उल्लू का राज्याभिषेक / जातक कथाएँ

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कौवों और उल्लुओं की शत्रुता बड़ी पुरानी है। जैसे मनुष्यों ने एक सर्वगुण-सम्पन्न पुरुष को अपना अधिपति बनाते हैं; जानवरों ने सिंह को; तथा मछलियों ने एक विशाल मत्स्य को। इससे प्रेरित हो कर पंछियों ने भी एक सभा कि और उल्लू को भारी मत से राजा बनाने का प्रस्ताव रखा।

राज्याभिषेक के ठीक पूर्व पंछियों ने दो बार घोषणा भी की कि उल्लू उनका राजा है किन्तु अभिषेक के ठीक पूर्व जब वे तीसरी बार घोषणा करने जा रहे थे तो कौवे ने काँव-काँव कर उनकी घोषणा का विरोध किया और कहा क्यों ऐसे पक्षी को राजा बनाया जा रहा था जो देखने से क्रोधी प्रकृति का है और जिसकी एक वक्र दृष्टि से ही लोग गर्म हांडी में रखे तिल की तरह फूटने लगते हैं। कौवे के इस विरोध को उल्लू सहन न कर सका और उसी समय वह उसे मारने के लिए झपटा और उसके पीछे-पीछे भागने लगा। तब पंछियों ने भी सोचा कि उल्लू राजा बनने के योग्य नहीं था क्योंकि वह अपने क्रोध को नियंत्रित नहीं कर सकता था। अत: उन्होंने हंस को अपना राजा बनाया।

किन्तु उल्लू और कौवों की शत्रुता तभी से आज तक चलती आ रही है।