आ क्यू की सच्ची कहानी / अध्याय 6 / लू शुन

Gadya Kosh से
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उत्थान से पतन की ओर

उस बरस चंद्रोत्सव से पहले आ क्यू वेइच्वाङ में दिखाई नहीं दिया। उसके लौटने की खबर सुनकर हर आदमी आश्चर्य करने लगा और पुरानी बातों को याद करके सोचने लगा कि इस बीच वह गया कहाँ था। इससे पहले दो-चार अवसरों पर जब आ क्यू शहर गया था, तो लोगों को पहले से ही बड़ी शान से सूचित कर गया था, इस बार उसने ऐसा नहीं किया, इसलिए उसके शहर जाने का किसी को पता ही न चला। शायद उसने कुल-देवता के मंदिर के बूढ़े पुजारी को बताया हो, लेकिन वेइच्वाङ की प्रथा के अनुसार शहर जाना केवल तभी महत्वपूर्ण समझा जाता था जब चाओ साहब, छ्येन साहब या काउंटी की सरकारी परीक्षा में सफल प्रत्याशी शहर जाते थे। यहाँ तक कि नकली विदेशी दरिंदे के शहर जाने की भी चर्चा नहीं होती थी। आ क्यू की भला क्या हैसियत थी। इससे यह मालूम हो जाता है कि उस बूढ़े पुजारी ने आ क्यू के शहर जाने की बात किसी से क्यों नहीं कही थी। नतीजे के तौर पर गाँववालों के पास यह बात जानने का कोई उपाय नहीं था।

आ क्यू की इस बार की वापसी भी पहले की तुलना में अलग तरह की थी, जो लोगों को आश्चर्य में डालने के लिए काफी थी। शाम हो चुकी थी। नींद से भरी आँख लिए वह शराबखाने के दरवाजे पर जा पहुँचा और सीधे काउंटर पर पहुँचकर अपने कमरबंद से मुट्ठी भर चाँदी और ताँबे के सिक्के निकाल उन्हें खनखनाता हुआ काउंटर पर रखकर बोला, "नकद पैसा है, शराब लाओ।" वह अस्तरवाली नई जाकिट पहने हुए था। कमर में बड़ा-सा बटुआ लटक रहा था, जिसके भारी वजन से कमरबंद कुछ नीचे की ओर झुक गया था। वेइचवाङ में प्रथा थी कि अगर किसी आदमी में कोई अनूठी बात नजर आती, तो उसके साथ इज्जत का बर्ताव किया जाता, न कि शराबखाने का। जबकि उस समय लोग अच्छी तरह जान गए थे कि यह आ क्यू ही है, फिर भी वह फटे-पुराने कोटवाले आ क्यू से बिल्कुल अलग व्यक्ति बन चुका था। प्राचीन कहावत है, "यदि कोई विद्वान तीन दिन के लिए भी बाहर गया हो, तो उसे नई दृष्टि से देखना चाहिए।" इसलिए वेटर, शराबखाने का मालिक, ग्राहक और सड़क पर आनेजाने वाले सभी सहज रूप से उसे एक सम्मानजनक संदेह की नजर से देख रहे थे। शराबखाने के मालिक ने सिर हिलाकर कहा, "क्यों भाई, आ क्यू वापस आ गए?"

"हाँ, आ गया हूँ।"

"खूब पैसा कमाया है तुमने, वैसे गए कहाँ थे?"

"शहर चला गया था।"

अगले दिन तक यह खबर पूरे वेइच्वाङ में फैल गई, हर आदमी आ क्यू की सफलता, उसकी नगद पूँजी और उसकी अस्तरवाली नई जाकिट की कहानी जानना चाहता था, इसलिए गाँववालों ने शराबखाने में, चाय की दुकान में और मंदिर के नीचे, धीरे-धीरे इस खबर की खोज-बीन शुरू कर दी। नतीजा यह हुआ कि उन्होंने आ क्यू के साथ एक ऩए सम्मानपूर्ण ढंग से व्यवहार करना शुरू कर दिया।

आ क्यू ने बताया कि शहर जाकर वह प्रांतीय सरकारी परीक्षा में सफल प्रत्याशी का घरेलू नौकर बन गया था। उसकी कहानी का यह हिस्सा जिसने भी सुना वह चकित रह गया। प्रांतीय सरकारी परीक्षा में सफल प्रत्याशी का नाम पाए था, पर वह पूरे शहर मे एक मात्र सफल प्रांतीय प्रत्याशी था, इसलिए उसका कुलनाम लेने की आवश्यकता नहीं समझी जाती थी - जब भी कोई प्रांतीय सरकारी परीक्षा में सफल प्रत्याशी का बखान करता, तो उसका तात्पर्य पाए साहब से ही होता था। यह बात सिर्फ वेइचवाङ के लोग ही नहीं बल्कि तीस मील तक पूरे क्षेत्र के लोग जानते थे, जैसे हर आदमी उसका नाम ' श्री प्रांतीय परीक्षा में सफल प्रत्याशी ' ही समझता हो। इतने महत्वपूर्ण आदमी के घर में काम करनेवाले की इज्जत होना स्वाभाविक था, लेकिन आ क्यू ने आगे बताया कि कुछ समय बाद उसे वहाँ काम करने की इच्छा नहीं रहीं, क्योंकि वह सफल प्रत्याशी नंबर एक का हरामजादा था। कहानी का यह हिस्सा जिसने भी सुना, उसने एक राहत की साँस ली। लेकिन इसके पीछे खुशी भी छिपी हुई थी, क्योंकि इससे प्रकट हो जाता था कि आ क्यू ऐसे आदमी के घर में काम करने योग्य नहीं है। फिर भी काम न करना बड़े अफसोस की बात थी।

आ क्यू ने बताया, उसके लौटने का कारण यह भी था कि शहर के लोगों को देखकर उसे तसल्ली नहीं हुई थी, क्योंकि वे लोग लंबी बेंच को सीधी बेंच कहते थे, मछली तलने के लिए हरी प्याज के बारीक टुकड़े इस्तेमाल करते थे, और उनमें एक ऐसी त्रुटि थी, जिसका उसे हाल ही में पता लगा था। उसकी औरतें चलते समय अपने कूल्हे ज्यादा आकर्षक ढंग से नहीं मटकाती थीं, लेकिन शहर में कुछ अच्छी बातें भी थीं। उदाहरण के लिए, वेइचवाङ में हर आदमी बत्तीस पाँसों से खेलता था और केवल नकली विदेशी दरिंदा ही ऐसा था, जो ' माच्याड़ ' खेलना जानता था, लेकिन शहर में गली-मुहल्लों के लड़के भी ' माच्याड़ ' के खेल में माहिर थे। अगर कहीं नकली विदेशी दरिंदे को इन शैतान लड़कों को हाथ में सौंप दिया जाता, तो वे उसे सीधे नर्क के राजा के दरबार का छोटा शैतान बना डालते। जिन लोगों ने कहानी का यह भाग सुना, उनके चेहरे शर्म से लाल हो गए।

" क्या तुम लोगों ने कभी किसी को मौत की सजा देते सुना है ?" आ क्यू ने पूछा। " ओह, कितना जोरदार दृश्य होता है, जब वे क्रांतिकारियों को मौत की सजा देते हैं। ओह, कितना जोरदार दृश्य होता है, कितना जोरदार दृश्य होता है। " बात करते हुए, जब उसने सिर हिलाया तो उसके मुँह से निकले थूक के छींटे चाओ स-छन के चेहरे पर जा गिरे, जो उसके बिल्कुल सामने खड़ा था। जिन लोगों ने कहानी का यह भाग सुना, वे डर से काँप उठे। तभी चारों ओर नजर डालने के बाद उसने अचानक दायाँ हाथ उठाकर मुछंदर वाङ की गर्दन दबोच ली, जो सिर आगे करके उसकी बातें बड़े ध्यान से सुन रहा था।

" मार डालो। " आ क्यू चिल्लाया।

बिजली या चमक पत्थर की चिनगारी की-सी तेजी से मुछंदर वाड़ ने एक झटके से अपना सिर पीछे खींचा और भाग खड़ा हुआ। आसपास खड़े लोग अचरज भरी शंका से सहम उठे। इसके बाद मुछंदर वाड़ कई दिन तक आतंकित रहा और आ क्यू के पास फटकने की हिम्मत न उसको हुई, न किसी और को।

यह नहीं कहा जा सकता कि उस समय वेइचवाङ के लोगों की नजरों में आ क्यू का रुतबा चाओ साहब से बड़ा था, फिर भी बिना गलत बोलने के खतरे के यह अवश्य कहा जा सकता है कि दोनों का रुतबा लगभग एक जैसा था।

कुछ दिनों में आ क्यू की प्रसिद्धि अचानक वेइचवाङ के स्त्री समाज में भी फैल गई। वैसे तो वेइचवाङ में छ्येन और चाओ केवल दो परिवार ऐसे थे, जिन्हें ठाठ से रहनेवाले परिवार कहा जा सकता था। शेष नब्बे प्रतिशत परिवार बिल्कुल गरीब थे, फिर भी स्त्री समाज स्त्री समाज होता है, और जिस ढंग से आ क्यू की प्रसिद्धि उसमें फैली थी, उसे एक छोटा-मोटा चमत्कार ही समझा जाएगा। जब भी औरतें आपस में मिलतीं, एक-दूसरे से कहतीं, " श्रीमती चओ ने आ क्यू से एक नीले रंग का रेशमी लहँगा खरीदा है। वैसे लहँगा पुराना है, फिर भी उसकी कीमत केवल नब्बे सेन्ट है। और चाओ पाए-येन की माँ (इसकी जाँच करना अभी बाकी है, क्योंकि कुछ लोग कहते हैं कि चाओ स-छन की माँ थी) ने गहरे लाल रंग की विदेशी छींट की बनी बच्चे की पोशाक, जो करीब-करीब नई जैसी ही थी, केवल तीन सौ ताँबे के सिक्कों में खरीदी थी और उसे इसके मूल्य में आठ प्रतिशत की छूट भी मिली थी।"

बाद में जिन औरतों के पास रेशम का लहँगा नहीं था या जो विदेशी छींट का कपड़ा लेना चाहती थीं, वे इन वस्तुओं को खरीदने के लिए आ क्यू से मिलने के लिए बहुत बेचैन हो उठीं। अगर वह कहीं नजर आ जाता तो, उससे बचने के बजाय, उसके पीछे चल पड़तीं और उससे रुकने का आग्रह करतीं।

"आ क्यू, क्या तुम्हारे पास कुछ रेशमी लहँगे और भी हैं?" वे पूछतीं, "नहीं हैं क्या? हमें विदेशी छींट का कपड़ा भी चाहिए। है क्या तुम्हारे पास?"

बाद में यह खबर गरीब घरों से अमीर घरों में जा पहुँची। श्रीमती चओ अपने रेशमी लहँगे से इतनी खुश हुई कि इसे दिखाने श्रीमती चाओ के पास ले गई और श्रीमती चाओ ने चाओ साहब के आगे इसकी बड़ी प्रशंसा की।

चाओ साहब ने रात के भोजन के समय इसकी चर्चा अपने लड़के से की, जो काउंटी की सरकारी परीक्षा में सफल प्रत्याशी था। चाओ साहब ने यह भी कहा कि आ क्यू का व्यवहार बड़ा संदिग्ध प्रतीत होता है और उन्हें अपने दरवाजों व खिड़कियों को होशियारी से बंद रखना चाहिए, लेकिन साथ ही वे यह भी जानना चाहते थे कि आ क्यू के पास अब कोई सामान शेष रह गया है या नहीं और उनका खयाल था कि उसके पास अब भी शायद कोई अच्छी वस्तु शेष रह गई है। चूँकि श्रीमती चाओ को एक अच्छी, सस्ती फर की जाकिट की आवश्यकता थी, इसलिए परिवार के अंदर सलाह करने के बाद फैसला किया कि श्रीमती चओ से कहा जाए कि आ क्यू का पता लगाकर उसे फौरन ले आएँ। इसके लिए अपवादस्वरूप तीसरी बार परिवार का नियम तोड़ा गया। उस रात बत्ती जलाए रखने की खास अनुमति दी गई।

काफी तेल जल चुका था, लेकिन आ क्यू का कहीं कोई निशान नहीं था। पूरा चाओ परिवार बड़ी बेचैनी से प्रतीक्षा करता-करता उबासियाँ लेने लगा था। कुछ लोग आ क्यू की अनुशासनहीनता की आलोचना कर रहे थे। कुछ दूसरे श्रीमती चओ को दोष दे रहे थे कि उन्होंने आ क्यू को लाने के लिए अधिक कोशिश नहीं की होगी। श्रीमती चाओ को भय था, कहीं ऐसा तो नहीं कि उस बरस वसंत में स्वीकृत की गई शर्तों के कारण आ क्यू को यहाँ आने की हिम्मत ही न हो रही हो, पर चाओ साहब का खयाल था कि इसके बारे में चिंता करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि, "इस बार उसे मैंने स्वयं बुलाया है।" चाओ साहब ने साबित कर दिया कि वे कितनी तीखी दृष्टि रखते हैं, क्योंकि आखिर श्रीमती चओ के साथ आ क्यू आ ही पहुँचा।

"यह बार-बार कहता जा रहा है कि अब इसके पास कोई वस्तु शेष नहीं रह गई," श्रीमती चओ हाँफती हुई बोली, "जब मैंने इससे कहा कि तुम यह सब स्वयं जाकर बता आओ, तो बोलता ही चला गया। मैंने इससे कहा... "

"श्रीमान," आ क्यू मुस्कराने की कोशिश करते हुए बोला।

"आ क्यू, मैंने सुना है, तुम वहाँ जाकर काफी धनी बन गए हो," चाओ साहब ने उसके पास जाकर एक नजर उसे ऊपर से नीचे तक देखते हुए कहा, "बहुत अच्छी बात है। अब लोग कहते हैं, तुम्हारे पास कुछ पुरानी वस्तुएँ भी हैं। उन सबको यहाँ लाओ, ताकि हम लोग देख सकें। हम उनमें से कुछ वस्तुएँ लना चाहते हैं।"

"श्रीमती चओ को मैं बता चुका हूँ कि अब मेरे पास कुछ भी शेष नहीं है।"

"कुछ भी नहीं बचा?" चाओ साहब की बात से निराशा झलक रही थी, "ये वस्तुएँ इतनी जल्दी कैसे समाप्त हो गईं?"

"ये सब वस्तुएँ मेरे एक दोस्त की थीं। वास्तव में बहुत ज्यादा तो थीं नहीं। कुछ ही थीं। लोगों ने खरीद लीं... "

"कुछ न कुछ तो बचा होगा।"

"केवल दरवाजे का एक पर्दा बच गया है।"

"दरवाजे का पर्दा ही ले आओ। हम उसे देखना चाहते हैं।" श्रीमती चाओ झट से बोल पड़ीं।

"अगर उसे कल ला सको तो ठीक रहेगा," बिना ज्यादा उत्साह दिखाए चाओ साहब ने कहा, "आ क्यू, आगे से जब भी तुम्हारे पास कोई वस्तु आए तो पहले हमें दिखा लेना।"

"हम तो तुम्हें औरों से कम पैसा नहीं देंगे।" काउंटी की सरकारी परीक्षा में सफल प्रत्याशी बोला। उसकी पत्नी ने आ क्यू की प्रतिक्रिया जानने की लिए तेजी से एक नजर उसकी ओर देखा।

"मुझे एक फर की जाकिट की आवश्यकता है।" श्रीमती चाओ ने कहा।

आ क्यू ने उसकी बात मान ली, पर वह इतनी लापरवाही से बाहर निकला कि लोगों को विश्वास ही नहीं हो पाया कि उसने उसकी बात भीतर से मानी है या नहीं। इस कारण से चाओ साहब इतने मायूस, परेशान और दुखी हो उठे कि उन्हें उबासियाँ आना भी बंद हो गया। काउंटी परीक्षा में सफल प्रत्याशी भी आ क्यू के व्यवहार से बिल्कुल नाखुश था। वह बोला, "ऐसी कछुए की औलाद से बहुत होशियार रहना चाहिए। अच्छा यह होगा कि बेलिफ को हुक्म देकर इसके वेइचवाङ में रहने पर प्रतिबंध लगा दी जाए।"

लेकिन चाओ साहब नहीं माने। उन्होंने कहा, "कहीं ऐसा न हो कि वह बदला लेने पर तुल जाए। वैसे कभी-कभी इस तरह के मामलों में, चील अपने स्वयं के घोसले में शिकार नहीं करती, वाली कहावत लागू होती है। आ क्यू से उसके अपने गाँववालों को कोई डर नहीं होना चाहिए, केवल रात के समय उन्हें अवश्य अधिक चौकन्ना होना चाहिए।" पिता के इस आदेश से प्रभावित होकर काउंटी परीक्षा में सफल प्रत्याशी ने आ क्यू को गाँव का बदर करने का अपना प्रस्ताव फौरन वापस ले लिया और श्रीमती चओ को होशिय़ार कर दिया कि यह बात किसी के सामने कतई न दोहराएँ।

लेकिन अगले ही दिन जब श्रीमती चओ अपने नीले लहँगे पर काला रंग करवाने ले गईं, तो उन्होंने आ क्यू पर लगाए गए आरोपों की चर्चा छेड़ दी। वैसे काउंटी परीक्षा में सफल प्रत्याशी द्वारा कही हुई उस बात की चर्चा उन्होंने नहीं की, जो उसने आ क्यू को गाँव से निकालने के बारे में कही थी। बावजूद इसके आ क्यू को इससे बहुत हानि हुई। सबसे पहले तो बेलिफ उसके पास जा पहुँचा और दरवाजे का पर्दा उठा ले गया। आ क्यू ने विरोध किया तो कहा कि इसे श्रीमती चाओ देखना चाहती हैं, पर बेलिफ ने वापस देने से इनकार कर दिया। यहाँ तक कि आ क्यू से हर महीने कुछ माल-मत्ते की माँग भी की। गाँववालों के मन में उसके लिए जो इज्जत पैदा हो गई थी, वह सहसा समाप्त हो गई। वैसे लोग अब भी उसके साथ हँसी-मजाक करने का साहस नहीं करते थे, पर हर आदमी उससे अधिक-से-अधिक कतराने की कोशिश करने लगा। उसके "मार डालो" का जो भय मस्तिष्क में पहले से बैठा हुआ था, उससे यह अलग प्रकार का डर था, फिर भी प्राचीन समाज द्वारा भूत-प्रेतों के प्रति अपनाए गए रवैये से यह बहुत मिलता-जुलता था, लोग उसके और अपने बीच एक सम्मान भरी दूरी बनाए रखते थे।

कुछ निठल्ले लोग इस व्यापार की तह में जाना चाहते थे, उन्होंने आ क्यू के पास जाकर अच्छी तरह पूछताछ की। बात छिपाने की तनिक भी कोशिश किए बिना आ क्यू ने बड़े गर्व से उनके सामने अपने कारनामों का बयान कर डाला। उसने उन्हें जो बताया कि शहर में वह बस एक मामूली-सा चोर था, जो न केवल दीवार फाँदने में, बल्कि खुले खिड़की -दरवाजों से भीतर जाने में भी असमर्थ था, वह तो खुले खिड़की-दरवाजों के बाहर खड़ा होकर चोरी का माल पकड़ सकता था।

एक दिन रात के समय जब चोरी के माल की एक गठरी उसे पकड़ाने के बाद उसके गिरोह का सरदार फिर से अंदर गया, तो भीतर से बहुत जोर का शोर-गुल सुनाई प़ड़ा। आ क्यू ने आव देखा न ताव, वह सिर पाँव रखकर भाग खड़ा हुआ। उसी रात वेइचवाङ लौट आया, उसके बाद उसने दोबारा इस व्यापार में लौटने की हिम्मत नहीं की। इस कहानी से आ क्यू की इज्जत को और ज्यादा आघात पहुँचा। गाँववाले उसके और अपने बीच एक सम्मान भरी दूरी इसलिए बनाए रखते थे, क्योंकि वे लोग उससे दुश्मनी मोल नहीं लेना चाहते थे। भला यह कौन जानता था कि वह एक ऐसा चोर है, जिसके अंदर फिर से चोरी का साहस नहीं? अब कहीं उन्हें मालूम हुआ कि वह सचमुच घटिया जीव था, इसलिए उससे डरने की आवश्यकता नहीं थी।