ची कहानी / अध्याय 3 / लू शुन

Gadya Kosh से
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आ क्यू की अन्य विजयों का विवरण

हालाँकि आ क्यू सदा विजय प्राप्त करता जाता था, फिर भी उसे प्रसिद्धि सिर्फ तभी हासिल हुई, जब चाओ साहब ने उसके मुँह पर थप्पड़ मारने की तकलीफ उठाई।

बेलिफ के हाथ में दो सौ ताँबे के सिक्के रखने के बाद वह गुस्से से जमीन पर लेट गया। बाद में अपने आपसे कहने लगा, "आजकल दुनिया न मालूम कैसी हो गई है, बेटे अपने बाप को पीटने लगे हैं... " तब वह चाओ साहब की प्रतिष्ठा के बारे में सोचने लगा, जिन्हें अब वह अपना बेटा समझने लगा था। धीरे-धीरे उसका जोश ऊँचा उठता गया। वह उठा और "युवक विधवा अपने पति की कब्र पर" गीत की पक्तियाँ गुनगुनाता हुआ शराबखाने में जा पहुँचा। उस समय अवश्य उसे महसूस हुआ कि चाओ साहब का रुतबा ज्यादातर लोगों से थोड़ा ऊपर है।

यह कहते हैरानी होती है कि इस घटना के बाद सभी आ क्यू की असाधारण तौर पर इज्जत करने लगे। वह शायद यह सोचता रहा कि लोग ऐसा इसलिए करते हैं, क्योंकि वे उसे चाओ साहब का पिता समझते हैं। पर वास्तविकता यह नहीं थी। वेइच्वाङ में दरअसल यह प्रथा थी कि यदि सातवाँ बेटा आठवें बेटे को पीट दे या फलाँ ली फलाँ चाड़ को पीट दे, तो कोई खास बात नहीं समझी जाती थी पर जब पिटाई की घटना का संबंध चाओ साहब जैसे किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति से होता, तो गाँववाले इसे चर्चा का विषय समझते थे। जहाँ एक बार उन्होंने इसे चर्चा का विषय समझ लिया, तो पिटाई करने वाले के एक मशहूर व्यक्ति होने के कारण, जिसकी पिटाई की जाती थी, उसे भी पिटाई करने वाले की प्रसिध्दि का कुछ -न-कुछ प्रतिफल अवश्य प्राप्त हो जाता था। पूरी तरह पर प्रतिफल हमेशा आ क्यू का ही माना जाता था, क्योंकि लोग समझते थे कि चाओ साहब कतई गलती नहीं कर सकते, पर अगर आ क्यू ही दोषी था, तो सभी लोग असाधारण रूप से उसकी इज्जत करते क्यों महसूस होते थे? इसका कारण बताना कठिन है। इसका कारण शायद आ क्यू का यह कहना था, वह भी चाओ परिवार का ही सदस्य है। जबकि उसकी पिटाई की जा चुकी थी, फिर भी लोग शायद यह समझते थे कि बात में कुछ सच्चाई है, इसलिए उसके प्रति आदरपूर्ण व्यवहार करना ज्यादा सुरक्षित होगा। यह भी कहा जा सकता है कि यह मामला कनफ्यूशियस के किसी मंदिर में बलि के रूप में चढ़ाए गए गाय के मांस की तरह है, जबकि गाय का मांस भी सूअर या भेड़-बकरी के मांस की ही तरह जानवर का मांस होता है, फिर भी बाद में कनफ्यूशियस संप्रदाय के अनुयायियों ने उसे छूने का साहस भी नहीं किया, क्योंकि कनफ्यूशियस स्वयं इसका सेवन कर चुके थे।

इसके बाद आ क्यू अनेक बरस तक सुख और चैन से रहा। एक दिन वसंत के मौसम में वह खुशी से झूमता हुआ जा रहा था कि उनसे देखा कमर तक नंगा मुछंदर वाङ दीवार के सहारे बैठा जूँ बीन रहा है। यह देखकर आ क्यू को भी खुजली महसूस होने लगी। मुछंदर वाङ का शरीर दाद से पीड़ित था, उसके चेहरे पर लंबी-लंबी मूँछें थीं, इसलिए सभी उसे दादवाला मुछंदर वाङ पुकारते थे। आ क्यू दादवाला शब्द इस्तेमाल नहीं करता था फिर भी वह मुचंदर वाङ को बिलकुल तुच्छ समझता था। आ क्यू सोचता था कि दाद से पीड़ित होना कोई खास बात नहीं है, मगर दोनों गालों पर मूँछ के बालों के इतने गुच्छे होना सचमुच कितना भोंडा लगता है, समचुमच कितना हीन लगता है, अतः आ क्यू उसके बगल में जा बैठा। अगर कोई बेकार आदमी होता तो आ क्यू उसके पास इतनी लापरवाही से कतई नहीं बैठता, लेकिन मुछंदर वाङ के पास बैठने में उसे भला किसका डर था। सच तो यह था कि आ क्यू का वाङ के पास बैठना वाङ के लिए ही बड़े गौरव की बात थी।

आ क्यू ने अपनी अस्तर वाली फटी-पुरानी जाकिट उतारी और उसे पलट डाला, लेकिन काफी देर खोजने के बाद भी सिर्फ तीन-चार जूँ ही बीन पाया। कारण या तो यह था कि उसने अपनी जाकिट हाल ही में धोई थी या यह कि वह खुद जूँ बीनने में एकदम अनाड़ी था। उसने देखा, मुछंदर वाङ अब तक लगातार एक के बाद एक कई जूँ बीन चुका है और दाँतों के बीच रखकर चट्ट की आवाज के साथ उन्हें मार भी चुका है।

आ क्यू को पहले मायूसी हुई और फिर गुस्सा आने लगा - यह निकम्मा मुछंदर वाङ इतनी अधिक जूँ पकड़ चुका है, जबकि मैं केवल कुछ ही पकड़ सका हूँ, कितनी शर्म की बात है। उसने एक-दो बड़ी जूँ पकड़ने की कोशिश की, लेकिन कोई हाथ न आई। बड़ी कठिनाई से वह एक बीच के आकार की जूँ पकड़ पाया, जिसे उसने बड़े गुस्से के साथ मुँह में डालकर दाँत से कुचल दिया, लेकिन उसके पिचकने की आवाज बड़ी धीमी थी, मुछंदर वाङ की चट्ट की आवाज की तुलना में बिल्कुल धीमी।

आ क्यू के सिर के सारे निशान लाल हो गए। उसने अपनी जाकिट जमीन पर पटक दी और उसकी ओर थूककर बोला, "साला, झबरीदार कीड़ा।"

"ओ खुजीले कुत्ते, गाली किसे दे रहा है?" मुछंदर वाङ ने तिरस्कार भरी नजर पर उठाते हुए कहा।

पिछले कुछ बरस में आ क्यू को जो अपेक्षाकृत सम्मान प्राप्त हुआ था उसी से उसका घमंड कुछ बढ़ गया था, पर अब कभी मारपीट में तेज गुंड़ों से पाला पड़ता, तो वह बिल्कुल भीगी बिल्ली बन जाता, लेकिन आज उसका मन झगड़ा करने को बहुत मचल रहा था। यह कैसे हो सकता था कि झबरीदार गालोंवाला यह कीड़ा उसकी बेइज्जती कर दे?

"जिस किसी का नाम इससे मेल खाता हो।" आ क्यू ने जवाब दिया, वह दोनों हाथ कमर पर रख तनकर खड़ा हो गया।

"ओबे, क्या तेरी हड्डियाँ खुजा रही हैं?" यह कहता हुआ मुछंदर वाङ भी अपना कोट पहन तनकर खड़ा हो गया।

यह सोचकर कि वाङ का इरादा भाग खड़े होने का है, आ क्यू ने उस पर वार करने के लिए अपनी मुट्ठी तान ली, लेकिन मुट्ठी का वार होने से पहले ही मुछंदर वाङ ने उसे दबोच लिया और इतने जोर से झटका दिया कि वह लड़खड़ा कर गिर पड़ा। इसके बाद मुछंदर वाङ ने आ क्यू की चोटी पकड़कर उसे दीवार की ओर घसीटा, ताकि उसका सिर सदा की तरह दीवार से टकराया जा सके।

"एक भला आदमी जबान इस्तेमाल करता है, हाथ नहीं।" आ क्यू ने सिर टेढ़ा करके विरोध किया।

प्रकट है मुछंदर वाङ भला आदमी नहीं था, क्योंकि आ क्यू की बात पर जरा भी गौर किए बिना उसने एक के बाद एक पाँच बार उसका सिर दीवार पर दे मारा और उसे इतने जोर का धक्का दिया कि वह लड़खड़ाता हुआ दो गज दूर जा गिरा। बस तब जाकर मुछंदर वाङ के दिल को तसल्ली हुई और वह वहाँ से चला गया।

हाँ तक आ क्यू को याद है, यह उसकी जिंदगी में पहला अवसर था जबकि उसे इस तरह अपमान का घूँट पीना पड़ा था। मुछंदर वाङ के झबरीदार गालों की वह हमेशा ही हँसी उड़ाया करता था, लेकिन वाङ ने उसका कभी मजाक नहीं किया, मार-पीट करना तो अलग। लेकिन आज आशा के उलट मुछंदर वाङ ने उसकी पिटाई कर दी थी। शायद लोग बाजार में जो कुछ कह रहे थे, वह सच था - "बादशाह ने सरकारी इम्तहान लेना बंद कर दिया है। जिन विद्वानों ने ये इम्तहान पास किए हैं उनकी अब आवश्यकता नहीं है।" शायद इससे चाओ परिवार की प्रतिष्ठा कम हो गई होगी। लोगों द्वारा आ क्यू के प्रति तिरस्कार का रुख अपनाए जाने का कारण क्या यही तो नहीं था?

आ क्यू अस्थिर खड़ा था। दूर से आ क्यू का एक और शत्रु आ रहा था। वह छ्येन साहब का सबसे बड़ा लड़का था, जिससे आ क्यू भी नफरत करता था। शहर के एक विदेशी स्कूल में पढ़ने के बाद शायद वह जापान चला गया था। छह महीने बाद जब वह अपने देश लौटा था, तो तन कर चलने लगा था और अपनी चोटी कटवा चुका था। उसकी माँ दसियों बार रो चुकी थी और पत्नी तीन बार कुएँ में छलाँग लगाने की कोशिश कर चुकी थी। बाद में उसकी माँ ने सबको बताया, "जब वह शराब के नशे में था तो किसी लफंगे ने उसकी चोटी काट दी। अब तक वह न जाने कब अफसर बन गया होता, लेकिन अब उसे तब तक प्रतीक्षा करनी होगी जब तक उसकी चोटी फिर नहीं उग जाती।" आ क्यू को उसकी बात पर विश्वास नहीं हुआ और वह बड़े हठ के साथ उसे नकली विदेशी दरिंदा और विदेशी पगार पानेवाला देशद्रोही कहता रहा था। जैसे ही आ क्यू उसे देखता, धीमी आवाज में गालियाँ बकने लगता।

आ क्यू को उसकी जो चीज सबसे बुरी लगती थी, वह थी नकली चोटी। जिसकी चोटी भी नकली हो, ऐसे आदमी को भला इंसान कैसे कहा जा सकता था। साथ ही चूँकि उसकी पत्नी ने चौथी बार कुएँ में छलाँग मारने की कोशिश नहीं की थी, इसलिए उसे भला एक अच्छी औरत कैसे कहा जा सकता था।

और अब वही नकली विदेशी दरिंदा उसकी ओर आ रहा था।

"गंजा… ! गधा… !" पहले आ क्यू उसे धीमी आवाज में ही गालियाँ दिया करता था, ताकि वह सुन न सके, लेकिन आज चूँकि उसका मूड ठीक नहीं था और वह अपने दिल की भड़ास निकालना चाहता था, इसलिए ये शब्द उसके मुँह से अनायास ही थोड़ा जोर से निकल गए।

दुर्भाग्य से वह गंजा एक चमकदार भूरी छड़ी लिए था, जिसे आ क्यू मातमपुर्सी करनेवाली छड़ी कहता था। लंबे कदम बढ़ाता वह आ क्यू पर टूट पड़ा जो पहले से ही यह अनुमान लगाकर कि उसे मार जरूर पड़नेवाली है, अपनी पीठ तानकर पिटाई की प्रतीक्षा कर रहा था। निश्चय ही बड़े जोर की चटाक की आवाज हुई, ऐसा लगा जैसे छड़ी से सिर पर चोट की गई हो।

"मैंने तो उसके लिए कहा था।" पास खड़े एक बच्चे की ओर इशारा करते हुए आ क्यू ने सफाई दी।

चटाक! चटाक! चटाक! जहाँ तक आ क्यू को याद है, यह उसकी जिंदगी में दूसरा अवसर था, जब उसे अपमान का घूँट पीना पड़ा था। खुशकिस्मती से जब पिटाई समाप्त हो गई, तो उसे लगा मामला खत्म हो गया है। उसे कुछ राहत महसूस हुई। साथ ही अपनी उस मूल्यवान विरासत भूल जाने की क्षमता के कारण जो उसे अपने पूर्वजों से प्राप्त हुई थी, से बड़ा लाभ हुआ। वह धीरे-धीरे आगे बढ़ गया और शराबखाने के दरवाजे तक पहुँचते-पहुँचते काफी खुश दिखने लगा।

तभी एक छोटी भिक्षुणी 'शान्त आत्मोत्थान भिक्षुणी विहार' से उसकी ओर आती दिखाई दी। भिक्षुणी को देखते ही आ क्यू के मुँह से गाली निकल जाती थी। आज इतना अपमानित होने के बाद वह भला उसे गाली दिए बिना कैसे रह सकता था? जब उसे अपने अपमान की बात याद आई, तो उसका पारा फिर से चढ़ने लगा।

"अच्छा, तो आज मुझे दुर्भाग्य का सामना इसलिए करना पड़ा क्योंकि इसकी शक्ल देखनी थी।" उसने मन-ही-मन कहा।

भिक्षुणी के निकट पहुँचकर उसने जोर से खकारकर थूका, "आख थू... आख थू...।"

छोटी भिक्षुणी उसकी ओर जरा भी ध्यान दिए बिना सिर नीचा करके चलती रही। आ क्यू उसके पास जा पहुँचा और हाल ही में मूँडे गए उसके सिर पर हाथ फेरता हुआ पागल की तरह ठहाका लागकर बोला, "अरे ओ गंजी, जल्दी जा तेरा, भिक्षु तेरी राह देख रहा होगा।"

"कौन हो जी तुम मुझे छूनेवाले?" भिक्षुणी ने कहा। उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया और कदम तेजी से उठने लगे।

शराबखाने में मौजूद लोग खिलखिलाकर हँस पड़े। यह देखकर कि उसका कारनामा लोगों ने पसंद किया है, आ क्यू को बडी खुशी हुई।

"अगर तुझे तेरा भिक्षु छू सकता है, तो भला मैं क्यों नहीं छू सकता?" यह कहते हुए उसने भिक्षुणी का गाल नोच लिया।

एक बार फिर शराबखाने में मौजूद लोग खिलखिलाकर हँस पड़े। आ क्यू और ज्यादा खुशी महसूस करने लगा और जो लोग दाद दे रहे थे उन्हें और अच्छी तरह संतुष्ट करने के लिए उसने फिर एक बार भिक्षुणी का गाल जोर से नोच लिया। तब कहीं उसे जाने दिया।

इस घटना के दौरान वह मुछंदर वाङ और नकली विदेशी दरिंदे को बिल्कुल भूल चुका था। उसे लगा जैसे सारे दिन की दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं का बदला ले चुका हो। आश्चर्य की बात यह थी कि मार खाने के बाद की तुलना में अब वह कहीं ज्यादा तनावहीन हल्का और प्रफुल्लित अनुभव कर रहा था, जैसे हवा में तैरने के लिए तैयार हो।

"आ क्यू, तू निपूता ही मर जाए।" छोटी भिक्षुणी ने दूर जाकर रुआँसी आवाज में कोसा।

आ क्यू एक बार फिर खिलखिलाकर हँस पड़ा। शराबखाने में मौजूद लोग भी खिलखिलाकर हँस पड़े, जबकि उन्हें आ क्यू से कम ही संतोष हुआ।