आ क्यू की सच्ची कहानी / अध्याय 9 / लू शुन

Gadya Kosh से
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शानदार पटाक्षेप

चाओ परिवरा के घर चोरी होने पर वेइच्वाङ के अधिकतर लोग बड़े खुश हुए, पर वे सहम भी गए। आ क्यू इसका अपवाद न था, पर चार दिन बाद अचानक आधी रात के समय आ क्यू को घसीट कर शहर ले जाया गया। वह अँधेरी रात थी। एक सैनिक दस्ता, एक मिलिशिया दस्ता, एक पुलिस दस्ता और गुप्तचर विभाग के पाँच आदमी चुपचाप वेइच्वाङ पहुँचे और कुल-देवता के मंदिर के फाटक के सामने मशीनगन लगा कर, उन्होंने अँधेरे में मंदिर घेर लिया। आ क्यू बाहर नहीं भागा। बहुत समय तक मंदिर में तिनका भी नहीं मिला। कप्तान बेचैन हो उठा और उसने बीस हजार ताँबे के सिक्कों के इनाम का ऐलान कर दिया। बस, तभी दो मिलिशियामैनों ने साहस बटोरकर दीवार फाँदी और अंदर घुस गए। उनके सहयोग से शेष लोग भी तेजी से अंदर घुस गए और आ क्यू को बाहर घसीट लाए, तब तक वह होश में नहीं आया।

शहर पहुँचने तक दोपहर हो चुकी थी। वे लोग आ क्यू को एक टूटे-फूटे सरकारी दफ्तर में ले गए, जहाँ पाँच-छह मोड़ पार करने के बाद उसे एक छोटे कमरे में धकेल दिया। जैसे ही वह गिरता-पड़ता कमरे में पहुँचा, लकड़ी के सींखचों का दरवाजा, जो कठघरे के दरवाजे जैसा लग रहा था, पीछे से तुरंत बंद हो गया। कमरे में शेष तीन ओर नंगी दीवारें थीं और जब उसने सावधानी से देखा, तो कमरे के एक कोने में से दो दूसरे व्यक्ति नजर आए।

आ क्यू को थोड़ी बेचैनी महसूस हो रही थी, फिर भी वह निराश बिल्कुल नहीं था, क्योंकि कुल-देवता के मंदिरवाला उसका कमरा, जहाँ वह सोता था, इस कमरे के मुकाबले किसी भी तरह बेहतर नहीं था। दूसरे दो व्यक्ति भी देहाती जान पड़ते थे। धीरे-धीरे उन्होंने आ क्यू से बात शुरू की। उनमें से एक ने बताया कि प्रांतीय परीक्षा में सफल प्रत्याशी उसके दादा के जमाने का लगान वसूल करने के लिए उसे परेशान कर रहा है। दूसरा व्यक्ति यह नहीं जानता था कि उसे यहाँ क्यों लाया गया है। जब उन्होंने आ क्यू से पूछा, तो उसने साफ कह दिया, "क्योंकि मैं विद्रोह करना चाहता था।"

उस दिन तीसरे पहर उसे लकड़ी के सींखचोंवाले दरवाजे के बाहर घसीट कर एक बड़े कमरे में ले जाया गया। कमरे के दूसरे किनारे पर एक बूढ़ा आदमी बैठा था, जिसकी चाँद घुटी हुई थी। आ क्यू ने पहले उसे कोई भिक्षु समझा, लेकिन जब देखा कि सैनिक उसकी रक्षा कर रहे हैं, जिनमें से कुछ लोगों की चाँद इसी बूढ़े आदमी की तरह घुटी हुई है, और कुछ लोग नकली विदेशी दरिंदे की ही तरह अपने बाल लगभग एक फुट लम्बे बढ़ाकर उन्हें अपने कंधों तक लटकाए हुए हैं, और सब के सब गुस्से से लाल-पीले होकर बडी गंभीर मुद्रा में उसकी ओर घूर रहे हैं, तो वह समझ गया कि अवश्य ही कोई महत्वपूर्ण व्यक्ति है। उसके घुटने खुद-ब-खुद मुड़ते चले गए और वह सिकुड़ कर धरती पर घुटनों के बल बैठ गया।

"खड़े होकर बात करो। घुटने टेकने की आवश्यकता नहीं।" लंबे कोटवाले सारे व्यक्ति जोर से बोल पड़े।

आ क्यू उनकी बात समझ गया, फिर भी वह खड़े होने में अपने को असमर्थ महसूस कर रहा था - उसका शरीर अनायास ही सिकुड़ गया था और अंत में वह बडी अच्छी तरह घुटनों के बल बैठ गया था।

"गुलाम कहीं का।" लंबे कोटवाले व्यक्तियों ने तिरस्कार के साथ कहा, लेकिन उन्होंने आ क्यू से उठने का आग्रह नहीं किया।

"अगर सच-सच बता दोगे तो हलकी सजा मिलेगी," घुटे सिरवाले बूढ़े आदमी ने आ क्यू की आँखों में आँखें डाल कर धीमे किन्तु स्पष्ट स्वर में कहा, "मुझे सब मालूम हो चुका है। अगर स्वीकार कर लोगे, तो छोड़ दिए जाओगे।"

"स्वीकार कर लो।" लंबे कोटवाले व्यक्तियों ने जोर से कहा।

"बात यह है कि मैं... खुद ही आना... चाहता था... " आ क्यू ने एक क्षण के लए अवाक रहने के बाद लड़खड़ाती जबान से उत्तर दिया।

"अगर ऐसी बात थी, तो तुम आ क्यों नहीं गए?" बूढ़े आदमी ने बड़ी नरमी से कहा।

"नकली विदेशी दरिंदे ने आने ही नहीं दिया।"

"बकवास बंद करो। यह चर्चा अब बेकार है। तुम्हारे साथी कहाँ हैं?"

"क्या कहा...?"

"जिन लोगों ने उस रात चाओ परिवार के घर चोरी की, वे लोग कहाँ हैं?" "वे मुझे अपने साथ नहीं ले गए थे। उन्होंने चोरी खुद की थी।" यह कहते हुए आ क्यू कुछ क्रोधित हो उठा।

"वे कहाँ हैं? अगर बता दोगे, तो तुम्हें छोड़ दिया जाएगा।" बूढ़े आदमी ने अधिक नरमी से दोहराया।

"मुझे नहीं मालूम। वे मुझे अपने साथ नहीं ले गए थे।"

इसके बाद बूढ़े आदमी के इशारे पर आ क्यू को घसीटकर लकड़ी के सीँखचोंवाले दरवाजे के भीतर धकेल दिया गया। अगले दिन सुबह उसे एक बार फिर घसीटकर बाहर निकाला गया।

बड़े कमरे में हर चीज पहले जैसी थी। घुटे सिरवाला बूढ़ा अब भी वहीं बैठा था और आ क्यू एक बार फिर पहले की तरह घुटनों के बल बैठ गया था।

"तुम्हें कुछ और कहना है?" बूढ़े ने बड़ी नरमी से पूछा।

आ क्यू ने सोचा और फैसला कर लिया कि उसे कुछ नहीं कहना। इसलिए उसने उत्तर दिया, "कुछ नहीं।"

इसके बाद लंबे कोटवाला एक आदमी कागज और कलम लेकर आ क्यू के पास आ पहुँचा। उसने कलम आ क्यू के हाथ में थमाने का प्रयत्न किया। आ क्यू डर के मारे काँपने लगा, उसकी जिंदगी में यह पहला अवसर था, जबकि उसे लिखने के काम आनेवाली कलम हाथ में उठानी पड़ रही थी। अभी यह सोच ही रहा था कि कलम कैसे पकड़ी जाए, उस आदमी ने कागज पर एक जगह ऊँगली रखते हुए उससे हस्ताक्षर करने को कहा।

"मैं... मैं लिखना नहीं जानता।" आ क्यू ने कहा। वह शर्म से गड़ा जा रहा था। कलम पकड़े उसका हाथ काँप रहा था।

"अगर ऐसी बात है, तो एक गोल आकार बना दो। यह तो तुम्हारे लिए आसान है।"

आ क्यू ने एक गोल आकार बनाने की कोशिश की, लेकिन जिस हाथ से उसने कलम पकड़ी हुई थी, वह काँप रहा था। इसलिए उस आदमी ने आ क्यू के लिए कागज जमीन पर फैला दिया। आ क्यू झुका और उसने बड़े जतन से, जैसे इस पर उसके जीवन का अस्तित्व निर्भर हो, एक आकार बना दिया। इस भय से कि कहीं लोग उसकी हँसी न उड़ाएँ, उसने आकार को गोल बनाने की कोशिश की, लेकिन वह कमबख्त कलम न सिर्फ बहुत भारी थी, बल्कि उसके आदेश का पालन भी नहीं कर रही थी। इसके उलटे वह इधर-उधर डगमगाती हुई चल रही थी, और जब आकार पूरा होने ही जा रहा था, तो वह एक बार फिर डगमगा गई, जिससे तरबूज के बीज जैसा आकार बन गया।

चूँकि आ क्यू एक गोल आकार नहीं बना पाया, इसलिए वह शर्म के मारे गड़ा जा रहा था। उस आदमी ने बिना कुछ कहे कागज और कलम को उसके हाथ से ले लिया। इसके बाद कई लोगों ने उसे तीसरी बार घसीट कर लकड़ी के सीँखचोंवाले दरवाजे के भीतर धकेल दिया।

इस बार उसे ज्यादा परेशानी नहीं हुई। उसने सोचा कि इस दुनिया में हर आदमी को किसी-न-किसी समय बंदीगृह के अदंर या बाहर अवश्य जाना पड़ता है और कागज पर आकार अवश्य बनाने पड़ते हैं। उसका बनाया हुआ आकार गोल नहीं था इसलिए आ क्यू को ऐसा लग रहा था, जैसे उसकी इज्जत पर धब्बा लग गया हो, लेकिन तभी उसने यह सोचकर अपने मन को तसल्ली दी कि "केवल मूर्ख लोग ही सम्पूर्ण आकार बना सकते हैं।" मन में यही विचार लिए वह सो गया।

मगर उस रात प्रांतीय परीक्षा में सफल प्रत्याशी नहीं सो सका, क्योंकि कप्तान से उसका झगड़ा हो गया था। सफल प्रत्याशी इस बात पर जोर दे रहा था कि सबसे अधिक महत्व की बात है चुराए गए माल को बरामद करना, जबकि कप्तान कह रहा था कि सबसे ज्यादा महत्व की बात है, लोगों के सामने उदाहरण प्रस्तुत करना। कुछ समय से कप्तान प्रांतीय परीक्षा में सफल प्रत्याशी के साथ बड़ा तिरस्कारपूर्ण व्यवहार कर रहा था। इसलिए मेज पर जोर से घूँसा मारते हुए कहा था, "एक को सजा दो और सौ को डराओ। मालूम है तुम्हें, मुझे क्रांतिकारी पार्टी का सदस्य बने अभी बीस दिन भी नहीं हुए कि लूटमार की एक दर्जन से ज्यादा वारदातें हो चुकी हैं और इसमें से एक भी मामले का सुराग नहीं मिल पाया है। जरा सोचो इसकी मेरी प्रतिष्ठा पर कितना गलत असर पड़ रहा है। बड़ी मुश्किल से यह मामला सुलझ सका है, लेकिन तुम सिद्धांत बघारने चले आए। इससे काम नहीं चलेगा। यह मेरा मामला है।"

प्रांतीय परीक्षा में सफल प्रत्याशी बहुत क्षुब्ध हो उठा, लेकिन अपनी बात पर अडिग रहते हुए उसने कहा कि अगर चोरी का माल बराद नहीं हुआ तो वह सहायक नागरिक प्रशासक के पद से तुरंत त्यागपत्र दे देगा।

"जो जी में आए करो।" कप्तान ने उत्तर दिया।

इस घटना से प्रांतीय परीक्षा में सफल प्रत्याशी उस रात सो न सका, लेकिन दिलचस्प बात यह है कि अगले दिन सुबह उसने त्यागपत्र नहीं दिया।

जिस रात प्रांतीय परीक्षा में सफल प्रत्याशी सो नहीं सका था, उसके अगले दिन सुबह आ क्यू को घसीट कर लकड़ी के सींखचोंवाले दरवाजे के बाहर फिर लाया गया। जब उसे बड़े कमरे में ले जाया गया, तो घुटे हुए सिरवाला बूढा पहले की तरह वहाँ बैठा था। आ क्यू भी पहली की तरह घुटनों के बल बैठ गया।

बूढ़े आदमी ने बड़ी नरमी से उससे पूछा, "तुम्हें कुछ और कहना है?'

आ क्यू ने सोचा और फैसला कर लिया कि उसे कुछ नहीं कहना। इसलिए उसने जवाब दिया, "कुछ नहीं।"

लंबे कोट और छोटी जाकिटवाले कई लोगों ने विदेशी कपड़े की बनी एक सफेद बनियान उसे पहना दी। इस पर काले रंग के अक्षर अंकित थे। आ क्यू को घबराहट महसूस हुई, क्योंकि यह पोशाक कुछ शोक मनानेवालों की-सी लगती थी, और शोक मनानेवालों की पोशाक पहनना अपशकुन समझा जाता है। साथ ही उसके दोनों हाथ पीठ पर बँधे हुए थे। वे लोग उसे सरकारी दफ्तर से बाहर घसीट ले गए।

आ क्यू को एक खुले छकड़े में बैठा दिया गया और कई छोटी जाकिटवाले उसके साथ बैठ गए। छकड़ा फौरन चल पड़ा। छकड़े के सामने बहुत-से सैनिक व मिलिशियावाले चल रहे थे, जिनके कंधों पर विदेशी राइफलें लटक रही थीं। पीछे की ओर क्या था, यह आ क्यू को नजर नहीं आ रहा था। अचानक उसे खयाल आया, "क्या ये लोग मेरी गर्दन उड़ाने तो नहीं ले जा रहे हैं?" उसका दिल दहल उठा, आँखों के सामने अँधेरा छा गया, कानों में घूँ-घूँ की आवाज गूँजने लगी और उसे लगा, जैसे बेहोश हो जाएगा। मगर वह बेहोश नहीं हुआ। वह कुछ देर तक डरा रहा, लेकिन बाद में शांत हो गया। उसने सोचा कि इस दुनिया में शायद हर आदमी को किसी-न-किसी समय अपना सिर अवश्य कटवाना पड़ता है।

इस सड़क से वह अच्छी तरह परिचित था, पर उसे बड़ा आश्चर्य हो रहा था - ये लोग उसे कत्लगाह की ओर क्यों नहीं ले जा रहे? यह बात वह नहीं जानता था कि लोगों के सामने उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए उसे पूरे शहर में घुमाया जा रहा है। अगर उसे मालूम भी हो जाता, तो भी स्थिति में कोई बदलाव नहीं होनेवाला था, बस वह सोचने लगता था कि इस दुनिया में शायद हर आदमी को किसी-न-किसी दिन लोगों के सामने अवश्य उदाहरण बन कर प्रस्तुत होना पड़ता है।

और जब वे लोग कत्लगाह की ओर मुड़े, तब कहीं उसे ज्ञात हुआ कि उसका सिर कटनेवाला है। जो लोग चींटियों की तरह उसके इर्दगिर्द एकत्र हो गए थे, उनकी ओर आ क्यू ने बड़ी दुखी नजरों से देखा। सड़क के किनारे एकत्र भीड़ में सहसा उसकी नजर आमा ऊ पर पड़ी। अच्छा, तो इसलिए इतने दिनों तक वह नहीं दिखाई दी। वह शहर में काम करने लगी थी।

अचानक आ क्यू को अपने ठंडे उत्साह पर शर्म महसूस होने लगी, क्योंकि उसने आपेरा की एक भी पंक्ति नहीं गाई थी। उसके मन में अनेक विचार घूम गए, "युवा विधवा अपने पति की कब्र पर" अधिक वीररसपूर्ण नहीं है, 'नाग और बाघ की लड़ाई' के ये शब्द कि 'है अफसोस मुझे मैंने हत्या कर डाली' बिल्कुल निम्न स्तर के हैं। 'हड्डी-पसली चूर तुम्हारी लोहे की छड़ से कर दूँगा' सबसे अच्छा रहेगा। लेकिन जब उसने अपने हाथ ऊपर उठाने की कोशिश की, तो याद आया कि उसके दोनों हाथ बँधे हुए हैं। इसलिए उसने 'हड्डी- पसली चूर तुम्हारी... ' भी नहीं गाया।

"बीस बरस बाद मैं एक अन्य... ।" क्षुब्ध आ क्यू के मुँह से इसकी आधी पंक्ति निकली, जिसे उसने पहले कभी याद कर लिया था परन्तु इस्तेमाल कभी नहीं किया था। "बहुत खूब।" भीड़ की आवाज भेड़िए की गुर्राहट के समान गूँज उठी।

छकड़ा लगातार आगे बढ़ता जा रहा था। इस शोरगुल के बीच आ क्यू की आँखें आमा ऊ को खोज रही थीं, लेकिन मालूम होता था कि उसने आ क्यू को नहीं देखा, क्योंकि वह सैनिकों के कंधों पर लटकी विदेशी राइफलों पर नजर गड़ाए थी।

आ क्यू ने शोरगुल मचाती भीड़ पर एक बार फिर नजर डाली।

उस समय उसके मन में फिर एक बार अनेक विचार घूम गए। आज से चार साल पहले पहाड़ की तलहटी में उसका सामना एक भूखे भेड़िए से हो गया था। भेड़िया उसके पीछे लग गया था और उसे खा जाना चाहता था। आ क्यू को लगा कि भय के मारे उसके प्राण ही नकल जाएँगे, पर भाग्य से उसके हाथ में एक कुल्हाड़ी थी, जिससे उसके अंदर वेइच्वाङ लौटने की हिम्मत आ गई। मगर उस भेडिए की आँखों को वह कभी नहीं भूल सका था। खूँखार होते हुए भी वे सहमी हुई, दो ज्योति-पुंजों की तरह चमक रही थीं, जैसे दूर से ही उसे बेध डालेंगी। आज उसे उस भेड़िए से भी ज्यादा खूँखार आँखें नजर आ रही हैं - ठंडी लेकिन मर्म को भेदनेवाली आँखें, जो उसके शब्दों को निगल जाने के बाद उसके हाड़-मांस से भी कुछ अधिक चीजें नगल जाने को तत्पर थीं। ये आँखें एक निश्चित दूरी पर बराबर उसका पीछा कर रहीं थीं। लगता था, ये आँखें एक ही बिंदु पर केंद्रित हो कर उसकी आत्मा को बेध रही हैं।

"बचाओ... बचाओ... ।"

लेकिन यह शब्द आ क्यू के मुँह से कतई नहीं निकले थे। उसकी आँखों के आगे अँधेरा छा गया, कानों में घूँ -घूँ की आवाजें गूँजने लगीं और उसे लगा, जैसे सारा शरीर मिट्टी की तरह बिखर गया हो।

उस चोरी के बाद सबसे अधिक प्रभाव प्रांतीय परीक्षा में सफल प्रत्याशी पर पड़ा, क्योंकि चोरी का माल बरामद नहीं हो पाया। उसाक सारा परिवार दुख के समंदर में डूब गया। दूसरे नंबर पर सबसे अधिक प्रभाव चाओ परिवार पर पड़ा, जब काउंटी परीक्षा का सफल प्रत्याशी चोरी की रपट लिखाने शहर गया, तो कुछ बुरे क्रांतिकारियों ने न सिर्फ उसकी चोटी ही काट डाली, बल्कि उससे बीस हजार ताँबे के सिक्के भी वसूल कर लिए। इससे पूरा चाओ परिवार भी दुख से समंदर में डूब गया। उस दिन के बाद से उन लोगों में बस एक सत्ताच्युत राजवंश के उत्तराधिकारी की-सी शान शेष रह गई।

इस घटना की चर्चा करते समय वेइच्वाङ में किसी ने कोई प्रश्न नहीं उठाया। प्राकृतिक तौर पर सभी इस बात के बारे में एकमत थे कि आ क्यू बुरा आदमी था, इसका सबूत यह था कि उसे गोली मार दी गई थी। अगर वह बुरा आदमी न होता, तो भला उसे गोली क्यों मारी जाती? लेकिन शहर के लोगों का मत उसके पक्ष में नहीं था। ज्यादा लोग इसलिए असंतुष्ट थे, क्योंकि गोली मारने का दृश्य उतना जोरदार नहीं होता, जितना कि सिर काटने का, और वह कितना हास्यास्पद अपराधी था, जो आपेरा की भी पंक्ति गाए बिना इतने गली-कूचों से गुजर गया। वे लोग व्यर्थ ही उसके पीछे गए।

समाप्त।