उकाव और कौआ / ख़लील जिब्रान

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पहाड़ी की एक ऊंची चोटी पर एक कौआ एक उकाव से मिला।

कौए ने उसका अभिवादन किया।

उकाव ने अभिमान से उसकी ओर देखा और धीरे से उसका अभिवादन किया।

कौए ने पूछा, ‘‘आशा है, श्रीमान् जी कुशल से होंगे ?’’

‘‘हूं’’ उकाव बोला, ‘‘हम सकुशल हैं। परन्तु क्या तुम यह नहीं जानते कि हम सब पक्षियों के राजा हैं और राजा से सम्बोधन करने का साहस उस समय तक न करना चाहिए जब तक हम स्वयं ऐसा पसन्द न करें ?’’

कौआ बोला, ‘‘मेरा तो विचार है कि हम सब एक कुटुम्ब से हैं।’

उकाव ने उसकी तरफ बड़ी घृणा से देखा और कहा, ‘‘यह तुझे किसने बताया है कि हम और तुम एक ही कुटुम्ब से हैं ?’’

कौआ बोला, ‘‘तो फिर शायद मुझे श्रीमान को यह जतलाना ही पड़ेगा कि मेरी उड़ान श्रीमान की उड़ान से ऊंची है और मेरी बोली आपकी बोली से सुरीली है और मैं गाकर दूसरे जीवों को आनंद देता हूं और श्रीमान् न किसी को प्रसन्न कर सकते हैं और न आनन्द दे सकते हैं।’’