इटली के रोमां ख़ुद को राम की संतान कहते हैं - इटली / संतोष श्रीवास्तव

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अब हम बार्निस पास, यूरोपा पुल, ब्रेनर लेक के किनारे से गुज़र रहे थे। पहाड़ों पर जमी बर्फ़ देख मुझे याद आया कि किसी ने बताया था कि बर्फ़बारी के दिनों में जब सारी वैली बर्फ़ से ढँक जाती है यहाँ से इटली तक लोग स्केटिंग करते हुए जाते हैं। यानी इटली बेहद नज़दीक है। हम भी इटली ही जा रहे थे जो दो भागों में बँटा है। दक्षिणी इटली के लोग आलसी होते हैं और उत्तरी इटली के मेहनती। ये कृषि उद्योग से जुड़े हैं। इटली एकलाख सोलह हज़ार पाँच सौ स्क्वेयर माइल एरिया में बसा है। भाषा रोमा है। राष्ट्रभाषा इटालियन। करेंसी यूरो।

"इटली में माफ़िया गिरोह का बोलबाला है। जिप्सी और चोर बहुत हैं। कब आपका पासपोर्ट और जेब का सफ़ाया हो गया पता ही नहीं चलेगा। इसलिए इन चीज़ों को सम्हालकर रखना।"

अजय के कहने पर कोच मेंशोर शुरू हो गया। "अरे बाप रे... हम घूमेंगे कैसे?"

"आप अपना पासपोर्ट कोच में ही रखिए। पूर्णतया भरोसेमंद जगह कोच ही है।"

मैंने अभी-अभी 'चिदंबरा बनजारिन' नामक लेख कथादेश के लिए लिखा है जिसमें बनजारों पर मैंने काफ़ी होमवर्क के बाद लिखा है। राजपूत राजा पृथ्वीराज चौहान के शासनकाल में मुगल आक्रमणकारी मुहम्मद गौरी ने सन 1992 में रात के अँधेरे और नींद का फायदा उठाकर धोखे से राजपूत सेना पर आक्रमण कर दिया था। हालाँकि नींद की खुमारी के बावजूद राजपूत सेना डटकर लड़ी लेकिन हार गई और आक्रमणकारी के भय से इधर उधर दिशाओं में भाग गई। जिन्होंने जंगलों में शरण ली वे बनजारा कहलाए। बचे खुचे राजपूत सैनिक अफ़गानिस्तान के रास्ते से यूरोप आ गए और यूनान, मध्य तथा पश्चिमी यूरोप, जर्मनी में बस गये और रोमां कहलाए। वे ख़ुद को भगवान राम की संतान कहने लगे। यही रोमां जिप्सी भी कहलाते हैं। जिप्सियों का काम ही है लूट खसोट की ज़िन्दगी पर बसर करना। मेरा मन विचलित-सा हो गया। मैंने आँखें बंद कर सिर पीछे टिका लिया। अजय ने कहा–

"हो सकता है आपको वहाँभाषा की समस्या हो इसलिए कुछ व्यावहारिक शब्दों को याद रखिए। इंट्राटा यानी अंदर, उसीटा यानी बाहर, एक्स्क्यूज़ा कॉपुचीनो यानी कॉफी बढ़िया है। टे यानी चाय, दूध यानी लाते और फ्रीगो यानी ठंडा। लाते यानी बोनोनोते। इन शब्दों की ज़रुरत होटल में और ब्रेकफ़ास्ट के दौरान पड़ सकती है।"

शब्दों को आत्मसात करते हुए मैं खिड़की के बाहर देखने लगी। कोच ढेर सारी टनल से गुज़र रही थी। हर मील पर टनल, वैली में बसे मकान सुंदर परीलोक जैसे। चर्च लम्बे-लम्बे पतले स्थापत्य वाले। एडिग नदी के दोनों ओर पुल बने हैं। पेट्रोल पंप आया, हमने वहाँ पैक्ड लंच लिया। लंच के बाद वीनस की ओर रवाना हुए जो 118 टापुओं, 150 नहरों और 400 पुलों का शहर है। जो इटली से चार मील की दूरी पर एड्रियाटिक सागर पर बसा अद्भुत शहर है। मेरे कान्हा की द्वारिका नगरी भी तो समुद्र पर ही बसी थी। किसी न किसी बहाने पूरा विश्व एक दूसरे से जुड़ा है जैसे रोमां जैसे वेनिस। इटली में ही रोमियो जूलिएट हुए थे... हम उनके ही शहर से गुज़र रहे थे जिसे विरोना कहते हैं।

वेनिस आते ही ट्रोकेंटो में कोच पार्क हुई। हम पैदल ही रिमझिम बरसती फुहारों में-सी पोर्ट मरगेरिया में आये। यहीं से हमने शिप ली। चूँकि वेनिस समंदर पर बसा है इसलिए इस पर चलने वाली शिपबस कहलाती है। तीनकिलोमीटर लम्बी कनाल से हम आगे बढ़े। बाकायदा पानी पर ही बस स्टॉप बने हैं पीले रंग के। पानी पर सड़कें, पुल, पेड़, लाल पत्थरों वाला बड़ा पुल सब कुछ पाँच सौ साल पहले का बना... सरकार इसके स्थापत्य पर कुछ भी ख़र्च करना नहीं चाहती इसीलिए बेहतर ज़िन्दगी की चाह में यहाँ के निवासी वेनिस छोड़कर कहीं और चले जाते हैं। वेनिस का लोकल नाम वेनेंज़िया है और सामने जो पुल है वह मुसोलिनी लिबर्टी ब्रिज है। ड्यूज़ेज पैलेस में 9वीं सदी में किसी राजा का शासन था। महल आज भी समृद्धि की कहानी कहता है। साइप्रस, स्कैंडिया, मैजेस्टिक पॉन्टे, डेला लिबर्टा नामक इमारतों के बाद कैथेरिल और पैसेलिका चर्च थे। कैथेरिल में प्रार्थना होती है और पैसेलिका में संतों का शव दफ़नाया जाता है। यहाँ 95 कैथोलिक हैं। चर्च के सामने टॉवर है। जब प्रार्थना होती है तो टॉवर में घंटे बजने लगते हैं। सेंट मार्क्स स्क्वायर आ गया था। हम सभी शिप से उतर पड़े। स्क्वायर के तीनों ओर बड़ी-बड़ी ऐतिहासिक इमारतें थीं। डुकल महल, बदनाम जेल और सांतामारिया चर्च। बदनाम जेल में मौत के सज़ायाफ़्ता कैदी को रखा जाता था। अंतिम दिन उसे इस जेल की खिड़की से सांतामारिया चर्च के दर्शन कराये जाते थे। सभी इमारतें पानी पर बने छोटे पुलों से जुड़ी थीं। ठहरे हुए पानी की गंध हवा में समाई थी। हम मुरानों ग्लास फैक्ट्री भी देखने गये जहाँ बड़ी-सी दहकती भट्टी में एक कारीगर ने शीशा पिघलाकर हमें घोड़ा बनाकर दिखाया। फैक्ट्री में ही शोरूम है जहाँ काँच से बनी चीज़ें बिकती हैं। हम वापिस सेंट मार्क्स स्क्वायर आ गये। सामने ढेरों कबूतर थे। पर्यटक उन्हें दाना खिला रहे थे। एक कबूतर उड़कर मेरे कंधे पर आ बैठा। बारिश के कारण ठंड और भी बढ़ गई थी। मैं सामने वाले कॉफी शॉप में आ गई। सत्रहवींसदी में जबनेपोलियन यहाँ आया था तो एक भी कॉफी शॉप नहीं थी। ये कॉफी शॉप उसी ने खुलवाई थी। मुझे लगा मैं अपने इतिहासमें एम. ए. करने वाले दिनों के बीच पहुँच गई हूँ। मैंने नेपोलियन बहुत गहराई से पढ़ा था।

सामने लगे झंडे पर मगरमच्छ की आकृति देख मुझे ताज्जुब हुआ लेकिन चूँकि पूरा वेनिस सागर पर बसा है तो इनका देवता भी पानी का ही जीव होना चाहिए। जबशिपमैन सागर में जाते हैं तो सुरक्षा हेतु मगरमच्छ से प्रार्थना करते हैं। आठवीं सदी का बेलटॉवर कैपेनाल और तीन सौ पच्चीस फीट की ऊँचाई वाला सनमार्क टॉवर देखते हुए हम वापिस शिप में आ बैठे।

वेनिस से हम मेस्त्रे सिटी आये–"यहाँ भारतीय रेस्तरां है 'महारानी' , बेहद लज़ीज़ खाना मिलता है वहाँ।" अजय ने महारानी के नज़दीक पार्किंग प्लेस पर कोच रुकवाई। थोड़ी देर चलने के बाद महारानी में प्रवेश करते ही भोजन की ख़ुशबू ने भूख दुगनी कर दी। खाना सचमुच स्वादिष्ट था। डिनर के बाद हम देवदार, चिनार दरख्तों के साये तले बसे घरों को देखते हुए होटल पार्क विला फियोरिटा आये। चूँकि मेरे लिए सिंगल रूम था जो थर्ड फ्लोर पर था इसलिए ग्रुप का कोई भी आदमी आजू–बाजू के रूम में नहीं था। कार्डइन्सर्ट करके भी जब रूम नहीं खुला तो घबरा गई। चोर लुटेरों के डर से सामान छोड़कर नीचे रिसेप्शन तक नहीं जा सकती थी। पूरी लॉबी भी सुनसान थी। रातके ग्यारह बज रहे थे। अचानक एक नीग्रो अपने रूम से बाहर आया। भाषा की समस्या, फिर भी मैंने इशारे से ही उसे अपनी बात समझाई। उसने कार्ड इन्सर्ट कर रूम खोल दिया। अब लाइट का स्विच कहाँ खोजूँ। कमरे में घुप्प अँधेरा। घबराहट में तबीयत बिगड़ गई। तमाम दीवारें खोजडालीं। अचानक कमरा दूधिया रोशनी से नहा उठा। मेरा हाथ अनजाने ही स्विच पर था। उफ़... सिरपकड़करथोड़ीदेर पलंग पर बैठी रही। फिर देर तक शावरबाथलिया... पानी के संग-संग थकान भी बह चली। "

सुबह आठ बजे हम इटली की कला नगरी फ्लोरेंस के लिए रवाना हुए। मैं रात की पीड़ा भूल चुकी थी। दिन के उजाले ने मुझे सहला जो दिया था। फ्लोरेंस को इटैलियन भाषा में फिरेंजी कहते हैं। महान कलाकार माइकल एंजोलो का जन्म फ्लोरेंस में ही हुआ था। इसके अलावा डिवाइन कॉमेडी पुस्तक का लेखक दोनातेलो दांतो... लियोना डिविंची आदि महान लेखक भी यहीं पैदा हुए। यहीं लिखी गई 'विज़िटऑफ हेवन बाय हेल' पुस्तक। मन रोमांच से भरपूर था। साढ़े तीन घंटे के सफ़र में पूरा मैदानी इलाक़ा भारत जैसा लगा। किसानों के घर, खेत। बोलोनिया के बाद एपलाइन हिल यानी आल्प्स पर्वत शृंखला शुरू हो गई। पो नामक नदी बह रही थी। धूप में चमकती, बलखाती। फ़ायरवुड के दरख्त, सेब के बगीचे, अंगूर और मका के खेत। अचानक ही हरियाली की अभ्यस्त आँखें तमाम वाहनों के बीच फँसी अपनी कोच देख विचलित हो गई हैं। ट्रैफ़िक जाम था। कोच धीरे-धीरे रेंग रही थी। फ्लोरेंस पहुँचने में काफ़ी समय लग गया। चार लाख की आबादी वाले इस शहर में भीड़ भाड़ कुछ ज़्यादा ही लगी। शायद विदेशी सैलानियों की वज़ह से। कोच ने हमें पार्किंग प्लेस पर उतार दिया था और अब हमें पैदल चलना था।

सड़कें चौकोर सिलेटी पत्थरों जड़ी। सड़कों के किनारे स्टॉल लगे थे। पर्यटकों के आकर्षण की तमाम सामग्री वाले। लेकिन मैं तो वहाँ के स्थापत्य को मंत्रमुग्ध हो निहार रही थी। सामने था विश्व का दूसरा बड़ा कपोला जो 5वीं सदी में सांता रॉपरेतो नाम से प्रसिद्ध था। रोमन कैथोलिक कम्यूनिटी बढ़ने पर पुराना चर्च गिराकर फिलिपो ब्रुलाचीनी ने 1289 में सांतामारिया देनापोलो नाम से बनवाया। इसे बनाने में 150 वर्ष लगे। यह संगमरमर का हरे रंग का शानदार चर्च है साथ ही सफेद गुलाबी रंग भी लगे हैं। इसमें 465 सीढ़ियाँ हैं कपोला तक जाने के लिए। चर्च की बुर्ज को कपोला कहते हैं। डोमो केथड्रियल चर्च, बेल टॉवर, गियेटोटॉवर... सभी इतने नयनाभिराम, सभी में हरा, गुलाबी, काला संगमरमर लगा है। विश्व में इससे सुंदर दूसरे टॉवर नहीं है। अजय का कहना था, अजय ऐसी कमेंट्री कहते चलते हैं कि देखने का मज़ा दोगुना हो जाता है। चौदहवीं सदी में बना अद्भुत पालाजो वेक्विआ टॉवर, सेन्ट क्रोके का बसीलिका, 1299 में बना विकिओ महल, तीन सौ फीट ऊँचा टॉप टॉवर, काम्बिओ द फर्स्ट की मूर्ति सब एक विशाल प्रांगण में मैं देख रही हूँ। ऐसा अद्भुत स्थापत्य... लगता है जैसे रोमन साम्राज्य के ज़माने की मैं कोई रानी हूँ... या शायद सिपाही... या...

सामने नेपच्यून फव्वारा जिसके चारों ओर गोलाई में समुद्री देवताओं की मूर्तियाँ बनी है। डेविड, हरक्यूलिसकी ही मूर्ति है जिसे माइकल एंजोलो ने बनाया है। माइकल एंजोलो ने इस शहर को अपनी कला के लिए चुना था। कहते हैं एक रात माइकल एंजोलो के सपने में एक समुद्री देवता आया कि यह शहर नष्टहोने से बचा लो, शीघ्र ही यह नष्ट होने वाला है। माइकल एंजोलो ने अपनी कला से इस शहर को जीवंत किया। उसने समुद्री देवताओं की मूर्तियाँ बनाई और जो देवता सपने में आया था उसे नाम दिया डेविड। यहाँ दांते, गलीलियो आदि के फिनरल मॉन्यूमेंट्स भी हैं। बड़ी-बड़ी विशालसफेदमूर्तियाँ माइकल एंजेलो की कला का अद्भुत नमूना हैं। यह प्रांगण जिसे सिटी स्क्वेयर कहते हैं गवाह है इटली के इतिहास का। मुझे लगा जैसे मैं इतिहास की उंगली पकड़कर कई सौ साल पीछे सीढ़ियाँ उतर पहुँच गई हूँ। मेरी नज़रों के सामने है सला-द-ड्यूसेंटी जहाँ कभी माइकल एंजेलो और लोनार्डो बैठा करते थे।

आगे पैदल ही जाना है। यहाँ किसी भी तरहके वाहन अलाऊ नहीं हैं। आरनो नदी पर नदी पर बने पोन्टे वैक्विओ पुल से पूरे फ्लोरेंस का नज़ारा ही कुछ और दिख रहा था। पुल पर जवाहरात की दुकानें हैं। थोड़ा आगे 700 वर्ष पुराना फ्लोरेंस ब्रिज है। पानी पर खड़े इस ब्रिज से सनसेट देखना अपने आप में कभी न भूलने वाला अनुभव है। वैसे तो पूरा स्थापत्य एक साम्राज्य विशेष का आभास देता है पर जब 1966 में आरनो नदी में बाढ़ आईतोपूरे शहर में बीस फीट पानी भर गया। बहुत कुछ नष्ट हो गया। यानी माइकल एंजेलो का स्वप्न सच साबित हुआ। दुबारा जब सुधार हुआ तो नष्ट हुई इमारतों के स्थापत्य को नयापन दिया गया। गेट पुराने ही दिखते हैं... मानो वे ही एकमात्र गवाह हैं शहर की तबाही के। सोफ़िया रंग की इमारतें, बेहद खूबसूरत बादामी और सिलेटी रंगों की बनी हुई। पार्क में बच्चे खेल रहे थे। एक बड़ी चट्टान से निकल पाँच धाराओं वाला फाउंटेन था। माइकल एंजेलो हिल व्यू पॉइंट है जहाँ से पूरे फ्लोरेंस को देख सकते हैं। इटैलियन युवा पीढ़ी बेफिक्र अपने में ही मस्त इस विशाल प्रांगण में इधर उधर सिगरेट पीती मिल जाएगी। उनकीवेशभूषा में मुझे नग्नता अधिक नज़र आई। लेकिन उनकी तो संस्कृति ही ऐसी है। अचानक ढोल मजीरे बिल्कुल भारतीय धुन में बज उठे। सामने वाली सड़क पर हरे रामा, हरे कृष्णा गाता हुआ कृष्ण भक्तों का समूह जा रहा था। 'वाह कान्हा... तुम तो पूरे विश्व में छाए हुए हो। ग़ज़ब का जादू है तुममें...' मैं मन ही मन उस जादू में बँधती चली गई।

शाम होते ही फ्लोरेंस की सड़कें कैनवास में बदल जाती हैं और फुटपाथ आर्ट गैलरी में। सड़कों पर रंगबिरंगी चित्रकारी करते कलाकार सहज भारत की याद दिलाते हैं। फ़र्क़ इतना है कि भारत की सड़कों पर साईबाबा, शिव, गणेश की चित्रकारी होती है जिन पर राहगीरों द्वारा फेंके हुए सिक्के होते हैं।

कोच ने हमें निश्चितजगह से पिकअपतो कर लिया पर नक़्शा होने के बावजूद एरिक (ड्राइवर) रास्ता भटक गया जबकि वह ख़ुद इटली का ही रहने वाला है पर निश्चय ही फ्लोरेंस का नहीं। डिनर लेकर होटल पहुँचने में बहुत वक़्त लगा। रात हमने रोम के (आश्चर्य, रोम पहुँच गये हम-?) होटल ला मेरीडिएना में बिताई जो सुनसान पहाड़ी जगह पर था।

तेईस मई। अचानक सुबह आँख खुल गई। हेमंत का हँसता चेहरा सामने था। मानो कह रहा हो... "मम्मी, मेरी हर बर्थडे में तुम घर से दूर ही रहती हो।" एक जानलेवा रुलाई बड़े वेग से उठी और मैं आँसुओं में डूब गई। आज वह ज़िन्दा होता तो 26 साल का होता। कभी-कभी एक ज़िद्द-सा लगता है जीना। हेमंतके बिना एक पल भी भारी था मेरे लिए... अब इतने साल जी ली... जीती रहूँगी। सुनो हेमन्त... देखो, मैं तुम्हारी आँखों से देख रही हूँ हर अजनबी जगह को... तुम हमेशा मेरे साथ हो, साथ ही रहोगे।

मैं गीता की अनुगामी... पहाड़ जैसे दुखों को ईश्वर की मर्ज़ी समझ स्वीकार करती चली गई। हेमंत के लिए भी मैं शोक नहीं करूँगी। मैं हेमन्त को जिऊंगी। उसे ज़िन्दा रखूँगी। ख़ुद को प्रकृतिस्थ कर मैं तैयार होकर कोच में आ बैठी। अजय ने टोका... "क्या बात है, सोई नहीं क्या?" "सोई तो... क्यों?" मैंने अपनी लाल हो आई आँखें छुपाने की कोशिश में धूप का चश्मा लगा लिया। कोचरोम की सड़कों पर चल पड़ी।

रोम इटली की राजधानी है। कई युद्धों, लूट-पाट को झेल आज रोम एक विशाल और अद्भुत इतिहास की कहानी कहता है। रोम युवा दिलों में बसा है। चाहे धूप हो या बर्फ़बारी रोम की सड़कों पर युवाओं का समूह चहलकदमी करते मिल जाएगा। वे कैफे जाते हैं, पीजा हट जाते हैं और आपस में राजनीति और फुटबॉल की चर्चा करते हैं। फुटबॉल इनका इतना प्रिय खेल है कि यह उनके दिल में पहले प्यार की तरह असरदार और नाजुकता से बसा है। रोम में ईसाईयों का धर्मस्थल वाटिकन है जिसे ये लोग एक अलग देश के रूप में देखते हैं। हम मान सकते हैं कि वाटिकन दुनिया का सबसे छोटा देश है। 109 एकड़ क्षेत्र में बसे वाटिकन की आबादी एक हज़ार है। वाटिकन सिटी के चारों ओर दीवार है। यहाँ आने के लिए लॉरेंटीनाचैक पॉइंट से परमीशन लेनी पड़ती है।

यहाँपोप का साम्राज्य है, पोप जॉन पॉल का। अलग सिक्के भी चलते हैं जिन पर पोप के नाम की मोहर होती है। लॉरेंटीना पहाड़ी एरिया है। फूलों भरे सीमेंटेड मकान है। क्रिस्टोफर कोलंबस रोड पर पीली, नीली बसें चल रही थी। रोम की दीवार शुरू हो चुकी थी। ईंटों का स्थापत्य वाला शहर सात पहाड़ों पर बना है। प्राचीन रोम का शाही वैभव और शक्तिशाली शासन व्यवस्था के सबूत रोमन राजाओं के रजवाड़े बीते युग की कहानी कह रहे थे अपने खंडहरों से। कोलोओंपियो में राजाओं के युग में पुस्तकालय थे और विद्यार्थी पढ़ाई करते थे। अब वहाँ सन्नाटा था। ठंडे, गर्म पानी के स्विमिंग पूल... सूखे, बेजान... एक ज़माने में वहाँ स्त्री पुरुष एक साथ नंगे होकर नहाते थे। आज भी वहाँ प्रतीक स्वरुप नग्न मूर्तियाँ बनी हुई हैं। पत्थरों, ईंटों का उजड़ा-सा स्थापत्य बुझे-बुझे धुआँते से रंग। एक साँची के स्तूप जैसा खंभा था। पैंतीस सौ साल पहले इजिप्ट से राजा अगस्त का सोल्जर इस पैंतीस मीटर ऊँचे खंभे को समुद्री रास्ते से यहाँ लाया था। यो जो सामने म्यूज़ियम है वह भी एक ज़माने में रजवाड़ा था। रोमन दीवार सत्रह सौ साल पुरानी है। उन्नीस किलोमीटर लम्बी इस दीवार में बयालीस गेट हैं। टाइबर नदी के मुहाने पर बसा है रोम। मैंने टाइबर का बहता जल देखा। जैसे मिट्टी घुला बाढ़ का पानी हो।

ईसा पूर्व 1880 में बना था कोलोसियम। यह एक विशाल राउंड थियेटर है जिसमें अस्सी गेट हैं। सारे गेट टूटे-फूटे से, उभरी-उभरी ईंटों वाले... धुआँ-धुआँ से... मानो उस युग की कहानी कह रहे हों जब ऐयाश रोमन राजा, एम्पर्स बड़ी निर्ममता से मृत्युदंड प्राप्त कैदी को भूखे शेर के बीच छोड़ कर उसे चिथता हुआ देखकर आनंदित होते थे। कोलोसियम में साठ हज़ार दर्शक एक साथ बैठ सकते हैं। मेरा रोम-रोम सिहर उठा है। मौत मनोरंजन भी हो सकती है? अब उस ज़माने का बचा ही क्या है? न वे एम्परर्स हैं न वे दरबारी दर्शक। अब यहाँ चीखता सन्नाटा है। कहते हैं जिस दिन यह कोलोसियम गिरेगा, उस दिन सारा विश्व ढह जाएगा। मैं रेलिंग से लगी खड़ी इस भव्य इमारत के सूनेपन में ख़ुद को डुबो ही रही थी कि एक रोमन शोध छात्रों का दल मेरे पास आकर खड़ा हो गया। कुछ लड़कियाँ, कुछ लड़के... खिले फूल से खुशगवार, ज़िन्दा दिल। उनमें से एक लम्बे छात्र ने मुझसे पूछा... "मैम... इंडिया से?"

मैंने हाँ में सिर हिलाया। जानती थी कि रोम में भारत एक रहस्यमय देश के रूप में मशहूर है। उनकेमन में भारत के लिए कई प्रश्न हैं। उसने पूछा–"आपने कोलोसल विक्टर इमैनुअल मॉन्यूमेंट देख लिया? देखना ज़रूर, इटली के एकीकरण की पच्चीसवीं वर्षगाँठ पर उसे बनाया गया था। क्या आपके देश में भी ऐसा कोई स्थापत्य है? कौन-सा धर्म है आपके देश में? इतने अधिक भगवान क्यों हैं? आप गाय का माँस क्यों नहीं खातीं क्यों उसे माता मानती हैं? आप माथे पर बिंदी क्यों लगाई है और आपकी ये साड़ी... कैसेसिलाई होती है इस साड़ी की?"

मैं उसके धाराप्रवाह प्रश्नों में उलझती कि तभी एक छात्रा ने मुझसे हिन्दी में बात करके मुझे चौंका दिया।

"मैडम... आप रोमन यूनिवर्सिटी भी ज़रूर देखिए वहाँ हिन्दी, संस्कृत के प्रोफेसर्स से मिलिए। यहाँ हिन्दी ही नहीं बल्कि सभी भारतीय भाषाओं के अध्ययन की परम्परा है। रोमन प्रोफेसर्सने हिन्दी और संस्कृत में महारत हासिल कर उसे अपने अध्यापन का विषय बनाया है। वेद, पुराण, उपनिषद सबका उन्होंने गहराई से अध्ययन किया है। मैंने ख़ुद हिन्दी और संस्कृत सीखी है और आजकल सौ साल पहले हुए रोमानियन कवि मिहाई एमिनेस्कु की कविताओं का हिन्दी में अनुवाद कर रही हूँ। मिहाई ने भारतीय ऋग्वेद, उपनिषद और बौद्ध ग्रंथों का अध्ययन किया था। भारतीय चिंतन और रहस्यमयता के दर्शन कराती उनकी कविता सुनना चाहेंगी।" मैं मंत्रबिद्ध-सी सिर्फ़ उसे टुकुर-टुकुर देख रही थी। वह कविता सुनाते हुए आँखें बंद किये थी। जैसे श्वेत कमल पर दो भँवरे ख़ामोश बैठे हों–

तेरा समस्त जीवन लगता बस एक क्षण। एक मधुर क्षण लगता अनंत काल / प्रिये, काल लहरी से ऊपर उठतीं तुम। उठते लम्बे केश तुम्हारी / संगमरमरी मृदु बाहें तुम्हारी...

अचानक हम दोनों एक दूसरे की बाँहों में ऐसे खो गये जैसे बरसों बाद मिले हों। उसने मेरा कार्ड लिया, हिन्दी में छपा मेरा कार्ड सार्थक हो गया। बहुत सारी तस्वीरों में उसे क़ैद कर मैं विजय की मुस्कान से भर उठी। उसे विदा करते मन भारी हो उठा था।

कारवाँ आगे बढ़ा। सोलह सौ सीट वाला कराकाला ऑपेरा हाउस भी उसी युग की कहानी कहता नज़र आया। एम्प्रीयल पैलेस ईसा पूर्व बना था। पहली सदी में बना गॉडेज़ ऑफ दि फैमिली का मंदिर... मूर्तियाँ ही मूर्तियाँ। हम टाइबर नदी पर बने दो हज़ार साल पुराने पुल पर से गुज़र रहे हैं। हमारे साथ है लोकल गाइड विलीआ सेपरेट। सड़क के दोनों ओर सफेद पींड़ वालेछतनारे मेपल के दरख़्त हैं। जिसके पत्ते चिनार के पत्तों जैसे हैं। रोम की दीवार के किसी एक गेट से अंदर वाटिकन आते ही बस ने हमें उतार दिया। वाटिकन... दुनिया का सबसे बड़ा केथेड्रल सेंट पीटर्स बसिलिका सामने था। वहाँ प्रवेश से पहले सेंटएंजिल कासल देखा जो ड्रम की शक्ल में अद्भुत स्थापत्य था। ऊपर काई के रंग की मूर्ति थी। पुल पार करते हुए दोनों ओर-सी रॉक स्टोन की बनी खूबसूरत मूर्तियाँ थीं। कैथेड्रल का विशाल प्रांगण दो ओर से गोलाकार था जिस की दीवार पर पोप फादर्स (जो दिवंगत हो चुके हैं) की मूर्तियाँ आदमकद आकार में बनी हुई थीं। बड़े-बड़े विशाल खंभों पर ये दीवार बनी हुई है। बीचों बीच फ़व्वारा... अंदर चर्च की विशाल इमारत है। यह चर्च एक दो घंटे में घूमने की चीज़ नहीं है। इसकी बारीक कला... लाल सुनहरे और काले काँच के टुकड़ों से बना मोजाइक वर्क देखते ही बनता है। महान कलाकार माइकल एंजेलो के द्वारा इसे बनाया गया है। बड़ी-बड़ी मूर्तियाँ... केथलिक धर्म का ऐसा स्थापत्य मानो खुली बाइबिल हो। एकदम काले संगमरमर से बनी सेंट पीटर्स की मूर्ति मूर्तिकला का बेजोड़ नमूना है। सेंट पीटर्स की बॉडी इस मूर्ति के बारह फीट नीचे दफ़न है। सचमुच वाटिकन में बने इस विशाल कैथेड्रल ने अपने आकार, शान और शिल्प से मुझे दंग कर दिया। मैं तेज़ कदमों से कैथेड्रल का कोना-कोना अपनी स्मृति में संजोती रही। भव्य छत की कहानी कहता शिल्प आँखों में भरतीरही। इतने कम समय में इतना कुछ देखना पीड़ादायीथा। मन इस शंका से भरा था कि अब न जाने कब दोबारा यहाँ आना हो।

रोम की ऐतिहासिक सड़क से हम गुज़र रहे हैं। मौसम सुहावना है... म ठंड न गर्मी। लेकिन यहाँ ठंड के समय बहुत ज़्यादा ठंड पड़ती है, बर्फबारी भी होती है। हर दो बिल्डिंग के बीच पत्थर की पतली गलियाँ हैं। जो गर्म मौसम में ठंडी रहती हैं और ठंडे मौसम में गर्म। मैं जब भी कॉलेज के ज़माने में रोम का इतिहास पढ़ती थी तो ये गलियाँ मुझे बहुत आकर्षित करती थीं। न जाने ऐसा क्या जुड़ा था रोमन साम्राज्य से इन गलियों का... रोम के खूबसूरत झरने, झील, बगीचे और जंगली रास्ता पार कर हमने शहर में प्रवेश किया। वेनेतो स्ट्रीट यहाँ की मुख्य सड़क है। यकसाँ मेपल दरख्तों की कतार से हरी भरी सड़क... अमेरिकन एम्बेसी बारबिनी फाउंटेन... चार इमारतों के कोनों पर चार फव्वारे हैं जो मौसम के प्रतीक हैं। वेनी स्क्वेयर एग्ज़ीवीशन पैलेस जहाँ प्रदर्शनियाँ लगा करती हैं। सैनिकों की स्मृति मेंबना वेनिस पैलेस, सुपर मार्केट, रोमन फोरम, कोर्ड स्ट्रीट आई, दो हज़ार साल पुरानी, काले चौकोर पत्थरों से जड़ी हुई। सांता मारिया चर्च, टर्मिनी रेल्वे स्टेशन और फिर बहुप्रतीक्षितट्रिवी फाउंटेन। मैं तेज़ी से सीढ़ियाँ उतरकर फव्वारे के पास पहुँची। सफेदपत्थरोंसे बनी चट्टानों पर चार मौसम की प्रतीक चार विशाल मूर्तियाँ हैं। बीच में नैपच्यून की मूर्ति... पीछे एक खूबसूरत चर्चनुमा इमारत है। फ़व्वारे का जल स्फ़टिक-सा–शुभ्र, आसमानी दिख रहा था। कहते हैं यहाँ एक सिक्का डालो तो दोबारा रोम आगमन होता है। एक साथ दो डालो तो रोमांस होता है, एक साथ तीन डालो तो तलाक... यानी पूरा जीवन फव्वारे में सिमटा हुआ। मैंने एक सिक्का डाला। निश्चय ही मुझे दोबारा रोम आनाथा। फिर एक प्रमिला के नाम का डाला। और सोचने लगी ये चार मौसम कौनसे हैं? कहीं यहाँ बर्फ गिरने को भी तो एक अलग मौसमनहींमानते जैसे कश्मीर में मानते हैं। लेकिन कश्मीर में ग्रीष्म तो आता नहीं। सीधे बसंत आ जाता है और बर्फ गिरने तक रहता है। रोम में तो बाकायदा ग्रीष्म भी आता है।

ट्रीवी फाउंटेन से आगे चलते हुए एक लम्बी टनल हमने पैदल चलकर पार की क्योंकि वहाँ बस के लिए पार्किंग की जगह नहीं थी। कहीं भी बस खाड़ी कर देना यहाँ कानूनी जुर्म है। हम इटैलियन डिनर लेने एक मशहूर रेस्तरां जाने के लिए कोच (बस) में आ बैठे। काफ़ी समय लगा वहाँ पहुँचने में। रास्ते में खूबसूरत घरों की बनावट ऐसी लग रही थी जैसे ऊन से बुने गये हों। अधिकतर भूरे रंग के। रोम कीइसी सुंदरता से प्रभावित हो व्हिक्टर इमैनुअल ने 1865 के बाद यहाँ इटली की राजधानी शिफ़्ट की होगी। वैसे भी इटली का इतिहास मुसोलिनी से जुड़ा है जो ख़ुद को ऑगस्टस का अवतार समझने लगा था। वहीयहाँ फासिस्टवाद भी लाया। उसने अपने से तीस वर्ष छोटी क्लारा पिटाजी से शादी की। उसका मानना था कि क्लारा ने उसे जवानी के एहसास से भर दिया है। वह इटली को एक शानदार साम्राज्य बनाना चाहता था। अक्टूबर 1935-36 में युद्ध जीतकर उसने इटली को स्वतंत्र एम्पायर घोषित किया। लेकिन दूसरे विश्वयुद्ध में जर्मनी से टकराव के कारण इटली की जनता मुसोलिनी के ख़िलाफ़ हो गई और उसे गोली मारकर मिलान में उसकी लाश को उलटा लटका दिया। व्हिक्टर इमैनुअल ने ही इटली का एकीकरण किया था। उसकी स्मृति में बना कोलोसल व्हिक्टर इमैनुअल मॉन्यूमेंट देखते ही मुझे कोलोसियम में मिले रोमन शोध छात्रों की याद आ गई। कितना ऐतिहासिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक खज़ाना है इटली के पास। जूलियस सीज़र जैसा महान व्यक्ति भी इटली में ही हुआ।

डिनर में हमने न केवल भरपूर चीज़ वाला पीज़ा खाया बल्कि उसे एक फावड़े जैसे करछुल में लपककर विशाल भट्टी में डालते, निकालते सफेद झक्क कपड़ों में रसोइयों को भी देखा। क्या कारीगरी थी। इधर पीज़ा की रोटी बिली नहीं कि फावड़ों में उछली, भट्टी में डली और पककर बाहर। रात हमने पीसा पहुँचकर वहाँ के होटल कैवेलियर पार्क में बिताई। मुझे काफ़ी देर तक यह सोचते हुए नींद नहीं आई कि कल मैं दुनिया का आश्चर्य पीसा की मीनार देखूँगी।

चौबीस मई की सुबह हम नाश्ते के बाद आठ बजे होटल से रवाना हुए। पीसा की अद्भुत मीनार देखने के लिए सभी बेचैन थे। लगभग एक घंटे के सफ़र के बाद पीसा सिटी में बस ने पार्क किया। पार्किंग प्लेस से पीसा मीनार तक लोकल बसें फ्री में ले जाती हैं। यह सुविधा केवल उन लोगों के लिए है जिनकी बस या कार पार्किंग प्लेस में पार्क की गई हों। पीसा इटली की एक स्टेट है जिसकी राजधानी का नाम भी पीसा ही है। एक लाख पाँच हज़ार की आबादी है यहाँ। लिंगोडियन सागर बहता है।

पीसाकी मीनार पोनानो पिसानो नामक व्यक्ति ने 1174 में बनानी आरंभ की थी जिसे बनाने में 99 साल लगे। इसेपूरा किया इमोनो द सिवानी ने। मीनार चूँकि सागर की रेत से बनी थी इसलिए धसकते हुए एक ओर झुक गई। झुक तो गई पर गिरी नहीं, यही आश्चर्य है और इसी आश्चर्य ने इसे दुनिया के सात अजूबों में शामिल करा दिया। एक सौ छयासी फुट की होने पर भी यह गिरी नहीं। जब इसका झुकाव नापा तो आश्चर्य! चार मीटर त्रेसठ सेंटीमीटर झुक गई थी। आठ मंज़िल की इस मीनार में 294 सीढ़ियाँ हैं। जिन पर चढ़कर गैलीलियो ने पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण का पता लगाया था। सभी सीढ़ियाँ संगमरमर से बनी हैं, हर एक मंज़िल पर मार्बल कॉलम, 14700 मैट्रिक वेट, तीन मीटर दस फीट नीचे नींव है। मैं चकित हूँ, देख रही हूँ उन खंभों को जो हर साल मरम्मत कर नवीन बनाये जाते हैं। अब तो केवल 45 खंभे ही ऐसे हैं जो बारहवीं सदी के बने हैं। सफेद झक्क मीनार बड़ी अदा से एक ओर झुकी हरी घास के मैदान पर यूँ टिकी है जैसे किसी शरारती बच्चे का खिलौना। सामने बेल टॉवर चर्च के हरे दरवाजों पर उभरे हुए रोमन ज़िन्दगी के चित्र हैं और खंभों पर संगमरमरी कार्विंग बेहद नाज़ुक सी। वापिस्ट्री जहाँ चर्च के प्रीस्ट परिवार सहित रहते थे। अब वहाँ म्यूज़ियम है। पीसा की मीनार में ऊपर की मंज़िलों पर जाने के लिए टिकट लगती है। नीली शर्ट, काले पैंट में दरवाजेपर खड़े होकर चैकर, सामने लाइन से स्टॉल घड़ियाँ, बैग, स्कार्फ, मूर्तियाँ आदि के... पर्यटक टूटे पड़ रहे थे और मैं मीनार के मैदान को घेरती रेलिंग से बाहर निकलकर एक बेहतरीन चीज़ देख रही थी। स्टॉल जब बंद हो जाते हैं तो हरे रंग के पिरामिड में बदल जाते हैं।

फ्रांस जाने से पहले एक इच्छा थी सोनिया गाँधी की जन्मभूमि देखने की। जब जिनोवा आया तो मुझे अपने प्रिय राजीव गाँधी बहुत याद आये। सोनिया गाँधी की जन्मभूमि जिनोवा बेहद खूबसूरत शहर है। जिनोवा से लगा करारा और मागरा गाँव इटालियन मार्बल और ग्रेनाइट के लिए प्रसिद्ध है। यहीं अलबीनिया गाँव है जहाँ एक सड़क का नाम राजीव गाँधी रोड है। घने जंगलों, पहाड़ों और वादियों में बसे इकहरे घर, लाल टाइल्स वाले... सड़कों पर थोड़ी-थोड़ी दूरी पर बने पुल बड़ा रोमांटिक एहसास दे रहे थे। यहाँ समुद्र तट को रिवेरा कहते हैं। रिवेरा से लगे पहाड़... नेरवी शहर वैली में घना बसा। वैली भी और रिवेरा भी... दोनों साथ-साथ। क्या ख़ूब प्रकृति रची है यहाँ। जिनोवा एक महत्त्वपूर्ण कार्बो-सी पोर्ट है। बड़े औद्योगिक शहर जैसा। गुलाबी केसरिया और पीच रंगों के खूबसूरत मकान, फूलों के गमलों से भरी बाल्कनी। यहाँ मेडीटेरियन सागर बहता है। कुछ घर तो बिल्कुल सागर तट से लगे हैं, कुछ पर्वतों पर। इतने खूबसूरत बिल्कुल अलहदा बनावट वाले घर मैं पहली बार देख रही हूँ। पाइन के दरख्तों की शमादान जैसी डालियों ने घर को हरा भरा सुकून दिया है। तभी इतनी शांति है यहाँ...