उत्तरदायित्व / रघुविन्द्र यादव

Gadya Kosh से
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"अरे बड़ी! यह ताला देखना, ठीक से बंद ही नहीं होता।"

"यह मुझे दे दीजिये बाबूजी, मैं रामदीन चाचा से नया मंगवा देती हूँ।"

"अरे! मझली! यह।"

"यह पुराना हो गया, इसे फेंक दें बाबूजी! अब यह किस काम का है?"

"अरे छोटी! यह।"

"बाबूजी, मैं इसे अभी देखती हूँ।"

छोटी ससुर से ताला लेकर सीधी स्टोर में गई, केरोसिन से ताले को साफ कर उसमें तेल डाला और आकर बोली "लो बाबूजी, ये ठीक हो गया है, पुराना है न इसलिए इसे 'सर्विस' की ज़रूरत थी।"

ससुर ने घर की चाबी छोटी को सौंपते हुए कहा "बेटी बुजुर्ग भी घर के ताले होते हैं। मुझे आज यकीन हो गया इन तालों की सेवा-संभाल केवल तुम्हीं कर सकती हो।"