ईंधन / बालकवि वैरागी

Gadya Kosh से
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रेल के डिब्बे में तिल रखने को जगह नहीं थी। नौजवान लड़के-लड़कियों से कम्पार्टमेंट खचाखच भरा पड़ा था। नियमित मुसाफ़िर जगह के लिए मारे-मारे फिर रहे थे। गाड़ी चल दी।

डिब्बे में फँसे हुए एक अजनबी, किंतु नियमित यात्री ने कुछ नवयुवकों से पूछा,”कहाँ जा रहे हैं आप सब?”

“राजधानी।”

“क्यों?”

“रैली में।”

“कौन-सी पार्टी की रैली है?”

“किसी के पास उत्तर नहीं था।

“आपके पास टिकट है?”

“हमें नहीं मालूम, हमारा नेता जाने।”

“कहाँ है आपका नेता?”

“हमें नहीं मालूम्।”

प्रश्नकर्त्ता आश्चर्यचकित था। तभी एक दूसरे सामान्य सहयात्री ने प्रश्नकर्त्ता का समाधान करते हुए उसे समझाया--”भाई, ईंधन को क्या मालूम कि वह किस भट्टी में झोंका जा रहा है? लकड़हारा ले जा रहा है। भट्टीवाला सम्हाल लेगा।”

रैली के स्वयंसेवक राष्ट्रीय गीत गाने में व्यस्त हो गये।

रेलगाड़ी राजधानी की ओर भागी जा रही थी।