इंतज़ार / अमित कुमार पाण्डेय

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मोहन लाल सिंह जौनपुर एक प्रतिष्ठित नागरिक हैं। वो एक बैंक में चीफ़ मैनेजर के पद पर कार्यरत हैं। उनकी पोस्टिंग जौनपुर शहर से 150 किलोमीटर दूर है। लिहाजा वह वीकेंड पर अपने घर आते हैं। वो अपने जौनपुर वाले मकान में अपनी पत्नी उमा, बड़े बेटे राजू और छोटी बेटी रानी के साथ रहते हैं।

उमा ने परेशान होकर पूछा-"रानी बेटा, राजू अभी घर आया की नहीं"।

"अभी नहीं मम्मी"-रानी ने जवाब दिया।

"शाम के 7 बज गए हैं और ये लड़का अभी भी बाहर घूम रहा है। अभी तुम्हारे पापा राजू के बारे में फोन से पूछेंगे तो मुझे झूठ बोलना पड़ेगा की वह पढ़ रहा है। क्या होगा इस लड़के का। इंटर की पढ़ाई है उपर से मैथ और साइन्स। मुझे तो कभी-कभी इसकी बहुत चिंता होती है"-उमा ने भुनभुनाते हुए कहा।

तभी राजू ने घर में कदम रखा। उमा ने गुस्से से पूछा, "कहाँ थे इतने देरी से। जबसे स्कूल से आए हो तब से गायब हो। मैं देख रही हूँ तुम दिन प्रतिदिन पढ़ाई के प्रति लापरवाह होते जा रहे हो"। "बाहर था मम्मी, दोस्तों के साथ क्रिकेट खेल रहा था"-राजू ने तुरंत जवाब दिया। "अच्छा ठीक है। तुरंत हाथ मुह धो कर पढ़ने बैठ जाओ"।

"मम्मी सुना है, सामने के मकान में कोई नए किराएदार आ रहें हैं"-राजू ने मम्मी से पूछा।

"हाँ कोई पंडित हैं। सुना है पीडबल्यूडी में जूनियर इंजीनियर हैं। बस्ती से ट्रान्सफर होके आ रहे है। लेकिन तुमसे क्या लेना देना। तुम जाकर अपनी पढ़ाई करो"। –उमा ने गुस्से से बोला।

राजू हाथ मुह धोकर पढ़ने बैठ गया। उसी कमरे में रानी भी पढ़ रही थी। जैसे ही राजू किताब खोलकर बैठा तो उसे बाहर से एक गाड़ी की आवाज़ सुनाई दी। राजू रानी से बोला कि देख बाहर कौन है। रानी ने बोला-"मेरे पास फुर्सत नहीं है और मुझे तंग नहीं करो पढ़ने दो। क्यो नहीं जाकर खुद देख लेते"।

राजू सीट से उठा और खिड़की से बाहर झाकने लगा। उसने देखा कि कार से पहले एक आदमी और एक औरत उतरे। फिर एक नौजवान लड़का और सबसे अंतिम में एक लड़की उतरी जो लगभग राजू की हमउम्र लगती थी। फिर वह लोग एक-एक करके अपना सामान कार से उतार रहे थे। राजू का सारा ध्यान उस लड़की की तरफ था। जैसे ही वह लड़की पलटी तो गली की लाइट की रोशनी में राजू को उसका चेहरा दिखाई दिया। उस लड़की का सारा चेहरा धूल से नहा चुका था। पूरे शरीर पर यात्रा की थकान दिखाई रही थी। तभी रानी ने राजू से कहा-"अब बाहर ही देखते रहोगे की पढ़ाई भी करोगे"।

"तू अपना काम किया कर। मेरे मामले में टांग मत अढ़ाया कर। तू मुझसे उम्र में छोटी है।"-राजू ने गुस्से से बोला और वापस अपनी जगह आ के बैठ गया। थोड़ी देर बाद घर की घंटी बजी. राजू उठ कर दरवाजा खोलने के लिए गया। जैसे ही उसने दरवाजा खोला तो पाया की वही लड़की सामने खड़ी थी। तभी रानी भी पीछे आ गयी।

उस लड़की ने रानी से कहा-"हमलोग आपके सामने वाले घर को किराए पर लिया है। अभी-अभी बस्ती से आए हैं। क्या थोड़ा दूध मिलेगा चाय के लिए. नए होने की वजह से अभी हमे दुकान के बारे में पता नहीं है"।

क्यों नहीं। अब तो आप हमारी पड़ोसी हैं। इतना कह कर रानी उस लड़की का हाथ पकड़ कर घर के अंदर ले गई.

"माँ, ये है हमारे नए पड़ोसी सामने वाले मकान में रहने आयें हैं"-रानी ने अपनी माँ से कहा। उमा किचन से बाहर आए और बोली-"अच्छा तुम्ही लोग थे आने वाले सामने के मकान मे। क्या नाम है बेटी?"

"शालिनी मिश्रा। लेकिन लोग घर पर शालू बुलाते हैं"।

"बड़ा प्यारा नाम हैं"-उमा ने प्यार से शालू के सर पर हाथ फेरते हुए कहा।

रानी बोली-"मम्मी, शालू को दूध चाहिए"। "हाँ-हाँ क्यों नहीं"। उमा ने एक बर्तन में दूध निकालकर शालू को पकड़ा दिया। शालू ने कहा कि अच्छा आंटी चलती हूँ। कल सुबह बर्तन वापस कर जाऊँगी। उमा ने कहा, "ठीक है बेटी. अब घर आते रहना"।

जैसेही शालू रानी के साथ घर के बाहर आए तो देखा कि राजू उसी नौजवान से बात कर रहा है।

"वो तुम्हारे भाई है"-रानी ने शालू से पूछा।

"हाँ, उनका नाम रमेश है। हाल ही में उन्होने ग्राजुएशन पूरा किया है। अब वह इलाहाबाद में रहकर नौकरी कि तैयारी कर रहें है"। "और कौन-कौन है तुम्हारे घर मे"।

"पापा, राजीव मिश्रा, जो पीडबल्यूडी में जे॰ई है और मम्मी शांति मिश्रा जो कि हाउस वाइफ़ हैं"।

"अच्छा रानी, मैं चलती हूँ"। राजू रमेश से बात करते हुए बीच-बीच में शालू की ही तरफ देख रहा था। राजू ने भी रमेश से विदा ली और वापस अपने कमरे में आ गया। पढ़ते-पढ़ते बार बार राजू का ध्यान शालू की तरफ चला जा रहा था। राजू ने रानी से पूछा-"क्या नाम है उस लड़की का"।

"मुझे नहीं मालुम। तू अपनी पढ़ाई कर"। रानी ने बड़ी बेरुखाई से उत्तर दिया। राजू चुप चाप किताब की तरफ देखने लगा। रात का खाना खाते वक़्त राजू मम्मी से बोल-"मम्मी कल सुबह मुझे जल्दी मत जगाना। कल रविवार है"।

उमा बोली-"ठीक है। आज काफी ठंड है"।

राजू सुबह देर से उठा और चाय लेकर छत पर टहलने लगा। जाड़े कि धूप हल्की थी पर राजू को चाय के साथ बड़ा आनंद आ रहा था। तभी राजू ने देखा कि शालू छत पर अपने बाल सुखाने के लिए आ गई. शालू अपने छत पर टहल रही थी और बीच-बीच में अपने बालों को झटक रही थी। बाल झटकने से जो पानी की बूंदें गिर रही थी उसकी ठंड इस समय राजू बखूबी महसूस कर सकता था। शालू ने पीले कलर का सूट पहन रखा था। वो इस समय बहुत ही खूबसूरत लग रही थी। कल रात जब उसने शालू को देखा था उससे बिलकुल अलग। राजू लगातार शालू को देखा जा रहा था। बीच-बीच में शालू की अपरिचित नज़र राजू से मिल जाती थी। नज़र मिलते ही राजू के शरीर में सिहरन दौड़ उठती थी। थोड़ी देर बाल सुखाने के बाद शालू छत से नीचे चली गई. पर राजू काफी देरी शालू के छत पर दोबारा आने की प्रतीक्षा करता रहा। जब काफी देरी शालू छत पर नहीं आई तो राजू भी नीचे आ गया। जैसे ही वह नीचे पहुँचा तो पाया की शालू दूध का बर्तन वापस करने आई है और उसके माँ से बात कर रही है। राजू भी बेशर्मी से वहीं खड़े होकर उनकी बातें सुनने लगा।

उमा ने शालू से पूछा, "बेटी किस क्लास में पड़ती हो"।

"ग्यारवही मे। कल पापा स्कूल का फार्म लेने जाएंगे"-शालू ने उत्तर दिया।

"अच्छा है बेटी. रानी भी इस साल दसवी में है। तुम दोनों साथ-साथ स्कूल जाया करना"। और ये है मेरा बड़ा बेटा राजू। दिन भर घूमता रहता है। पढ़ने लिखने की फुर्सत नहीं इसे"। राजू कुछ शरमा-सा गया। शालू ने एक हल्की मुस्कान के साथ राजू की तरफ देखा और वापस अपने घर की तरफ चल दी।

"क्या मम्मी आपने शालू के सामने मेरे इज्ज़त का कबाड़ा कर दिया। वो क्या सोचेगी मेरे बारें मे"-राजू ने मम्मी की तरफ शिकायत पूर्ण दृष्टि से कहा।

"अच्छा चल बहुत हुआ इज्ज़त वाला। जा के अपनी पढ़ाई कर"-उमा ने राजू डाट दिया। पर राजू माँ की बात का ध्यान न देते हुए कपड़े पहन कर बाहर घूमने के लिए चल दिया। राजू शाम को घर लौटा तो पाया की शालू का घर व्यवथित हो चुका था। राजू घर के पहली मंजिल पर पहुचा तो पाया की उसके घर के एक कमरे की खिड़की ठीक शालू के रूम की खिड़की के सामने थी। राजू तुरंत नीचे आया और अपनी कापी किताबें उसी रूम में शिफ्ट करने लगा। उमा ने जब शिफ्टिंग के बारें में पूछा तो राजू ने जवाब दिया की माँ बोर्ड की परीक्षा सर पर आ रही है। मुझे अकेले पढ़ाई करनी है। नीचे रानी मुझे तंग करती है।

"ठीक है बेटा ऊपर पढ़ाई ही करना। मैं बीच-बीच में ऊपर आती रहूँगी"। –उमा ने जवाब दिया। बस फिर क्या था राजू ने अपनी मेज कुर्सी ठीक खिड़की के साथ लगा दी जहां से शालू का कमरा ठीक दिखाई दे और पढ़ाई शुरू कर दी। राजू का सारा ध्यान शालू की खिड़की की तरफ होता था। कभी-कभी शालू उसको अपनी खिड़की से दिखाई देती पर अधिकतर समय शालू के रूम की खिड़की बंद ही रहती। राजू स्कूल से आने के बाद अधिकतर समय अपने रूम में ही रहता। राजू ने महसूस किया की वह मन ही मन से शालू को पसंद करने लगा था। पर उसे शालू से बात करने का कोई बहाना नहीं मिल रहा था। तभी एक दिन शालू रानी से मिलने के लिए घर पर आई, रानी को घर पर न पाकर लौटने लगी तो राजू ने उसे बीच में रोक दिया और डरते हुए उससे पूछा-"मैं आपसे एक बात कहना चाहता हूँ। प्लीज आप नाराज़ मत होना"।

शालू ने कहा–"क्या कहना चाहते हो"।

"मैं आपको धन्यवाद देना चाहता हूँ"-राजू ने थोड़ा डरते हुए बोला।

"मुझे धन्यवाद देना चाहते हो। क्यों?"-शालू ने आश्चर्य से पूछा।

जब से आप मेरे घर के सामने रहने आई हैं, तब से मैं आपसे बात करने का बहाना ढूंढ रहा हूँ। वो मुझे आज जा के मिला है। आपके कमरे की खिड़की ठीक मेरे कमरे की खिड़की के सामने है। मैं आपकी एक झलक पाने के लिए सारी रात खिड़की के पास किताब ले कर बैठा रहता हूँ। आप तो हमें कभी-कभी दिखाई देती हैं पर इसी बहाने मैं सारी रात जाग के पढ़ाई कर लेता हूँ। इसलिए मैं आपको धन्यवाद देना चाहता था। शालू ने एक गंभीर नज़रों से राजू की तरफ देखा और अपने घर की तरफ चल दी। राजू डर गया की कहीं शालू मम्मी से राजू की शिकायत न कर दे। रोज़ की ही तरह राजू आज भी खिड़की के पास बैठा पढ़ रहा था कि तभी उसने देखा कि शालू ने भी अपनी रूम की खिड़की खोल दी और राजू कि तरफ देखकर मुस्कुराने लगी। बस क्या था, खिड़की से देखने का सिलसिला शुरू हो गया। धीरे-धीरे दोनों की मुस्कुराहट इशारों में तब्दील हो गई. रात को खाना खाने से लेकर सोने तक की सारी बातें इशारों में होने लगी। एक दिन उमा और रानी बाज़ार गए थे तब मौका पाकर राजू ने इशारे से शालू को अपने घर बुला लिया। राजू ने कहा कि कुछ भी कहो तुम्हारी एक झलक पाने के लिए मैं सारी रात खिड़की के पास बैठा रहता हूँ।

शालू ने मुस्कुराकर राजू का हाथ अपने हाथ में ले लिया और बोला-"तुम्हें मुझे वचन देना होगा की तुम सारी रात मेरे बारे में नहीं सोचोगे। सिर्फ मन लगाकर अपनी पढ़ाई पर ध्यान दोगे और बोर्ड की परीक्षा अच्छे नंबर से पास करोगे। तभी हम लोगों की दोस्ती बरकरार रहेगी"। शालू ने एक मुस्कान राजू की तरफ देखकर बिखेरी और वापस अपने घर को चल दी। बोर्ड की परीक्षा राजू ने अच्छे नंबर से पास की और इंजीन्यरिंग की कोचिंग करने के लिए एक साल के लिए बाहर चला गया। एक साल बाद राजू का दाखिला एक अच्छे कॉलेज में हो गया। कॉलेज जाने से पहले राजू ने एक दिन शालू से एक कॉफी शॉप में मुलाक़ात की।

"शालू अब मैं चार साल के लिए बाहर पढ़ने जा रह हूँ। हम अब तक सिर्फ़ अच्छे दोस्त रहे हैं। हमारी मुलाक़ात एक कमरे की खिड़की से शुरू होकर कॉफी शॉप तक आ गई है। इस बीच मैंने तुम्हारे अलावा किसी और लड़की का ध्यान तक नहीं किया। मेरे दिलो दिमाग पर सिर्फ़ तुम छाई हो। मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ और भविष्य में तुम्ही से शादी करना चाहूँगा। उम्मीद है तुम मेरा तब तक इंतज़ार करोगी"।

शालू ने कहा-"मैं तुम्हारा इंतज़ार करूंगी लेकिन मेरी एक शर्त है"।

राजू ने कहा- "क्या" ।

शालू ने कहा-"तुम्हें मुझे इसी कॉफी शॉप में शादी के लिए भी मनाना होगा। मैं तब तक तुम्हारा इंतज़ार करूंगी। ये एक लड़की का वादा है"।

आखिरकार राजू अपने घर से कॉलेज के लिए विदा हुआ। धीरे-धीरे दिन बीतने लगे। राजू की पढ़ाई और शालू के प्रति उसका प्यार दोनों फलने फूलने लगे। इस बीच शालू ने बाराहवीं की परीक्षा पास की और नर्सिंग का कोर्स पूरा कर लिया।

इस बीच अचानक एक दुर्घटना घटी. जब राजू फ़ाइनल इयर में था तो शालू के पिता की एक कार एक्सिडेंट में मृत्यु हो गई. राजू के घर वालों ने शालू के घर वालों की इस विपत्ति में बहुत साथ दिया। शालू के भाई रमेश को उसके पिता की जगह नौकरी मिल गई. थोड़ी दिन बाद शालू को भी पास के हॉस्पिटल में नर्स की नौकरी मिल गई. धीरे शालू के घर सब कुछ ठीक हो रह था। राजू जब भी कॉलेज से छुट्टी में घर आता तो वह शालू से उसी कॉफी शॉप में मुलाक़ात करता।

एक दिन राजू ने शालू को फोन किया और बोला-"शालू आज मैं बहुत खुश हूँ"। शाली ने कहा, -"क्या बात है"।

राजू ने कहा-"आज मेरी प्लेसमेंट हो गई है। कंपनी वालों ने अच्छा पैकेज दिया है"।

"ये तो बहुत खुशी की बात है"-शालू बहुत खुश होकर बोली। कौन-सी जगह नौकरी लग रही है।

"अभी कुछ पता नहीं है। कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद कंपनी वाले पहले ट्रेनिंग देंगे। बाद में प्लेस ऑफर करेंगे"।

आज शालू बहुत खुश थी। आज उसने मंदिर जाकर भगवान की पूजा की। शालू तो अब बस राजू से शादी के सपने देखने लगी थी। कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद राजू ट्रेनिंग के लिए दिल्ली चला गया। इधर शालू की नर्स की नौकरी भी ठीक चल रही थी।

एक शालू की माँ ने शालू से कहा-"बेटी अब तुम बड़ी हो गई हो। मैं और रमेश तुम्हारे शादी के बारें में विचार कर रहें हैं। शालू पहले कुछ सकुचाई फिर अपनी माँ से बोली-" माँ एक बात कहूँ तुम नाराज़ तो नहीं होगी"।

माँ बोली–"क्या बात है। कहो तो सही"।

शालू ने कहा कि माँ जब से हमलोग इस घर में आए है तब से मैं राजू से बहुत प्यार करती हूँ और राजू भी मुझे बहुत चाहता है। राजू ने ही मुझसे कहा था कि उसकी नौकरी के बाद हम लोग शादी कर लेंगे। अब तो राजू की नौकरी भी लग गई है। तुम और भाई जाकर एक बार राजू की मम्मी से बात तो करो"।

माँ ने कहा, "पर बेटी, वह बात तो ठीक है लेकिन उन लोगों की हैसियत हम लोगों से बहुत ऊपर है। ऊपर से हम पंडित और वह ठाकुर। तेरे पापा ज़िंदा होते तो कोई और बात होती"।

"माँ एक बार आप लोग जाओ तो सही। मुझे राजू पर पूरा भरोसा है वह सब ठीक कर देगा"-शालू ने बड़े आत्मविश्वास के साथ कहा। "ठीक है रमेश आएगा तो बात करूंगी"।

एक दिन जब राजू के माता-पिता दोनों घर में उपस्थित थे तो शालू की माँ और रमेश उनके घर शालू के शादी बारें बात करने गए. बात ही बात में शालू की माँ ने शालू से राजू की शादी की बात छेड़ी। शादी की बात सुनकर राजू के माता-पिता की कोई खास प्रतिक्रिया नहीं हुई. राजू की माँ ने कहा कि अगले महीने राजू अपनी ट्रेनिंग खतम करके घर वापस आ रहा है। तभी हमलोग उससे बात करके आप को बता देंगे।

फिर अगले महीने राजू ट्रेनिंग पूरी कर के घर वापस आया। उमा ने राजू से कहा-"पिछले महीने शालू की माँ और भाई आये थे शालू से तुम्हारा रिश्ता लेकर। तब तो हम लोगों ने टाल दिया था। हम लोगों तो ये रिश्ता मंजूर नहीं"।

राजू ने कहा-"माँ हम लोग बचपन से एक दूसरे को पसंद करते हैं"।

उमा ने कहा-"बेटा अब तुम लड़के नहीं हो, जवान हो। एक तो वह लोग-लोग हमारी जात के नहीं है ऊपर से उनकी हैसियत देखी है। तुम्हारे पापा को ये रिश्ता एकदम मंजूर नहीं है। मैं अभी फोन करके शालू कि माँ को मना कर देती हूँ"।

"लेकिन माँ मेरी अपनी भी तो कोई खुशी है"-राजू झल्लाकर बोला"।

उमा बोली-"ठीक आज शाम तुम्हारे पापा घर आएंगे तो हम लोग बैठ कर आपस में विचार कर लेंगे"।

शाम को जैसे ही उमा ने शादी की बात राजू के पापा से छेड़ी, राजू के पापा काफी नाराज़ हो गए. राजू के पापा ने कहा-"देखो उमा, तुम राजू को बता दो की ये शादी किसी कीमत पर नहीं हो सकती। हम लोगों की समाज में कोई इज्ज़त, ओहदा है। अगर उसे फिर भी शालू के साथ शादी जिद है तो वह शौक से कर सकता है। लेकिन इसमे हम लोगों कोई भागीदारी नहीं होगी"। राजू अपने माता पिता की बात सुन रहा था। वो काफी परेशान हो उठा। रात का खाना भी उसने ढंग से नहीं खाया। चुपचाप अपने कमरे में चला गया। और खिड़की खोलकर कर शालू की खिड़की की तरफ देखने लगा। थोड़ी देर बाद उसे खिड़की पर शालू दिखाई दी। वो मुस्कुराकर और बड़ी उम्मीद से राजू की तरफ देख रही थी। पर राजू उदास-सा बेड पर लेटा हुआ था। अचानक राजू को अपने पास किसी की उपस्थिती का आभास हुआ। उसने देखा उसकी माँ उसका सर प्यार से सहला रही थी।

"क्या बात है बेटा आज खाना मन से नहीं खाया। देख बेटा हम तेरे माँ बाप हैं। हम तेरा बुरा थोड़े ही चाहेंगे। उस लड़की में ऐसा क्या है। तेरी इतनी अच्छी नौकरी है। तुझे शालू से बहुत अच्छी लड़कियां मिलेंगी। कहाँ तू इतनी बड़ी कंपनी में नौकरी कर रहा है और कहाँ वह मामूली-सी नर्स"।

राजू मायूस-सा बोला-"माँ मैं उसे बचपन से प्यार करता हूँ"।

"देख बेटा ज़िद न कर अब सो जा। कल मैं शालू की माँ को फोन करके मना कर दूँगी, कह दूँगी राजू अभी शादी के लिए तैयार नहीं हैं"। माँ ये कहकर नीचे चली गई. पर राजू सारी रात खिड़की के बाहर देखता रहा।

दूसरे दिन राजू अपना बैग पैक करके नौकरी को वापस चला आया। इधर जब शालू को पता चल की राजू के माँ बाप इस शादी के लिए राज़ी नहीं हैं, तू उसे सुनकर बहुत धक्का लगा। उसे विश्वास नहीं हो पा रहा था कि कैसे राजू इस शादी के लिए मना कर सकता है। शालू ने राजू से बात करने की बहुत कोशिश की पर राजू से उसकी बात न हो पायी।

धीरे धीरे शालू भी अपनी नौकरी में व्यस्त हो गई. एक दिन शालू शाम को जब घर लौटी तो देखा कि राजू की मम्मी उसके घर बैठी हैं। शालू ने उमा को नमस्कार किया और अपने कमरे में जाने लगी तो उमा रोक कर शालू से कहा-"शालू, अगले महीने राजू की शादी है। ये रहा शादी का कार्ड। आप सब शादी में आमंत्रित हैं। लड़की राजू के ही साथ उसकी कंपनी में काम करती है। बहुत अच्छे घर से ताल्लुक रखती है। देखने में बहुत सुंदर है"।

शालू ने एक नज़र कार्ड पर डाली वहाँ से उठ कर अपने कमरे में वापस चली गई. और खिड़की के पास बैठकर रोने लगी। तभी पीछे से उसकी माँ आ गई. उसने प्यार से उसका सर अपने गोद में रख लिया और बोली बेटी-"ऐसे उदास नहीं होते। राजू कोई आखिरी लड़का नहीं है। हो सकता हो तुम्हारी किस्मत में राजू से भी अच्छा लड़का हो। धीरे-धीरे समय के साथ सब ठीक हो जाएगा"।

राजू की शादी वाले दिन शालू को छोड़कर सब लोग शादी में गए हुए थे। शालू चुपचाप कमरे की खिड़की से शादी का नज़ारा देख रही थी। इसी खिड़की से उसकी राजू से दोस्ती शुरू हुई थी। वो सारी रात उसी खिड़की के पास बैठी रही। उदास सी, मुरझाई-सी और बिना किसी उम्मीद के. एक दिन शालू घर आई और माँ से कहा कि माँ मैं कोलकाता जा रहीं हूँ मुझे वहाँ एक बड़े हॉस्पिटल में नर्स की नौकरी मिल गई है। शालू की माँ ने भी शालू को रोकना उचित नहीं समझा। माँ ने सोचा इसी बहाने शालू का गम कुछ काम हो जाएगा। धीरे-धीरे समय बीतता चला गया। इस बीच शालू ने कभी भी राजू के बारें में जानने की कोशिश नहीं की। वो अपने काम में ज़्यादा व्यस्त हो गई. अब उसका जीवन सिर्फ़ मरीजों की सेवा में समर्पित हो गया। माँ और रमेश के बार-बार आग्रह के बावजूद उसने शादी नहीं की।

एक दिन हॉस्पिटल के हेड ने शालू को बुलाया और कहा-"शालू, आपको कुछ दिन कोलकाता के एक घर में एक मरीज के देखभाल करनी है। मरीज के बचने की कोई उम्मीद नहीं है। कल से आप पूरा समय उस मरीज की सेवा में रहेंगी"। शालू ने सहमति में सर हिलाया और वहाँ से चली गई.

दूसरे दिन शालू उस मरीज के घर पहुची। उसने दरवाजा खटखटाया। जैसे ही दरवाजा खुला तो पाया की सामने राजू की माँ खड़ी है। अब वह काफी बूढ़ी दिखाई दे रही थी। शालू ने राजू की माँ से कहा-"मुझे यहाँ किसी मरीज की देखभाल के लिए भेजा गया है। मैं ही वह नर्स हूँ"। राजू की माँ ने बिना कुछ बोले हुए शालू को एक कमरे की तरफ इशारा किया। शालू उस कमरे में गई तो देखा कि राजू बिस्तर पर लेटा हुआ है। उमा राजू की तरफ इशारा करते हुए कहा, "यही है तुम्हारा मरीज"। इससे पहले की शालू कुछ पूछती, उमा ने बताया कि एक एक्सिडेंट में राजू के पत्नी की मृत्यु हो गई और राजू गंभीर रूप घायल हो गया है। डॉक्टर ने अब सिर्फ़ राजू की सेवा करने को कहा है।

तभी राजू ने धीरे से आंखे खोली तो पाया की शालू सामने खड़ी है। राजू ने इशारे से शालू को अपने पास बुलाया और पास बैठने का इशारा किया। शालू उसका सर अपने गोद में लेकर प्यार से सहलाने लगी।

राजू ने धीरे से पूछा–"कैसी हो। अभी शादी किया की नहीं"।

शालू ने कहा-"कैसे करती। तुमने तो मुझे कॉफी शॉप में इंतज़ार करने के लिए कहा था। मैं आज तक इंतज़ार कर रही हूँ। मैंने कहा था ये एक लड़की का वादा है।"

राजू ने कहा-"तुम बिलकुल नहीं बदली। पर मेरा जीवन उस कमरे से लेकर इस कमरे तक बिल्कुल बदल गया। कभी मैंने सबके कहने पर तुमको छोड़ दिया था। आज देखो सबके अलावा सिर्फ़ तुम हो मेरे पास। शालू हो सके तो मुझे माफ कर देना"। ये कहकर राजू ने आँखें मूँद ली। शालू के आख से आंसू टपक कर राजू की गाल पर गिरने लगे।