उत्तराखण्ड के गांधी का पुण्य स्मरण / दिसम्बर 2009 / युगवाणी

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जन्म दिवस 24 दिसम्बर पर विशेष

समय बीतने के साथ इतिहास के गर्त में न मालूम ऐसी कितनी घटनायें दफन हो जाती हैं जिन्हें फिर कभी धूल से उठाने का साहस कोई नहीं करता क्योंकि उन घटनाओं में इतना ताप निहित होता है कि उसे अनावृत करने वाला स्वयं अपने हाथ जला बैठता है। परन्तु कई बार ऐसी घटनायें व्यक्ति के अंतः स्थल में अमूर्त रूप में कुछ इस तरह प्रवेश कर चुकी होती है कि उन्हें अनावृत न करना व्यक्ति को अपराध बोध से ग्रसित कर देता है।

एक ऐसी ही घटना उस काल खंड की है जब उत्तराखंड आन्दोलन अपनी चरम स्थिति में पहुॅच कर सृजन के उस भ्रूणकालीन दौर से गुजर रहा था जिसमें सफलतापूर्वक निर्वहन के उपरान्त एक नवजात शिशु के रूप में ंउसका अवतरण संभावित था।

मैं तद्समय नरेन्द्रनगर में अधीनस्थ प्रशासनिक अधिकारी के रूप में तहसीलदार की हैसियत से कार्यरत था। उत्तराखंड आन्दोलन में वहॉ के गॉधी के रूप में विख्यात स्वनामधन्य श्री इन्द्र मणि बडोनी जी का निवास स्थान ग्राम तपोवन इसी राजस्व क्षेत्रान्तरगत अवस्थित था। श्रद्वेय बडोनी जी का स्वास्थ्य उनकी आयु के अनुरूप अत्यंत शिथिल हो गया था। मुझे याद पडता है कि एक दिन मेरे सम्मुख श्रद्वेय बडोनी जी के स्वास्थ्य से संबंधित ऐसा कागज प्रस्तुत हुआ जिसमें उनके इलाज के लिये राज्य सरकार से अनुदान की मॉग की गयी थी। सामान्य कागजों की भॉति यह कागज भी राहत कोष से सहायता के लिये जिलाधिकारी टिहरी गढवाल को अग्रसारित हुआ और वहॉ से गंतब्य के लिये रवाना हो गया फिर उसकी स्मृति भी पटल से लुप्त हो गयी।

कुछ समय ही बीता था एक दिन कुछ विशेष घटित हो गया। मेरी स्मृति में उस दिन तहसील में अधिक कार्य नहीें था, सांयः लगभग चार बजे इस आशय की सूचना मिली कि श्रद्वेय बडोनी जी किसी भी समय अपना शरीर त्याग सकते है। इस सूचना के कारण उत्तराखंड आन्दोलन का प्रत्येक सिपाही दुख से भर गया। स्थानीय अभिसूचना इकाई के माध्यम से जैसे ही यह संदेश तत्कालीन जिलाधिकारी टिहरी गढवाल तक पहुॅचा उन्होंने नरेन्द्रनगर उपखंड के उपजिलाधिकारी से दूरभाष पर सूचना की पुष्ठि की और फिर जो संदेश दिया उसे उद्घृत करना प्रशासनिक घृष्ठता हो सकती है परन्तु उत्तराखंड आन्दोलन के प्रणेता तथा उत्तराखंड के गॉधी को सच्ची श्रद्वॉन्जलि अर्पित करने के लिये निडर होकर इस सत्यता को उद्घृत करना चाहता हूॅ कि जिलाधिकारी महोदय ने बताया कि श्राी बडोनी के इलाज के लिये मुख्यमंत्री राहत कोष से स्वीकृत होकर एक बडी धनराशि लगभग बीस दिन पूर्व जिला मुख्यालय आ चुकी थी जिसका आहरण जिला कार्यालय अभी तक नहीं कर सका था।

सम्भवतः मुख्यमंत्री राहत कोष से सहायता चाहने विषयक वह कागज प्रशासनिक हलके की अनेक मेजों से गुजरकर उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री तक पहुॅचा होगा और उत्तराखंड के गॉधी की स्वास्थ्य कामना के साथ स्वीकृत हुआ होगा अथवा यह भी संभव है कि विद्यमान राजकीय प्रणाली में कतिपय प्रभावशाली व्यक्तियों के दयावान हाथों से गुजरता हुआ यह कागज सार्थक मुकाम तक पहुॅचा हो या अन्य किन्ही प्रभावों के माध्यम से फलीभूत हुआ हो। इसके बारे में कोई स्पष्ठ धारण नहीं उकेरी जा सकती। बहरहाल श्रद्वेय बडोनी जी के इलाज के लिये एक बडी धनराशि मुख्यमंत्री राहत कोष से स्वीकृत होकर जिले पर पहुॅच गयी थी और उसे समय रहते आहरित कर वितरण हेतु संबंधित उपजिलाधिकारी एवं तहसीलदार केा उपलब्ध नहीं कराया जा सका था।

उपजिलाधिकारी से होता हुआ यह संदेश मुझ तक पहुॅचा और इसे सुन कर मैं आवाक रह गया, यदि सरकारी भंवर में उलझ गयी प्राणदायिनी अैाषधि के अभाव में श्रद्वेय बडोनी जी का शरीर कल्पवास को निकल गया तो क्या होगा यह सोचकर मैं सिहर उठा। घटना के कई पहलुओं पर गंभीरता से विचार किया गया तो यह प्रतीत हुआ कि माननीय मुख्यमंत्री राहत कोष से समयार्न्तगत प्राप्त सहायता धनराशि यदि जनपद में पीडित को समय से उपलब्ध नहीं करायी जा सकती तो इसका उत्तरदायित्व निर्धारण अवश्यंभावी था और जब पीडित व्यक्ति उत्तराखंड का गॉधी जैसे विशेषणो से शोभित विशिष्ठ व्यक्ति रहा हो तो जवाबदेही छोटे स्तर पर नहीं अपितु जिला प्रमुख स्तर तक पहुॅचनी स्वाभाविक थी। मैने अपने उच्च अधिकारियों को इस बात के लिये आश्वस्त किया कि वे चिंतित न हों, मैं स्थानीय स्तर पर समस्या के समाधान का तत्काल प्रयास करता हूॅ।

ऐसे में मॉ कुंजापुरी के आशिर्वाद से मुझे अपने एक परम हितैषी स्नेहिल भ्राता तुल्य स्थानीय नेता जी का स्मरण हो आया जिन्होने अपने विद्यार्थी जीवन से ही इलाहाबाद मंे जनसंपर्क का ककहरा सीखा था और इसे कैरियर के रूप में अपनाने का ध्येय लेकर इलाहाबाद छोडकर पहाड के इस छोटे से कस्बे में निवासित थे तथा अब तक एक परिपक्व राजनेता के रूप में इस नगर की जनता की सेवा को समर्पित थे।

मैने नेता जी से संपर्क साधा तथा एकान्त में ले जाकर उन्हे विस्तार से सारी घटना बतायी। नेता जी सुलझे विचारों के उर्जावान व्यक्ति थे तथा स्थानीय जनता के साथ साथ प्रशासन के भी शुभचिंतक थे सो उन्होने तत्काल मेरे साथ आदरणीय बडोनी जी के आवास पर चलने का निर्णय लिया। तद्समय बडोनी जी तपोवन ऋषिकेश में निवासित थे जो तहसील मुख्यालय से लगभग एक घंटे की दूरी पर था। हम लोग सरकारी जीप से चलकर लगभग एक घंटे बाद बडोनी जी के उस शरीर के पास उपस्थित थे जो नश्वर संसार को छोडने के अंतिम पायदान पर था। बडोनी जी को घेर कर उनकी पत्नी तथा अन्य बन्धु बान्धव बैठे थे। नेता जी ने बडोनी जी के पारिवारिक व्यक्तियो से प्रशासनिक अधिकारी के रूप में मेरा परिचय कराया तथा एकान्त में जाकर शासन की दुविधा से अवगत कराया तथा यह भी बताया कि शासकीय धनराशि उपयोग न होने की दशा में मुख्यमंत्री राहत कोष को वापिस भेज दी जायेगी। उस स्थान पर हम लोग लगभग एक घंटे तक रूके तथा यह देखा कि बडोनी जी मरणासन्न थे तथा उनके शुभचिंतक दर्शनार्र्थी अनेक महानुभावो का आवागमन प्रारंभ हो चुका था।उपस्थित व्यक्तियों का मानना था कि श्री बडोनी जी अब कुछ घंटो के ही मेहमान हैं। लगातार बढती भीड देखकर स्थानीय पुलिस को सतर्क करते हुये हम लोग वापिस तहसील मुख्यालय आये।रास्ते में नेताजी ने मुझसे कहा कि मैं किसी तरह शीध्र रूपयों की व्यवस्था करूॅ और रा़ित्र में एक बार पुनः हम बडोनी जी के दर्शनार्थ जायेंगें।

मैने रात्रि में ही कोषागार खुलवाकर नकद धनराशि निकलवायी और अपने विश्वाशपात्र सहायक तथा नेताजी के साथ रात्रि के दूसरे पहर में पुनः मरणासन्न बडोनी जी के दर्शनार्थ तपोवन पहुॅचे। वहॉ पहुॅच कर देखा कि रात्रि के कारण कुछ भीड कम हो गयी थी तथापि वहॉ आने जाने वालों का क्रम टूटा नहीं था। नेताजी श्रदेया बडोनी जी की धर्मपत्नी को बुलाकर एकान्त के एक कमरे में ले आये जहॉ मैने नकद धनराशि उनको सौंपते हुये अनुरोध किया-

आदरणीय बडोनी जी को ईश्वर अमरत्व का वरदान दें। वह कृषकाय हैंतथा शरीर छोडकर कभी भी जा सकते हैं परन्तु अभी हमारे बीच वह जीवित है। सरकार द्वारा भेजी गयी स्वास्थ्य सहायता धनराशि समय से उन तक न पहुॅचना शायद ईश्वर की ही इच्छा रही होगी अन्यथाऐसी परिस्थितियॉ उत्पन्न न होतीं कि मरणासन्न बडोनी जी के अंतिम समय स्वास्थ्य सहायता राशि लेकर प्रशासन खडा है। कृपया श्री बडोनी जी के लिये यह धनराशि प्राप्त करना स्वीकार करें।


बडोनी जी की श्रदेया धर्मपत्नी की ऑखों में ऑसू उमड पडे परन्तु नेताजी के अनुरोध और ढांढस बंधाने पर वह धनराशि उन्होंने प्राप्त कर प्राप्ति रसीद पर हस्ताक्षर अंकित किये। इसके बाद श्रदेय बडोनी जी मरणासन्न शरीर के पास जाकर उनके अंगूठे की छाप भी संबंधित कागज पर अंकित कर मुझे दे दी। मैने श्रद्वा से अवनत होकर बडोनी जी के चरणों का स्पर्श किया परन्तु बडोनी जी के मुॅह से शब्द न फूट सके । मैने अगले दिन के लिये उनके पारिवारिक बन्घुओं से आवश्यक व्यवस्था आदि के संबंध में निर्देश प्राप्त किये और अथीनस्थो को तदानुसार दिशा निर्देश देकर मुख्यालय की ओर लौट चला। इस समय रात्रि के दो बज चुके थे। घर पहुॅचा तो ज्ञात हुआ कि जिला मुख्यालय से जिलाधिकारी महोदय का फोन कई बार आ चुका था और उन्होंने इस बात की हिदायत दी थी कि मैं जब भी लौटूॅ पूरी स्थिति से उन्हेे अवश्य अवगत कराउॅ। इसलिये मैने घर पहुॅचते ही जिलाधिकारी महोदय को वस्तुस्थिति की जानकारी दी तथापि उनके मन में यह शंका थी कि जब मुख्यमंत्री राहत कोष की धनराशि अभी तक उनके द्वारा वितरण हेतु प्रेषित ही नहीें की जा सकी थी तो उसका वितरण विधिक एवं नियमानुसार कैसे कराया जा सकता था?

मैने उनकी शंका का समाधान करते हुए उसी तिथि में इस आशय के निर्देश पारित किये कि - जिलाधिकारी महोदय से दूरभाष पर प्राप्त सूचना के अनुसार मुख्यमंत्री राहत कोष से धनराशि की स्वीकृति प्राप्त हो चुकी है, आहरण में होने वाले विलंब के कारण श्रदेय बडोनी जी की चिकित्सा पर प्रतिकूल प्रभाव न पडे इसलिसे तहसील कोषागार से वांछित धनराशि का भुगतान तत्काल कर दिया जाय।

दूसरे दिन अपने उक्त निर्देशों को अवलोकनार्थ जिलाधिकारी एवं उपजिलाधिकारी को संप्रेषित करने के उपरांत जैसे ही अपने कक्ष में बैठा था कि इस आशय का संदेश प्राप्त हुआ कि श्रदेय बडोनी जी ने शरीर त्याग दिया है। मैने उनके निकटस्थ सहयोगियों से संपर्क कर आगे के कार्यक्रम की जानकारी प्राप्त की।सांयःकाल श्रदेय बडोनी जी का अंतिम संस्कार श्चिित किया गया था।

जिले का पूरा प्रशासनिक महकमा श्रदेय बडोनी जी की अन्त्येष्ठि के अवसर पर श्रद्वॉन्जलि देने के लिये उपस्थित था ।मेरे सभी उच्च अधिकारी मुझे ऐसे अनुभव करा रहे थे जैसे किसी महत्वपूर्ण मिशन को सफलता पूर्वक समाप्त कर विजयी होकर लौटा हॅू परन्तु मेरा अंतरमन ऐसी कसक अनुभव कर रहा था कि- क्या सचमुच लगभग बीस दिन पूर्व आयी मुख्यमंत्री राहत कोष की सहायता धनराशि आहरित करने में जिला कार्यालय ने अपनी सार्थक भूमिका निभायी थी? क्या दो सप्ताह पूर्व सहायता राशि प्राप्त होने पर आदरणीय बडोनी जी का जीवन कुछ और दिन नहीं बचाया जासकता था? जिला कार्यालय की साख बचाने के लिये जिस प्रकार अंतिम क्षणों में धन प्राप्त कराने की जो कार्यवाही मैने की थी क्या वह सही थी?ो ऐसे ही अनेक प्रश्न मेरे अंतरमन में अनुत्तरित पडे थे?

आदरणीय बडोनी जी की आत्मा को शान्ति प्राप्त हो जिन्होंने शरीर त्यागने के अंतिम क्षणों में भी जिला कार्यालय में तैनात अनेक उत्तराखन्ड निवासी कामिकों तथा जिला प्रमुख को अभयदान दिया था। ....... ऐसे सच्चे उत्तराखन्ड के संत को शत् शत् नमन।

(आगे का हिस्सा श्री राजीव नयन बहुगुणा के संस्मरण से साभार)

उत्तरा खंड राज्य की अवधारणा के मूल पुरुषों में एक , इंद्र मणि बडोनी मूलतः संस्कृति कर्मी थे । टिहरी गढवाल के एक अति दुर्गम क्षेत्र ग्यारह गाँव हीन्दाव पट्टी के अखोड़ी गाँव में उनका जन्म पिछली सदी के दुसरे दशक में हुआ था । उनके गाँव में स्वादिष्ट काठे जंगली अखरोट होते थे । प्रारम्भिक शिक्षा के बाद परिवार की तंग माली हालत की वजह से उन्होंने कुछ समय नैनीताल में रिक्शा खींचा । फिर घर लौट आये और सामान्य से अधिक वय में इंटर तथा बी ए किया । स्नातक होने के बाद नौकरी न की । गाँव के प्रधान रहे । पचास के दशक में गांधी जी की चर्चित शिष्या मीरा बहन उनके इलाके में समाज सेवा के निमित्त आयीं । उन्होंने गाँव वालों से पूछा की क्या यहाँ कोई ग्रेजुएट लड़का भी है ? गाँव वालों ने जवाब दिया कि है तो सही , पर वह आजकल भैंस चराने डांडे गया है । जो युवक इलाके में एक मात्र ग्रेजुएट होकर भी भैस चराने पर्वत पर गया हो , वह अवश्य विलक्षण होगा , मीरा बहन ने यह भांप लिया । उन्होंने कुछ दिन बडोनी के डांडे से लौटने का वेट किया और फिर उन्हें गांधी जी के आश्रम सेवाग्राम में ट्रेनिंग के लिए भेज दिया । मेरे पिता सुंन्दर लाल बहुगुणा बताते हैं कि उनकी शादी में दाल भात बनाने के इंचार्ज इंद्र मणि बडोनी ही थे

....... ऐसे सच्चे उत्तराखन्ड के संत को पुनः शत् शत् नमन।

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