इमोज़ी वाली बधाइयाँ / गिरीश पंकज

Gadya Kosh से
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समय के साथ धीरे-धीरे जीवन भी ऑनलाइन होता जा रहा है। कोरोना वायरस ने तो वैसे भी सबको लाइन से लगा दिया है। पहले सेमिनार होते थे, अब वेबिनार हो रहे हैं। एक दूसरे से मिलना ही नहीं। जो भी करना है, बताना है, वह ऑनलाइन करो और छुट्टी पाओ। पिछले दिनों मेरा जन्मदिन आया, तो मन बड़ा खुश हुआ कि अब लोग घर आएँगे। बुके लेकर के पहुँचेंगे और घर भर को महकाएँगे। कुछ लोग गिफ्ट-शिफ्ट भी ले कर के आते हैं। एक सज्जन तो हर साल काजू कतली का डिब्बा लेकर के आते थे। फिर वही काजू कतली आने वाले सारे मेहमानों को हम खिला कर वह कहावत चरितार्थ करते थे, फोकट का चंदन घिस मेरे नंदन। लोग जो बुके लेकर आते थे, उन्हें मैं पानी सींच कर ताज़ा रखता था और दूसरे दिन वही बुके जिस किसी बन्दे का जन्मदिन होता, उसे देने के काम आ जाता था। कुछ चालक लोग सोन पापड़ी का डिब्बा जन्मदिन के अवसर पर ज़रूर गिफ्ट करते थे। उस डिब्बे पर नया चमकीला कवर लगा कर मैं भी बहुत चालाकी के साथ अपने मित्र के जन्मदिन पर उसे सप्रेम भेंट कर देता था। पिछली बार तो जिस मित्र को मैंने सोन पापड़ी का डिब्बा भेंट किया, उसे देख कर वह मुस्कुरा पड़ा। बोला कुछ नहीं, पर मन-ही-मन वह सोच रहा था कि अरे, यह तो वही सोनपापड़ी का डिब्बा है, जो मैंने इसे टिकाया था। यानी तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा वाली कहावत चरितार्थ हो गई। खैर, यही तो जीवन है। हम ठहरे सामाजिक प्राणी। इस नाते ऐसे ही छलछन्दर करते हुए जीवन बीतता रहता है। लेकिन इस बार तो अति हो गई। वही किस्सा सुनाने के लिए भूमिका बना रहा था। सो, उसे सुन लिया जाय।

हर साल की तरह हम जन्मदिन वाली सुबह कोसे का कुर्ता पहनकर ड्राइंग रूम में बैठ गए कि अब कोई आएगा, तब कोई आएगा। लेकिन हद हो गई। घंटों इंतज़ार करते रहे, कोई नहीं आया। बस, आने के नाम पर व्हाट्सएप के मैसेज ज़रूर आते रहे। उसको हम खोल कर के देखने लगे तो वहाँ ग़दर मची थी। बधाई देने वाले टूट पड़े थे: "जन्मदिन की बधाइयाँ... लख-लख बधाइयाँ... हार्दिक बधाई... यह लीजिए, मुँह मीठा कीजिए... ।" देखा, कोई काजू कतली की फोटो भेज रहा है ...कोई गुलाब जामुन... कोई रसगुल्ला कोई समोसा ...एक-से-एक स्वादिष्ट रंगीन इमेज़ भेजते हुए हर कोई जन्मदिन पर हमारा मुँह मीठा कर रहा है। तरह-तरह के बुके भी। कोई फूलों का गुच्छा भेज रहा है। कोई गुलाब की कली। कोई गेंदे की माला भेजे पड़ा है। गनीमत है किसी ने मेरी तस्वीर पर माला नहीं चढ़ाई, वरना मुझे जीते-जी बैठे-बिठाए स्वर्गवासी होने का सौभाग्य प्राप्त हो जाता।

मुझे बधाई देने के लिए घर कोई नहीं आया, तब मुझे याद आया कि अरे, अब तो ऑनलाइन बधाई देने का प्रचलन बढ़ गया है। क्योंकि हम अब मनुष्य कहाँ रहे, हम तो अब 'ई-मनुष्य' हो गए हैं। पहले लोग जन्मदिन पर फ़ेसबुक में बधाई देते थे। आज भी दे रहे हैं पर अब वाट्सएप भी आ गया है। फ़ेसबुक में तो जानकारी भी मिल जाती है कि आज किस-किस का जन्मदिन है। जन्मदिन की सूचना देखी नहीं कि लोग शुरू हो जाते हैं, बधाई.। बधाई.। बधाई... ! मिठाई... मिठाई... मिठाई.।! फ़ेसबुक में बधाई का ताता देखकर समझ में आ जाता था कि कौन बंदा कितना लोकप्रिय है और कौन एंवई है। अब तो हालत यह है कि फ़ेसबुक में लोग बधाई के दिन ही कुछ अनजान मित्रो को बधाई देने के बजाय अनफ्रेंड भी कर देते हैं। और यह सही भी है। फ़ेसबुक में हर दिन आज किनका जन्मदिन है वाला नोटिफिकेशन मैं भी ग़ौर से देखता हूँ। फिर उन चेहरों को ध्यान से देखने के बाद जब समझ में आता है कि अरे, यह आभासी मित्र तो वर्षों तक कभी न मेरी पोस्ट में आया, न मैं ही कभी उसकी पोस्ट में गया, तो ख़्वाहमख्वाह हम क्यों सम्बंधों का बोझ ढोए चले जा रहे हैं। इसलिए मैं उनको फौरन नमस्ते कर देता हूँ। यानी अमित्र। हालांकि कुछ लोग हमारे साथ भी ऐसा ही करते होंगे, जिनकी पोस्ट को कभी मैंने देखा नहीं और न वे कभी भूले-भटके मेरी तरफ़ ही आए। तो फ़ेसबुक ने हमें ऐसा आभासी बना दिया है कि हम यहाँ मित्र भी बनाते हैं और उसी मित्र को एक समय के बाद अमित्र बोले तो अनफ्रेंड भी कर देते हैं।

ऐसे बहुत से मित्र हैं, जो कभी मिलने पर फूटी कौड़ी ख़र्च नहीं करते लेकिन फ़ेसबुक और वाट्सएप में जबरदस्त उदारता दिखाते हैं। जन्मदिन के दिन हमें तरह-तरह के पकवान खिलाते रहते हैं। इसमें उनके पिताश्री का क्या जाता है। गुलाब जामुन, रसगुल्ले, इमरती की तस्वीरें ही तो भेजनी है। बाज़ार जाकर दो सौ रुपये का बुके भी नहीं खरीदना है। बस तैयार इमेज सिलेक्ट करो और भेज दो! तो इस बार ऐसा ही हुआ। जन्मदिन वाले दिन फ़ेसबुक में सैकड़ों लोगों ने बधाइयाँ दे दी। ढेर सारे बुके भेज दिए। तरह-तरह के पकवानों को देख-देख कर-कर मुँह में पानी भी आने लगा लेकिन यथार्थ में सामने कुछ नहीं था। सिर्फ़ आभास था और इसी आभासी दुनिया में मेरा मन मगन होकर के नाच रहा था और सोच रहा था, गनीमत है कि लोग कम-से-कम फ़ेसबुक और व्हाट्सएप में बधाइयाँ तो दे रहे हैं। भले ही घर कोई नहीं आया लेकिन बधाइयाँ तो चली आईं। इतना भी होता रहे तो मुझे लगेगा कि हम अभी पूरी तरह से मरे नहीं, ज़िंदा हैं। बहुत पहले जब लोग टेलीग्राम करके संदेश भेजा करते थे, तो हर संदेश के लिए एक नम्बर हुआ करता था। वह लिख दो तो डाक तार विभाग वाले उस नम्बर वाले मैसेज को सम्बंधित व्यक्ति को भेज दिया करते थे। आने वाले समय में ऐसा ही होगा। जन्मदिन की बधाई देनी हो तो 'जे' लिख दो तो सामने वाला समझ जाएगा कि जन्मदिन की बधाई दे रहा है। निधन के लिए शोक प्रकट करना हो अर्थी वाली इमेज के साथ शोक वाली इमेज़ भी भेज दो, लोग समझ जाएँगे कि बंदा तो अपना दुख व्यक्त कर रहा है।

... तो यह ऑनलाइन का समय है। इसने मनुष्य को बहुत चालाक कर दिया है। न तुम हमारे यहाँ आओ, न हम तुम्हारे यहाँ जाएँ। सब अपने-अपने में मस्त रहें। ऑनलाइन बधाई दे करके छुट्टी पाओ और यह ठीक भी हुआ। वरना जब लोग बधाई देने घर पहुँचते थे, तो हमारे मित्र छदामीराम की इकलौती पत्नी हलकान हो जाती थी। जो सज्जन आ रहे हैं, उनको मिठाई खिलाओ। नमकीन परोसो और अंत में चाय पिलाओ। वह टेंशना जाती थी। हर साल जन्मदिन पर की पूर्व संध्या से ही वह बड़बड़ाने लगती थी कि "हाय-हाय! कल तो मेरी दिनभर परेड हो जाएगी। कितने लोग आएँगे। सबको चाय-नाश्ता कराना पड़ेगा। शरीर का कचूमर ही निकल जाएगा और घर का बजट भी गड़बड़ा जाएगा, सो अलग।" लेकिन इस बार वह बहुत खुश हुई, जब न तो उसका कचूमर निकला और न घर का बजट ही गड़बड़ाया। वह कहने लगी, "एजी, कितना अच्छा समय आ गया है न! लोग घर बैठे ही आप को बधाइयाँ दे रहे हैं। आपका मुँह मीठा करा रहे हैं। मैं भी अब यही करूँगी।"

इतना बोल कर उसने पति को ही व्हाट्सएप कर दिया कि "प्रीतमजी, जन्मदिन की बधाइयाँ स्वीकार हो और मुँह मीठा करो"।

इतना कहकर उसने प्लेट भर रसगुल्ले की इमेज़ी पतिदेव को व्हाट्सएप के माध्यम से भेज दी। छदामीराम ने भी मुस्कुराते हुए उसे धन्यवाद वाली इमेज के साथ रसगुल्ले वाली वही इमेज़ फॉरवर्ड कर दी।

अब दोनों प्रसन्न हैं। दोनों मजबूरी में ही सही, अब तनावमुक्त भी है। पहली बार जन्मदिन के अवसर पर पकवान नहीं बनाना पड़ा। किसी को खिलाना पिलाना नहीं पड़ा।

मैं सोच रहा था, यह ग़ज़ब की नई आभासी दुनिया विकसित हो रही है। यहाँ रिश्ते तो हैं... मिठाइयाँ तो हैं ...फूल तो हैं... मगर सब के सब आभासी। चलो, कुछ तो बचा हुआ है आभास ही सही। वरना आने वाले समय में यह आभासी दुनिया भी ख़त्म हो जाएगी, तब क्या होगा? इतना सोचते हुए मैं ग़ौर से अपने फ़ेसबुक और वाट्सएप को देखने लगा। मित्रो की बधाइयाँ स्वीकार करने लगा और आने वाले पकवानों और फूलों की इमोज़ी को स्वीकार कर, सब को धन्यवाद वाली इमोज़ी भेजने लगा।