उनकी अच्छाई सदा याद रहेगी / जयप्रकाश चौकसे

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उनकी अच्छाई सदा याद रहेगी
प्रकाशन तिथि : 09 सितम्बर 2013


विट्ठलभाई पटेल के पिता श्री लल्लूभाई पटेल को सागर में कुछ लोग संत सेेठ लल्लूभाई पटेल कहकर पुकारते थे। दुनिया के किसी भी देश में धनाढ्य व्यक्ति को संत कहकर नहीं बुलाया जाता, परंतु धर्म में आकंठ डूबे भारत में कुछ लोग श्रीकृष्ण को भी सांवरिया सेठ की तरह संबोधित करते हैं। बहरहाल, बीड़ी के व्यापारी लल्लूभाई सहृदय धनाढ्य व्यक्ति थे और बेसहारा गरीब लोगों की मदद करते थे तथा उनके मकान की जमीनी मंजिल पर २४ घंटे भजन-कीर्तन करने वाले आठ-आठ घंटे की तीन शिफ्ट में काम करते थे तथा मकान का नाम भी राधेश्याम था। इस वातावरण का गहरा प्रभाव उनके परिवार के सदस्यों पर पड़ा और वि_लभाई पटेल सारा जीवन अपनी भलाई से जूझते रहे। दान देने का भी नशा हो जाता है और नहीं कुछ देने पर मन उदास हो जाता है। महाभारत के कर्ण ने अपनी रक्षा के कवच-कुंडल दान कर दिए, तभी एक भिक्षुक और आया। कर्ण के पास देने को कुछ नहीं था। तब भिक्षुक ने कहा कि आप अपने इस जन्म के सारे अच्छे कार्यों का लाभ मेरे नाम कर दें। कर्ण ने एक क्षण भी विलंब नहीं किया, तब भिक्षुक अपने असली रूप (श्रीकृष्ण के रूप) में सामने आए और उन्होंने कर्ण को दानवीर की उपाधि प्रदान की।

विट्ठलभाई पटेल राजनीति, साहित्य और सिनेमा में एक साथ सक्रिय थे और मंत्री पद पर रहते हुए भी उन पर कभी दाग नहीं लगा, वरन उनके परिवार को सबसे महंगा वही दौर पड़ा, क्योंकि उनके खर्च बढ़ गए थे। बहरहाल, विगत दशक में राजनीति में उन्हें अनदेखा कर दिया गया था, क्योंकि ईमानदार आदमी के लिए अब जगह नहीं है।

विट्ठलभाई को सबसे अधिक सुख सिनेमा क्षेत्र में ही मिला, जहां उन्हें सम्मान और प्रेम बिना शर्त मिला। कभी राज कपूर के घर में देर रात पधारे तो विशुद्ध शाकाहारी होने के कारण इनके लिए श्रीमती कृष्णा कपूर ने भोजन बनाया। विट्ठलभाई के निमंत्रण पर राज कपूर उनकी बेटी के विवाह के समय सागर पधारे और बेटी के बिदा होने तक न उन्होंने मदिरापान किया और न ही मांस का सेवन ही किया। इस तरह का प्रेममय रिश्ता विट्ठलभाई ने अपने व्यवहार से उत्पन्न किया था। फिल्म उद्योग में सेठ या संत होने से काम नहीं चलता, वहां केवल काम बोलता है।

विट्ठलभाई ने खंडवा में किशोर कुमार स्मारक के लिए सड़क पर घूम-घूमकर मात्र एक रुपया चंदा एक व्यक्ति से लिया। यह सर्वथा मौलिक पहल थी। विट्ठलभाई की दुविधा यह रही कि राजनीति में उन्हें कवि समझा गया, साहित्य में नेता और परिवार में ऐसा संत जो न कभी श्राप देता है और न कभी आशीर्वाद। वे ऐसी गाय की तरह रहे जिसने न दूध दिया, न पाड़ा। दरअसल, उनकी यह दुविधा हमारे सामाजिक व्यवहार की इस प्रवृत्ति को रेखांकित करती है कि उपयोगिता ही मनुष्य का मूल्य तय करती है। क्या कभी कुछ नहीं करना सचमुच अपमानजनक है? एक विचारक जब कुछ नहीं करता, तब भी वह बहुत कुछ कर रहा होता है।

विट्ठलभाई की मौलिकता यह रही कि उन्होंने अच्छाई को प्रतिभा के पर्याय के रूप में स्थापित कर दिया। वे प्रतिभावान नहीं थे, परंतु उनकी करुणा और अच्छाई ने उन्हें वह स्थान दिला दिया, जो प्रतिभाशाली लोगों का होता है। इसका यह अर्थ नहीं है कि उनमें प्रतिभा नहीं थी, परंतु उनका अच्छाई का गुण ही उनको स्मरण करने पर सामने आता है। इस तरह के अजूबे कभी-कभी होते हैं। महाभारत का नायक योद्धा अर्जुन है, परंतु दानवीर कर्ण को सम्मान दिया जाता है।