इज्जत / संतोष भाऊवाला

Gadya Kosh से
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उसने कस कर अपनी बैग पकड़ी और उस औरत को संदिग्ध निगाह से देखा। रात में भी बैग को सीने से लगाये उसे चिंता सता रही थी कि ये औरत कहीं समझ ना गई हो कि उसके पास पांच लाख रुपये है जो वह तकादे के बाद हावड़ा एक्सप्रेस से कोलकात्ता लेकर जा रहा था। रिजर्व सीट में आराम से बैठा था। उसी डब्बे में मैले कुचेले कपड़ों में लिपटी वह औरत करीब दो तीन साल के बच्चे को गोदी में लेकर चढ़ी। उसकी निगाहें थोड़ी सी जगह के जुगाड़ के लिये इधर उधर दौड़ रही थी। बर्थ पर थोड़ी सी जगह देख वह और फ़ैल कर बैठ गया, इस आशंका से कि वह बैठ न जाये। पर वह औरत चुपचाप अपने बच्चे को गोद में संभाले, वहीँ बर्थ से शरीर टिका कर खड़ी हो गई, थोड़ी देर बाद सर झुका कर वहीँ जमीन पर बैठ गई। उसे भय था, रुपये चोरी न हो जाएँ और फिर उसे जाने क्यों उस पर शक हो रहा था। झपकी भी नहीं ले रहा था, कहीं वह बैग उठा कर चपत ना हो जाये, पर पता नहीं कब नींद ने आ घेरा उसे। कुछ आवाजों से तन्द्रा टूटी, देखा अफरा तफरी मची है। तुरंत ध्यान बैग की ओर गया, नहीं दिखी। दिल धड़कना ही बंद हो गया। चारों ओर निस्तब्धता सी छा गई। एकाएक वह जोर से चिल्लाने लगा, उस औरत की ओर इशारा करके, “हो ना हो, इसी ने मेरा रुपयों भरा बैग चुराया है, ये छोटे लोग ऐसे ही होते है पलक झपकते ही लूट लेते है, इससे अच्छा होता, इसे नीचे भी बैठने नहीं देता, बच्चा हाथ में देख कर मुझे दया आ गई”। और भी बहुत कुछ कहता जा रहा था, आपे से बाहर होकर। तब लोगो ने उसे झिंझोड़ा .... होश आया तो देखा बैग सलामत है, कुछ देर भरोसा नहीं हुआ, फिर दुसरे ही पल घृणा भरी नज़रों से फिर से उसे देखा, जैसे कह रहा हो उसी ने लिया था और उस पर झपटने ही वाला था, लोगो ने बचा लिया, बताया कि कैसे उस औरत के पैर से चोर टकराया और अपनी जान पर खेल कर उसने चोर का पैर जोर से पकड़ कर, बैग चोर के हाथों से बड़ी हिम्मत के साथ छीन ली।

चोर ने अपना पाँव छुडाने के लिये जोर से पैर से झटका दिया तो पैर उसके मुह से जा लगा और उसके मुहं से खून आने लगा। उसने अपना सर पकड़ लिया, कितना गलत सोच रहा था वह, क्या सभी गरीब चोर होते है, हमारी सोच ऐसी क्यों हो गई, पछता रहा था, धीरे से सिकुड़ कर सीट पर जगह छोड़ कर कृतज्ञता भरी नज़रों से देख कर खिसक गया। अब उसकी नज़रों में उसके लिये इज्जत थी।