उतर-पातर / नीरज दइया

Gadya Kosh से
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बो जियां ई घरै पूग्यो, देख्यो- जीसा भदर हुयोड़ा है। उण रो काळजो बैठण लाग्यो। बो साव होळै सी’क पूछियो- कुण चालतो रैयो...?

- रामू काका..।

- कांई रामू काका कोनी रैया... ? उण नै अचरज हुयो पण अचरज राम काका रै जावण रो नीं हो। जीसा सूं बात पुखता हुयां उण रै मांय झाल रो गोट उठियो। काल तांई जिकै आदमी सूं राम-राम ई कोनी ही, उण सूं एका-एक इत्ती प्रीत कियां उपजगी..!

उण रै सुर में तेजी ही- गजब करो, जद आपां होळी-दियाळी अर रामा-स्यामां ई तोड़ राख्या हा तद आज पाछी सांधण रो कांई तुक... थांरै भदर हुवण री अर बठै जावण री बात म्हारै समझ कोनी आई। थानै कीं करणो हो तो पैली घरै बात तो करता...

उण रै जीसा नै ई तेजी आयगी, पण तो ई बां नरमाई सूं कैयो- थन्नै ठाह है कै थारै दादोसा रै लारै कुण कुण भदर हुया..?

जवान खून अर नवी हवा रो टाबर आ बात सुण’र भड़कग्यो- आ ई कोई उधारी हांती है, जिकी आपां चूकत करां। ओ लोक देखापो म्हनै फालतू अर अणखावणो लागै। जीसा समझावणी रै सुर में बोल्या- जे आज रै दिन म्हैं माथै राख न्हाख लेवतो तो लोगां साम्हीं कांई इज्जत रैवती... सामूंडै नीं तो परपूठ बातां बणती...

जीसा बोल्यां जावै हा अर उण रै कानां रै जाणै डाटा लागग्य हा। बो ठाह नीं किसै हिसाब-किताब में लगोलग भुसळीजतो जावै हो।