उपभोक्तावाद, उपयोगितावाद, अवसाद / जयप्रकाश चौकसे

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उपभोक्तावाद, उपयोगितावाद, अवसाद
प्रकाशन तिथि : 26 फरवरी 2019


अमेरिका की लोकप्रिय छवि एक खुशहाल संपन्न देश की है और दुनिया के तमाम देशों के कुछ नागरिक अमेरिका में बसने के लिए लालायित रहते हैं। मुंबई में अमेरिकन एम्बेसी के वीज़ा देने वाले दफ्तर के सामने प्रतिदिन लंबी कतार लगी होती है।

अमेरिका की एल डोरेडो वाली छवि भी बन गई है। एल डोरेडो अर्थात सोने की खान यह सारी छवियां रेगिस्तान में दिखाई देने वाले छल की तरह ही साबित होती हैं। मेरे एक मित्र अमरीश पटेल आराम पसंद व्यक्ति थे परंतु अपने बच्चों के अमेरिका में बस जाने के बाद वहां गए। भारत में वे सदैव चप्पल पहनते थे। अमेरिका में उन्हें जूते पहनने पड़े और प्रतिदिन कुछ मील पैदल चलना पड़ा। हर शाम घर लौटते ही वे गर्म पानी में पैर डाल कर बैठ जाते थे। चलते-चलते पैरों में सूजन आने लगी परंतु विचार प्रक्रिया में जमी यह सूजन कि अमेरिका स्वर्ग समान है, उतर गई और उन्हें भारत में बिताया आराम पसंद वक्त याद आने लगा। धर्मवीर भारती की कविता का अंश है- 'भटकोगे बेबात कहीं, लौटोगे हर यात्रा के बाद यहीं।'

आजकल यह अफवाह गरम है कि अमेरिकी अपना प्रदेश मोंटाना कैनेडा को बेचना चाहते हैं। 1562 लाख करोड़ रुपए के कर्ज में डूबा अमेरिका अपने 'निक्कमे' भू-भाग से मुक्त होना चाहता है। दरअसल, अमेरिकी सीनेट इस वाहियात अफवाह से परेशान है, क्योंकि इस तरह का मुद्दा सीनेट में उठाया ही नहीं जा सकता। कोई भी देश अपने किसी हिस्से पर किए गए खर्च या उसे प्राप्त लाभ द्वारा संचालित नहीं होता। हमारे उत्तर पूर्व के सात राज्यों में व्यवस्था बनाए रखना खर्चीला है परंतु केवल इस कारण हम उन प्रदेशों का चीन में शामिल हो जाना पसंद नहीं करेंगे। चीन को हमेशा भारत से यह नाराजगी रही है कि भारत में ब्रिटिश हुकूमत के दौर में चीन का कुछ भाग भारत में शामिल कर लिया गया है।

यह पूरी बात हम मानव शरीर के विभिन्न अंगों की उपयोगिता से भी समझ सकते हैं। हर अंग की अपनी भूमिका है और सभी आवश्यक हैं और एक दूसरे के पूरक भी। अब ऐसा तो नहीं हो सकता कि यकृत कहे कि वह सबसे महत्वपूर्ण अंग है या मस्तिष्क कहे कि वह विचार क्षेत्र में सबसे महत्वपूर्ण है और उदर सबसे निकम्मा है जहां भूख का जन्म होता है। भूख की अग्नि के साथ ही पाचन करने वाले अम्ल का जन्म होता है। इस तरह मानव शरीर में ही अग्नि और जल के बीच कोई शत्रुता नहीं है जबकि धरती पर लगी आग पानी बुझा देता है। अतः धरती पर दिखते शत्रु , मानव शरीर में एक-दूसरे के मित्र हैं। मानव ही सर्वोत्तम रचना है, भले ही वह आधा-अधूरा हो। उसका अधूरापन ही उसका आकर्षण है। संपूर्णता के आदर्श को खारिज नहीं किया जा सकता, क्योंकि उसे पाने का प्रयास ही जीवन को सार्थकता देता है। मंजिल एक कल्पना है, चलते रहना ही जीवन है। जीवन लाभ-हानि दर्ज करने वाले बहीखाते से शासित नहीं होता। निरर्थक काम भी जीवन का अनिवार्य हिस्सा है।

बर्ट्रेन्ड रसैल का एक लेख है 'इन प्रेज ऑफ आइडलनेस' अर्थात आलस्य की प्रशंसा में। कई लोगों ने आलस्य के क्षणों में बैठे ठाले ही महान कविता लिख दी है। उपयोगिता आधारित विषैली सोच के तहत तो तमाम उम्रदराज और सेवानिवृत्त लोगों को आत्महत्या कर लेनी चाहिए या उन्हें कत्ल कर दिया जाना चाहिए। अपनों द्वारा त्यागे हुए लोग 'होम फॉर ओल्ड' में भेज दिए जाते हैं। जहां अजनबियों से उन्हें स्नेह मिलता है। इसी पर प्रकाश डालती है चंद्रकांत देवताले की कविता-'पुराने उम्रदराज दरख्तों से छिटकती छालें/ कब्र पर उगी ताजा घास पर गिरती है/ अतीत चौकड़ी भरते हिरण की तरह, मुझमें से होते हुए भविष्य में छलांग लगाता है/ मैं उजाड़ में एक संग्रहालय हूं, हिरण की खाल और एक शाही बाघ को चमका रही है उतरती हुई धूप/ पुरानी तस्वीर मुझ पर तोप की तरह तनी है/ भूख की छायाओं और चीखों के टुकड़ों को दबोच कर नरभक्षी शेर की तरह सजा धजा बैठा है जीवन इतिहास/ कल सुबह झंडा फहराने के बाद जो भी कुछ कहा जाएगा उसे बर्दाश्त करने की ताकत मिले सबको'। इस कविता का शीर्षक '14 अगस्त' है। उपभोक्तावाद का ही अटूट हिस्सा है उपयोगितावाद।