इलाज / रामस्वरूप किसान

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बुढ़ापै में लुगाई री न्यारी ई जरूरत हुवै। जे ईं ऊमर में लुगाई किनारो करज्यै तो फोड़ो ई फोड़ो।

ईं वास्तै ई कैयो है - ना मरियो बूढै री नार, ना मरियो टाबर री माय। जिण भांत टाबर नै मां री जरूरत हुवै उणी भांत बूढै नै लुगाई री। पण मौत पर किण रो बस। बा तो बूढो देखै न टाबर। चावै जद आं दोनूवां रै मूं पर थाप मार दयै। टाबर री गोदी अर बूढै री गुरबत झांप ल्यै।

होणी री इणी गत मुजब सत्तर सालो रावतो बैरंग हुग्यो। लुगाई उण नै मझधार में छोड़ भवसागर सूं तिरगी।

बो हाथ मसळतो रैयग्यो। आंख मसळण रो मौको ई नीं मिल्यो। बीयां ई इण ऊमर में आपणो समाज आंख मसळण रो मौको देवै ई तो कोनी।

रावतै समाज री रीत रो रायतो खायो। आंख्यां सा आसूं पळटग्यो। काळजै कानी मोड़ लिया। पण आसुवां रो असर नीं दब्यो। चै‘रै पर आयग्यो। लुगाई री मौत मुखड़ै मंडगी। चेळको चिता चढ़ग्यो। चै‘रै सूं खाक उडण लागगी। इंच-इंच बध्योड़ी दाढ़ी। होठां पर फेफी अर दातां रो पिळास और ई बधण लागग्यो। हांसण री कोसीस में मरयोड़ा होठ पसरै। बोलणो पितावै। पांगळी भासा रै आंटी चढै। थाकल सबदां रै बांयटा आवै। लेधे लय भंग हुवै। खुद नै ई अपरोगो लागै। सोचै, बोली होठां को ओपै नीं। इसै बोलणै सूं तो मूल ई आछो। बो भोत कम बोलण लागग्यो।

इण नै कैवै सदमो। लुगाई री मौत रा सदमो। जिण नै बुढ़ापो झेल नीं सक्यो। रावतो डगमगाग्यो। उण री चाल टूटगी अर दिन-दिन डील सूं ई कटण लागग्यो। अर थोड़ै सै अरसै में ई बुढापो चैगणो हुग्यो। घर वाळा बतळाया-घणां दिन कोनी जीवै बुढियो। बू-बेटां अर पोतै-पोतियां सेवा ई चैगणी कर दी। पण, च्यार रोटी खावण वाळो डोकरो देखतां-देखतां एक पर आयग्यो। मांची झाल ली।

बारै जावणो अर माणसां में बैठणो तो जाबक ई छोड़ दियो। घोर एकांतिक बणग्यो। इत्तो के खुद नै खुद में ई लुकोवण री कोसीस करै। सारै-सारै दिन गोडा गळ में घाल्यां कमरियै में पड़यो रैवै अर इकलग छात कानी देखबो करै। कै फेर हाथ रै इसारै पर ऐकलै रा होठ हालता रैवै।

डोकरै री हाल पर घर वाळां नै दया आवण लागगी। बेटा-पोता बिलमावण री घणी ई कोसीस करता। पण सो कीं बेकार।

बड़ो बेटो मनीराम काम सूं फारिक होय‘र डोकरै कनै हथाई सारू बैठतो। पण हुंकारां रै सिवाय बूढियो एक टप्पो ई नीं बोलतो। एकलो आदमी बात नै कितीक खींचै। बात तो बालीबाल है जकी नै सा‘मण सारू सा‘मलै री जरूरत पड़ै। डोकरै री हूं-हां सूं अक‘र मनीराम खड़यो हुज्यांवतो। आंगणै में आय‘र कैंवतो- ‘बाबो बचै कोनी।’ सगळा फीका हो ज्यावंता। एक दिन सगळा बैठता हां। अचाणचक मनीराम रो बेटो राजू बोल्यो - ‘दादै री दुवाई तो म्हारै कनै है। म्हैं बचा सकूं दादै नै।’

‘थूं किंयां बचा सकै ? सगळां रा कान खड़या हुग्या।’

‘हां म्हैं बचा सकूं....’

आ कैय‘र बो खड़यो हुग्यो अर देखतां-देखतां आप रै कमरै सूं टेलीविजन काढ ल्यायो अर दादै रै कमरै कानी चाल पड़यो।

काको दलीप अचम्भै सूं बोल्यो - ‘अरै के करै बावळा !’

‘टेलिविजन लगावूं दादै कन्नै।’

सगळै घरगा ताळी पीट‘र हांस्या। राजू री बीनणी, मां अर काकी तो हांसती-हांसती लोट-पोट हुगी। आंगणै में पसरगी। पण राजू तो टेलिविजन लेय‘र दादै रै कमरै में बड़ग्यो।

आज दसुवों दिन हो कमरै में टी.वी. चालतै नै। बुझतै दियै में तेल-सो घलग्यो। दादो सरजीवण होग्यो। डील सूं कूंपळां। फूटण लागगी। होठां पर हांसी खिलगी। बत्तीसी चिलकण लागगी। चै‘रै पर रूणक आयगी। बातां रा बडका पाड़ण लागग्यो। एक रोटी सूं पंाच पर आयग्यो। कैय सकां मौत जीवण मांय बदळगी।

घर आळा राजू नै डाक्टर कैवण लागग्या। दादै रो डाक्टर । राजू ई आप रै तजरबै पर खुस हो। उण डाक्टरी अंदाज में घरवाळां नै एक सर्त में बांध राख्या हा। सर्त आ ही कै टी.वी. चालतै थकां उण रै सिवा कमरै में चिड़ी ई नीं बड़ै। राजू ई फगत टी.वी. नै ओन-ओफ करण सारू ई बड़तो। बाकी तो डोकरो एकलो ई देखतो टी.वी.। एक दिन पड़पोतो (राजू रो छोरो) मुकेसियो घुसग्यो कमरै में। अळबादी हो ई। रिमोट सूं चैनल बदळ दियो। बूढियै झ्यांई ली मुकेसियै पर अर हेला-हेल हुग्यो- ‘अरै राजिया, ओ राजिया ! किन्नै मरग्यो ? अण टींगर गाळी दी गट्टी। और जगां लगा दियो ईं ढमढमै नै। थूं सागी जगां बाळ !’

राजू भाज‘र आयो अर मुळकतै थकां पाछो ई सागी जगां लगा दियो टी.वी. नै। दादै रै घी-सो घलग्यो।

ईयां ई एक दिन बडोड़ै बेटै मनीराम भूल सूं सर्त तोड़ दी। बो कमरै में बड़ग्यो। हिमेस रेसमियां रा गीत चालै हा। डोकरो देखण में मगन हो। मनीराम री दीठ पड़दै पर नाचती उघाड़ी लुगाई रै डील पर पड़ी। उण रा तिराण फाटग्या। अचंभै रो ठिकाणो नीं रैयो। उण बाबै कानी करड़ी मीट सूं देख्यो अर आंख्यां आगै हाथ देय‘र बारै निकळग्यो। डोकरो बेटै रा हाव-भाव देख‘र हाक्यो-धाक्यो रैयग्यो। भोळै टाबर री भांत खड़यो होय‘र बूझण री कोसीस करी। पण मनीराम कमरै सूं बारै निकळग्यो हो। उण नै तो तद ठा पड़यो जद बारणै सूं निकळ‘र मनीराम बड़बड़ायो-‘माळा फरण री ऊमर मे ऐ काम ! बूढै-बारै ऊत गई ... नागी फिलम देखै। सरम रो ई तोड़ो।‘

डोकरो बात नै ताड़ग्यो। बेटै रा बोल बाप रै काळजै जमग्या। राजू री दुवाई फैल हुगी। मरीज री आस्था पर चोट लागगी। विश्वास टूटग्यो। डोकरो होळै-होळै पाछो ई डूबण लागग्यो। राजू घणो ई समझायों फोर-फोर चैनल लगाया। पण के काम लागै। डोकरो भीतर सूं खाली हुग्यो अर खाली री दीठ में सो‘कीं खाली।

एक ई झटकै में उण रो जीवण-रस सूखग्यो। राजू रो मन राखण सारू टी.वी. रै साम्हीं अवस बैठयो रैंवतो, पण देखतो कोनी। पथरायोड़ी आंख पड़दै पर टिकी रैंवती। ईंयां लागतो जाणैं कोई धतराष्ट्र पड़दै पर आंख रोप्यां बैठयो है।

अर ईंयां करतां-करतां एक दिन बूढियै रा प्राण पखेरू उडग्या। राजू भोत रोयो। उण रो मरीज बच नीं सक्यो। इलाज फैल हुग्यो। क्यूंकै इलाज फैल कर दियो।