उदारता / धनेन्द्र "प्रवाही"

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अवकाश प्राप्त उच्चाधिकारी की फेयरवेल पार्टी में अच्छा-खासा जमावड़ा था। पत्रकारों की भीड़ थी।साहब की खूब तारीफ हो रही थी-"ये बड़े ही लोकप्रिय पदाधिकारी रहे।जनता एवं मातहत दोनों के चहेते।इनके कार्यकाल में कोई भी काम लंबित नहीं रहा करता था। ऐसे ही समर्पित एवं निष्ठावान पदाधिकारी देश के लिए जरुरी हैं .....इत्यादि, इत्यादि…. ."

अवकाश प्राप्ति के कुछ ही दिनों बाद इन्हें दो वर्षों के लिए अनुबंध पर सेवा में रख लिया गया। सरकार ने लोक महत्व के कई कार्य इन्हें सौंप दिए। दौड़ में और कई लोग थे, लेकिन इन्होने सबों को पछाड़ कर यह महत्वपूर्ण पद प्राप्त कर लिया।ये रहे ही इतने प्रभावशाली!

पत्रकारों के प्रश्न के उत्तर में कहा-

"देखिये, वैसे तो मैंने अपना सारा कार्यकाल जनता की सेवा में ही बिताया है,किन्तु अनुबंध की इस छोटी सी अवधी में मेरा विचार देश प्रदेश की सेवा और अधि उदारता पूर्वक करने का है। लोक सेवा हेतु प्राप्त इस अंतिम अवसर में मैं लोगों को निस्वार्थ भाव से यथा शक्ति ज्यादा राहत देना चाहूँगा।"

अखबारों में रंगीन तस्वीरें छपीं। गुणानुवाद छपे।शीघ्र ही इनकी ख्याति पहले से भी अधिक फ़ैल गयी।लोग बाग़ में खुले आम बातें होती-

"ऑफ़िसर हो तो ऐसा!नया पद सम्हालते ही इन्होने कमीशन की रकम में बाज़ार रेट से 2 5% की कमी कर दी।इस महंगाई में इतनी राहत कम है?"

नीचे से ऊपर तक सभी इनसे प्रसन्न हैं।

साहब की उदारता चर्चा का विषय है।

(पुनर्नवा, दैनिक जागरण ,29 June 2007 में प्रकाशित )