उपेन्द्रनाथ अश्क: व्यक्ति चिंतन के शिल्पी / उपेन्द्रनाथ अश्क

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उपेन्द्रनाथ अश्क: व्यक्ति चिंतन के शिल्पी

हिन्दी उपन्यास ने शतायु को पार कर दिया है। इस लंबी अवधि में उपन्यास के कार्य और शिल्प में अनेक परिवर्तन एवं विकास हुये हैं। वर्ण्य एवं शिल्प के इन परिवर्तनों के कारण ही हिन्दी उपन्यास प्राणवान होता गया है। उसके कलेवर में अभिवृद्धि होती गयी है, उसके कलात्मक सौदर्य में निखार आता गया है और उसका अनेक शाखाओं में प्रसार-प्रचार उसकी बढ़ती हुयी सामर्थ्य का परिचायक रहा है।

उपेंद्रनाथ अश्क प्रेमचंद्रोत्तर युग में सामाजिक यथार्थ- व्यक्तिचिंतन के उपन्यासकार रहे हैं। अश्क को व्यक्ति चिंतन रचनाकार मानने का कारण यही है कि उन्होंने सामन्ती परंपराओं और मान्यताओं का विरोध किया है। उन्होंने समाज कल्याण की बात को व्यक्ति के कल्याण की बात से अलग नहीं किया। उन्होंने व्यक्ति जीवन-घटनाओं को प्रमुखता प्रदान की, व्यक्तिगत जीवन-दर्शन को महत्व दिया, व्यक्तिगत जीवन की समस्याओं का अंकन किया, व्यक्तिगत मनोविज्ञान के आधार पर व्यक्ति का विश्ेलषण किया। अश्क ने सामाजिक मान्यताओं की तुलना में वैयक्तिक मूल्यों को अधिक महत्व दिया। उन्होंने सामाजिक लक्ष्य को मान्यता न देकर वैयक्तिक जीवन के चित्रण को सर्वोपरि माना।

अश्क के उपन्यासों में व्यक्ति अपने पूर्ण रूप में चित्रित हुआ है। उनका मानना है कि व्यक्ति समाज का एक अभिन्न हिस्सा है जो कभी समाज से कट नहीं सकता। उनकी दृष्टि में व्यक्ति समाज से पूर्णत: कट कर रहे यह संभव नहीं है। वास्तव में वह व्यक्ति औैर समाज दोनों को एक दूसरे के पूरक मानते हैं। वह व्यक्ति का हित समाज-कल्याण के लिए औैर समाज का हित व्यक्ति-कल्याण के लिए मानते हैं। उनका मानना है कि -

जीवन तो कूड़े-करकट, धुंए-धुंध, गर्द-गुबार, कीचड़ और दलदल से अटा पड़ा है। मानव मन इतना सरल नहीं कि देवता हो। वह पासे का सोना नहीं, अष्टधातु का मिश्रण है कि उसके बाहर की उलझनों का अपरिमित विस्तार नहीं, उसके अंतर में बेगिनती स्तर हैं जिनके नीचे ऐसी-ऐसी अंधेरी कंदराएं हैं जिनकी झांकी मात्र कंपा देने को यथेष्ट है औैर मैंने सोचा कि किसी पासे के सोने से बने देवता को चित्रित करने के बदले इसी गुण-दोषों के पुतले मानव ही का चित्र क्यों न उकेरा जाए। (उपन्यासकार अश्क, पृ.65)

अश्क का प्रथम उपन्यास सितारों का खेल जो यथार्थ से दूर है परंतु यहां पर भी प्रेम का व्यक्ति मूलक पक्ष उभरता है जो अश्क की व्यक्तिवादी जीवन-दृष्टि का परिचय देता है। इस उपन्यास के पश्चात अश्क ने गिरती दीवारें उपन्यास लिखा। यह उपन्यास अपनी कथन शैली के कारण चर्चित रहा। लेकिन इस उपन्यास के साथ उन्होंने व्यक्ति चिंतन के पक्ष को अधिक मजबूत किया और चेतन नामक पात्र को लेकर एक पूरी चेतन श्रृंखला खड़ी कर दी। इनके गिरती दीवारें, शहर में घूमता आइना, एक नन्हीं किन्दील, बांधों न नाव इस गांव और पलटती धारा उपन्यासों को चेतन-श्रृंखला में रखा जा सकता है।

अश्क का चेतन निम्-मध्यमवर्गीय समाज का एक संघर्षरत युवक है। यह चेतन महत्वाकांक्षी है, एक भावुक हृदय रखने वाला इंसान है। वह अपने व्यक्तित्व को एक बड़ी चींज मानता है, वह एक बुद्धिजीवी व्यक्ति है, वह निम्-मध्यमवर्गीय समाज का असहाय प्रतीक है औैर घुट-घुटकर मरना जानता है।

चेतन व्यक्तिवादी जीवन-दर्शन का प्रतीक बनकर आया है। अश्क के उपन्यासों में निम् मध्यमवर्गीय परिवार का चित्रण जिस तरह से हुआ है उससे यह बात तो साफ दिखाई देती है कि इनके उपन्यासों के नायक ज्यादातर अपने अंतर्द्वंद्व को झेलते रहते हैं। अश्क की लेखनी इस प्रकार रही है कि इनके उपन्यासों के नायक बिल्कुल सरल, आम व्यक्ति का रूप लेकर आये हैं। कोई भी बात बढ़ा-चढ़ाकर नहीं बतायी। अश्क का व्यक्ति चिंतन इनके चेतन-श्रृंखला उपन्यास लिखने के इरादे से स्पष्ट झलकता है। वे व्यक्ति को और वह भी निम्-मध्यमवर्गीय समाज के व्यक्ति को जो चारों ओर से समस्याओं से घिरा हुआ है को एक भव्य रूप देना चाहते थे। उपेंद्रनाथ अश्क व्यक्ति चिंतन के पक्ष द्वारा ही जीवन और समाज के बारे में अपने अनुभवजनिक सत्यों को अभिव्यक्त भी करना चाहते थे। इसी संदर्भ में उन्होंने गिरती दीवारें को लेकर एक स्थान पर लिखा है -

..... मेरे दिमाग में एक ऐसे बृहदाकार उपन्यास की एक रूपरेखा बन गयी, जिसमेें समाज की रूढ़िवादिता और कुरीतियों के शिकंजे में जकड़े हुये एक निम्-मध्यमवर्गीय युवक के मनोविज्ञान का यथार्थवादी चित्रण करने की मैंने सोची- यह दिखाने के लिए कि ंजिंदगी की जिन घटनाओं को विधाता के मत्थे मढ़ दिया जाता है, प्राय: उनका कारण आदमी के अपने संस्कार, समाजगत स्थितियां और वातावरण होते हैं, मैं चाहता था उपन्यास ऐसे लिखूं कि अपनी ओर से कुछ न कहना पड़े और उपन्यास को पढ़कर पाठक के मन में यह प्रबल इच्छा पैदा हो कि यह समाज बदल दिया जाए ताकि व्यक्ति बेहतर तौर पर प्रगति कर सके और अपनी प्रकृत शक्तियों को कुंठित होने से बचा कर अपने भव्य रूप को पा सके।

अश्क की जीवनदृष्टि व्यक्ति चिंतन के आधार पर चलती है। इसीलिए कहा जा सकता है कि प्रेमचंद परंपरा के उपन्यास-साहित्य के मूल में जो समाज-सत्य, समाज-मंगल अथवा समाज-यथार्थ की जीवन-दृष्टि रही, वहीं अश्क की उपन्यास कला को प्रेरित करने वाला व्यक्ति-सत्य, व्यक्ति-हित अथवा व्यक्ति-यथार्थ का दृष्टिकोण माना जाएगा। अश्क ने गिरती दीवारें के प्रारंभ में जिस जोश के साथ चेतन के जीवन के नौ हिस्सों को प्रस्तुत करके एक बृहदाकार उपन्यास श्रृंखला की योजना बनायी थी वह पूर्ण तो नहीं हो सकी लेकिन पांच उपन्यासों में चेतन के जीवन खंड के कुछ भाग को प्रस्तुत किया। गिरती दीवारें के बाद का चेतन व्यक्ति चिंतन के और पक्षों को छूने का प्रयास करता है। गिरती दीवारें के चेतन का पहला रूप जीवन से भागने की देन है, दूसरा भोगे हुये जीवन की स्मृति का परिणाम। शहर में घूमता आइना का चेतन एकहत्थी है, जो आइना बनकर समाज के विभिन्न वर्गों की समस्याओें का परिचय देता है। एक नन्ही किन्दील का चेतन पेट औैर सेक्स के स्तर से उठकर अहम की अनुभूतियों से जूझने लगा है। इस उपन्यास में अश्क ने चेतन के पात्र द्वारा व्यक्ति चिंतन के घोर परिश्रमी, प्रबल महत्वाकांक्षी और इस्पाती इच्छा-शक्ति तथा अवसरवादिता जैसे गुणाें का उद्धाटन कर दिया है। बांधों न नाव इस गांव का चेतन आत्मविश्वास और स्वाभिमान से भरा है। पलटती धारा का चेतन दृढ़ निश्चयी, पलायनवादी तथा दयालु है।

अश्क के चेतन श्रृंखला के अलावा के उपन्यासों पर दृष्टि करें तो वहां पर भी उनका व्यक्ति चिंतन का पक्ष बरकरार रहा है। गर्म राख उपन्यास में पात्रों का वैविध्य देखने को मिलता है। यहां पर लेखक ने समाज के माध्यम से व्यक्तियों का चित्र प्रस्तुत किया है। गर्म राख का जगमोहन चेतन का ही एक भाग लगता है। जबकि हरीश तथा दूरो का वर्णन हमें उनकी कर्मठता एवं कर्तव्यनिष्ठा के दर्शन कराते हैं। यहां पर लेखक का व्यक्ति चिंतन हरीश-दूरो के द्वारा प्रकट होता है। यह दोनों समाज की समस्याओं को लेकर चिंतित है औैर समाज कल्याण में अपने जीवन के सपनों की भी आहुति दे देते हैं। अन्य चरित्र जिसमें विशेषरूप से गिनें तो कवि चातक, शुक्लाजी, पं. दाताराम, पं. रघुनाथ आदि ऐसे हैं जो नारी प्रेम के लिए जितने लालायित नहीं उतने उसके भोग के लिए लार टपकाते हैं। व्यक्ति दर्शन का यह रूप समाज की वास्तविक स्थिति का बयान करता है। अश्क ने यहां पर बहुत से पात्रों का व्यंग्य-विद्रूपभरा चित्रण किया है जो उनकी बनावटों की पोल खोलता है। यही स्थिति शहर में घूमता आइना में भी है। यहां पर अश्क का व्यक्ति चिंतन समाज चिंतन का रूप ले लेता है। समाज की सड़ी-गली समस्याओं में पिसता व्यक्ति परिस्थिति की दासता ओढ़े है। ये दासता मोहल्ले की अभावग्रस्त जिंदगी का बयान करती है तो कभी यौन समस्या के रूप में पड़ी कामुकता को जागृत करती है। जिस समाज में अशिक्षा, असंस्कृति, भूख और प्यास का राज्य होता है, उस समाज का व्यक्ति दिशाहीन होने के अलावा कुछ भी नहीं हो सकता। उनका बड़ी-बड़ी आंखें उपन्यास व्यक्ति समूह की दबी हुई इच्छाओं का आक्रन्द है। अश्क ने इस उपन्यास में सामंती रूढियों एवं पूंजीवादी मान्यताओं का खुलकर उद्धाटन किया है। यहां पर पात्र चित्रण में अश्क की मनोविशेषणात्मक शैली के दर्शन होते हैं। जबकि पत्थर-अलपत्थर में पहली बार अश्क ने निम्वर्ग के एक सर्वहारा पात्र को उपन्यास में नायक के रूप मेें उठाया और अपनी यथार्थवादी शैली में उसके जीवन की पीड़ा को व्यक्त किया है।

निमिषा अश्क का नायिका प्रधान उपन्यास है। यहां पर लेखक का व्यक्ति चिंतन निमिषा नामक स्त्री पात्र की संवेदनाएं, उसकी जिम्मेदारियां तथा आशाओं का पक्ष प्रस्तुत करता है तो साथ ही साथ गोविंद जैसे महज भावप्रवण, आवेगी, अव्यावहारिक, कमजोर व्यक्ति का परिचय भी देता है। इसी उपन्यास का एक स्त्री पात्र है माता का जो परिवेशगत तैयार किया गया है। ऐसी स्त्रियां जिनके लिए कामोत्तेजना सबसे अग्रिम कार्य है। इसी के साथ जुड़ी उनकी अंधश्रद्धा उनकी फूहड़ता को ही व्यक्त करती है।

अश्क का नारी जगत वैविध्य से भरपूर रहा है। यहां पर अनपढ़, गंवार, अंधश्रद्धालु, कुप्रथा तथा सड़ी-गली मान्यताओं के बीच फंसा नारी जगत का चित्रण निम्न मध्यमवर्गीय तथा निम्वर्ग की सच्चाई को यथार्थ रूप में प्रस्तुत करता है।

अश्क ने मूलत: ऐसे चरित्रों का निर्माण किया है जो जीवनमूल्यों को समझकर, उसको बचाकर समाजगत समस्याओं में से अपने आपको निर्विघ् पार करने का प्रयास करते हैं। हम जानते हैं कि अश्क का मानवजगत विशेषकर निम्न मध्यमवर्ग की समस्याओं से आक्रांत है। अत: अश्क का समग्र ध्यान उस समाज की सड़ी-गली व्यवस्थाओं से जूझने वाले व्यक्ति पर रहे यह स्वाभाविक है। समाजवादी परंपरा का जो रूप अश्क के उपन्यासों में दृश्यमान होता है वह उन चरित्रों के द्वारा उत्पन्न होता है जिन्हें उन्होंने अपनी अनुभव दृष्टि और अद्भुत वर्णन-शैली द्वारा प्रस्तुत किया है। अश्क के व्यक्ति चिंतन के पक्ष को देखकर यही सुर निकलता है कि उन्होंने अपने चरित्रों को शिल्पी की बारीक दृष्टि से तराशा है, जिसकी एक-एक रेखाओं से उसकी संघर्षशीलता का प्रमाण दृष्टिगोचर होता है और जो अपने क्षेत्र में पूर्र्र्र्र्ण बनने की कोशिश में हरदम हरपल संघर्र्ष कर रहा है।

आलेख : डॉ. मनीष

8, सुंदरम् बंगलोज, कर्णावती क्लब के सामने,

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